साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०
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Monday, December 06, 2021

ग़ज़ल- ओमप्रकाश गौतम

ओमप्रकाश गौतम
दिल का मैं उद्गगार ,कहूंगा ऐ बाबा ।
बातें मैं दो चार , कहूंगा ऐ बाबा ।

लुट रहा आईन, संसद में चुप बैठे हैं।
ऐसों को गद्दार , कहुंगा ऐ बाबा ।।

पढ़ना था तुमको, करते हैं पूजा सब।
खो रहे सब अधिकार, कहुंगा ऐ बाबा।।

भाषा मेरी बोल रहा, है दुश्मन भी।
हो जाओ होशियार , कहुंगा ऐ बाबा।।

कुर्सी खातिर हाथ, मिलाते दुश्मन से।
बिके रहे सरे बाजार, कहुंगा ऐ बाबा।।

अपनी अपनी डफ़ली,अपनी राग लिए।
कूद रहे मेंढक हजार , कहुंगा ऐ बाबा।।

अपने स्वार्थ में गौतम ,हुए हैं अंधे सब।
काने हैं सरदार , कहुंगा ऐ बाबा ।।

प्रभारी निरीक्षक
उत्तर प्रदेश पुलिस

Sunday, November 21, 2021

नन्दी लाल की ग़ज़ल

ग़ज़ल


गया जो कुछ गया   ईमानदारी में गया बाबा।
बचा जो इश्क की  दूकानदारी में गया बाबा।।

चुकानी पड़ रही है एक बोसे की बड़ी कीमत,
हमारा माल लाखों का  उधारी में गया बाबा।।

मिला था प्रेम से जो कुछ उसे मिल बाँट खाना था,
भतीजा तो चचा की  होशियारी में गया बाबा।।

हमेशा रात में महबूब      की सूरत नजर आई ,
बचा जो दिन सितारों की शुमारी में गया बाबा।।

बताकर हक मोहब्बत माँगने फिर घर चले आए,
मिला था वक्त खुद की ताजदारी में गया बाबा।।

अँधेरों में बहकता इसलिए  इतना उजाला जो,
बड़ों का तेल छोटो की   दियारी में गया बाबा।।

   नन्दी लाल 
गोला गोकर्णनाथ खीरी

Wednesday, June 23, 2021

ग़ज़ल-ओमप्रकाश गौतम

ओमप्रकाश गौतम
गई हैं क्यूं शये बाजार , अब ये बेटियां। 
कश्तियों के वास्ते, मझधार अब ये बेटियां। 
इस जमाने में भला ,उस बाप को निद्रा कहां। 
ब्याह के काबिल हुईं, तैयार अब ये बेटियां।। 
मुल्क के आईन ने हर, जर पे इनको हक दिया। 
मांगती कब पापा से, अधिकार अब ये बेटियां।। 
कहने को विद्वान हैं जो ,इल्म के हैं बादशा। 
बिन दहेजों के कहां ,स्वीकार अब ये बेटियां।। 
हुस्न के बाजार में, किरदार की कीमत कहां । 
हर गुणों से युक्त हैं ,बेकार अब ये बेटियां।। 
पूछते हैं लोग हम से ,हैं दिए तहजीब क्या। 
है तेरी तहजीब, ना इकरार अब ये बेटियां।। 
कर लिया पत्थर कलेजा ,गौतम उस दिन बाप ने। 
छोड़ कर जो रहीं, घर-बार अब ये बेटियां ।।

Tuesday, June 15, 2021

ग़ज़ल-अरविन्द असर

अरविन्द असर
अदालत में चलती है झूठी गवाही,

वहां  काम  आती   नहीं  बेगुनाही।

 अभी आने वाले हैं  ज़िल्लेइलाही,

अभी बंद है इस जगह आवाजाही।

 वो धुन का है पक्का लगन का है सच्चा,

चला जा रहा है अकेले जो राही।

 ज़रा सा ही है वो जरासीम लेकिन,

मचा दी है जिसने जहां में तबाही।

जो ख़ूं बन के बहती है सबकी रगो में,

कभी ख़त्म होती नहीं वो सियाही।

 तुम्हारी ज़बां और कुछ कह रही है,

"नज़र और कुछ दे  रही है गवाही।"

