ओमप्रकाश गौतम |
साहित्य
- जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
- लखीमपुर-खीरी उ०प्र०
Monday, December 06, 2021
ग़ज़ल- ओमप्रकाश गौतम
Sunday, November 21, 2021
नन्दी लाल की ग़ज़ल
Wednesday, June 23, 2021
ग़ज़ल-ओमप्रकाश गौतम
Tuesday, June 15, 2021
ग़ज़ल-अरविन्द असर
![]() |
अरविन्द असर |
वहां काम आती नहीं बेगुनाही।
अभी आने वाले हैं ज़िल्लेइलाही,
अभी बंद है इस जगह आवाजाही।
वो धुन का है पक्का लगन का है सच्चा,
चला जा रहा है अकेले जो राही।
ज़रा सा ही है वो जरासीम लेकिन,
मचा दी है जिसने जहां में तबाही।
जो ख़ूं बन के बहती है सबकी रगो में,
कभी ख़त्म होती नहीं वो सियाही।
तुम्हारी ज़बां और कुछ कह रही है,
"नज़र और कुछ दे रही है
गवाही।"
वज़ीर, ऊंट, हाथी तो रहते हैं पीछे,
कि मरता है पहले हमेशा सिपाही।
ये देखा है मैंने , है फ्रिज, जिन घरों में,
घड़ा भी नहीं है नहीं है सुराही।
"असर" मेरे दिल में भी चाहत बसी है,
कि ग़ज़लों को मेरी मिले वाहवाही।
पता-D-2/10 ,रेडियो कालोनी,
किंग्स्वे कैम्प, दिल्ली-110009
pH no.9871329522, 8700678915
Wednesday, June 09, 2021
ग़ज़ल-ओमप्रकाश गौतम
कमाल क्या कहूं जो , बाकमाल थे बिरसा ।
करूं सौ बार नमन मैं, तेरी शहादत को ।
पिता थे सुगना मां करमी, के लाल थे बिरसा।।
मिले तालीम हर एक, आदिवासी को कैसे।
हर एक फिक्र का रखते, मलाल थे बिरसा ।।
खिलाफ जुर्म के
थे, जो लड़े हुकूमत से ।
बेबस गरीब लाचारों की, ढाल थे बिरसा ।।
जमीन जल तथा जंगल, से है मेरा नाता ।
लगाये नजर जो ऐसों के , काल थे बिरसा ।।
दिये हैं जान वतन के, जो वास्ते गौतम ।
शहीदों में भी वो तो , चन्द्रभाल थे बिरसा।।
ओमप्रकाश गौतम (निरीक्षक)
उत्तर प्रदेश पुलिस 9936358262
ग़ज़ल ( नन्दी लाल)
![]() |
नन्दी लाल |
तुम्हारे होंठ पर बिखरी हुई हँसी के लिए।।
रहेगा याद बहुत साल बेरुखी के लिए,
मसाला खूब मिला यार शायरी के लिए।।
हसीन ख्वाब ,सँजोए हुए खुशी के लिए,
उधार माँग कर लाया हूँ जिंदगी के लिए।।
दिलों में प्यार का दीपक सदा जलाए रहे,
यह जरूरी नहीं है आज आदमी के लिए।।
मिटा दे लाख अँधेरे सभी राहों के यहाँ,
चिराग एक ही काफी है रोशनी के लिए।।
करो न और भरोसा बड़ा चालाक है वह,
खड़ा है द्वार पे दरबान तस्करी के लिए।।
बताएँ किस से कहें क्या क्या कहें कैसे कहें,
गए हैं भाग जो परदेस कलमुही के लिए।।
छिनी मजदूर के हाथों की रोटियाँअब तो ,
बहुत निराश हो बैठा है खुदकशी के लिए।।
पता-गोला, लखीमपुर-खीरी
ग़ज़ल (नन्दी लाल)
![]() |
नन्दी लाल |
भूल जायेंगे किए वादे सयाने शाम तक।।
आके चोटी से पसीना एड़ियां छूता है जब,
तब कहीं पाता है पट्ठा चार आने शाम तक।।
भोर है सो कर उठे हैं जो कहे सच मान लो,
याद आयेंगे कहीं फिर से बहाने शाम तक।।
पेट है या फिर किसी वैश्या का पेटीकोट है,
खा गए लाखों नहीं फिरभी अघाने शाम तक।।
देख लें जिसको वही मर जाए अपने आप में
और कितने कत्ल कर देंगे न जाने शाम तक।।
लूट की हैं इसलिए वह धूप से बचती रहें,
तान देंगे कुर्सियों पर शामियाने शाम तक।।
नासमझ कुछ यार अपना दिल बदलते ही रहे,
रूप बदले रंग बदले और बाने शाम तक ।।
पता-गोला गोकर्णनाथ खीरी
Tuesday, June 08, 2021
ग़ज़ल-(नन्दी लाल)
![]() |
नन्दी लाल |
कबतलक जुल्म यह सहा जाए।।
पूण्य सब
पाप सँग बहा जाए।।
कुछ तो अखबार में लिखा जाए।।
आप से और क्या कहा जाए।।
दुखते पाँवों से कब चला जाए।।
क्या पता कौन बरगला जाए।।
उसकी गर्दन
कोई दबा जाए।।
आपको
मुफ्त में दवा जाए।।
बात ही बात में रुला जाए।।
पता-गोला गोकर्णनाथ खीरी
