साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०
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Saturday, September 07, 2024

चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

(फिल्म समीक्षा) 



    एक मां के लिए उसका बेटा चाहे जैसा हो वह राजा बेटा ही होता है, बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिन्हें हम अपने विचारों और संस्कारों से पुष्पित और पल्लवित करते हैं । शिव सिंह 'सागर' की हाल ही में रिलीज हुई एक शॉर्ट फिल्म  "झूठी" इन दिनों बेहद चर्चा में है, शॉर्ट फिल्म झूठी का कथानक भी कुछ इस तरह का है, जो शिक्षा जगत में विमर्श का विषय बना हुआ है, एक अध्यापक एक बच्चे राहुल को जब कक्षा में कमजोर पाता है, तब उसे वह एक पर्ची लिखकर देता है और वह कहता है कि यह पर्ची अपनी मां को देना‌। बच्चा वह पर्ची अपनी मां को देता है। माँ पर्ची देखती है। उस पर्ची में लिखा होता है,आपका बच्चा दुनिया का सबसे मूर्ख बालक है, इसे अगले दिन से स्कूल में न भेजें। लेकिन वह मां हिम्मत नहीं हारती है और अपने बच्चे से कहती है कि इस पर्ची में लिखा है कि मेरा बेटा बहुत होशियार है। संसार में आज भी द्रोणाचार्यों की कमी नहीं  हैं, जिनकी वजहों से अनेक एकलव्यों के अंगूठे काटे जा रहा  हैं। फिर वह हिम्मती मां अपने बेटे को खुद पढ़ाना शुरू करती है और पढ़ते-पढ़ते एक दिन वह अपने बेटे को इस काबिल बनती है कि उसका बेटा पुलिस का एक जिम्मेदार अधिकारी बन जाता है। 
     पुलिस अधिकारी बनने के बाद जब वह बेटा घर आता है। तब उसकी मां इस दुनिया में से  गुजर चुकीं होती हैं। किसी काम से वह अपनी माँ का एक पुराना बक्सा खोलता है, जिसमें से एक पर्ची निकलती है, उसे याद आया, अरे! यह तो वहीं पर्ची है, जो वर्षों पहले मेरे मास्टर जी ने मेरी मां के लिए दिया था। उस पर्ची को देखा है उसमें लिखा था "आपका बेटा दुनिया का सबसे मूर्ख लड़का है और इसे कल से स्कूल न भेजें।" वह अपनी मां को याद करता है ,भावुक हो जाता है और बुदबुदाता है-'मां तुम सचमुच मेरे लिए भगवान हो।' कहानी वाकई दिल को छूने वाली है।  निम्न मध्यम वर्गीय परिवार पर आधारित इस फिल्म में एक स्त्री के संघर्ष को दिखाया गया है। जिसका पति शराबी है, फिर भी वह अपनी सूझबूझ से द्रोणाचार्य जैसे गुरुओं का डटकर सामना करते हुए अपने बेटे को पढ़ा-लिखा कर अफसर बना देती है। यह मातृ शक्ति का ही कमाल है, जो कोयले को हीरा बना देती है। सब कलाकार  बहुत ही उम्दा तरीके से फिल्म में अभिनय करते नजर आते हैं,किरदार के रूप में आर. चंद्रा, अमित श्रीवास्तव, अनीता वर्मा, प्रियांश गुप्ता, अमन शर्मा, ओम् प्रकाश श्रीवास्तव, आदि लोग लघु फिल्म में नज़र आए हैं। इसके अलावा कैमरा मैन डी. के.,फोटोग्राफी और एडिटर के. आमिर हैं। अर्पिता फिल्म्स इंटरटेनमेंट के बैनर तले बनी, यह लघु फिल्म आजकल खासी चर्चा में है। शिव सिंह 'सागर' इस फिल्म के लेखक, निर्माता, निर्देशक हैं। छंगू भाई, कबाड़ी, पापा पिस्तौल ला दो, रक्षक, फंस गया बिल्लू, डुबकी जैसी अनेक बेहतरीन कथानकों की लघु फिल्मों का निर्देशन करने वाले 'सागर' जी फतेहपुर के युवा कवि एवं  शायर हैं।

Wednesday, July 24, 2024

हिंदी लघुकथा स्वरूप और सार्थकता-सुरेश सौरभ

   पुस्तक समीक्षा  
                         


पुस्तक- हिंदी लघुकथा स्वरूप और सार्थकता
संपादक- डॉ. मिथिलेश दीक्षित
प्रकाशक-शुभदा बुक्स साहिबाबाद उ.प्र.
मूल्य-300/
पृष्ठ-112 (पेपर बैक)
    
  सुरेश सौरभ
निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी
उत्तर प्रदेश पिन-262701
मो-7376236066

                डॉ. मिथिलेश दीक्षित साहित्य जगत में एक बड़ा नाम है। शिक्षा के क्षेत्र में ही नहीं बल्कि साहित्य और समाज सेवा में भी आपका उल्लेखनीय योगदान है। हिंदी की तमाम विधाओं में आपका रचना कर्म है। विभिन्न विधाओं में आप की लगभग  अस्सी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकीं हैं। हाल ही में इनकी किताब हिंदी लघुकथा स्वरूप और सार्थकता के नाम से सुभदा बुक्स साहिबाबाद से प्रकाशित हुई है, जो हिंदी लघुकथा के पाठकों, लेखकों और शोधार्थियों- विद्याथिर्यों  के लिए पठनीय और वंदनीय है। संपादकीय में डॉ.मिथिलेश दीक्षित लिखती हैं- हिंदी साहित्य की गद्यात्मक विधाओं में लघुकथा सबसे चर्चित विधा है। आज के विधागत परिपेक्ष्य में लघुकथा के स्वरूप को देखते हैं, तो लगता है इसके स्वरूप में पर्याप्त परिवर्तन हुआ है, इसका मूल प्रयोजन भी बदल गया है। अब उपदेशात्मक या कोरी काल्पनिक लघुकथाओं में विशेष पत्रों के स्थान पर सामान्य जन का प्रतिनिधित्व करने वाले सामान्य पात्रों का समयगत परिस्थितियों में चित्रण होता है.....और वे आगे लिखतीं हैं..संक्षिप्तता गहन संवेदन, प्रभाव सृष्टि और संप्रेषण क्षमता लघुकथा की विशिष्ट गुण है। "लघुकथाकार का गहन संवेदन जब लघुकथा में समाहित हो जाता है, तब शिल्प में सघनता आ जाती है, भाषा में सहजता और पात्रों में जीवन्तता आ जाती है‌।"
      डॉ.ध्रुव कुमार, अंजू श्रीवास्तव निगम, इंदिरा किसलय, डॉ.कमल चोपड़ा, कल्पना भट्ट, कनक हरलालका, डॉ.गिरीश पंकज, निहाल चंद्र शिवहरे, बी. एल. अच्छा, डॉ,भागीरथ परिहार, मुकेश तिवारी, मीनू खरे, रजनीश दीक्षित, शील कौशिक, डॉ. शैलेश गुप्ता 'वीर' ,डॉ.शोभा जैन, सत्या  सिंह, डॉ.स्मिता मिश्रा, डॉ. सुरंगमा यादव, डॉ.सुषमा सिंह, संतोष श्रीवास्तव के बहुत ही शोधपरक लेखों  को इस पुस्तक में सम्मिलित किया गया हैं।  लेखों में लघुकथा के शिल्प, संवेदना, और लघुकथा के  वर्तमान, अतीत और भविष्य पर बड़ी सहजता, सूक्ष्मता और गंभीरता से विमर्श किया गया है। पुस्तक में हिंदी लघुकथा के बारे में डॉक्टर मिथिलेश दीक्षित से डॉ.लता अग्रवाल की बातचीत भी कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर की गई है, जिसमें लघुकथा की प्रासंगिकता, उसकी उपयोगिता, उसका आकार-प्रकार व मर्म, उसमें व्यंग्य तथा शिल्पगत विविधता आदि। 

         प्रसिद्ध साहित्यकार  गिरीश पंकज पुस्तक में अपने आलेख में लिखते हैं-" कुछ लेखक लघुकथा को लघु कहानी समझ लेते हैं जिसे अंग्रेजी में 'शॉर्ट स्टोरी' कहते हैं, जबकि वह लघु नहीं पूर्ण विस्तार वाली सुदीर्घ कहानी ही होती है। लघुकथा के नाम पर 500 या 1000 शब्दों वाली भी लघुकथाएं मैंने देखी हैं और चकित हुआ हूं ।ये किसी भी कोण  से लघुकथा के मानक में फिट नहीं हो सकती। मेरा अपना मानना है कि लघुकथा 300 शब्दों तक ही सिमट जाएं तो बेहतर है। तभी सही मायने में उसे हम संप्रेषणीय में लघुकथा कहेंगे। अगर वह 500 या उससे अधिक शब्दों तक फैल जाती है तो उसे लघु कहानी के श्रेणी में रखना उचित  होगा।"
         मिथिलेश जी ने बहुत श्रमसाध्य कार्य किया है,  लघुकथा पर कालजयी विमर्श की पहल की है उन्हें हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। 



Friday, July 12, 2024

बड़े चोरों के भरोसे-सुरेश सौरभ

  (व्यंग्य)   
  सुरेश सौरभ
निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी
उत्तर प्रदेश पिन-262701
मो-7376236066

