साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०
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Friday, May 12, 2023

उचक्के-अखिलेश कुमार 'अरुण'


(लघुकथा)

अखिलेश कुमार अरुण
ग्राम हजरतपुर परगना मगदापुर
जिला लखीमपुर खीरी, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 8127698147

    मैं अपने घर से निकली ही थी कि बाईक सवार दो उचक्के एक राह चलती महिला के दाहिने हाथ की कान की बाली पर हाथ साफ़ कर गए थे। दौड़कर उस महिला के पास पहुंची जो मारे दर्द के चीख-चिल्ला रही थी, कान की लोर लहूलुहान थी। देखते-ही देखते 10-१२ लोग जमा हो चुके थे जितने मुहँ उतनी बातें. बहन, जी सोने के कुंडल थे क्या?

    भर्राए गले से बोली नहीं नहीं भईया, इस महंगाई के ज़माने में ....आर्टिफीसियल ज्वेलरी पहनने को मिल जाए यही बहुत है।

    भीड़ से किसी ने कहा, अपराधी तो दिन पर दिन बढ़ते जा रहे हैं

    पीड़ित महिला बोल पड़ी,गलती उनकी नहीं है, मेरे भी तीन बेटे हैं, पूरा जीवन पेट काट-काट कर उनको पढ़ाया कि दो-चार पैसे के आदमी बन जायेंगे, बड़ा बेटा 30 वर्ष का होने को आया है....खाली पड़ा रहता है...समाज-परिवार से अलग-थलग, यह भी होंगे उन जैसे बच्चों में से कोई एक?

    सब लोग जा चुके थे मेरे भी दो बेटे हैं, बड़े ने दो साल पहले एम०टेक० पास  किया है और दुसरे ने इस साल पालीटेक्निक.......?

बुर्का-मिन्नी मिश्र

             
लघुकथा (मैथिली)
 कथाकार- सुरेश सौरभ, उत्तर प्रदेश की रचना "हिजाब" का मैथिली अनुवादित संस्करण है



सीओ सिटी विनोद सिंह बहुत चिंता में निमग्न बैसल छलाह , तखने हुनकर सोझा में सब इंस्पेक्टर  मनीषा शाक्य जय हिन्द करैत प्रकट भेलिह |

“ जय हिन्द आउ-आउ !मनीषा जी बैसु -बैसु , विनोद सिंह सोझा में राखल कुर्सी के तरफ बैसबाक इशारा केलथि |

मनीषा हुनकर माथ पर परल चिंता के लकीर के पढैत बजलिह - कि बात अछि सर, बहुत चिंतित लागि रहल छी ?
विनोद सिंह गंभीर स्वर में बजलाह-कि बताउ  लगैत अछि सभटा इंसानियत मरि रहल अछि | शिकायत आएल अछि जे रमावती कॉलेज के आस-पास लूच्चा सभ लड़की सबके के एनाइ-जेनाइ दूभर कय देने छै |अहाँ त लूच्चा के सबक सिखएबाक लेल काफी मशहूर छी, आब अहीं किछु करू |

मनीषा - अहाँ चिंता जुनि करू  | आइये लूच्चा के किछू इंतजाम करैत छी |

करीब एक घंटा बाद रमावती कॉलेज के सोझा सादा पोशाक में बुर्का पहिरने एकटा कन्या  सुकुमारि चालि सं चलल जा रहल छलिह  | ओकर पाछाँ- पाँछा किछु लूच्चा टोन कसइत  चलइत जा रहल छल | तखने ओ कन्या अचानक एकदम सं पलटि कऽ मुड़लिह, तुरंत अपन बुर्का के हटेलथि आ आग्नेय नेत्र सं ओ लूच्चा के देखय लगलिह,  सबटा लूच्चा हुनकर रोबदार तमसायल चेहरा देखि कऽ फुर्र ...|

