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सुरेश सौरभ निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी उत्तर प्रदेश पिन-262701 मो-7376236066 |
साहित्य
- जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
- लखीमपुर-खीरी उ०प्र०
Friday, November 17, 2023
करो कम ,फैलाओ ज्यादा-सुरेश सौरभ
Monday, March 20, 2023
झोला उठाकर जाने की जिद-सुरेश सौरभ
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सुरेश सौरभ निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी उत्तर प्रदेश पिन-262701 मो-7376236066 |
Tuesday, January 03, 2023
नये साल में फेसबुक कम, बुक ज्यादा-सुरेश सौरभ
Friday, April 01, 2022
भ्रष्टाचार का अंत नहीं-अखिलेश कुमार अरुण
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अखिलेश कुमार अरुण तकनिकी/उपसम्पादक अस्मिता ब्लॉग |
Wednesday, March 30, 2022
भैया जी ने इण्टर के बाद एम.ए. किया-सुरेश सौरभ
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सुरेश सौरभ |
Friday, December 31, 2021
तेरा क्या होगा कालीचरण-सुरेश सौरभ
सुरेश सौरभ |
Monday, December 20, 2021
जाता हुआ दिसंबर और हम......अखिलेश कुमार अरुण
अखिलेश कुमार अरुण गैर-कानूनी क़दम उठाएं जो सम्भव नहीं है अगर गलती से क़दम उठा भी लिया तो पुलिस से लेकर घर वाले पीट-पीटकर बोकला छोड़ा देंगे वकील साहब भी कुछ नहीं कर पाएंगे मानवाधिकार के हाथ से भी निकल गया अब करो गणना मगर उल्टी गिनती दो साल बारह महीना..दो साल ग्यारह महीना...दो साल दस.....।
(हिंदी-मिलाप के दैनिक अंक हैदराबाद से २८.१२.२०२१ को प्रकाशित)
Friday, December 10, 2021
और शुरुआत लीकेज से-सुरेश सौरभ
Friday, June 11, 2021
सबकी आंखों को रूलाता हुआ मैं कड़ुआ तेल हूं-सुरेश सौरभ
हा..हा.. हा..हा.. मैं कड़ुआ तेल बोल रहा हूं। बड़े-बड़े नेताओं की तरह अपना भी, आज टनाटन चारों ओर खूब बिंदास रौब रूतबा कायम होता जा रहा है। बहरहाल आजकल मैं लोगाें का खूब तेल निकाल रहा हूं। हमेशा लोग निठल्लों के साथ मेरा नाम जोड़ कर मुझे बेवजह बदनाम किया करतें हैं, जैसे तुम को कुछ नहीं करना, बस तेल लगा कर बैठे रहो या कान में तेल डालकर चुपचाप बैठो, तुम्हें धेला कुछ नहीं आता। या इन्हें कुछ नहीं करना बस तेल लगा कर बैठे-ठाले खाली दण्ड पेलना है। ऐसी-वैसी तमाम मिसालें बना-बना कर बात-बात पर मेरा मजाक उड़ाने वाले बंदों के, आंख, मुंह, हाथ-पांव और यहां-वहां सब कहीं बस कड़वा-कड़वा ही लग कर मैं रूला रहा हूं। पेट्रोल, डीजल के शतक लगाने पर, खूब चटखारे ले ले कर चर्चा करने वालों के भी मैं ऐसा कड़वा-कड़वा लग कर झेला रहा हूं कि वह सब भी अब मेरा नाम लेने से ऐसे घबरा रहें हैं जैसे मैं कड़ुआ तेल नहीं हूं बल्कि गब्बर सिंह हूं जो कहीं से आ गया, तो उनकी पूरी नींद और चैन छीन लेगा। अब लोग यह भी नहीं कहते न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी। अब कहतें हैं, न सौ ग्राम तेल होगा, न राधा नाचेगी। न लोग यह कहते हैं, मैं तेल और तेल की धार देखता हूं। बल्कि कहतें हैं, कहां है, तेल और तेल की धार? देखने के लिए हम बरसों से तरस रहे हैं। और न लोग यह कहतें हैं तेली का तेल जले मसालची का दिल। बल्कि ये कहतें हैं कहां है तेली?