बाढ़ के पानी से तमाम गांव लबालब भर चुके थे। बाढ़ सब बहा ले गयी, अब सिर्फ लोगों की आंखों में पानी ही पानी बचा था। रात का वक्त है-भूख से कुत्तों का रुदन राग बज रहा है। वहीं पास में बैठे कुछ चोर अपने-अपने दुःख का राग अलाप रहे हैं।
एक चोर बोला-सारा धंधा चौपट कर दिया इस पानी ने, सोचा था दिवाली आने वाली है कहीं लम्बा हाथ मारूंगा, पर अब तो भूखों मरने की नौबत आ गई। 
दूसरा चोर लम्बी आह भर कर बोला-लग रहा, आकाश से पानी नहीं मिसाइलें बरसीं हैं, हर तरफ पानी बारूद की तरह फैला हुआ नजर आ रहा है। 
उनके तीसरे मुखिया चोर ने चिंता व्यक्त की-हम टटपूंजिये चोरों के दिन गये। अब तो बड़े-बड़े चोरों के दिन बहुरने वाले हैं। कल गांव में टहल रहा था। बाढ़ में फंसे लोग आपस में बातें कर रहे थे कि सरकार ऊपर से राहत सामग्री बहुत भेज रही है, पर नीचे वाले  बंदर, बंदरबांट में लगे हैं, यही आपदा में अवसर, अफसरों का माना जाता है।
चौथा चोर दार्शनिक भाव में बोला-अब हम बाढ़ में फंसे पीड़ित, परेशान लोगों को क्या लूटें? चलो सुबह उन बड़े चोरों के पास चलें, जो राहत समग्री बांटते हुए गरीबों का हक जोकों की तरह चूस रहे हैं और गांव के भोले-भाले लोग उन्हें अपना भगवान मान कर उनके भक्त बने हुए हैं।
 सुबह वे चोर सरकारी राहत सामग्री पाने के लिए कतार बद्ध भीड़ में खड़े थे। उनके सामने एक अधिकारी अपने हाथ में भोंपू लिए ऐलान कर रहा था-सब लोग लाइन से ही राहत समग्री लें और जिन्हें  कल कूपन दिये गये थे उन्हें ही आज राशन मिलेगा। जिनके पास कूपन नहीं है, वे यहां फालतू में न खडे हो। हमारी टीम बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर रही है जो प्रभावित होंगे उन्हें ही कूपन मिलेंगे। और जो डेट कूपन पर होगी, उसी डेट पर उन्हें राहत सामग्री मिलेंगी। यह ऐलान सुन वह सारे चोर हैरत से एक दूसरे का मुंह ताकने लगे, क्योंकि किसी के पास कूपन नहीं थे। तब तीसरा मुखिया चोर बोला-कल लोग इसी के कूपन-उपन बांटने जैसी कुछ चर्चा कर रहे थे, कल यही अपने लोगों से वसूली करा रहा था। फिर उनकी इशारों से मंत्रणा हुई। सारे चोर कतारों से हट लिए। रास्ते में उनका मुखिया चोर बोला-अब हमसे बड़े-बडे़ पढ़े-लिखे चोर गांवों में आ गये हैं। अब हमें चोरी छोड़ कर नेतागीरी करनी चाहिए, शहरों में कुछ बड़े-बड़े नेता-मंत्री  हमारी पहचान के मित्र हैं, उनका यही कहना हैं। क्योंकि चोरी छोड़ कर ही, वे माननीय बने और करोड़पति भी । 
   अब सारे चोर माननीय बनने की तरतीब में बतियातें हुए जा रहे थे।  

Monday, June 17, 2024

पापा पिस्तौल ला दो(लघु चलचित्र समीक्षा)-रमेश मोहन शुक्ल

  लघु चलचित्र समीक्षा  

    'पापा पिस्तौल ला दो' कुल सात मिनट छ: सेकेंड की यह लघु फिल्म पिता और पुत्री के रिश्तों की हृदय स्पर्शी प्रेरणादायक  कहानी है, जो आजकल बेहद चर्चा का विषय बनी हुई है, माधव (आर. चंद्रा) अपनी पत्नी के स्वर्गवास के बाद तीन बेटियों को गरीबी में पाल-पोस रहा है। एक दिन शाम होने को, माधव बाज़ार जाने को तैयार हो रहा है। मगर उसकी बड़ी बेटी निम्मी (ऋचा राजपूत) अभी तक घर नहीं आई है। इस बात को लेकर माधव थोड़ा चिंतित है। 

   
 अपनी साइकिल के पास बाजार जाने के लिए तैयार है, वह  अपनी दोनों बेटियों पिहू और भूमि से बाज़ार से क्या लाना है, पूछता है, तभी माधव की बड़ी बेटी निम्मी स्कूल से वापस आ जाती है। मगर वो  बेहद गुस्से में हैं, और आते ही, अपने पापा से पिस्तौल लाने को कहती है।  माधव पहले तो भयभीत होता है। मगर निम्मी से पिस्तौल मांगने की वजह पूछता है। तब निम्मी समाज के कुछ अराजक तत्वों से परेशान होने की बात करती है, जिससे माधव निम्मी को आत्मरक्षा के लिए एक एकेडमी ले जाता।  वहाँ निम्मी ताईकांडो की ट्रेनिंग लेती है,और फिर एक दिन उन बदतमीज शोहदों को सबक सिखाती है जो उसे रोज परेशान करते रहते थे। ऐसे निम्मी की ज़िन्दगी ही बदल जाती है, एक कमजोर लड़की ताकतवर बन जाती है। माधव की सोच समाज को एक नई सीख देती है। दिशा देती है। कम समय में बड़ी ही स्पष्टता से कहानी बहुत कुछ कह जाती है। 
    फिल्म के कई दृश्य सिहरन पैदा करते हैं। केंद्रीय भूमिका में ऋचा राजपूत ने अपने अभिनय से सबका मन मोह लिया है। 
पिता की भूमिका में आर. चंद्रा खूब जमे हैं। कुछ और सहायक कलाकारों ने लघु फिल्म को अपनी मेहनत लगन से अच्छी बनाने का पूरा प्रयास किया है। फिल्म के निर्माता/ निर्देशक हैं शिव सिंह सागर, फिल्म की कहानी  चर्चित लघुकथाकार सुरेश सौरभ ने लिखी है। कैमरे पर पिंकू यादव ने उतारा है। इस फिल्म को आप लोग यूट्यूब पर अर्पिता फिल्म्स इंटरटेनमेंट पर देख सकते हैं। 

               रमेश मोहन शुक्ल 
   संपादक, संभावित संग्राम फतेहपुर

Thursday, June 06, 2024

'पापा पिस्तौल ला दो' एक बेहतरीन शार्ट फिल्म-सत्य प्रकाश 'शिक्षक'


लखीमपुर खीरी  फिल्में समाज का आइना होती है, आज की जीवन शैली में व्यस्तता के कारण साहित्य एवं सिनेमा में लघु विधाएं ज्यादा प्रचलन में हैं। आज साहित्य में लघुकथा सर्वाधिक प्रचलित विधा है।  सिनेमा में शार्ट फिल्में भी खूब चलन में है। लघु फिल्म की बात करें तो एक से बढ़कर एक अच्छी लघु फिल्में चर्चा में आ रही हैं। हाल ही में  अर्पिता फिल्म्स इंटरटेनमेंट के बैनर तले बनी लघु फिल्म "पापा पिस्तौल ला दो" भी काफ़ी चर्चा में हैं। लघु फिल्म की कहानी प्रसिद्ध लघु कथाकार सुरेश सौरभ (लखीमपुर खीरी) ने लिखी है। साहित्य जगत में इनकी लघुकथा " पापा पिस्तौल ला दो " खूब सराही गई। जिससे प्रभावित होकर फतेहपुर जनपद के युवा फिल्म निर्देशक शिव सिंह 'सागर' ने इस लघुकथा पर लघु फिल्म बनाई है। फिल्म की केंद्रीय भूमिका में  ऋचा राजपूत ने बड़ी ही खूबसूरती से निम्मी के किरदार को जिया है। फतेहपुर के सशक्त अभिनेता आर. चद्रा ने माधव यानि पिता के चरित्र को अपने अभिनय से सजा दिया है। इसके अतिरिक्त सहयोगी कलाकारों में राजकुमार, कुनाल, दिव्यांशु पटेल, भूमि श्रीवास्तव, पीहू, अनुराग कुमार, अंश यादव आदि कलाकारों ने लघु फिल्म में महती भूमिका निभाई है। फिल्म को कैमरे पर खूबसूरती से उतारा है पिंकू यादव ने।  ओम प्रकाश श्रीवास्तव, डॉ. मिथिलेश दीक्षित, डॉ. द्वारिका प्रसाद रस्तोगी, संजीव जायसवाल 'संजय' वसीक सनम,  राजू फतेहपुरी, विजय श्रीवास्तव आदि साहित्य कला से जुड़े विशिष्ट जनों ने  फिल्म की पूरी यूनिट को बधाई दी है। बताते चले कि स्त्री विमर्श पर यह एक बेहतरीन कथानक की फिल्म है। 

Friday, March 29, 2024

मन का फेर (अंधविश्वासों रूढ़ियों एवं कुरीतियों पर केंद्रित साझा लघुकथा संग्रह)-मनोरमा पंत

पुस्तक समीक्षा

मनोरमा पंत 
वरिष्ठ  साहित्यकार
भोपाल (म०प्र०)

