साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Sunday, June 06, 2021

एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर के पदों के 'ईडब्ल्यूएस आरक्षण' पर उठने लगे गंभीर सवाल और साबित होने लगे आरोप- नन्द लाल वर्मा (एसोसिएट प्रोफेसर)

एक विमर्श

विडंबना:उप मुख्यमंत्री और उच्च शिक्षा मंत्री डॉ.दिनेश शर्मा (प्रोफेसर) राज्य विश्वविद्यालयों में भर्ती विज्ञापनों को देखकर इस विषय पर विचार करने की बात कह रहे हैं!


उच्च शिक्षा में ईडब्ल्यूएस में शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया और कानूनों-मानकों की अनदेखी की आड़ में घोटाला करते विशेष वर्ग के शिक्षाविद

N.L.Verma 



         कपिलवस्तु-सिद्धार्थ नगर स्थित सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान विभाग की एकमात्र रिक्ति पर राज्य के बेसिक शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. सतीश चंद्र द्विवेदी के भाई डॉ. अरुण कुमार द्विवेदी की ईडब्ल्यूएस(आर्थिक रूप से निर्बल सामान्य वर्ग) आरक्षण के तहत असिस्टेंट प्रोफेसर के पद हुई नियुक्ति का प्रकरण सोशल मीडिया और विपक्षी राजनैतिक गलियारों में शोर-शराबा मचने के बाद अपने भाई की राजनैतिक छवि बचाने की दुहाई देते हुए डॉ. अरुण द्विवेदी ने अपरिहार्य कारण का उल्लेख करते हुए कार्यभार ग्रहण करने के कुछ दिनों के बाद इस्तीफ़ा देकर प्रकरण का पटाक्षेप करने का प्रयास किया था। सोशल मीडिया से लेकर राजनैतिक विपक्षियों के ख़ेमे में भाई की नियुक्ति में विश्वविद्यालय और जिला प्रशासन के साथ भाई मंत्री  की संलिप्तता को उजागर कर उनके मंत्रित्वकाल काल मे खरीदी गई अचल संपत्तियों का भी खुलासा होने में देर नही लगी। ईडब्ल्यूएस प्रमाणपत्र बनाने से लेकर नियुक्ति और कार्यभार ग्रहण करने तक विश्वविद्यालय स्तर पर ईडब्ल्यूएस के मानदंडों की जानबूझकर जो अनदेखी और अनियमितता हुई हैं, सभी स्तरों पर बिंदुवार न्यायिक जांच का विषय है। ईडब्ल्यूएस के मानकों की जानबूझकर अनदेखी और शिथिलीकरण संविधान का उल्लंघन मानकर प्रकरण की प्रत्येक संलिप्त और दोषी को दंडित किया जाना बहुत जरूरी है जिससे कानून कायदों की आड़ में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने की दिशा में कारगर सिद्ध हो सके।अन्यथा ईडब्ल्यूएस आरक्षण के मानकों की आड़ में विश्वविद्यालयों में बैठे जातीय घाघों का यह सिलसिला चलता रहेगा और गरीब लोगों का आरक्षण ऐसे छुपे भेड़िये गटकते रहेंगे।

         द्विवेदी भर्ती प्रकरण के बाद ईडब्ल्यूएस आरक्षण में क़ायदे-कानूनों के पालन में जानबूझकर की जा रही अनदेखी, अनियमितताओं और उपेक्षाओं पर ध्यानकेंद्रित होना शुरू हुआ है।दरअसल, ओबीसी,एससी और एसटी के तथाकथित शिक्षित और नौकरीपेशा तक के लोगों को  ईडब्ल्यूएस के मानकों की जानकारी नही है तो फिर वे ईडब्ल्यूएस आरक्षण में हुई अनियमितताओं पर सवाल और आपत्तियां कैसे कर सकते है? विडंबना देखिए सामान्य वर्ग के निर्बल वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के आरक्षण पर सवाल,आपत्तियां और कानूनी लड़ाई लड़ने वाला याचिकाकर्ता डॉ. एनके पाठक सामान्य वर्ग से ही ताल्लुक़ रखते हैं। उनका कहना है कि एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर के पदों पर बांछित सेवाकाल अनुभव वाला ईडब्ल्यूएस आरक्षण की परिधि में आय के दृष्टिकोण से कैसे आ सकता है? सातवें वेतन आयोग की अनुशंसा के आधार पर असिस्टेंट प्रोफेसर का मूल वेतन ₹57700 है।इस पर निर्धारित दर से डीए और एचआरए शामिल करते हुए नवनियुक्त को लगभग ₹75000 मासिक वेतन मिलता है, तो एसोसिएट प्रोफेसर पद पर आवेदन करने के लिए आठ साल और प्रोफेसर पद के लिए दस साल की सेवा काल की अनिवार्यता पूरी करने वाला अभ्यर्थी ईडब्ल्यूएस आरक्षण के मानकों की परिधि में कैसे आ सकता है? ईडब्ल्यूएस को परिभाषित और मानक तय करते समय केंद्र सरकार की अधिसूचना के हिसाब से अभ्यर्थी के "परिवार" की समस्त स्रोतों से "वार्षिक आय आठ लाख रुपये" से अधिक नही होनी चाहिए।अधिसूचना में परिवार को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि अभ्यर्थी के परिवार में "वह स्वयं,उसकी पत्नी/पति और उसके माता-पिता" को शामिल कर उस परिवार की कुल वार्षिक आय की गणना की जाएगी जो अन्य निर्धारित मानकों के साथ आठ लाख रुपये से अधिक नही होनी चाहिए।