Monday, June 07, 2021
ग़ज़ल (नीरजा विष्णु 'नीरू')
![]() |
नीरजा विष्णु 'नीरू' |
भला कब दर्द से आज़ाद हूँ मैं
ग़मो की इक बड़ी तादाद हूँ मैं।
तबस्सुम देखकर हैरान मत हो
लबों पर कांपती फरियाद हूँ मैं।
न कैसे दामन-ए-उम्मीद छोड़ूं
पता है जब कि उसके बाद हूँ मैं।
वो गुल जो टूटकर मुरझा गया हो
उसी ख़ुशबू सी बस बर्बाद हूँ मैं।
मसीहाई तुम्हारी देखनी थी
इसी ख्वाहिश में तो आबाद हूँ मैं।
मुझे ये जानकर अच्छा लगा है
कि तुमको आज तक भी याद हूँ मैं।
ख़ुदा ही जानता है ये हक़ीकत
कि ज़ख्मों की बड़ी उस्ताद हूँ मैं।
मेरे हालात पर हंसना न 'नीरू'
यही क्या कम है यूँ भी शाद हूँ मैं।
ग्राम व पोस्ट: भीखमपुर
जनपद: लखीमपुर खीरी(उत्तर प्रदेश) पिन कोड:262805
Sunday, June 06, 2021
ग़ज़ल (नन्दी लाल)
आँधियों में पार कर देना मुझे मझधार से।
नाव ने यह बात कर ली है नदी की धार से।।
वह कभी कीमत न समझे जान की पहचान की,
यह मुनाफा खोर चौड़े हो गए व्यापार से।।
भूख जब इन्सान की बर्दाश्त से बाहर हुई,
सर पटक कर मर गया तब आदमी दीवार से।।
मौत का मंजर नजर में, फर्श पर लेटा हुआ ,
वह गुजारिश कर रहा बहरी हुई सरकार से।।
बुझ गई जो झोपड़ी की आग दो सुलगा उसे,
आ गई फिर से खबर उस बेरहम दरबार से।।
काम में अपने बराबर वह खड़ा मुस्तैद है,
बेवजह की अब बहस करिए न चौकीदार से।।
कोन जहरीली कहाँ है कौन सेहत मंद हैं,
आ रही उड़कर हवाएँ यह समंदर पार से।।
नन्दी लाल
गोला गोकर्णनाथ खीरी
Friday, June 04, 2021
ग़ज़ल ( देवेन्द्र कश्यप 'निडर')
![]() |
देवेन्द्र कश्यप 'निडर' |
हाय ! कैसे दिन यहाँ पर आ गये ।
झूठ के
जलवे यहाँ पर छा गये ।।
कल तलक जो थे
बड़े भोले भले ।
बेंच कर औकात
अपनी खा गये ।।
हाथ जोड़े
जो खड़े थे
नाटकी ।
अब कड़क तेवर बदल कर ला गये ।।
कल शपथ ली आम जनता के लिए ।
आज
जनता की कमी को गा गये ।।
थे
छपे अखबार में
कर्मठ कभी ।
अब करोड़ों के लिए बिक धा
गये ।।
जो लफंगें
थे कभी नेता
बने ।
सभ्यता का
ताज अब वे पा गये ।।
छानते थे
खाक गाँवों में 'निडर' ।
शहर के घर आज उनको भा गये ।।
ग्राम अल्लीपुर पत्रालय कुर्सी तहसील सिधौली
जिला सीतापुर, पिन कोड – 261303
Thursday, June 03, 2021
ग़ज़ल (अरविन्द असर)
![]() |
अरविन्द असर |
कैसे बताऊं
बात कि हालात हैं बुरे,
दिन बन गया
है रात कि हालात हैं बुरे।
श्मशान, अस्पताल में लाशों के ढेर हैं,
रोकें ये
वारदात कि हालात हैं बुरे।
कैसा ये
दौर है कि करोड़ों को आजकल,
दूभर है
दाल- भात कि हालात हैं बुरे।
इस सोच में
हूं गुम कि चलूं कौन सी मैं चाल,
है हर क़दम
पे मात कि हालात हैं बुरे।
गैरों की
छोड़िए कि अब अपने भी इन दिनों,
देते नहीं
हैं साथ कि हालात हैं बुरे।
हम डाल
-डाल बचने की कोशिश में हैं, मगर
है रोग
पात- पात कि हालात हैं बुरे।
बचना है गर
तुम्हें तो "असर " इस निजाम पर,
जमकर चलाओ
लात कि हालात हैं बुरे।
D-2/10 ,रेडियो कालोनी, किंग्स्वे कैम्प दिल्ली-110009
Ph
no.9871329522,8700678915
पढ़िये आज की रचना
मौत और महिला-अखिलेश कुमार अरुण
(कविता) (नोट-प्रकाशित रचना इंदौर समाचार पत्र मध्य प्रदेश ११ मार्च २०२५ पृष्ठ संख्या-1 , वुमेन एक्सप्रेस पत्र दिल्ली से दिनांक ११ मार्च २०२५ ...

सबसे ज्यादा जो पढ़े गये, आप भी पढ़ें.
-
महापुरुषों के आदर्श से साभार एन०एल० वर्मा (असो.प्रोफ़ेसर) सेवा निवृत वाणिज्य विभाग वाईडीपीजी कॉलेज,लखीमपुर खीरी डॉ.भीम राव आंबेडकर...
-
ले लो भैया गरम समोसा खाओ भैया इडली डोसा । अजब- गजब संग चटनी वाला , चटपट- चटपट स्वाद निराला । बोलो बोलो क्या है लेना , नहीं...