पुस्तक-मन का फेर (अंधविश्वासों रूढ़ियों एवं कुरीतियों पर केंद्रित साझा लघुकथा संग्रह) 
प्रकाशन-श्वेत वर्णा प्रकाशन नोयडा
संपादक-सुरेश सौरभ 
मूल्य- 260 /
अनेक महत्वपूर्ण पुस्तकों के संपादक-लेखक सुरेश सौरभ, नवीन लघुकथा का साझा संग्रह ‘मन का फेर‘ लेकर पाठकों के बीच उपस्थित हुए हैं, अंधविश्वासों, रूढ़ियों एवं कुरीतियों पर केंद्रित यह साझा लघुकथा संग्रह अपने आप में बेहद अनूठा है। जिसमें उनकी संपादन कला निखर कर आई है। बलराम अग्रवाल, योगराज प्रभाकर जैसे प्रमुख लघुकथाकारों ने  एक स्वर में कहा है कि लघुकथा का मुख्य उद्देश्य समाज की विसंगतियों को सामने लाना है।’ इस उदेश्य में सुरेश  सौरभ  का नवीनतम  लघुकथा-संग्रह  ‘मन का फेर’ खरा उतरा है। यह एक विडम्बना ही है कि विकसित देशों के समूह  में शामिल होने में अग्रसर  भारत का एक बहुत बड़ा वर्ग आज भी धर्म और परम्परा के नाम  पर ढोंगी महात्माओं और कथित मौलवियों के जाल में फँसा हुआ है। अभी भी स्त्री को डायन करार कर प्रताड़ित  किया जाता है, पिछड़े इलाकों में बीमार  व्यक्ति को, चाहे वह दो महीने का बच्चा ही क्यों न हो, नीम हकीम के द्वारा लोहे के छल्लों से दागा जाता है। ऐसे समाज  को जागरुक करने का बीड़ा  उठाने में यह लघुकथा-संग्रह  सक्षम  है ।
डॉ० राकेश माथुर
'मन का फेर' पुस्तक पढ़ते हुए.


      सुकेश सहानी, मीरा जैन, डॉ.पूरन सिंह, कल्पना भट्ट, डॉ. अंजू दुआ जैमिनी, गुलजार हुसैन, चित्तरंजन गोप 'लुकाठी', डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी, रमाकान्त चौधरी, अखिलेश कुमार ‘अरूण’, डॉ. राजेंद साहिल, डॉ. मिथिलेश दीक्षित, रश्मि लहर, विनोद शर्मा, सहित 60 लघुकथाकारों से सुसज्जित, 144 पृष्ठीय संग्रह में, आडम्बरों को, रूढ़ियों को बेधती मार्मिक लघुकथाएँ सहज, सरल, भाषा शैली में, पाठकों को आकर्षित करने में सफल है। हाल ही में इस संग्रह का विमोचन स्वच्छकार समाज और समाज सेवियों ने किया। सौरभ जी का प्रसास है कि समाज में अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति तक साहित्य पहुँचे। संग्रह की भूमिका प्रसिद्ध पत्रकार लेखक अजय बोकिल ने लिखी है। संग्रह की लघुकथाएँ शोधपरक एवं पठनीय हैं। सुरेश  सौरभ  को  इस लघुकथा-संग्रह के लिए  बधाई।

Friday, November 17, 2023

करो कम ,फैलाओ ज्यादा-सुरेश सौरभ

(हास्य-व्यंग्य) 
  सुरेश सौरभ
निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी
उत्तर प्रदेश पिन-262701
मो-7376236066


   पुराने दिनों बात है। उन दिनों 'कर्म ही पूजा है’ के सिद्धांत को मजबूती से अपनी गांठ में बांधकर बड़ी कर्मठता, ईमानदारी से, मैं अपना कार्य किया करता था। लेकिन फिर भी लोगों की मेरे प्रति, यह गलत धारणाएँ बनी हुईं थीं कि मैं अपने कर्म के प्रति उदासीन रहता  हूं, हीलाहवाली करता हूं, ऐसी रोज अनेक मेरी शिकायतें बॉस से हुआ करती थीं। आए दिन बॉस की डांट मुझ पर पड़तीं रहती थी। मैं बहुत परेशान रहता था। क्षुब्ध रहता था। 
  घर में पत्नी बच्चों की किचकिच से बचकर जब ऑफिस आओ, तो बेवजह बॉस की झांड़ सुनो, मेरी जिंदगी किसी बड़ी पार्टी से निकाले गये, उस नेता जैसी हो गई थी, जिसे लाख कोशिशों के बाद भी उसे कोई मंजिल न मिल रही हो,कोई सही ठौर-ठिकाना न मिल रहा हो, कोई  पुरसाहाल न हो। क्या करूँ ? क्या न करूँ ? मेरी दशा चिड़ियाघर में कैद बेचारे निरीह निरुपाय जीव जैसी हो गई थी। हमेशा सोचता रहता था, कैसे अपनी जहन्नुम हो चुकी जिंदगी को जन्नत बनाऊं।
     फिर एक दिन अचानक परमात्मा की मुझ पर असीम कृपा हुई। हर समस्या का समाधान चुटकियों में हल करने वाले, एक संत जी सोशल मीडिया के दरवाजे पर दिखे, उनसे फोन पर रो-गाकर अपनी सारी व्यथा बताई ,तब उन्होंने मिलने के लिए, परामर्श से समाधान के लिए, अपनी ऑनलाइन फीस बताई। मैंने तुरत-फुरत उनकी फीस जमा कर दी। उनसे मिलने का ऑपाइंटमेंट लिया। फिर ढेर सारे फल, मेवा, मिष्ठान आदि लेकर, नियत स्थान, नियत तिथि, नियत समय, संत जी के आश्रम पहुंच गया। संत जी उर्फ बाबा जी ने मुझे अपने एकांत केबिन बुलवाया। मेरी समस्या ध्यान से सुनी। फिर मुझे खूब समझाया। काउंसिलिंग की। फिर मुझे परमार्थ करने के अनेक पुण्य बताते हुए, मेरे कान में कुछ मंत्र फूंकें। जिन्हें अपने तक ही सीमित रखने का आदेश दिया। मैं उनके बताए नेक मार्ग पर चलने लगा। फिर मुझे संत जी के मंत्रों और टोटकों से बहुत लाभ होने लगा। घर से लेकर ऑफिस तक, अपनी फुल बॉडी के अंदर से लेकर बाहर तक, मुझे गुड फील होने लगा। जिंदगी मंगलमय आनंदमय में बीतने लगी। अगर अन्य लोगों से संत जी के मंत्रों की चर्चा करूंगा, तो उन मंत्रों का असर मेरे जीवन से जाता रहेगा। लिहाजा फिर भी मेरा मन नहीं मान रहा है। अपने दिल पर बड़ा सा पत्थर रखकर, एक मंत्र मैं आप से शेअर किए ले रहा हूँ। ...काम करो कम फैलाओ ज्यादा, जी हां इसके आगे और न बताऊंगा। यूँ समझो बॉस की चापलूसी करते हुए ...करो कम फैलाओ ज्यादा तथा संत जी के अन्य टोटकों से अपना जीवन सुखमय और शांतिपूर्वक बीता रहा हूँ। खुशी और मस्ती से राग मल्हार गाते हुए अब अपने दिन सोने जैसे सुनहरे, रातें चांदी जैसी, चांदनी जैसी चम-चम चमकाने लगी हैं।

Thursday, October 26, 2023

बलत्कृत रूहें-सुरेश सौरभ

 (कविता)
  सुरेश सौरभ
निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी
उत्तर प्रदेश पिन-262701
मो-7376236066


कुछ लोग कहते हैं
कि युद्ध थल पर
जल पर
नभ पर 
और साइबर पर होते हैं
पर ऐसा नहीं? कदापि नहीं?
युद्ध तो होते हैं, 
हम औरतों की छातियों की विस्तृत परिधियों पर
हमारे मासूम बच्चों के पेटों 
और उनकी रीढ़ों के भूगोलों पर 
जब तमाम बम, मिसाइलें गिरतीं हैं 
ऊंची-ऊंची इमारतों पर
रिहायशी इलाकों पर
रसद और आयुध पर
तब मातमी धुएं और घनी धुंध में,
चारों दिशाओं में हाहाकार-चीत्कार उठता है
लोग मरते हैं,घायल होकर तड़पते हैं 
लाशों चीथड़ों से सनी-पटी धरती का      
 कलेजा लाल-लाल हो 
घोर करूणा से चिंघाड़ता-कराहता है।
तब उन्हीं लाशों चीथड़ों के बीच तड़पड़ते हुए 
लोगों के बीच से
परकटे परिन्दों सी बची हुई घायल-चोटिल लड़कियों को, 
औरतों को मांसखोर आदमखोर गिद्ध उन्हें नोंच-नोंच कर तिल-तिल खाने लगते हैं।
आदमखोर वहशी गिद्ध बच्चों को भी नहीं बख्शते 
उनकी मासूमियत को नोंच डालते हैं
 हिटलरों के वहशीपन की तरह
जार-जार रोती उन स्त्रियों की, बच्चों की, 
रोती तड़पती रूहों की, 
कातर आवाजें आकाश तक गूंजती रहती हैं, 
पर अंधे बहरे लोभी धर्मांध सियासतदां
 उन्हें नहीं सुन पाते, नहीं देख पाते।
अगर न यकीं हों तो इस्राइल फलस्तीन के
युद्ध को देख समझ सकते हैं 
जहां धूं धूं कर जलती इमारतों के बीच से वहशियों से लुटती, पिटती, घिसटती
स्त्रियों के घोर करूण दारूण चीखों को सुन सकते हैं। 
कोई जीते कोई हारे, 
पर हम स्त्रियां की रूहें युद्ध में बलत्कृत होती रहेंगी, 
हमेशा लहूलुहान होती रहीं हैं 
और होती रहेंगी।