मिन्नी मिश्र
पटना, बिहार

Tuesday, August 16, 2022

लघुकथाएं-सुरेश सौरभ

(हास्य-व्यंग्य)
सुरेश सौरभ

डीपी बदलते ही, कायाकल्प हुआ    

कल रात जैसे ही, मैंने अपनी डीपी बदली भाई! मेरी तो खड़ूस किस्मत का रंग ही एकदम से  बदल गया। फौरन खटरागी प्राइवेट नौकरी ऑटोमैटिक सरकारी में तब्दील हो गई। वाह! मिनटों में, मैं सरकारी दामाद बन गया। डीपी बदली तो बैंकों का निजीकरण फौरन बंद हो गया। डीपी बदली तो रेल की बिकवाली तुरन्त बंद हो गई। बीएसएनएल की बोली लगने वाली थी। एलआईसी की नीलामी होने वाली थी, भाईजान जैसे ही डीपी मैंने क्या बदली तमाम, सरकारी उपक्रमों की नीलामी-सीलामी सब रफा-दफा हो गई। और तो और विदेश टहलने गया नामुराद काला धन, झर-झर-झर धवल पानी जैसा आकाश से, देश में बरसने लगा। ओह! 15 लाख मेरे खाते में, एकदम से टूट पड़े। वाह! मोदी जी वाह! क्या सुझाव दिया। बिलकुल जादू हो रहा है। गजब हो गया। पूरे विश्व में गरीबी भुखमरी का ग्राफ जो रोज हमारे यहां, सुरसा के मुंह की तरह बढ़ता जा रहा था। डीपी बदलने सेे उस राक्षसी का मुंह छूमंतर सा गायब हो गया। डीपी बदलने से ऐसा कमाल हुआ, भाई ऐसा कमाल हुआ कि डालर को रौंदते हुए रुपया, वीर हनुमान की तरह बढ़ता जा रहा है। फिर कहना पड़ रहा है वाह! क्या सीन है। वाह! मोदी जी वाह! सवा सौ करोड़ जनता की करोड़ों-अरबों दुवाएं तुम पर भराभरा कर निछावर। जय हो तुम्हारी! तुम हमारे भगवान, हम तुम्हारे सौ फीसदी वाले, पक्के वाले भक्त।
      डीपी बदलने से तेल-गैस के दाम आधे हो गये। जिसकी घोषणा साध्वी नेत्री स्मृति देवी ने कर डाली। आसमान छूती महंगाई को जमीन चाटनी पड़ गई। देश से पाकिस्तानी,खालिस्तानी देशद्रोही मुंह लुकाकर उड़नछू हो गये।  
     वाह! डीपी क्या बदली बिलकुल राम राज्य आ गया। लॉकडाउन के कारण ध्वस्त हुए काम-धंधे, डीपी चेन्ज करने की संजीवनी बूटी का अर्क पाकर धड़धड़ाते हुए रॉकेट की तरह दौड़ने लगे। सारी बेकारी खत्म। लक्ष्मी जी सब पर मेहरबान हो गईं। पौकड़ा बेचने वाले आत्मनिर्भर शिक्षित युवाओं के पर लग गये। लोकल ब्रॉन्ड के माल से उनका, बेहतर सुनहरा वो कल हो गया। उनके हाथ में महंगी गाड़ी, बंगला सब आ गया। कमाल हो गया। हाथरस में रात में जलाई गई बेटी की आत्मा को न्याय मिल गया। कासगंज जैसी जगहों, पर जहां दलित दूल्हे घुड़चढ़ी नहीं कर सकते, ऐसी भेदभाव वही जगहों से तो सारे भेदभावों के नामोनिशान मिट गये। डीपी क्या बदली देश की तकदीर बदल गयी। सारे चोरों को, सारे नेता राम-राम रटाने लगे, तोते जैसे। अमेरिका थरथराने लगा हमसे। पाक तो दुम दुबाकर हिमालय पर्वत की कंदराओं में छिपकर अपनी सलामती की खैर खुदा से मनाने लगा। यूं समझिए डीपी बदलने से रोज, मेरे पास पैसों की बहार आ गई। रोज मैं कपड़े बदलने लगा। अब कपड़ों से आप मेरी पहचान न कर लेना। अब कपड़े अदल-बदल कर कहीं ड्रम बजाता हूं तो कभी मोर नचाते हुए, पूरी दुनिया के चक्कर पे चक्कर काट रहा हूं। मेरी तो मौजां ही मौजां... मेरे तो अच्छे दिन आ गये, बस एक डीपी बदलने से। आप भी बदल डालिए।
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लघुकथायें

गफलत 

      डॉक्टर ने रवि की ओर रिपोर्ट बढ़ाते हुए कहा,"कमी सीमा में नहीं आप में है रवि जी।
       डॉक्टर के ये शब्द नहीं  वज्रपात था सीमा और रवि पर। हतप्रभ सीमा कांपते हुए विस्मय से रवि का मुंह ताकने लगी, रवि  भर्राये गले से बोला, 'चलो घर...
        बोझिल कदमों से घर में प्रवेश कर रहे, रवि और सीमा को देखते ही, रवि की मां ने जलता सवाल दाग दिया 'क्या हुआ? क्या निकला रिपोर्ट में?
     दोनों यंत्रवत् खामोशी से अपने कमरे में जाने लगे।
     "मैं जानती थी यह किन्नरी है। बंजर भूमि में कभी कोई बीज उगा है, जो अब यहां उगेगा, न जाने कहाँ बैठी थी, यह हिजड़ी, इस घर के नसीब में..... कर्कशा माँ का स्वर दोनों का कलेजा छीले जा रहा था। गुस्से से सीमा बाहर जाने को उद्यत हुई, तो रवि ने उसका हाथ कस कर रोक लिया। याचना भरे स्वर में बोला-जाने दो, मेरी तरफ से, मां को माफ कर दो।
  ....मैं तो कहती हूं, अरे! यह बांझ है तो दूसरी कर ला रवि! इस हिजड़ी को रखने से क्या फायदा?.. खामखा इसका खर्चा उठाने और खिलाने से क्या फायदा ?
      अब बर्दाश्त से बाहर था। सनसनाते हुए रवि बाहर आया, बोला-किन्नरी सीमा नहीं मैं हूँ..
      माँ अवाक! बुत सी बन गईं। फटी-फटी विस्फारित आंखों से एकटक रवि को देखने लगी।
      "हां हां मैं किन्नर हूं। इसलिए बच्चा नहीं पैदा कर पा रहा हूं। बोलो अब क्या बोलती हो... रवि का ग़ुस्सा सातवें आसमान पर था। मां को सांप सूंघ गया। अंदर सीमा फूट पड़ी। चिंहुकते हुए उठी और किसी सन्न  में दौड़ते हुए आई, रवि का हाथ पकड़, अंदर खींचकर ले गई‌। अब दोनों सुबक रहे थे। बाहर बैठी मां की आंखों में आंसू न थे, पर उसका दिल अंदर ही अंदर सुलग रहा था और दिमाग में सैकड़ों सुइयां चुभ रहीं थीं।

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राखी का मोल


बहन ने अपने भाई के माथे पर रूचना लगाया, आरती उतारी फिर जब राखी बांध चुकी, तब भाई राखी देखते हुए थोड़ा हैरत से बोला- अरे वाह ! यह राखी तो बहुत चमक रही है। बहन सहजता से बोली- इसमें कुछ लड़ियां चांदी की चमक रहीं हैं।

