साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Monday, June 07, 2021

ग़ज़ल (नीरजा विष्णु 'नीरू')

नीरजा विष्णु 'नीरू'

भला कब दर्द से आज़ाद हूँ मैं

ग़मो की इक बड़ी तादाद हूँ मैं।

 

तबस्सुम देखकर हैरान मत हो

लबों पर कांपती फरियाद हूँ मैं।

 

  कैसे  दामन-ए-उम्मीद  छोड़ूं

पता है जब कि उसके बाद हूँ मैं।

 

वो गुल जो टूटकर मुरझा गया हो

उसी ख़ुशबू सी बस बर्बाद हूँ मैं।

 

मसीहाई   तुम्हारी    देखनी   थी

इसी ख्वाहिश में तो आबाद हूँ मैं।

 

मुझे  ये  जानकर  अच्छा लगा  है

कि तुमको आज तक भी याद हूँ मैं।

 

ख़ुदा ही  जानता  है ये  हक़ीकत

कि ज़ख्मों की बड़ी उस्ताद हूँ मैं।

 

मेरे  हालात  पर  हंसना    'नीरू'

यही क्या कम है यूँ भी शाद हूँ मैं।

ग्राम व पोस्ट: भीखमपुर

जनपद: लखीमपुर खीरी(उत्तर प्रदेश) पिन कोड:262805

 neerusolanki1090@gmail.com

No comments:

पढ़िये आज की रचना

चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

(फिल्म समीक्षा)      एक मां के लिए उसका बेटा चाहे जैसा हो वह राजा बेटा ही होता है, बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिन्हें हम अपने विचार...

सबसे ज्यादा जो पढ़े गये, आप भी पढ़ें.