 वज़ीर, ऊंट, हाथी तो रहते हैं पीछे,

कि मरता है पहले हमेशा सिपाही।

 ये देखा है मैंने , है फ्रिज, जिन घरों में,

घड़ा  भी  नहीं  है  नहीं  है  सुराही।

 "असर" मेरे दिल में भी चाहत बसी है,

कि ग़ज़लों को मेरी मिले वाहवाही।

पता-D-2/10 ,रेडियो कालोनी,

किंग्स्वे कैम्पदिल्ली-110009

pH no.9871329522, 8700678915

Wednesday, June 09, 2021

ग़ज़ल-ओमप्रकाश गौतम

मिसाल क्या दूं मैं जो , बेमिसाल थे बिरसा।

कमाल क्या कहूं जो , बाकमाल थे बिरसा ।

करूं सौ बार नमन मैं, तेरी शहादत को ।

पिता थे सुगना मां करमी, के लाल थे बिरसा।।

मिले तालीम हर एकआदिवासी को कैसे।

हर एक फिक्र का रखतेमलाल थे बिरसा ।।

 खिलाफ जुर्म के थे,  जो लड़े हुकूमत से ।

बेबस गरीब लाचारों की,  ढाल थे बिरसा ।।

जमीन जल तथा जंगल, से है मेरा नाता ।

लगाये नजर जो ऐसों के , काल थे बिरसा ।।

दिये हैं जान वतन के,  जो वास्ते गौतम ।

शहीदों में भी वो तो , चन्द्रभाल थे बिरसा।।

 


ओमप्रकाश गौतम (निरीक्षक)

उत्तर प्रदेश पुलिस 9936358262

ग़ज़ल ( नन्दी लाल)

नन्दी लाल
तमाम उम्र तमाशा हुआ    इसी के लिए।

तुम्हारे होंठ पर बिखरी हुई हँसी के लिए।।

रहेगा याद बहुत साल बेरुखी के लिए,

मसाला खूब मिला यार शायरी के लिए।।

हसीन ख्वाब ,सँजोए हुए खुशी के लिए,

उधार माँग कर लाया हूँ  जिंदगी के लिए।।

दिलों में प्यार का दीपक सदा जलाए रहे,

यह जरूरी नहीं है आज आदमी के लिए।।

मिटा दे लाख अँधेरे सभी राहों के यहाँ,

चिराग एक ही काफी है रोशनी के लिए।।

करो न और भरोसा बड़ा चालाक है वह,

खड़ा है द्वार पे दरबान तस्करी के लिए।।

बताएँ किस से कहें क्या क्या कहें कैसे कहें,

गए हैं भाग जो परदेस    कलमुही के लिए।।

छिनी मजदूर के हाथों की रोटियाँअब तो ,

बहुत निराश हो बैठा है खुदकशी के लिए।।

पता-गोला, लखीमपुर-खीरी

ग़ज़ल (नन्दी लाल)

नन्दी लाल
एक खाने के बनेंगे चार खाने शाम तक।

भूल जायेंगे किए वादे सयाने शाम तक।।

आके चोटी से पसीना एड़ियां छूता है जब,

तब कहीं पाता है पट्ठा चार आने शाम तक।।

भोर है सो कर उठे हैं जो कहे सच मान लो,

याद आयेंगे कहीं फिर से बहाने शाम तक।।

पेट है या फिर किसी वैश्या का पेटीकोट है,

खा गए लाखों नहीं फिरभी अघाने शाम तक।।

देख लें जिसको वही मर जाए अपने आप में

और कितने कत्ल कर देंगे न जाने शाम तक।।

लूट  की हैं इसलिए वह  धूप से बचती रहें,

तान देंगे कुर्सियों पर   शामियाने शाम तक।।

नासमझ कुछ यार अपना दिल बदलते ही रहे,

रूप बदले  रंग बदले  और बाने शाम तक ।।

 

         पता-गोला गोकर्णनाथ खीरी

Tuesday, June 08, 2021

ग़ज़ल-(नन्दी लाल)

नन्दी लाल
दिल से अपने  न अब रहा जाए।

कबतलक जुल्म यह सहा जाए।।

 एक गलती हुजूर की    जिससे ,

पूण्य  सब पाप सँग बहा जाए।।

 साँच कितना है झूठ कितना है,

कुछ तो अखबार में लिखा जाए।।

 आप खुद ही है जानकार बड़े ,

आप से और क्या कहा जाए।।

 देख कर भी न देखती आँखें ,

दुखते पाँवों से कब चला जाए।।

 ये सियासत है झूठ की इसको ,

क्या पता कौन बरगला जाए।।

 है टिकी साँस आस पर जिसकी,

उसकी गर्दन   कोई दबा जाए।।

 जो उसे ठोकरों   में मिलती है ,

आपको   मुफ्त में दवा जाए।।

 कुछ भरोसा नहीं कि कौन कहाँ,

बात ही बात में    रुला जाए।।

 

        पता-गोला गोकर्णनाथ खीरी

Monday, June 07, 2021

ग़ज़ल (नीरजा विष्णु 'नीरू')

नीरजा विष्णु 'नीरू'

भला कब दर्द से आज़ाद हूँ मैं

ग़मो की इक बड़ी तादाद हूँ मैं।

 