'अच्छा तो ये बात है।' बहन की थाली में पांच सौ का नोट धरते हुए भाई बोला ।

'नहीं नहीं भैया पांच सौ काहे दे रहे हैं। वैसे भी तुम्हारा लॉकडाउन के पीछे काम धंधा मंदा चल रहा है। फालतू में पैसा न खर्च करो सौ देते थे, सौ ही दो । अगर वो भी न हो तो कोई बात नहीं। 'अरे! बहना चांदी की राखी लाई हो, इतना तो तुम्हारा हक बनता है।' 'ऐसा नहीं है भैया, इस राखी का मोल पैसे से न लगाओ। कहते-कहते परदेसी बहन " की आंखें भर आईं। तब भाई उसे अपने कंधे से लगाते हुए रूंधे गले से बोला- मुझे माफ करना बहना । तेरा दिल दुखाना मेरा मकसद न था ।

अब बहन की रूचना - रोली से सजी थाली में दीपक की रोशनी में पड़ा सौ का नोट इठलाते हुए मानो भाई - बहन को हजारों-लाखों दुआएं दे रहा हो

Monday, May 30, 2022

उधारी मरीज-सुरेश सौरभ

 लघुकथा
  
-सुरेश सौरभ
निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी पिन-262701
मो-7376236066

       वह डॉक्टर के सामने पड़ी बेन्च पर एकदम लिथर गया। जोर-जोर से हाँफते हुए फटी-फटी आँखों से उसके साथ आया, तीमारदार हाथ जोड़कर बोला-डॉ. साहब बचा लीजिए कल से उल्टी-दस्त से परेशान है। कई जगह दिखाया पर कोई फायदा नहीं मिला। डॉक्टर साहब ने तुरन्त दूसरा पेशेन्ट छोड,़ उसके मरीज पर दया दृष्टि डाली।... फौरन इन्जेक्शन और दवा दी। 
     कुछ घड़ी बाद मरीज कुछ सुकून महसूस कर रहा था। डॉक्टर ने कहा-‘‘इन्हें ले जाओ। अब ये ठीक हो जाएंगे, जो दवाएँ दीं है, उसे समय से खिलाते रहना। अगर फिर भी कोई परेशानी लगेे तो ले आना।’’
    अब फीस देने की बारी थी,पर डॉक्टर के माँगने से पहले ही तीमारदार दीनता से हाथ जोड़कर बोला-साहेब! पैसे जल्दबाजी में घर ही भूल गया। आप भरोसा रखें। कल इधर से निकलूँगा तो दे दूँगा।’’
      डॉक्टर ने दया भाव से कहा-ठीक है भाई कोई बात नहीं।
      मरीज अपने तीमारदार के साथ चला गया।
      तीसरे दिन वह मरीज डॉक्टर साहब  के क्लीनिक के सामनेे, साइकिल चलाते हुए चैतन्य दषा में निकला। उसे देख डॉक्टर साहब को अपनी फीस याद आई और वह वादा भी जो उन्हें टूटता हुआ दिखने लगा था।
      आठवें दिन। वह उधारी मरीज डॉक्टर साहब को, एक पार्टी में दिखा। डॉक्टर साहब जब उसके सामने आ गये तो उसने डॉक्टर को फौरन नमस्कार किया, उनके बोलने के पहले ही वह बोल पड़ा-क्या बताएँ डॉक्टर साहब! अप की दवा से कोई फायदा नहीं हुआ? बड़ा इलाज कराया, तब कहीं फायदा हुआ।’’ डाक्टर साहब हतप्रभ थे। फौरन उससे, परे हट गये। उन्हें सुदर्शन की बाबा भारती वाली कहानी याद आ रही थी,पर अब डाकू किस-किस रूप में आएंगे। यह सोचते हुए व्यथित थे। अब तक पार्टी की शानदार रौनक और वहाँ का सौंदर्य बोध उन्हें प्रफुल्लित कर रहा था, पर अब वही उन्हें हृदय में टीस दे रहा था। अतंर्मन को उदासी के भंवर में धकेल रहा था।

Tuesday, May 24, 2022

इंजन-सुरेश सौरभ

   (लघुकथा)  

-सुरेश सौरभ
निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी पिन-262701
मो-7376236066
      लाठी के पीछे का सिरा वह अंधा बूढ़ा पकड़ता, आगे का, वह काली मटमैली बुढ़िया पकड़े हुए चलती। दोनों भीख मांगते। सारे शहर में वह दया के पात्र थे, लिहाजा उनकी  झोली रोज भर जाया करती थी। 
        एक दिन उसकी पार्टनर बुढ़िया मर गई। 
       अब वह दूसरे शहर में चला गया । अब उसकी आंखों की ज्योति लौट आई। वह अकेले भीख मांगता,पर पहले जैसी आमदनी नहीं थी। 
    अब वह पहले जैसे इंजन की तलाश कर रहा था, और उसे अपने साथ, तीसरे शहर ले जाकर, अपने काम को बेहतर तरीके से पटरी पर लाना चाह रहा था। 
...