          प्रदेश के राज्य विश्वविद्यालयों में होने वाली भर्तियों में "एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर " के पदों पर सरकार द्वारा सामान्य वर्ग के 'ईडब्ल्यूएस को दिए जाने वाले 10% आरक्षण' में आय संबंधी मानकों की जानबूझकर की जा रही अनदेखी और भर्ती प्रक्रिया पर गंभीर सवाल और आरोप लगना शुरू हो गए हैं, क्योंकि एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर के पदों पर भर्ती के लिए वांछित अनिवार्य सेवाकाल (असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर क्रमशः आठ और दस साल) का अनुभव रखने वाले अभ्यर्थी और उसके परिवार की वार्षिक आय ईडब्ल्यूएस के मानक की परिधि में नही आ सकती है अर्थात वह आरक्षण का हकदार कैसे हो सकता है? एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर के पद पर आवेदन की अनिवार्य शर्त है कि उसने असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कम से कम क्रमशःआठ साल और दस साल तक  अध्यापन कार्य या इसके समकक्ष पद पर किसी संस्थान में आठ/दस साल तक शोध कार्य कार्य किया हो।

            सातवें वेतन आयोग की अनुशंसा के अनुसार असिस्टेंट प्रोफेसर या उसके समकक्ष पद पर आठ /दस साल तक कार्य करने वाले व्यक्ति का वेतन इतना हो जाता है कि उसके ईडब्ल्यूएस में आने की कोई गुंजाइश या संभावना ही नही रह जाती है।ईडब्ल्यूएस आरक्षण का विवाद तब तूल पकड़ा जब राज्य विश्वविद्यालयों ने एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर के पदों पर भर्तियों के लिए विज्ञापन जारी कर दिए।दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय गोरखपुर ने 6 मई,2021 को, जिसकी आवेदन करने की अंतिम तारीख सात जून है,ईडब्ल्यूएस आरक्षण में असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों के साथ एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर के पदों को भी विज्ञापित कर दिया। इससे पहले इसी तरह सिद्धार्थ विश्वविद्यालय, कपिलवस्तु-सिद्धार्थनगर ने भी ईडब्ल्यूएस आरक्षण में तीनों पदों पर भर्ती विज्ञापन जारी कर दिया था।यह सब अनजाने या ग़लतफ़हमी में नही हुआ बल्कि,उच्च शिक्षा जगत में लंबे समय से कब्जा जमाए बैठे एक विशिष्ट वर्ग की सोची-समझी साजिश और दूरगामी रणनीति के तहत जानबूझकर अनदेखी करने का षडयंत्र रचा गया प्रतीत होता है।सिद्धार्थ विश्वविद्यालय ने बाकायदा इन रिक्तियों पर भर्ती प्रक्रिया तक पूरी कर डाली थी।हांलाकि इस विज्ञापन के ईडब्ल्यूएस आरक्षण के पद नही भरे जा सके थे।लखनऊ विश्वविद्यालय में अभी रिक्तियों पर भर्ती प्रक्रिया ही शुरू नही हुई है।लखनऊ स्थित मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय में तो असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर ईडब्ल्यूएस आरक्षण में एक नियुक्ति तक हो चुकी है।

लखीमपुर-खीरी (यूपी) 9415461224,8858656000

No comments:

पढ़िये आज की रचना

चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

(फिल्म समीक्षा)      एक मां के लिए उसका बेटा चाहे जैसा हो वह राजा बेटा ही होता है, बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिन्हें हम अपने विचार...

सबसे ज्यादा जो पढ़े गये, आप भी पढ़ें.