Friday, May 12, 2023

बुर्का-मिन्नी मिश्र

             
लघुकथा (मैथिली)
 कथाकार- सुरेश सौरभ, उत्तर प्रदेश की रचना "हिजाब" का मैथिली अनुवादित संस्करण है



सीओ सिटी विनोद सिंह बहुत चिंता में निमग्न बैसल छलाह , तखने हुनकर सोझा में सब इंस्पेक्टर  मनीषा शाक्य जय हिन्द करैत प्रकट भेलिह |

“ जय हिन्द आउ-आउ !मनीषा जी बैसु -बैसु , विनोद सिंह सोझा में राखल कुर्सी के तरफ बैसबाक इशारा केलथि |

मनीषा हुनकर माथ पर परल चिंता के लकीर के पढैत बजलिह - कि बात अछि सर, बहुत चिंतित लागि रहल छी ?
विनोद सिंह गंभीर स्वर में बजलाह-कि बताउ  लगैत अछि सभटा इंसानियत मरि रहल अछि | शिकायत आएल अछि जे रमावती कॉलेज के आस-पास लूच्चा सभ लड़की सबके के एनाइ-जेनाइ दूभर कय देने छै |अहाँ त लूच्चा के सबक सिखएबाक लेल काफी मशहूर छी, आब अहीं किछु करू |

मनीषा - अहाँ चिंता जुनि करू  | आइये लूच्चा के किछू इंतजाम करैत छी |

करीब एक घंटा बाद रमावती कॉलेज के सोझा सादा पोशाक में बुर्का पहिरने एकटा कन्या  सुकुमारि चालि सं चलल जा रहल छलिह  | ओकर पाछाँ- पाँछा किछु लूच्चा टोन कसइत  चलइत जा रहल छल | तखने ओ कन्या अचानक एकदम सं पलटि कऽ मुड़लिह, तुरंत अपन बुर्का के हटेलथि आ आग्नेय नेत्र सं ओ लूच्चा के देखय लगलिह,  सबटा लूच्चा हुनकर रोबदार तमसायल चेहरा देखि कऽ फुर्र ...|

मिन्नी मिश्र
पटना, बिहार

Monday, March 20, 2023

झोला उठाकर जाने की जिद-सुरेश सौरभ


हास्य-व्यंग्य
  सुरेश सौरभ
निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी
उत्तर प्रदेश पिन-262701
मो-7376236066

अक्सर जब मैं अपनी कोई बात, अपनी पत्नी से मनवाना चाहता हूं, तो गुस्से में आकर कह देता हूं, मेरी बात मानना हो तो मानो वर्ना मैं अपना झोला उठाकर अभी चल दूंगा। पत्नी डर जाती है, फौरन मेरी बात किसी आज्ञाकारी भक्त की तरह मान लेती है। यानी मैं अपनी पूरी स्वातंत्रता में जीते हुए, पत्नी को हर बार इमोशनल ब्लैकमेल करके मौज से, अपने दिन काटता जा रहा हूं। अब मेरे बड़े सुकून से अच्छे दिन चल रहे थे, पर उस दिन जब मैंने यह बात दोहराई, तब वे पलट कर बोलीं-तू जो हरजाई है, तो कोई और सही और नहीं तो कोई और सही।’  
मैंने मुंह बना कर कहा-लग रहा आजकल टीवी सीरियल कुछ ज्यादा ही देखने लगी हो। वो नजाकत से जुल्फें लहरा कर बोली-हां आजकल देख रहीं हूं ‘भाभी जी घर पर हैं, भैया जी छत पर हैं।’ 
मैंने तैश में कहा-इसी लिए आजकल तुम कुछ ज्यादा ही चपड़-चपड़ करने लगी हो। तुम नहीं जानती हो, मैं जो कहता हूं, वो कर के भी दिखा सकता हूं। मुझे कोई लंबी-लंबी फेंकने वाला जोकर न समझना।’ 
वह भी नाक-भौं सिकोड़ कर गुस्से से बोली-हुंह! तुम भी नहीं जानते मैं, जो कह सकती हूं, वह कर भी सकती हूं, जब स्त्रियां सरकारें चला सकती हैं। गिरा सकती हैं, तो उन्हें सरकारें बदलने में ज्यादा टाइम नहीं लगता।’ 
मेरी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। अपना गियर बदल कर मरियल आवाज में मैं बोला-झोला खूंटी पर टंगा है, अब वह वहीं टंगा रहेगा। मेरी इस अधेड़ अवस्था में सरकार न बदलना। मेरा साथ न छोड़ना, वरना मैं कहीं मुंह दिखाने के लायक न रहूंगा। मेरी खटिया खड़ी बिस्तरा गोल हो जायेगा। खट-पट किसके घर में नहीं होती भाग्यवान! मुझ पर तरस खाओ! तुम मेरी जिंदगी हो! तुम मेरी बंदगी हो! मेरी सब कुछ हो!
तब वे मुस्कुराकर बोलीं-बस.. बस ज्यादा ताड़ के झाड़ पर न चढ़ो! ठीक है.. ठीक है, चाय बनाकर लाइए शर्मा जी। आप की बात पर विचार किया जायेगा। मेरा निर्णय अभी विचाराधीन है।
चाय बनाने के लिए रसोई की ओर मैं चल पड़ा। सामने टंगा झोला मुझे मुंह चिढ़ा रहा है। 
बेटी बचाओ अभियान में अब तन-मन से जुट पड़ा हूं। झोला उठाकर जाने वाली मेरी अकड़ जा रही है। भले ही अब हमें कोई पत्नी भक्त कहें, पर कोई गम नहीं, लेकिन पत्नी के वियोग में एक पल रहना मुझे गंवारा नहीं साथ ही पत्नी के छोड़कर जाने पर जगहंसाई झेल पाना भी मेरे बस की बात नहीं।


Tuesday, January 03, 2023

नये साल में फेसबुक कम, बुक ज्यादा-सुरेश सौरभ

हास्य-व्यंग्य
  सुरेश सौरभ
निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी
उत्तर प्रदेश पिन-262701
मो-7376236066

   
नए साल पर मैंने प्रण किया है कि मैं फेसबुक कम चलाऊँगा और बुक पर अपनी निगाहें अधिक खर्च करूंगा। फेसबुक कम चलाने की वजह यह है कि फेसबुक चलाते-चलाते मेरी आंखें कमजोर होने लगीं हैं। 
       बरसों से फेसबुक चलाते-चलाते तमाम नाजनीनों के फेस देखते-देखते यह नौबत मेरे सिर पर साया हुई है, जो समय मैं नाजनीनों के नृत्य, गायन, उनकी कमनीय काया को फेसबुक पर देखते-देखते बिताते रहा, अगर वही समय पैसा कमाने में लगाता तो अडानी अंबानी के लेवल का जरूर बन जाता। फिर तमाम-नेता मंत्री मेरी चरण वंदना या गुणगान करते हुए फिरते और दुनिया भर का यश अपने चौखटे पर लटकता फिरता। और अपने चौखटे की वैलू वैश्विक स्तर की होती। 
     फेसबुक की बहन व्हाट्सएप्प, चचेरा भाई ट्वीटर और इन सबकी अम्मा ऐसी-वैसी तमाम वेबसाइडों का मैं इस कदर दीवाना हुआ कि नौबत यहाँ तक आ गई कि हमेशा ऑफिस में लेट हो जाया करता था। बॉस की झाड़ हमेशा मेरे पीछे किसी जिन्द-पिशाच की तरह पड़ी रहती थी। 
      हमेशा मोबाइल, मैं ऐसे अपनी आँखों से चिपकाए रहता था, जैसे कोई बंदरिया अपने नवजात बच्चे को अपने कलेजे से चिपकाये रहती। मेरी इस नजाकत को देख, अक्सर पत्नी कहती-हमेशा मोबाइल में घुसे रहो। ऐसा लगता है यह मोबाइल नहीं समुद्र मंथन से निकला वह अमृत कलश है जिसे हर समय अपने मुँह पर औंधाए रखते हो। पत्नी कभी-कभी इतनी आग-बगूला हो जाती कि हालात और हमारे रिश्ते भारत-पाक जैसे बेहद तनावपूर्ण, नाजुक और संवेनशील हो जाया करते। फिर नौबत भयानक युद्ध जैसी खतरे की बन जाती। मगर मेरी इमोशन गुलाटियों की वजह़ से द्वन्द्व युद्ध होते-होते टल जाता। फिर इसके लिए मैं ढकवा के जिन्द बाबा और ब्रह्म बाबा को प्रसाद चढ़ा आता। पर बकरे की माँ कब तक तक खैर मनायेगी, मेरी आंखें की जलन और सिर की पीड़ा बढ़ती गयी। तमाम अर्थिक और सामाजिक संबंधों का नुकसान होने लगा और तो और पत्नी को कम समय देने के कारण, वह मोबाइल को अपनी सौत और मुझे उसका गुलाम तक बताने लगी है। मित्रों यह दशा फेसबुक पर समय खपाने के कारण हुआ है।
       मेरे जैसे कई सरकारी भले मनुषों को यह फेसबुक अपना शिकार बनाता जा रहा है। थोड़ा काम, फिर फेसबुक, फिर काम फिर फेसबुक, जो समय पब्लिक के काम का होता है, उस समय, कोई नाच में पड़ा है, कोई नंगई के खेलों में पड़ा है, कोई फालतू की टिप्पणियों में पड़ा है, कोई अपने यूट्यूब के पंचर में पड़ा है, कोई अपने लौड़े के टपोरी मर्का डान्स के प्रमोशन में पड़ा है। कोई लंफगई-लुच्चई के वीडियों पब्लिक का काम छोड़ कर ऐसे देख रहा है, जैसे कुछ समय पहले कुछ माननीय विधानसभा में देख रहे थे। मेरी सरकार से गुजारिश है, बढ़ रहे सोशल मीडिया की इस लती महामारी से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय कार्यकारिणी बनाए। इसके समूल उन्मूलन के लिए उस कार्यकारिणी का अध्यक्ष अमित मालवीय को बनाए। जिससे तमाम सरकारी काम बाधित न हो, जनता का काम न रूके। विकास पंख लगाकर फर-फर उड़ता रहे। नाले से गैस धड़-धड़ बनती रहे। दरअसल मेरा बेटा, मेरी बेटी  इस्ट्राग्राम के दीवाने होते जा रहे है। यानी दुनिवायी विषैला प्रदूषण मेरे घर में भी सोशल मीडिया के जरिए घुसने लगा है, इसलिए इसका विरोध करना भी मेरी मजबूरी बन गयी है।