Wednesday, May 04, 2022

अगले पेज की खबर-रमाकान्त चौधरी

(लघुकथा) 
           रमाकान्त चौधरी           
ग्राम -झाऊपुर, लन्दनपुर ग्रंट, 
जनपद लखीमपुर खीरी उप्र।
सम्पर्क -  9415881883 

क्या जमाना आ गया है ? लगता है इंसान का जमीर मर गया है अब छोटी छोटी बच्चियाँ भी सुरक्षित नही  हैं आखिर इनकी सुरक्षा करने के लिए क्या दूसरे गृह  से लोग आएंगे अखबार पढ़ते हुए रामधन बड़बड़ाने लगे। 
रामधन को बड़बड़ाते देख महेंद्र बाबू ने पूछा -क्या हुआ भाई क्यों बड़बड़ा रहे हो? 
रामधन ने अखबार की ओर इशारा करते हुए कहा इस खबर को देखो 'एक अधेड़ ने 6 माह की बच्ची को बनाया हवस का शिकार, इसी के साथ रामधन बोले ऐसे मामले में कानून व्यवस्था और अधिक सख्त हो तभी महिलायें व बच्चियाँ सुरक्षित रह सकती हैं।
अगले पेज की खबर नहीं देखे हो। महेंद्र बाबू ने प्रश्नभरी नजरों से देखते हुए रामधन से पूछा। 
अगले पेज पर क्या कोई विशेष खबर है? रामधन उत्सुक निगाहों से देखते हुए बोले। जवाब में महेंद्र बाबू ने कहा अगले पेज पर खबर लगी है ' दुष्कर्म पीड़िता का रिपोर्ट लिखाने के बहाने कई लोगों ने किया यौन शोषण।, 
अब शासन प्रशासन को लेकर रामधन के पास कोई सवाल न था रामधन की आंखें सिर्फ महेंद्र बाबू को ही देख रही थीं। 
 ...

Tuesday, April 05, 2022

धुंधलाहट-नूतन सिंधु

   लघुकथा   
डॉ नूतन सिन्धु
नारनौल,  हरियाणा
मम्मी....मम्मी....रोते-रोते सिया अंदर आकर सुधा से लिपट गई....मम्मी मुझे माँ ने आज फिर से बुरी तरह से डांटा।पापा... पापा करके सिया और दहाड़े मारकर रोने लगी।हद हो गई इन ऑन्टी की ,कितनी दफा बच्ची को इसी तरह रुला चुकी हैं।सुधा के दिमाग में पिछली सब बातें एकदम से कौंध गईं... गुस्सा धीर-धीरे हावी होने लगा,आज तो उन्हें कुछ न कुछ खरी-खरी सुनानी ही होगी।वो पहले भी एक बार बड़े ही आदर के साथ उन्हें कहकर आ चुकी है कि आंटी आप तो खुद इन पीड़ाओं से गुजर चुकी हैं। बच्ची आपके घर आपकी पोती के साथ खेलकर अपना बचपन जीना चाहती है।सोचते -सोचते सुधा ने आंटी के घर की डोर बेल बजाई।उन्होंने ही गेट खोला।देखते ही बोली कि मना कर दिया था इसे,नहीं खेलेगी अभी आभा।सुधा ने कहा ,आपने इसे बुरी तरह से क्यों झिड़का, आराम से कह देतीं।गुस्से से आगबबूला होकर बोली... झिड़का...क्या कर लेगी।सुधा ने फिर भी खुद को संयमित कर कहा कि आप आराम से कह सकती हैं...मगर वो अपनी बदमिजाजी पर कायम रहते हुए अभद्रता से बोली चल यँहा से...आज के बाद मेरी बेटी आपके घर नहीं आएगी,कहकर सुधा अनमने मन से घर की ओर चल दी।सिया रोये जा रही थी।तुम क्यों जाती हो वँहा जब वो ऐसा व्यवहार करती हैं तो ? माँ से भी दुत्कार खाकर सिया बुरी तरह सुबकने लगी और बड़ी ही मासूमियत से कहने लगी ...पापा भी भगवान के पास चले गए और न ही मेरा कोई भाई-बहन,मैं किस के साथ खेलूं ?उसकी ये बातें सुधा का हृदय बेध गई।अक्सर जब सिया किसी के डांटने पर रोती तो ऊपर की तरफ मुंह कर अपने पापा को पुकारती,ये सब सुधा को और दुखी कर जाता।उसने झट से गोदी में उठाकर उसे गले से लगाकर खूब प्यार किया।घर आकर सुधा सोचने लगी कि मैंने हमेशा ऑन्टी की सब बातों को नजरअंदाज किया कि बहुत ही कम उम्र में पति की मृत्यु और बाद में इकलौते जवान बेटे को खो देने से वो कुंठित हो गई होंगी,इसीलिए वो ऐसा व्यवहार करती हैं,मगर इसके कारण बेटी को तो रोज नहीं रुला सकती।खैर ,सिया फिर भी बाहर-अंदर खेलने जाती रही।
                        सिया का जन्मदिन आने वाला था।छोटे से सेलिब्रेशन के हिसाब से सब बच्चों  के साथ आभा को भी बुलाया गया।आभा को छोड़ने ऑन्टी ही आई थीं....ऑन्टी ने आभा को अंदर जाने को कहा। 'आप भी आ जाइए' सुधा ने कहा।केक काटा जाने लगा तो सुधा की दीदी के बेटे ने कहा माँ आप साथ में आकर कटवाइए।वो आयीं और केक कटवाकर सिया को आशीर्वाद दिया।खाना-पीना होने पर कुछ बच्चों ने डांस-वांस किया।तभी आयशा बहुत जिद करने लगी कि ऑन्टी आप बहुत अच्छा डांस करती हैं,एक पुराने गाने पर कीजिये ना।अरे! नहीं बेटा ,आप सब बच्चे इंजॉय कीजिये...सुधा की ना-नुकर से सिया फिर रुआंसी हो गई.....मम्मी आप करोगी डांस।गाना बजने लगा.....परदेसिया....परदेसिया...ये सच है पिया..... पैर एकदम से तो नहीं उठे,मगर अपनी स्वाभाविकता को रोक भी नहीं पाए।थोड़ी देर में सुधा के अंदर की नृत्यांगना कुशलता के साथ थिरकने लगी।इसके बाद सुधा किचन को व्यवस्थित करने में लग गई,उधर बच्चे अब भी डांस कर रहे थे।ऑन्टी भी उन्ही के साथ थीं।पार्टी खत्म हुई,सब चले गए।
                             मम्मी एक बात बताऊँ आपको ! रात में सिया ने बेड पर लेटी सुधा के पास आकर कहा।हाँ बोलो,आप जब डांस कर रही थी तब माँ आपको देखकर रोये जा रही थी।क्या ! हाँ, मम्मी वो रो रही थी।सुधा हैरान रह गई कि उससे क्या गलती हो गई।क्यूँ बेटा ? सिया बोली...आप डांस कर के चली गई तो वो रोते-रोते कहने लगी कि छोरी के साथ राम ने न्याय नहीं किया और फिर से रोने लगी। सुधा स्तब्ध थी।सिया बोली , मम्मी,माँ की बातों का आज के बाद मैं कभी बुरा नहीं मानूँगी।सुधा मानो सोते से जगी हो,बेटी की बात सुनकर अब वो अवाक थी।माँ के निस्वार्थ आंसुओं ने बालमन की धुंधलाहट धो दी थी और शायद सुधा की भी।
इति
                  