तबस्सुम देखकर हैरान मत हो

लबों पर कांपती फरियाद हूँ मैं।

 

  कैसे  दामन-ए-उम्मीद  छोड़ूं

पता है जब कि उसके बाद हूँ मैं।

 

वो गुल जो टूटकर मुरझा गया हो

उसी ख़ुशबू सी बस बर्बाद हूँ मैं।

 

मसीहाई   तुम्हारी    देखनी   थी

इसी ख्वाहिश में तो आबाद हूँ मैं।

 

मुझे  ये  जानकर  अच्छा लगा  है

कि तुमको आज तक भी याद हूँ मैं।

 

ख़ुदा ही  जानता  है ये  हक़ीकत

कि ज़ख्मों की बड़ी उस्ताद हूँ मैं।

 

मेरे  हालात  पर  हंसना    'नीरू'

यही क्या कम है यूँ भी शाद हूँ मैं।

ग्राम व पोस्ट: भीखमपुर

जनपद: लखीमपुर खीरी(उत्तर प्रदेश) पिन कोड:262805

 neerusolanki1090@gmail.com

Sunday, June 06, 2021

ग़ज़ल (नन्दी लाल)

आँधियों में पार कर देना   मुझे मझधार से।

नाव ने यह बात कर ली है नदी की धार से।।

 

वह कभी कीमत न समझे जान की पहचान की,

यह मुनाफा खोर    चौड़े हो गए व्यापार से।।

 

 भूख जब इन्सान  की बर्दाश्त से बाहर हुई,

 सर पटक कर मर गया तब आदमी दीवार से।।

 

 मौत का मंजर नजर में, फर्श पर लेटा हुआ ,

वह गुजारिश कर रहा बहरी हुई सरकार से।।

 

 बुझ गई जो झोपड़ी की आग दो सुलगा उसे,

 आ गई फिर से खबर उस बेरहम दरबार से।।

 

 काम में अपने बराबर    वह खड़ा मुस्तैद है,

 बेवजह की अब बहस करिए न चौकीदार से।।

 

 कोन जहरीली कहाँ है      कौन सेहत मंद हैं,

 आ रही उड़कर हवाएँ   यह समंदर पार से।।

 


नन्दी लाल

गोला गोकर्णनाथ खीरी


Friday, June 04, 2021

ग़ज़ल ( देवेन्द्र कश्यप 'निडर')


देवेन्द्र कश्यप 'निडर'


हाय ! कैसे दिन  यहाँ  पर आ गये ।

झूठ  के  जलवे  यहाँ  पर छा गये ।।

 

कल तलक  जो थे  बड़े भोले भले ।

बेंच  कर औकात  अपनी खा गये ।।

 

हाथ  जोड़े   जो   खड़े   थे  नाटकी ।

अब कड़क तेवर बदल कर ला गये ।।

 

कल शपथ ली आम जनता के लिए ।

आज  जनता की कमी को गा गये ।।

 

थे  छपे  अखबार   में   कर्मठ  कभी ।

अब करोड़ों के लिए  बिक  धा गये ।।

 

जो   लफंगें   थे    कभी   नेता   बने ।

सभ्यता  का  ताज  अब  वे पा गये ।।

 

छानते  थे  खाक   गाँवों  में  'निडर'

शहर  के  घर आज उनको भा गये ।।

ग्राम अल्लीपुर पत्रालय कुर्सी तहसील सिधौली 

जिला सीतापुर, पिन कोड – 261303

Thursday, June 03, 2021

ग़ज़ल (अरविन्द असर)

 

अरविन्द असर


कैसे बताऊं बात कि हालात हैं बुरे,

दिन बन गया है रात कि हालात हैं बुरे।

 

श्मशान, अस्पताल में लाशों के ढेर हैं,

रोकें ये वारदात कि हालात हैं बुरे।

 

कैसा ये दौर है कि करोड़ों को आजकल,

दूभर है दाल- भात कि हालात हैं बुरे।

 

इस सोच में हूं गुम कि चलूं कौन सी मैं चाल,

है हर क़दम पे मात कि हालात हैं बुरे।

 

गैरों की छोड़िए कि अब अपने भी इन दिनों,

देते नहीं हैं साथ कि हालात हैं बुरे।

 

हम डाल -डाल बचने की कोशिश में हैं, मगर

है रोग पात- पात कि हालात हैं बुरे।

 

बचना है गर तुम्हें तो "असर " इस निजाम पर,

जमकर चलाओ लात कि हालात हैं बुरे।

 

 

D-2/10 ,रेडियो कालोनी, किंग्स्वे कैम्प दिल्ली-110009

Ph no.9871329522,8700678915

पढ़िये आज की रचना

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