कहां है मसालची? उसे देखे सादियां बीत गईं। मेरी देखा-देखी रिफाइन्ड व अन्य खाने व,लगाने वाले तेल भी अपनी नौ भौं सिकोड़ते जा रहे हैं। यानी अपना भाव बढ़ाते जा रहें हैं। कोरोना काल की मंदी की बेकारी में वैसे भी गरीबों की कमर टूटी थी। अब मेरे रेट बढ़ने से लोगाें का तेल निकल रहा है। लोगों की हालत पतली-दुबली होती जा रही है। पर डोन्ट वेरी भाईयों और बहनों एक न एक दिन अच्छे दिन जरूर आएंगे जैसे नोटबंदी के बाद विदेशों से काला धन वापस आया था। साल भीतर लगभग दोहरे शतक तक पहुंचने में मेरा तिल भर दोष नहीं है, मैं विलियम वर्ड्सवर्थ की "लूसी ग्रे" की तरह बिलकुल निर्दोष मासूम हूं। अगर आप को मेरे पर जरा भी विश्वास न हो, तो तेल की जमाखोरी करने वाले, देश-वदेश की तेल आयात-निर्यात नीति निर्माताओं से पूछ सकतें हैं कि किस तरह कितना मैं निर्दोष हूं। इसलिए कोल्ड ड्रिंक्स पी पी कर बेवजह हमें न श्राप दें।
-सुरेश सौरभ
निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी उत्तर प्रदेश
मो-7376236066
Thursday, June 03, 2021
पियरे और जोसेफ़ के जैसा है मेरा और मेरे साईकिल का रिश्ता-अखिलेश कुमार अरुण
“पर्यावरण के अनुकूल है और यह ज्यादा खर्चीला भी नहीं है इसलिए हमें साइकिल की तरफ लौटना चाहिए कुछ लोग तो अभी से कहने लगे हैं आएगा तो साईकिल ही, अब साइकिल आए या हाथी पर कमल नहीं आना चाहिए, का बुरा कह दिए।”
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2014 |
आज विश्व साइकिल
दिवस है, 3 जून 2018 को संपूर्ण विश्व
में पहली बार विश्व साइकिल दिवस मनाया गया था, आज तक के वैज्ञानिक
आविष्कारों में एक यही ऐसा अविष्कार है जो सस्ता होने के साथ-साथ पर्यावरण के
अनुकूल है और यह ज्यादा खर्चीला भी नहीं है इसलिए हमें साइकिल की तरफ लौटना चाहिए
कुछ लोग तो अभी से कहने लगे हैं आएगा तो साईकिल ही, अब साइकिल आए या
हाथी पर कमल नहीं आना चाहिए, का बुरा कह दिए।
ऊपर चित्र में यही
हमारी साईकिल है, कभी हमने अपनी साईकिल को साईकिल नहीं कहा हमेशा गाड़ी कहते थे...इससे
सम्बन्धित एक बाकया है हम हमारा मित्र
रविन्द्र कुमार गौतम सरकारी अस्पताल में अपने मित्र का हाल-चाल लेने पहुंचे थे
...साईकिल अस्पताल गेट पर खड़ी किये और अस्पताल में जो भर्ती थे उनके तीमारदार बाहर ही मिल गए पर
साईकिल से उतरते नहीं देखा था यह हमें बाद में पता चला........गाड़ी खड़ी बा तनी
देखत रहिह....कहते हुए अस्पताल के अन्दर गए हाल-चाल लिया कुछ देर बाद लौटना हुआ तब
तक आप हमारी गाड़ी देखते रहे उनसे मिलकर साईकिल का ताला जब खोलने लगे तब ऊ बोले ई
का हो .....गाडी से आईल रहल ह न......फिर बहुत हंसी हुई हम कहे, “इहे हमार गाडी ह।”
अब जब भी मुलाकात उनसे होती है ठहाका लग ही जाता है।
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ए०के०अरुण |
ग्राम-हजरतपु, जिला खीरी
उ०प्र० 262701
8127698147
Tuesday, October 13, 2020
सुंदरियाँ गलत हाथों में हैं
Sunday, October 11, 2015
हाँ..हाँ....वही फूल (अखिलेश कुमार अरूण)
अखिलेश कुमार अरूण लखीमपुर-खीरी
पढ़िये आज की रचना
मौत और महिला-अखिलेश कुमार अरुण
(कविता) (नोट-प्रकाशित रचना इंदौर समाचार पत्र मध्य प्रदेश ११ मार्च २०२५ पृष्ठ संख्या-1 , वुमेन एक्सप्रेस पत्र दिल्ली से दिनांक ११ मार्च २०२५ ...

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