Tuesday, February 01, 2022

यादों के गुलाब-सुरेश सौरभ

लघुकथा

-सुरेश सौरभ 
कुछ पुरानी किताबों को हटाते-संभालते हुए, एक डायरी उसके हाथ में आ गई । ताजे गुलाबों की खुशबू पूरे कमरे में फैल गई।कालेज के दिनों की यादों से उसका अंग-अंग थिरक उठा। बूढ़ी रगो में रक्त का संचार बढ़ गया। तभी अपनी बेटी पर उसकी नजर गई, वह इठलाते-बलखाते हुए किसी से फोन पर बातें कर रही थी, उसके गालों पर बढ़ती गुलाबी रंगत को देख, मुंह बिसूर कर वह दहाड़ा-किसका फोन है?
बेटी ने फौरन फोन काट दिया। उसे होश न रहा ,पापा जी कब सामने है आ गए।
कि... कि किसी का नहीं... हकलाते हुए, संभलते हुए।
वह डायरी पटक कर बोला -तेरे गुलाबी गाल बता रहे हैं किसका फोन था। बेटी सहम गई।... टिन्न.. एक लवली गुलाबी इमोजी मैसेंजर पर आई। वह देख पाती, इससे पहले पापा बोले-मुझे गुलाबी रंग और गुलाबों से सख्त नफरत है समझी ...
चट-चट-चट.. तेजी से चप्पलें चटकाते हुए चल पड़े। ‌बेटी हैरत से उन्हें जाते देख रही थी, गालों पर उगी, अपनी गुलाबी रंगत तो समझ में आ रही थी, पर गुलाबों से सख्त नफरत.. के मर्म को वह न समझ पा रही थी।

मो०निर्मल नगर
लखीमपुर खीरी  पिन-262701
मो,-7376236066




भूल -सुरेश सौरभ

  (लघु कथा)
सुरेश सौरभ 
"मम्मी तुम्हें  कितनी बार समझाया है कि दो परांठे ही बांधा करो, पर तुम हो कि तीन-चार ठूंस-ठूंस कर बांध देती हो",जल्दी-जल्दी टिफिन बस्ते में रखते हुए, खींजते हुए, मोहित बोला। फिर सामने खड़े स्कूल रिक्शे में बैठ कर, मम्मी से बाय-बाय करने लगा। रिक्शा चल पड़ा। जाते रिक्शे को देख, मम्मी मुस्कुराई फिर बुदबुदाई-क्योंकि मेरी भी मां अनपढ़ थी, और तेरी पढ़ी-लिखी मां भी अनपढ़ है, इसलिए गलती से परांठे गिन नहीं पाती।

निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी
उत्तर प्रदेश
मो-7376236066
पिन-262701

चोट-सुरेश सौरभ

(लघुकथा)

सुरेश सौरभ
‘‘चटाक! चटाक!...
‘‘साले दिखाई नहीं पड़ता।’’
‘‘चटाक! चटाक!..
‘‘तेरी माँ की..... देख कर नहीं मोड़ता।’’
‘‘चटाक! चटाक!...
‘‘साले जब इधर भीड़ थी तो क्यों लेकर आया इधर?’’
‘‘चटाक! चटाक! चटाक!...
‘‘कितना भी मारो गरियाओ, पर तुम लोग बाज नहीं आते?’’
शाम। टूटा-थका-हारा घर आकर वह बैठा गया। 
‘‘चटाक! चटाक!चटाक... कोई तमीज नहीं? जब कह दिया, पैसे नहीं, फिर भी इतने पैसे इनको दो, ये चाहिए वो चाहिए।...उं उं...उं..ऽ..ऽ.ऽ छोटा बच्चा रोये जा रहा था।
 ‘‘क्या बात है, क्यों मार रहीं है इसे?’’ 
‘‘कोई काम सुनता नहीं ऊपर से जो भी कोई ठेली खोमचा वाला निकले, तो जिद, ये चाहिए वो चाहिए।...बच्चा रोये जा रहा था।.... चुपता है या नहीं चुपता है... हुंह ये ले..ये ले..चटाक चटाक...
अब वह अपने गाल सहलाने लगा, पत्नी को करूण नेत्रों से देख, बेहद मायूसी और नर्मी से बोला-अब न मार बच्चे को, चोट मुझे भी लग रही है रे! लग रहा हम रिक्शे वालों की पीढ़ी दर पीढ़ी ऐसे ही मार खाती बतेगी।
अब पत्नी, अपने पति रिक्शे वाले को हैरत से एकटक देख रही थी। रो तो बच्चा रहा था, पर उसकी आँखों में आँसू न थे। लेकिन उसकी और उसके रिक्शे वाले पति की आँखों में आँसू डबडबा आए थे।

निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी
मो-7376236066

Thursday, December 23, 2021

संस्कारी बहू-अखिलेश कुमार अरुण

 लघुकथा 

हिंदी मिलाप के दैनिक अंक में हैदराबाद से प्रकाशित (१४ अक्टूबर २०२१ ), इदौर समाचार पत्र में २६-१२-२०२१

    र में तीन-चार दिन से चारों तरफ खुशियां ही खुशियां थी। चहल-पहल था, सारे नाते रिश्तेदार आए हुए थे आज शादी का दूसरा दिन है। बहू को आए हुए 2 दिन हो गए हैं। उसकी खूबसूरती और नैनक्स देखते ही बनता है। साक्षात सुंदरता की देवी लगती है। महल्ले की महिलाओं के बीच बैठी उसकी सास तारीफों के पुल बांधते जा रही थी, "हमारी बहू, खूबसूरत ही नहीं गुणवती भी है, बहिन हमने जैसा चाहा था भगवान ने उससे बढ़कर दिया है।"

    एक महिना बाद बहु जब दूसरी बार ससुराल आई तो दो-तीन दिन तक सब ठीक रहा किन्तु अब सास को उसका व्यवहार कुछ बदला-बदला सा लगा। अब बहू देर से सोकर उठती है, घर के काम-काज भी मन से नहीं करती, बात-बात पर तुनक जाती है। सास आज सुबह इसी बात लेकर बैठ गई, बहु आंखें मलते हुए अपने कमरे से बाहर आई। तभी सास ने तुनक कर बोला,"बहू, यह कोई समय है उठने का....चाय-पानी का बेला हुआ सुरुज देवता पेड़ों कि झुरमुट से ऊपर निकल आये हैं.....।"

    बहू उल्टे पैर बिना कुछ बोले अपने कमरे में गई और लौटते हुए एक चिट लेकर आई सास के हाथों में रखकर बोली, "देख लीजिए, इसमें वह सब कुछ है जो आपने दहेज़ में मांगा था...... कामकाजी और संस्कारी बहू का इसमें जिक्र तक नहीं है!"


पता-ग्राम हजरतपुर पोस्ट-मगदापुर
जिला लखीमपुर-खीरी २६२८०४
8127698147

 

 

Sunday, December 19, 2021

अच्छे दिन-सुरेश सौरभ


लघुकथा

बेटी खामोश उदास बैठी थी। मां ने उसे देख पूछा-क्या हुआ बेटी बड़ी जल्दी लौट आई।
बेटी मां के गले से लगकर फूट पड़ी-सरवर डाउन था। इसलिए आज सीटैट स्थगित।
'उस दिन टेट का पेपर लीक हुआ था। आज सीटैट स्थगित, लगता है । यह सरकार कुछ करना ही नहीं चाहती‌।'
अब तो बेटी और बिलखने लगी।
मां ने उसे संभलते हुए कहा-चिंता न कर, भगवान और अपनी मेहनत पर भरोसा कर, एक न एक दिन, अच्छे दिन जरूर आएंगे। 
बेटी भड़क गई-खाक में जाएं तुम्हारे अच्छे दिन, इस शब्द से मुझे सख़्त नफरत हो गई है।.. और लंबे-लंबे डग भरते हुए वह दूसरे कमरे में चली गई।
पीछे से उसे गुस्से में जाता देख, मां खीझ में बुदबुदाई-जब वोट दिया है तो झेलना ही पड़ेगा। और रोकर या हंसकर कहना पड़ेगा, 'अच्छे दिन आएंगे।'


पता-निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी
मो-7376236066

Wednesday, December 15, 2021

अनुवांशिकता -सुरेश सौरभ

लघुकथा

सुरेश सौरभ

बाजार से किताबों का गट्ठर लाया, उसे बैठक में रख, जैसे ही सुस्ताने के लिए कुर्सी पर वह पसरा, पत्नी ने उसकी एड़ी देखकर हैरत से कहा-कितनी बार आप की ऐड़ियों में क्रीम लगाया, पर यह तो फटती ही रहती हैै। दर्द  नहीं होता क्या आप के?

       "होता है,पर क्या करें?"-पति

       "इसलिए कहती हूँ कि हमेशा जूता पहना करें,पर आप मेरी सुनते कहाँ हैं, जब देखो तब चप्पलें ही पहन कर निकल लेते हैं-पत्नी कुढ़ कर बोलीं।

     "दरअसल मेरे पिता जी एक गरीब मजदूर थे, बड़ी मुश्किल से वह अपनी चप्पलें ही खरीद पाते थे, इसलिए हर मौसम में वह अपनी पुरानी-धुरानी चप्पलें ही पहन पाते थे।"

    "आप तो गरीब नहीं हैं, आप तो सरकारी अध्यापक हैं-पत्नी ने मुँह फेरकर कहा।

       "तुम जानती हो मैं कभी-कभी जूते भी पहन लेता हूँ, पर यह ऐड़ियां फटना बंद नहीं होती। लगता है, यह दर्द मुझे अनुवांशिक ही मिला है। यह दर्द महसूसते हुए, गरीबों मजदूरों के दर्द का आभास करता रहूँ,शायद इसलिए यह दर्द नहीं जाता,शायद इसलिए ये ऐड़ि़यां मेरी हमेशा फटती रहतीं हैं। शायद ईश्वर की यही इच्छा है।"

   अब पत्नी पति के करीब आई। पति की आँखों में झाँकने लगी-जहाँ कोई नमी तैर रही थी। अब वही नमी धीमे-धीमे पत्नी की आँखों में भी तैरने लगी। पत्नी ने भरेे गले से कहा-तुम्हारा यह शायद बड़ा प्यारा लगता है। और बहुत तकलीफ भी दिल को देता है।"