Monday, October 10, 2022

चौथे स्तम्भ पर भाजपा क्यों हुई हमलावर-सुरेश सौरभ

   अपराध   

उस दिन दुनिया गांधी जयंती मना रही थी। सत्य अहिंसा के पुजारी गांधी जी को नमन कर रही थी। लखीमपुर नगर के पत्रकार विकास सहाय अपने विज्ञापन व्यवस्थापक दिनेश शुक्ला के  साथ लाल बहादुर शास्त्री पार्क में समाचार संकलन के लिए गये थे। ब
ताते हैं कि वहां लखीमपुर नगर  पालिकाध्यक्षा निरूपमा बजपेई  जेई संजय कुमार, सर्वेयर अमित सोनी के साथ पालिकाध्यक्षा का प्रतिनिधि रिश्तेदार शोभितम मिश्रा भी मौजूद था। भाजपा की चेअरमैन साहिबा की, शास्त्री जी पर माल्यार्पण करते हुए विकास फोटो खींचना चाह रहे थे, तभी गुस्से में चेअरमैन साहिबा ने कहा-मेरे खिलाफ खबर लिखते हो, यह तुम अच्छा नहीं कर रहे हो विकास?  तभी उनका रिश्तेदार  खुद को भाजपा कार्यकर्ता बताने वाला शोभितम मिश्रा अपने मोबाइल की स्क्रीन विकास को दिखाते हुए रोब में बोला-नगर पालिका के बारे में फेसबुक पर अनाप-शनाप कविता लिखते हो? यह कहते-कहते शोभितम ने विकास को जोर से धक्का दे दिया। चटाक....विकास सिर के बल जमीन पर गिर गये,  फिर वह फौरन विकास के सीने पर चढ़, विकास की गर्दन अपने गमछे से कसने लगा, साथ ही विकास को गालियां देने लगा। चंद सेकेंडों में हुए जानलेवा हमले को विकास के साथ आए दिनेश समझ न पाए.. फौरन वह विकास को छुटाने की गरज से शोभितम की ओर दौड़े। इधर धींगामुश्ती  चल रही थी, विकास की जिंदगी बचाने की, उधर चेअर मैन साहिबा और ईओ विकास को तड़पते हुए देखकर मजे ले रहे थे। अहिंसा के पुजारी गांधी जी जयंती पर चेअरमैन के उकसाने पर हिंसक हुए शोभितम के चंगुल से विकास को, दिनेश, बड़ी मुश्किल से छुटा पाए। तब शोभितम वहां से फौरन भाग लिया। इधर विकास की गर्दन कसने  से उन्हें मूर्छा आने लगी, सांसें फूलने लगी, जोर-जोर से खांसी आने लगी। उधर कुटिल मुस्कान चेअरमैन साहिबा  और ईओ के चेहरे पर बिखरती जा रही थी, इधर लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ जमीन पर पड़ा दर्द से छटपटा रहा था। इतनी क्रूर भाजपा की चेयरमैन हो सकती है, यह चिंतनीय है। पिछले वर्ष तीन अक्टूबर को तिकुनियां में केद्रीय राज्यमंत्री अजय मिश्र टैनी के सुपुत्र अशीष मिश्र  ने कई किसानों को रौदते कर मारते हुए एक पत्रकार रमन कश्यप को भी  मार डाला था। भाजपा के द्वारा पत्रकारों पर यह दूसरा हमला है।  
पीड़ित पत्रकार/लेखक विकास सहाय, लखीमपुर-खीरी
       विकास पर आत्मघाती हमले के बाद तमात पत्रकार सदर कोतवाली के लामबंद हुए, तब घटना के करीब के घंटे बाद प्रभारी निरीक्षक चन्द्रशेखर की त्वरित कार्यवाही के बाद आरोपी शोभितम गिरफ्तार हुआ।आई पीसी की धारा'323/504/506/151 सीआरपीसी जैसी धाराएं लगा कर आरोपी को जेल भेज दिया गया। बताते भाजपा के रसूख के दम पर शोभितम दो दिन बाद छूट गया और आजकल अपने गांव में  मस्ती से विचरण कर रहा है।      बकौल विकास, उन्होंने नगरपालिका के बंदरबांट पर कुछ समीक्षात्मक खबरें छापीं थीं जिससे चेअर मैन साहिबा और उनका रिश्तेदार पिछलग्गू शोभितम नाराज चल रहा था। उसके जानलेवा हमले से मैं और मेरा पूरा परिवार काफी भय के साये में जी रहा हैं, मै किस भय और मानसिक पीड़ा में खबर लिख रहा हूं यह बता नहीं सकता। तिस पर चेअर मैन साहिबा के पति तथाकथित समाजसेवी डा. सतीश कौशल बाजपेयी, मुलायम सिंह का सा संवाद  दोहराते हुए मुझसे कहते हैं शोभितम बच्चा है, जाने दो, माफ कर के किस्सा खत्म करो। बच्चों से गलतियां हो जाती हैं। वे कैसे डाक्टर हैं पता नहीं? उन्हें मेरे घाव पर मरहम लगाना चाहिए जबकि वे नमक लगा रहे है। इस संदर्भ में वंचित, शोषित, सामाजिक संगठनों के अखिल भारतीय परिसंघ के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष, चन्दन लाल वाल्मीकि कहते हैं मैं पत्रकार विकास सहाय को, विगत 18 सालों से जानता हूं, विकास जी जन समस्याओं को  निर्भीक, निडर, सच्चाई के साथ छापते हैं। एक जनप्रतिनिधि के सामने उनके साथी का, विकास पर घातक जानलेवा हमले की सभी ने निंदा की है, घटना की जानकारी होते ही कोतवाली में न्याय के लिए तमाम पत्रकारों के अलावा संभ्रांत व्यक्तियों  का हुजूम, विकास की कलम की लोकप्रियता को दर्शाता है। बरेली के वरिष्ठ पत्रकार गणेश पथिक का कहना है, यह अति निंदनीय, स्तब्धकारी और सर्वथा अस्वीकार्य है हमला है। ऐसे अवांछित व्यक्ति को  लखीमपुर खीरी समेत यूपी के सभी पत्रकारों, पत्रकार संगठनों को संत पुरुष  विकास के विरुद्ध अशिष्ट बर्ताव करने वाले शोभितम पर कठोरतम कार्रवाई सुनिश्चित कराने के लि‌ए सभी पत्रकारों को लामबंद होकर आंदोलन करने की जरूरत है।
शोध छात्र युवा कवि विजय बादल, विकास पर हुए हमले की निंदा करते हुए कहते हैं, "पत्रकार एवं साहित्यकार जनता की आवाज़ होते हैं, वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार विकास चन्द्र सहाय जी के साथ हुई अभद्रता जनता  की आवाज़ दबाने का कुत्सित प्रयास लगती है,  अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का हनन करते हुए इस असंवैधानिक कृत्य की जितनी भर्त्सना की जाये कम है‌।
   
सामूहिक चित्र, लाल घेरे में आरोपी शोभितम

 बुजुर्ग शिक्षाविद्  सत्य प्रकाश 'शिक्षक' कहते हैं,मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। एक मीडिया ही है, जिसके माध्यम से सबको सच्चाई का पता चलता है, अतः मीडिया से जुड़े हर व्यक्ति का सम्मान करना हर नागरिक का प्रथम कर्तव्य है‌।  दैनिक जागरण के लब्ध प्रतिष्ठित पत्रकार एवं शायर विकास सहाय, जो निहायत सीधे और सरल व्यक्तित्व के धनी हैं, हमेशा अपने कर्तव्यों पर अडिग रहने वाले जुझारू व्यक्तित्व हैं। ऐसे व्यक्ति पर 'वार्ड नामा' स्तंभ के कारण हाथ उठाना, मारपीट करना ,गला दबाना, शोभितम की कायराना हरकत है।  आरोपी को ऐसा दंड मिले  जो पूरे देश में  मिसाल बने। 
           शिक्षक  राजकिशोर गौतम और कवि रमाकांत चौधरी ऐसी घटनाओं को बाबा साहब के संविधान में दी गई अभिव्यक्ति की आजादी पर किया हमला बताते हैं। खीरी के वरिष्ठ पत्रकार सत्य कथा लेखक साजिद अली चंचल इस मामले में  कहते हैं ,लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की स्वतंत्रता पर प्रहार करने का घिनौना खेल खेलने से बाज नहीं आ रहें हैं भ्रष्टाचारी। लखीमपुर खीरी के निडर निर्भीक पत्रकार विकास सहाय के साथ, जो जुल्म की होली खेलकर उनकी (पत्रकारिता की) आवाज को दबाने का प्रयास नगर पालिकाध्यक्ष के प्रतिनिधि द्वारा किया गया, घोर निंदनीय एवं अक्षम्य हैं,  ऐसे बेहद संवेदनशील मामले में योगी जी ठोस कदम उठाएं ताकि अभिव्यक्ति की आजादी बची रही।
रिपोर्ट
सुरेश सौरभ
निर्मल नगर लखीमपुर खीरी
उत्तर प्रदेश
मो-7376236066

