साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०
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Saturday, June 26, 2021

हम बच्चे-मधुर कुलश्रेष्ठ

मधुर कुलश्रेष्ठ
हम नन्हें मुन्ने बच्चे प्यारे प्यारे
कंचे गोली गिल्ली डंडा खेल हमारे
भागम-भाग, छिपन छिपाई
इक्कड़ दुक्कड़ हमको लगते प्यारे 

धौल धपट कर लड़ते झगड़ते
पल में गलबहियाँ डाले फिरते
हम नासमझों की दुनियां में
झट मिट जाते गिले हमारे

लड़के लड़की का भेद नहीं
जात पाँत की दीवार न आती
मिल जुलकर सब खेल खेलते
इस घर से उस घर के द्वारे

हम नन्हें मुन्ने बच्चे प्यारे प्यारे

Tuesday, June 15, 2021

कोई तो बचाओ हम ऑक्सीजन उत्सर्जकों को-मधुर कुलश्रेष्ठ

व्यंग्य
प्राकृतिक ऑक्सीजन उत्सर्जक वृक्ष, घर के बड़े बूढ़ों की तरह निगाहों में खटक रहे थे। आधुनिकता की चमकीली रपटीली सड़क पर अवांछनीय तत्वों की तरह जड़ें जमाए हटने के लिए तैयार ही नहीं थे। ऐसी भी क्या परोपकारिता कि बदले में कुछ नहीं चाहिए। बस देते ही रहना व्यक्तित्व का दुर्लभ गुण। “गिव एंड टेक” वाले युग में ऐसे कुलक्षण वाले सड़क या घरों में नहीं अजायबघरों में ही अच्छे लगते हैं। कम से कम वहां टिकट के नाम पर कुछ तो धनोपार्जन हो जाता है। वृक्ष बचाओ, जंगल बचाओ के कवच में पीठ पर छुरा सहते सहते आखिर वृक्ष और वृद्ध दम तोड़ गए।

अब विकास ने चैन की सांस ली। सारे अवरोधक खत्म। फर्राटे से गाड़ी दौड़ाई जा सकेगी। गाड़ी दौड़ेगी तो न, न करते हुए भी बहुत कुछ लॉकर में समा ही जाएगा। पर हाय रे कोरोना, तुच्छ सी ऑक्सीजन के लिए हाय हाय करवा दी। पर्यावरण संरक्षण वालों, गरीबों की हिमायत वालों, एक्टिविस्टों की दुकानें चमकने लगीं। आपदा में कृत्रिम ऑक्सीजन से फेफड़े भी अघा-अघा कर दम तोड़ गए। लॉकर गले गले तक अफरा गए। लोग 99 को 100 बनाने की ललक में तरह-तरह के मंसूबे पलने लगे। हर अस्पताल में ऑक्सीजन संयत्र पर संयत्र लगाने की गंगा में डुबकियां लगीं। संयत्र बने तब तक कोरोना दम तोड़ चुका।
रात गई बात गई। ऑक्सीजन संयंत्र उपेक्षित होकर अपनी दुर्दशा पर आँसू बहाने को मजबूर। मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं। उपेक्षा से तंग आकर वृक्षों और संयत्रों दोनों ने गुहार लगाई कोई तो बचाओ हम ऑक्सीजन उत्सर्जकों को।

Monday, May 24, 2021

हमारे इंसानी रोबोट तुम्हारे रोबोट से कम हैं के

हमारे इंसानी रोबोट तुम्हारे रोबोट से कम हैं के

 

"हमारे रोबोट पाई-पाई का हिसाब होने तक कुंडली मारकर बैठे रहते हैं। चाहे कोई कितना भी गिड़गिड़ाए ऑक्सीजन सिलेंडर, दवाइयां, बेड, वेंटिलेटर देने से पहले भरपूर कालाबाजारी और अपना कमीशन वसूल करते हैं। मेरे देश के सबसे बड़े रोबोट का तो पूरे ब्रह्मांड में कोई सानी नहीं है। मन से चलता है। आदमी की नब्ज को पकड़ कर आँसुओं की धार भी लगा देता है।"

 

यहां तो इंसान ही रोबोट बना दिए। जापानी वैज्ञानिक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस अपने रोबोट के बारे में न केवल बता रहा था बल्कि उससे अपने निर्देशों का पालन भी करा रहा था। बहुत देर तक प्रदर्शन चलता रहा।वहां बैठे फोकटिया लाल से नहीं रहा गया। खड़े होकर बोलने लगा -ऐ भाई चुपकर, तुम और तुम्हारे रोबोट हमारे रोबोटों से क्या टक्कर लेंगे। हमारे रोबोटों का दुनियाँ भर में कोई मुकाबला नहीं है।

 Human robot head Stock Vector Image & Art - Alamy

हमारे रोबोट पाई-पाई का हिसाब होने तक कुंडली मारकर बैठे रहते हैं। हिसाब तो छोटा मोटा ही होता है मतलब केवल दस बीस लाख का। मरीज को डिस्चार्ज करना तो दूर, लाश तक परिजनों को नहीं देते हैं। चाहे कोई कितना भी गिड़गिड़ाए ऑक्सीजन सिलेंडर, दवाइयां, बेड, वेंटिलेटर देने से पहले भरपूर कालाबाजारी और अपना कमीशन वसूल करते हैं। सत्यवादी हरिश्चंद्र अपनी सत्यवादिता के कारण श्मशान में अडिग रहे थे। आधुनिक हरिश्चंद्र लाश दहन के लिए मुंहमांगी कीमत लेकर ही श्मशान में प्रवेश करने दे रहे हैं। कंधा लगाने से लेकर फूल गंगा मैया में विसर्जन करने तक, हरेक की मुंहमांगी वसूली जारी है। हर जगह मौका न चूक जाए के सिद्धांत पर अमल किया जा रहा है।

 Robots Will Now Help The Soldiers In Battlegrounds - बहुत जल्द सेना में  होगी रोबोट्स की भर्ती, यहां इस वजह से किया जा रहा है इनका निर्माण | Patrika  News

सरकारी रोबोट आदेशों का अक्षरशः पालन करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। जरूरी कामों या दवाई लेने जाते हुए आम आदमी पर थप्पड़ व लाठी भांज रहे हैं। छोटे से लेकर बड़े सरकारी रोबोट, ठेकेदार, छुटभैये नेता अपने-अपने आकाओं के लिए वे छपाई मशीन बने हुए हैं। तुमने मशीन में नकली दिमाग लगाया। हमने अच्छे खासे दिमाग की कोडिंग कर भावशून्य कर दिया है। नोट की छाप तो इस कदर दिमाग में बिठा दी है कि हर जगह अवसर की तलाश रहती है, और सबसे बड़ी बात तुम्हारे रोबोट को बार बार निर्देश देने पड़ते हैं, हमारे रोबोट एक बार की कोडिंग से आजीवन चलते हैं।

 

मेरे देश के सबसे बड़े रोबोट का तो पूरे ब्रह्मांड में कोई सानी नहीं है। मन से चलता है। आदमी की नब्ज को पकड़ कर आँसुओं की धार भी लगा देता है।

मधुर कुलश्रेष्ठ


मधुर कुलश्रेष्ठ

जिला-गुना,मध्य प्रदेश

 

पढ़िये आज की रचना

चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

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