    अब पत्नी उन पुस्तकों को ताक रही थी, जिसे गरीब बच्चों को निःशुल्क देने के लिए उसके पति अपने पैसे से, बाजार से खरीद कर लाये थे।

     पति ने किताबों का वह गट्ठर उठाया। चप्पलें पहनीं और चल पड़ा। तब पत्नी ने टोका-तुम न सुधरोगे। पति ने पलटकर कर कहा-सरकारी स्कूल जा रहा हूँ,संसद नहीं?ज्यादा सूट-बूट में जाऊँगा, तो अपनी क्रीज़ ही बनाता रहूंगा। गरीब बच्चों को क्या पढाऊंगा।

  पत्नी उसे खाने का टिफिन पकड़ाते हुए उसकी फटी मैली ऐड़ियों की तरफ देखकर बोली-काश यह दर्द हर आदमी को मिलता ?

   ‘सबका को, यह सौभाग्य ईश्वर कहाँ देता-पलट कर पति ने कहा और लंबे-लंबे डग भरता चल पड़ा। जैसे भक्त अपने भगवान की तलाश में अधीरता से भागा चला जा रहा हो। 

निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी पिन-262701

मो-7376236066

 

Friday, December 10, 2021

तिबारा-सुरेश सौरभ

लघुकथा

    स्कूल में मध्याह्न भोजन बन रहा था । सारे बच्चों को कढ़ी चावल बांटा गया । एक बालिका कढ़ी चावल खाते हुए रसोइये के पास दुबके-दुबके गयी, बोली- थोड़ा सा और दे दो भैया । 
   'कितना खायेगी , तिबारा मांग रही है -रसोइया चिढ़कर बोला ।
     'अरे मुझे पूरा भगोना दे दो मैं पूरा भगोना खा जाऊंगी ।' बालिका के शब्द सुनकर रसोइया और सारी अध्यापिकाएं हतप्रभ रह गयीं ।
निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी
उत्तर प्रदेश
मो-7376236066

नीमसार-सुरेश सौरभ

लघुकथा
    ट्रेन के एक डिब्बे में मैं बैठा था । नीमसार जाने के लिए एक पीले वस्त्र धारी से चर्चा आरंभ हुई वे बोले-बेटा तुम्हारी जात क्या है। मुझे हंसी आ गई- लड़खड़ाते शब्दों को बटोरकर बोला- मेरी कोई जात नहीं , कोई धर्म नहीं , जैसे आप संतों की कोई जाति धर्म नहीं होता ।
वे व्यथित हो पड़े , कुछ पल बाद हमारा डिब्बा छोड़कर अन्यत्र डिब्बे में चढ़ गये । नीमसार तक जाने का उनका-हमारा साथ टूट गया । 
ट्रेन चली । एक स्टेशन पर रुकी । मैंने देखा एक नल की टोंटी में तमाम लोग जल्दी-जल्दी एक दूसरे को धक्का मारते हुए पानी पी रहे हैं , भर रहे हैं । किसका जूठा पानी किस पे गिरा , किसका शरीर किससे लड़ा , किसका लोटा , किसकी बोतल से भिड़ा , किसी को होश न था ।
ट्रेन ने दूसरी सीटी मारी । वे भरभरा कर एक ट्रेन के कई डिब्बों में घुसते चले गये । आखिर ये किस-किस जात के थे ?
                    
निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी
उत्तर प्रदेश
मो-7376236066

Wednesday, December 01, 2021

जादूगर आया-सुरेश सौरभ

  लघुकथा  

सुरेश सौरभ 

   जादूगर एक शहर में आया , झोला खोला सामान निकाला । बांसुरी बजाई , डमरू बजाया लोगों को इकट्ठा किया । जादू शुरू किया । कभी रसगुल्ला , कभी जलेबी , कभी कूकर , कभी घी , कभी लैपटॉप कभी पुराने नोट , कभी नये नोट कभी खनखनाते सोने-चांदी के सिक्के , जादू से बना-बनाकर सबको चौंकाता । लोग लालच भरी , हैरत भरी नज़रों से देखते हुए हतप्रभ थे । 
       काफी देर बाद खेल खत्म हुआ । तमाशबीनों ने उसे पैसे दिए , किसी ने अनाज दिया तो कई कंगले खाली दुआएं देते हुए अगली बार कुछ देने का वादा करके अपनी राह हो लिए ।  जादूगर ने सारे पैसे बटोरे अनाज आदि सब अपना सामान झोले में भरा और चल पड़ा दूसरे शहर में जादू दिखाने । 
      यह जादूगर हर पांच साल बाद शहर-शहर गाँव-गाँव सबको ठगता फिर रहा है ।


निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी उत्तर प्रदेश
मो-7376236066