Tuesday, August 16, 2022

एक राखी का इंतजार-सुरेश सौरभ

छोटी कहानी
       
        
  सुरेश सौरभ
निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी
उत्तर प्रदेश पिन-262701
मो-7376236066

         चार-पाँच किन्नर उसे घेर लिये थे। एक किन्नर सन्नो तैश में उसका गिरेबान खींच, बड़े गुस्से से बोली-आज बता, तू रोज-रोज मेरा पीछा क्यों करता है? मुझे घूर-घूर कर क्यों देखता है?..
       लेकिन वह युवक बेखौफ एकटक सन्नो को बस घूरे ही जा रहा था।
        ‘‘मैं पूछती हूँ, कुछ बोलता क्यों नहीं।’’
         युवक निर्विकार भाव से सन्नों को घूरता ही रहा।
       ‘‘लग रहा मार का भूखा है।..अरे! इसे तो पुलिस के हवाले कर दो। ..तालियाँ पीटते हुए उसे घेरे सब किन्नर एक स्वर में बोले।
  ‘‘क्योंकि तेरी शक्ल मेरी बहन से मिलती है।" सन्नो को बराबर घूरते हुए, उस युवक ने अपना मौन तोड़ा।
        ‘‘बहन ऽऽऽ...सन्नो का मुँह हैरत से खुला का खुला रहा है। बहन बहन बहन..दोहराते हुए, उसे घेरे सारे किन्नर, किसी अज्ञात संशय से, आपस में, एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे। 
       सन्नो नेे गिरेबान छोड़ दिया उसका। सबका क्रोधावेश जाता रहा।
         सन्नो-"कुछ समझी नहीं? अरे! कैसी बहन? कौन बहन? किसकी बहन मैं? ताली पीट, उसे विस्मय और नजाकत से निहारने लगी।
       ‘‘बरसों पहले बिलकुल तुम्हारे शक्ल-ओ-सूरत जैसी मेरी भी एक बहन थीं, यह मेरी माँ  बताती हैं, बचपन में हम दोनों भाई-बहन को, मेरे माँ-बाप किसी हमें बड़े मेले में घूमाने ले गये थे। फिर वहीं कहीं हमारी बहन गुम हो गई। बहुत तलाशा, पर आज तक नहीं मिली। तब मैं बिलकुल अबोध था। मेरी बहन कुछ समझदार थी। बहन का चित्र घर में रखा है, उसे हमेशा मैं निहारा करता हूँ। और जब रक्षाबंधन आता है, उसे याद करके अपनी सूनी कलाई को देख-देख, मेरे दिल में ऐसी हूक मचती है, दिमाग में ऐसी हलचल मचती है कि बस पूछो मत? कई शहर ढूढ़ा? कहाँ-कहाँ ढूंढ़ा, बताना मुश्किल है। इस शहर में जब ट्रान्सफर होकर आया, तो तुम्हें देखा, तुम्हारी शक्ल मेरी बहन से मिलती-जुलती सी लगी। पीछा इसलिए कर रहा था, सोचा, किसी दिन मौका लगा तो आप से बात करके अपने दिल का बोझ, हल्का कर लूंगा।
      ‘‘क्या तुम्हारे पापा का जग्गू और माता का नाम शीतल है-सन्नो हैरत से बोली
   ‘हाँ।’
   ‘‘क्या तुम्हारा जिला सीतापुर तहसील बिसवाँ है।’’
   ‘‘जी हाँ।’’
   ‘‘क्या गाँव का नाम रूद्रपुर है।’’
    ‘‘जी जी।’’
      अब तो सन्नो फफक पड़ी। लपक का युवक को गले से लगा लिया.. बिल्कुल फूट पड़ी.... हाय! मेरा भाई, हाय! मेरा भैया, मेरा लाला! मेरा गोलू!
        भैया भी सुबकने लगा।...मैं किसी मेले में नहीं? किसी भीड़ में नहीं?बल्कि रूढ़ियों के मेले में, गरीबी के झमेले में, माँ-बाप की बदनामी के डर वाले बड़े सैलाब में बहकर तुझ से दूर चली गई थी।.. तुझ से बिछड़ गई थी...  अब वहाँ सबकी आँखों में समन्दर तूफान के आवेग में मचल रहा था। ....राखी का त्योहार नजदीक था। सामने दुकानों में टंगी राखियां भी अब मायूसी से उनके रुदन को देख रही थीं। और दुःखी हो, अंतर्मन से कह रहीं थीं-मैं भी बरसों से बिछड़े इस भाई-बहन का इंतजार कर रही थी।"


लघुकथाएं-सुरेश सौरभ

(हास्य-व्यंग्य)
सुरेश सौरभ

डीपी बदलते ही, कायाकल्प हुआ    

कल रात जैसे ही, मैंने अपनी डीपी बदली भाई! मेरी तो खड़ूस किस्मत का रंग ही एकदम से  बदल गया। फौरन खटरागी प्राइवेट नौकरी ऑटोमैटिक सरकारी में तब्दील हो गई। वाह! मिनटों में, मैं सरकारी दामाद बन गया। डीपी बदली तो बैंकों का निजीकरण फौरन बंद हो गया। डीपी बदली तो रेल की बिकवाली तुरन्त बंद हो गई। बीएसएनएल की बोली लगने वाली थी। एलआईसी की नीलामी होने वाली थी, भाईजान जैसे ही डीपी मैंने क्या बदली तमाम, सरकारी उपक्रमों की नीलामी-सीलामी सब रफा-दफा हो गई। और तो और विदेश टहलने गया नामुराद काला धन, झर-झर-झर धवल पानी जैसा आकाश से, देश में बरसने लगा। ओह! 15 लाख मेरे खाते में, एकदम से टूट पड़े। वाह! मोदी जी वाह! क्या सुझाव दिया। बिलकुल जादू हो रहा है। गजब हो गया। पूरे विश्व में गरीबी भुखमरी का ग्राफ जो रोज हमारे यहां, सुरसा के मुंह की तरह बढ़ता जा रहा था। डीपी बदलने सेे उस राक्षसी का मुंह छूमंतर सा गायब हो गया। डीपी बदलने से ऐसा कमाल हुआ, भाई ऐसा कमाल हुआ कि डालर को रौंदते हुए रुपया, वीर हनुमान की तरह बढ़ता जा रहा है। फिर कहना पड़ रहा है वाह! क्या सीन है। वाह! मोदी जी वाह! सवा सौ करोड़ जनता की करोड़ों-अरबों दुवाएं तुम पर भराभरा कर निछावर। जय हो तुम्हारी! तुम हमारे भगवान, हम तुम्हारे सौ फीसदी वाले, पक्के वाले भक्त।
      डीपी बदलने से तेल-गैस के दाम आधे हो गये। जिसकी घोषणा साध्वी नेत्री स्मृति देवी ने कर डाली। आसमान छूती महंगाई को जमीन चाटनी पड़ गई। देश से पाकिस्तानी,खालिस्तानी देशद्रोही मुंह लुकाकर उड़नछू हो गये।  
     वाह! डीपी क्या बदली बिलकुल राम राज्य आ गया। लॉकडाउन के कारण ध्वस्त हुए काम-धंधे, डीपी चेन्ज करने की संजीवनी बूटी का अर्क पाकर धड़धड़ाते हुए रॉकेट की तरह दौड़ने लगे। सारी बेकारी खत्म। लक्ष्मी जी सब पर मेहरबान हो गईं। पौकड़ा बेचने वाले आत्मनिर्भर शिक्षित युवाओं के पर लग गये। लोकल ब्रॉन्ड के माल से उनका, बेहतर सुनहरा वो कल हो गया। उनके हाथ में महंगी गाड़ी, बंगला सब आ गया। कमाल हो गया। हाथरस में रात में जलाई गई बेटी की आत्मा को न्याय मिल गया। कासगंज जैसी जगहों, पर जहां दलित दूल्हे घुड़चढ़ी नहीं कर सकते, ऐसी भेदभाव वही जगहों से तो सारे भेदभावों के नामोनिशान मिट गये। डीपी क्या बदली देश की तकदीर बदल गयी। सारे चोरों को, सारे नेता राम-राम रटाने लगे, तोते जैसे। अमेरिका थरथराने लगा हमसे। पाक तो दुम दुबाकर हिमालय पर्वत की कंदराओं में छिपकर अपनी सलामती की खैर खुदा से मनाने लगा। यूं समझिए डीपी बदलने से रोज, मेरे पास पैसों की बहार आ गई। रोज मैं कपड़े बदलने लगा। अब कपड़ों से आप मेरी पहचान न कर लेना। अब कपड़े अदल-बदल कर कहीं ड्रम बजाता हूं तो कभी मोर नचाते हुए, पूरी दुनिया के चक्कर पे चक्कर काट रहा हूं। मेरी तो मौजां ही मौजां... मेरे तो अच्छे दिन आ गये, बस एक डीपी बदलने से। आप भी बदल डालिए।
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लघुकथायें