Saturday, August 21, 2021

दुल्हन नहीं सिर्फ दाई- गोपेंद्र कु सिन्हा गौतम

लघुकथा

 गोपेंद्र कु सिन्हा गौतम
चार भाई और तीन बहनों में चौथे स्थान पर रजिया जन्म से बहुत चुलबुली थी।पूरे मोहल्ले वासियों की लाड़ली थी।सभी लोग रजिया के मुस्कान और तोतली बोली पर फिदा हो जाते थे चाहे कितने भी परेशानी में क्यों न हों!लोग उसे प्यार से रज्जो कहते।
रजिया तितली की भांति फुदकती रहती। शायद ही ऐसा कोई दिन हो जब वह दोनों वक्त का खाना अपने घर में खाई हो।उसके हिरण जैसी सजल आंखें और मोतियों सरीखे बत्तीसी उसकी मुस्कुराहट में चार चांद लगा देते थे।जब हंसती तो सारा मोहल्ला खिलखिला उठता।गांव के लोगों में एक कहावत प्रचलित हो गया था..कोई बीमार क्या, मर भी गया हो तो अगर रजिया खिलखिला कर हंस दे तो वह चीता पर से उठ जाएगा।
विद्यालय में भी रजिया अपने सहपाठियों के साथ-साथ शिक्षक शिक्षिकाओं के बहुत प्रिय थी।जब कभी शिक्षक शिक्षिका या कोई सहपाठी धीरे से भी आवाज लगाता रजिया ओ रजिया,वह बिजली की भांति पहुंच जाती।ऐसा लगता मानो वह पहले से ही आवाज के इंतजार कर रही थी। पर यह क्या आठवीं कक्षा में पहुंचते ही उसकी शादी तय कर दी गई।वह भी एक ऐसे लड़के से जो दोवाह (विदुर) था।इसके बारे में रजिया को किसी ने कुछ बताना लाजमी नहीं समझा।शादी तय हो जाने के बावजूद रजिया पूरे मोहल्ले में स्वच्छंद विचरण करते रहती।उस पर गांव घर की भौजाइयां कहतीं रज्जो अब तुम्हारी शादी होने वाली है वहां जाकर भी इसी तरह से कूदते फांदते रहोगी क्या? रज्जो बिंदास जवाब देती तुम्हारे नंदोई को भी उड़ाना सिखा दूंगी भाभी! शादी के बाद जब रजिया अपने ससुराल पहुंची तो डोली में ही उसकी सास ने गोद में एक पांच वर्षीय बच्ची को डालते हुए बोली लो दुल्हनिया आज से संभालो अपनी बेटी को इसी के लिए हमने  बेटे की दुबारा शादी करवाई है।रजिया समझते देर न लगी कि उसका पति पहले से शादीशुदा है। उसे शक भी हो रहा था क्योंकि उसका पति उम्र में उससे लगभग दोगुने से भी अधिक लगता था। रात को रज्जो ने अपने पति से कहा इस बच्ची को अपने दादी के पास क्यों नहीं भेज देते हो ? इस पर उसके पति ने आंख तरेरते हुए बोला कहां जाएगी तुम्हें किस लिए ब्याह कर लाया हूं ! चेहरा देखने के लिए ? पति के अकड़ भरे जवाब सुन रजिया के आंखों से मोती जैसे आंसू झर झर कर गिरने लगे।वह समझ गई थी प्रकृति ने उसके साथ धोखा किया।उसे दोवाह पति और पहले से ही एक बेटी रहने का कोई गम नहीं था।पर अपने पति के अकड्डू मिजाज ने उसे अंदर तक झकझोर कर रख दिया। स्वच्छंद विचरण करने वाली तितली अब अपना पंख सिकोड लेना है ठीक समझी। शुरू शुरू वह अपने ससुराल में लगभग एक वर्ष तक रही।लेकिन एक दिन भी उसके चेहरे पर मुस्कुराहट तक नहीं दिखी गई। वह अपने पति की बेटी को पालने में अपना सब कुछ लगा दी।दिन रात उसी के सेवा में लगी रहती।बदले में सौतेली मां होने का घर से बाहर वालों तक दंश झेलना पड़ता, उसके ऊपर पति का सनकी मिजाज।उसके आंखों से आंसू पूरे एक साल में शायद ही कोई दिन हो जब न निकली हो!
एक वर्ष के बाद जब अपने मायके लौटी तो पूरे मोहल्ले के लोग उसे देखने के लिए इकट्ठा हो गए। लेकिन रजिया चुपचाप दबे पांव अपने घर चली गई।भला उन लोगों को क्या पता रजिया के दिल पर क्या बीत रहा है।एक महिला ने उसे छेड़ने के इरादे से बोली रज्जो शादी के लड्डू हम लोगों को नहीं खिलाओगी क्या ? कहीं जीजा जी ने मना तो नहीं किया है ? चलो ठीक है हमें लड्डू नहीं चाहिए पर अपनी हंसी और खिलखिलाहट से तो हम लोग को वंचित मत करो,आखिर कौन सा गुनाह हम लोगों ने किया है तुम्हारी शादी कर के ? दहेज में सब कुछ दिया पर हम लोगों ने तुम्हारी हंसी और खिलखिलाहट तो उन्हें नहीं दी थी,जो तुम वहीं छोड़ के आ गई। इतना सुनते ही रजिया बिफर कर अपनी मां के आंचल में मुंह छुपा सुबकते हुए बोली आप लोगों की रज्जो शायद पिछले जन्म में कोई बहुत बड़ा गुनाह की थी इसलिए माता-पिता और भाइयों ने सनकी दोवाह लड़के से हमारी शादी कर दी।जहां मैं बिना बच्चे को जन्म दिये मां तो बन गई,पर एक दिन के लिए भी दुल्हन नहीं बन पाई,सिर्फ बच्चे के पालने वाली दाई रह गई दाई। इतना कह कर रजिया भोंकार पारकर रोने लगी। वहां उपस्थित सारे लोगों की आंखों से आंसू इस तरह उमड़ने लगे मानो एक साथ गंगा-यमुना में बाढ़ आ गई हो और वह एक बार में ही सब कुछ बहा कर ले जाने को बेताब है।

सामाजिक और राजनीतिक चिंतक
ग्राम देवदत्तपुर,पोस्ट एकौनी, थाना दाऊदनगर, जिला
औरंगाबाद, बिहार
पिनकोड 824113
मोबाइल न 9507341433

पढ़िये आज की रचना

चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

(फिल्म समीक्षा)      एक मां के लिए उसका बेटा चाहे जैसा हो वह राजा बेटा ही होता है, बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिन्हें हम अपने विचार...

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