गफलत 

      डॉक्टर ने रवि की ओर रिपोर्ट बढ़ाते हुए कहा,"कमी सीमा में नहीं आप में है रवि जी।
       डॉक्टर के ये शब्द नहीं  वज्रपात था सीमा और रवि पर। हतप्रभ सीमा कांपते हुए विस्मय से रवि का मुंह ताकने लगी, रवि  भर्राये गले से बोला, 'चलो घर...
        बोझिल कदमों से घर में प्रवेश कर रहे, रवि और सीमा को देखते ही, रवि की मां ने जलता सवाल दाग दिया 'क्या हुआ? क्या निकला रिपोर्ट में?
     दोनों यंत्रवत् खामोशी से अपने कमरे में जाने लगे।
     "मैं जानती थी यह किन्नरी है। बंजर भूमि में कभी कोई बीज उगा है, जो अब यहां उगेगा, न जाने कहाँ बैठी थी, यह हिजड़ी, इस घर के नसीब में..... कर्कशा माँ का स्वर दोनों का कलेजा छीले जा रहा था। गुस्से से सीमा बाहर जाने को उद्यत हुई, तो रवि ने उसका हाथ कस कर रोक लिया। याचना भरे स्वर में बोला-जाने दो, मेरी तरफ से, मां को माफ कर दो।
  ....मैं तो कहती हूं, अरे! यह बांझ है तो दूसरी कर ला रवि! इस हिजड़ी को रखने से क्या फायदा?.. खामखा इसका खर्चा उठाने और खिलाने से क्या फायदा ?
      अब बर्दाश्त से बाहर था। सनसनाते हुए रवि बाहर आया, बोला-किन्नरी सीमा नहीं मैं हूँ..
      माँ अवाक! बुत सी बन गईं। फटी-फटी विस्फारित आंखों से एकटक रवि को देखने लगी।
      "हां हां मैं किन्नर हूं। इसलिए बच्चा नहीं पैदा कर पा रहा हूं। बोलो अब क्या बोलती हो... रवि का ग़ुस्सा सातवें आसमान पर था। मां को सांप सूंघ गया। अंदर सीमा फूट पड़ी। चिंहुकते हुए उठी और किसी सन्न  में दौड़ते हुए आई, रवि का हाथ पकड़, अंदर खींचकर ले गई‌। अब दोनों सुबक रहे थे। बाहर बैठी मां की आंखों में आंसू न थे, पर उसका दिल अंदर ही अंदर सुलग रहा था और दिमाग में सैकड़ों सुइयां चुभ रहीं थीं।

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राखी का मोल


बहन ने अपने भाई के माथे पर रूचना लगाया, आरती उतारी फिर जब राखी बांध चुकी, तब भाई राखी देखते हुए थोड़ा हैरत से बोला- अरे वाह ! यह राखी तो बहुत चमक रही है। बहन सहजता से बोली- इसमें कुछ लड़ियां चांदी की चमक रहीं हैं।

'अच्छा तो ये बात है।' बहन की थाली में पांच सौ का नोट धरते हुए भाई बोला ।

'नहीं नहीं भैया पांच सौ काहे दे रहे हैं। वैसे भी तुम्हारा लॉकडाउन के पीछे काम धंधा मंदा चल रहा है। फालतू में पैसा न खर्च करो सौ देते थे, सौ ही दो । अगर वो भी न हो तो कोई बात नहीं। 'अरे! बहना चांदी की राखी लाई हो, इतना तो तुम्हारा हक बनता है।' 'ऐसा नहीं है भैया, इस राखी का मोल पैसे से न लगाओ। कहते-कहते परदेसी बहन " की आंखें भर आईं। तब भाई उसे अपने कंधे से लगाते हुए रूंधे गले से बोला- मुझे माफ करना बहना । तेरा दिल दुखाना मेरा मकसद न था ।

अब बहन की रूचना - रोली से सजी थाली में दीपक की रोशनी में पड़ा सौ का नोट इठलाते हुए मानो भाई - बहन को हजारों-लाखों दुआएं दे रहा हो

युगीन दस्तावेज तालाबंदी-रंगनाथ द्विवेदी

पुस्तक समीक्षा 

तालाबंदी

नई दिल्ली, श्वेत वर्णा प्रकाशन से प्रकाशित देश के सर्वाधिक पढ़े जाने वाले लघुकथाकारों का एक अविस्मरणीय संकलन तालाबंदी  हैं जो कोरोना काल के हर दर्द और पीड़ा की उन असंख्य सांसों पर लिखी गई हैं जिसे खुद लघुकथा लेखकों ने देखा व जिया है‌। यह कोरोना काल की वह "तालाबंदी" है जो कहीं ना कहीं सरकार की नाकामी के कालर को भी जनहित में पकड़ने और झिझोड़ने से बाज नहीं आती,शायद ऐसे ही कुछ बागी बेटे हर युग में, यह कलम पैदा करती रहती है।
     इस लघुकथाओं साझा संग्रह का संपादन खुद राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित युवा लघुकथाकार सुरेश सौरभ ने किया है। ये कोरोना काल के अब तक प्रकाशित सारे पुस्तक संकलनों में ऐसा संकलन है जिसकी हर लघुकथा को आप इस विश्व-विभीषिका के उस "आंसूओं" की तरह पढ़ सकते हैं जैसे छायावाद में जय शंकर प्रसाद के आंसू को लोग पढ़ते है।
इतनी बेहतरीन प्रिटिंग और छपाई के साथ कोई अन्य प्रकाशक होता तो मेरा दावा है कि वह इस संपादित पुस्तक की कीमत कम से कम अपने पाठकों  से पांच सौ रुपए वसूलता, लेकिन संपादक और प्रकाशक की इच्छा थी कि,इस विभीषिका के दर्द और पीड़ा से कुछ कमाने से बेहतर है कि यह संकलन सर्वाधिक लोगों के द्वारा खरीदा और पढ़ा जाए इसके लिए उन्होंने इस लघुकथा संकलन की कीमत मात्र 199/ रुपए निर्धारित की है।
   आने वाली हमारी पीढ़ियां जब भी कभी लघुकथा के रुप में संकलित हमारी इस पुस्तक रुपी वसीयत के पन्ने पलटेगी, तो उन्हें लगेगा की हमारे देश ने एक ऐसा हादसा भी कभी जिया था, जब मानवीय संवेदना से भी कहीं ज्यादा  लाशें इस देश के स्वार्थ संवेदना की पड़ी थी।इस लघुकथा संकलन में कुल 68 लघुकथा लेखकों की लघुकथाएं शामिल हैं।
              सौरभ जी लिखी संपादकीय विचारोत्तेजक और भावनात्मक शैली से लबरेज है।

पुस्तक -तालाबंदी
प्रकाशन श्वेत वर्णा प्रकाशन नई दिल्ली।
 मूल्य -199

जज कॉलोनी, मियापुर
जिला--जौनपुर 222002 (U P)
mo.no.7800824758
rangnathdubey90@gmail.com

Monday, May 30, 2022

उधारी मरीज-सुरेश सौरभ

 लघुकथा
  
-सुरेश सौरभ
निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी पिन-262701
मो-7376236066

       वह डॉक्टर के सामने पड़ी बेन्च पर एकदम लिथर गया। जोर-जोर से हाँफते हुए फटी-फटी आँखों से उसके साथ आया, तीमारदार हाथ जोड़कर बोला-डॉ. साहब बचा लीजिए कल से उल्टी-दस्त से परेशान है। कई जगह दिखाया पर कोई फायदा नहीं मिला। डॉक्टर साहब ने तुरन्त दूसरा पेशेन्ट छोड,़ उसके मरीज पर दया दृष्टि डाली।... फौरन इन्जेक्शन और दवा दी। 
     कुछ घड़ी बाद मरीज कुछ सुकून महसूस कर रहा था। डॉक्टर ने कहा-‘‘इन्हें ले जाओ। अब ये ठीक हो जाएंगे, जो दवाएँ दीं है, उसे समय से खिलाते रहना। अगर फिर भी कोई परेशानी लगेे तो ले आना।’’
    अब फीस देने की बारी थी,पर डॉक्टर के माँगने से पहले ही तीमारदार दीनता से हाथ जोड़कर बोला-साहेब! पैसे जल्दबाजी में घर ही भूल गया। आप भरोसा रखें। कल इधर से निकलूँगा तो दे दूँगा।’’
      डॉक्टर ने दया भाव से कहा-ठीक है भाई कोई बात नहीं।
      मरीज अपने तीमारदार के साथ चला गया।
      तीसरे दिन वह मरीज डॉक्टर साहब  के क्लीनिक के सामनेे, साइकिल चलाते हुए चैतन्य दषा में निकला। उसे देख डॉक्टर साहब को अपनी फीस याद आई और वह वादा भी जो उन्हें टूटता हुआ दिखने लगा था।
      आठवें दिन। वह उधारी मरीज डॉक्टर साहब को, एक पार्टी में दिखा। डॉक्टर साहब जब उसके सामने आ गये तो उसने डॉक्टर को फौरन नमस्कार किया, उनके बोलने के पहले ही वह बोल पड़ा-क्या बताएँ डॉक्टर साहब! अप की दवा से कोई फायदा नहीं हुआ? बड़ा इलाज कराया, तब कहीं फायदा हुआ।’’ डाक्टर साहब हतप्रभ थे। फौरन उससे, परे हट गये। उन्हें सुदर्शन की बाबा भारती वाली कहानी याद आ रही थी,पर अब डाकू किस-किस रूप में आएंगे। यह सोचते हुए व्यथित थे। अब तक पार्टी की शानदार रौनक और वहाँ का सौंदर्य बोध उन्हें प्रफुल्लित कर रहा था, पर अब वही उन्हें हृदय में टीस दे रहा था। अतंर्मन को उदासी के भंवर में धकेल रहा था।

Tuesday, May 24, 2022

इंजन-सुरेश सौरभ

   (लघुकथा)  

-सुरेश सौरभ
निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी पिन-262701
मो-7376236066
      लाठी के पीछे का सिरा वह अंधा बूढ़ा पकड़ता, आगे का, वह काली मटमैली बुढ़िया पकड़े हुए चलती। दोनों भीख मांगते। सारे शहर में वह दया के पात्र थे, लिहाजा उनकी  झोली रोज भर जाया करती थी। 
        एक दिन उसकी पार्टनर बुढ़िया मर गई। 
       अब वह दूसरे शहर में चला गया । अब उसकी आंखों की ज्योति लौट आई। वह अकेले भीख मांगता,पर पहले जैसी आमदनी नहीं थी। 
    अब वह पहले जैसे इंजन की तलाश कर रहा था, और उसे अपने साथ, तीसरे शहर ले जाकर, अपने काम को बेहतर तरीके से पटरी पर लाना चाह रहा था। 
...

Sunday, April 24, 2022

संतू जाग गया, पक्की दोस्ती का विमोचन सम्पन्न हुआ

    पुस्तक विमोचन   
संतू जाग गया, पक्की दोस्ती विमोचन सम्पन्न लखीमपुर खीरी आज सनातन धर्म विद्यालय में परिवर्तन फाउंडेशन संस्था के तत्वावधान में एक काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें गोला गोकर्णनाथ से मुख्य  अतिथि के रूप में वरिष्ठ कवि नंदी लाल विशिष्ट अतिथि कवि  समाजसेवी  द्वारिका प्रसाद रस्तोगी ने, डॉ मृदुला शुक्ला "मृदु" की कहानी संग्रह 'संतू जाग गया' और सुरेश सौरभ की कृति पक्की दोस्ती लघुकथा संग्रह का विमोचन किया। मुख्य वक्ता प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ राकेश माथुर ने पुस्तकों की समीक्षा  प्रस्तुत करते हुए कहा मृदुला की कहानियां गद्य गीत की तरह मार्मिक और हार्दिक हैं वहीं सौरभ की पक्की दोस्ती की बाल कहानियां बच्चों के लिए प्रेरणा दायक है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे शिक्षाविद् सत्य प्रकाश शिक्षक ने कहा रचनाकार सूर्य की तरह है जो समाज को सूर्य की तरह ही आलोकित करता है। सिधौली से पधारे  "श्रमवीर" कृति के रचयिता  देवेन्द्र कश्यप 'निडर' ने कहा सौरभ जी की रचनाओं में युगीन समय बोध है।

कार्यक्रम का संचालन कर रहे कवि श्याम किशोर बेचैन और शायर कवि विकास सहाय ने अपने बेहतरीन अंदाज से कविता पाठ करके सभा में समां बांध दिया। गोला गोकर्णनाथ के संत कुमार बाजपेई संत, रमाकांत चौधरी, डॉ शिव चन्द्र प्रसाद, हरगांव के युवा कवि विनोद शर्मा "सागर" नकहा के नवोदित कवि दुर्गा प्रसाद नाग, रंजीत बौद्ध, इन्द्र पाल, मृदुला शुक्ला, द्वारिका प्रसाद रस्तोगी ने भी सुमधुर काव्य पाठ किया। सरदार जोगिंदर सिंह चावला, अखिलेश अरूण, चंदन लाल वाल्मीकि, ने साहित्य की प्रासंगिकता पर विचार प्रकट किए। बालिका मानसी, रूपांसी, अपूर्वा शाक्य,  पूर्णिमा शाक्य ने भी कविता पाठ किया। संयोजक श्याम किशोर बेचैन ने अतिथियों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। सभा में शमशुल हसन उर्मिला शुक्ला, राम बाबू, मनीष गौतम, राज कुमार वर्मा, आदि काफी संख्या में लोग मौजूद रहे।

Wednesday, March 30, 2022

भैया जी ने इण्टर के बाद एम.ए. किया-सुरेश सौरभ

(हास्य-व्यंग्य)  
सुरेश सौरभ

भैया जी को हल्के में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि वह हल्के नेता नहीं है। उनके भारी-भरकम शरीर की तरह उनका ज्ञान और विज्ञान भी बहुत भारी और भरकम है। जहां जाते हैं, बस वहीं अपनी अमिट छाप छोड़ कर चले आते हैं और चर्चा-ए-आम हो जाते हैं। बचपन में उन्होंने पहले कक्षा आठ पास किया था, बाद में लोगों के कहने पर कक्षा पांच भी पास कर लिया। मंचों पर वह अक्सर कहते थे, मैं वह एमए फर्स्ट डिवीजन पास हूं। उनकी लच्छेदार बातों पर लोगों को जब शक होने लगा, तब एक दिन विपक्षियों ने उनसे डिग्री मांगी, कहा, दिखाओ तब माने, फिर तो उन्होंने टालमटोली करनी शुरू कर दी। जब विरोधियों ने उनकी नाक में नकेल डाल कर बहुत परेशान करना शुरू किया, तो एक दिन बाकायदा उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके, अपने 'नक्षत्र विज्ञान' से एमए पास करने की डिग्री, उस समय की दिखाई जब नक्षत्र विज्ञान का कोर्स किसी विश्वविद्यालय में न था। जब इस पर, पत्रकारों ने उनसे सवाल उठाए तो वह बोले कि बस वही इतने काबिल छात्र थे जिनकी काबिलियत के दम पर फलां विश्वविद्यालय ने अकेले उनके लिए वह कोर्स चलाया था और फिर उनके कोर्स कम्पलीट करने के बाद, वह कोर्स बंद कर दिया। इसलिए उस समय वह डिग्री पाने वाले, वही एक मात्र छात्र हैं। यह भी बताया कि उन्होंने कि वह डिग्री जब हासिल की, तब इंटर के बाद डायरेक्ट एमए होता था। अब वह मंत्री पद पर रहते हुए खूब मन लगा कर, पढाई करके आगे बीए भी कर लेंगे। उनकी दूरदर्शी दृष्टि पर सभी अभिभूत हुए। आजकल वह नेता जी सत्ता की चाशनी दिन-रात चाटते हुए स्कूल कॉलेज के नौनिहालों को, युवकों को और देश की एडवाइजरी विभाग को अपने दुर्लभलतम ज्ञान से आलोकित करते हुए, अपने मन की बातों और विचारों से देश का बहुत उद्धार करने वाले सबसे टॉप क्लास के नेता बन चुकें हैं।


निर्मल नगर लखीमपुर खीरी पिन-262701
मो-7376236066

Tuesday, February 01, 2022

यादों के गुलाब-सुरेश सौरभ

लघुकथा

-सुरेश सौरभ 
कुछ पुरानी किताबों को हटाते-संभालते हुए, एक डायरी उसके हाथ में आ गई । ताजे गुलाबों की खुशबू पूरे कमरे में फैल गई।कालेज के दिनों की यादों से उसका अंग-अंग थिरक उठा। बूढ़ी रगो में रक्त का संचार बढ़ गया। तभी अपनी बेटी पर उसकी नजर गई, वह इठलाते-बलखाते हुए किसी से फोन पर बातें कर रही थी, उसके गालों पर बढ़ती गुलाबी रंगत को देख, मुंह बिसूर कर वह दहाड़ा-किसका फोन है?
बेटी ने फौरन फोन काट दिया। उसे होश न रहा ,पापा जी कब सामने है आ गए।
कि... कि किसी का नहीं... हकलाते हुए, संभलते हुए।
वह डायरी पटक कर बोला -तेरे गुलाबी गाल बता रहे हैं किसका फोन था। बेटी सहम गई।... टिन्न.. एक लवली गुलाबी इमोजी मैसेंजर पर आई। वह देख पाती, इससे पहले पापा बोले-मुझे गुलाबी रंग और गुलाबों से सख्त नफरत है समझी ...
चट-चट-चट.. तेजी से चप्पलें चटकाते हुए चल पड़े। ‌बेटी हैरत से उन्हें जाते देख रही थी, गालों पर उगी, अपनी गुलाबी रंगत तो समझ में आ रही थी, पर गुलाबों से सख्त नफरत.. के मर्म को वह न समझ पा रही थी।

मो०निर्मल नगर
लखीमपुर खीरी  पिन-262701
मो,-7376236066




पढ़िये आज की रचना

चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

(फिल्म समीक्षा)      एक मां के लिए उसका बेटा चाहे जैसा हो वह राजा बेटा ही होता है, बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिन्हें हम अपने विचार...

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