साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Tuesday, May 25, 2021

मोहनलाल यादव के चालीस दोहे


        

 

परिचय

नाम-मोहनलाल यादव                            

पिता-  चौधरी मुलई यादव               

माता- हुबराजी देवी

ग्राम- तुलापुर, झूँसी, प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)

जन्म-  8 अप्रैल 1959

शिक्षा- स्नातक

संप्रति- अध्यापन

कृतित्व-

नाटक-कलजुगी पंचाइत, आदमखोर, भ्रष्टाचार का मोहि कपल छल छिद्र न भावा आदि 20 नाटकों का लेखन,मंचन एवं निर्देशन

दूसरा प्रेमचंद की कहानियों कफन, सदगति, सुभागी, पंच परमेश्वर, मंत्र आदि का नाट्य रूपांतरण, मंचन एवं निर्देशन।

★1988 में साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था "प्रतिध्वनि लोकमंच" की स्थापना एवं लोकगीत, लोक नाटकों एवं लोक नृत्यों की प्रस्तुतियां।

फिल्म चकरघिन्नी में अभिनय

आकाशवाणी इलाहाबाद में कविता पाठ

विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविता, कहानी एवं लेखों का अनवरत प्रकाशन

 

 

 मोहनलाल यादव के चालीस दोहे


रे चातक! उस मेघ से,वृथा है जल की आस।

जिसके  होठों पे  जमीं, एक  सदी की प्यास।।

 

पवन  बसंती  चुलबुली,  अंचरा रही उड़ाय।

निरखि रूप लावण्य निज, गोरी गई लजाय।

 

धूप गुनगुनी  हो गई, शीत  गई  कुम्हलाय।

पुरवाई   बैरन  भई,  प्रियतम  गए भुलाय।।

 

साँस-साँस महके मलय,पात-पात रसपान।

डोले  पीपल पात  जस, बैरागी  मन  प्रान।।

 

काग बड़ेरी पर बैठि, गाये  स्वागत गीत।

अबकी फागुन आयेंगे,गोरी  के मनमीत।।

 

पिया  बसे  परदेश में, करें विडियो काल।

सजनी, परसों आ रहा, लेकर रंग गुलाल।।

 

तनी कटारी द्वेष  की, प्रेम    हिय में  शेष।

अबकी फागुन में सजन, आयौ न निज देश।।

 

सब अपने में मस्त हैं, लिये मोबाइल फोन।

मुझसे  ज्यादा  गाँव में, तीसमार  है  कौन।।

 

ताना-बाना  प्रेम  काचादर  थी अनमोल।

ओढ़ कबीरा रख दिया, अब हो गई बेमोल।।

 

बिनु श्रद्धा श्रद्धांजलि, आलिंगन बिनु नेह।

मन  मे  पलती  ईर्ष्या, होठों  पे  मधु  मेह।।

 

छद्म  प्रगति  की चल रही,  ऐसी अंध बयार।

चाक उठाकर रख दिया, कोने दुखी कुम्हार।।

 

मटखन्ने सब पाटकर, लीन्ह्यौ महल बनाय।

रोजी  लुटी  गरीब  की,  कैसे  पर्व  मनाय।।

 

बिलट गए तालाब  सब, माटी रही न शेष।

चीन से बनकर आ रहे, लक्ष्मी और गणेश।।

 

सरसों  ताना  मारती,  पुरवा  रही  चिढ़ाइ।

कंता घर आए नहीं, सखि बसंत फिर आय।।

 

अमराई  बौरा  गई,  रही  कोकिला  कूक।

फिर प्रियतम आए नहीं, निकरे हिय से हूक।।

 

खूंटी से उतरी नहीं,असलम मियाँ की ढोल।

मिसिर अकेले क्या करें, फाग के गूंगे बोल।।

 

चली फगुनहट मदभरी, गई हरीतिमा छाइ।

प्रसव दिवस पूरे भए फसल गरभ निअराइ।।

 

शहर आ गया गांव में, घर में घुसा बाजार।

सिमट रही अमराइयां,  सड़कों में विस्तार।।

 

हुई  मशीनी  धड़कनें, सूने  हैं  एहसास।

इंच  इंच  धरती  नपी, नपते हैं आकाश।।

 

ना सोन्हीं माटी महक, ना बरगद की छांव।

बूढ़ा पीपल रो पड़ा, कहाँ मिलेगा था ठावं।।

 

सहमी-सहमी  सांझ  हैं,सूनी  है  चौपाल।

झांझ मजीरे रो रहे,सिसक रही करताल।।

 

होलिहारों की  टोलियां, वो  हुड़दंगी  रात।

होली  की  रंगीनियां, भई  किताबी  बात।।    

 

सिमट  गई  अमराइयाँ, फूले  नहीं  पलास।

धनपशुओं के महल में, कैद हुआ मधुमास।।

 

जल जंगल धरती  लूटी, लुटा मजूर किसान

आंखों  के  सपने  लुटे,   होठों  के  मुस्कान

 

उखड़ी सांसे गीत की, थके ताल सुर छंद।

मुस्कानों  पे  कर  लगे,आंसू  पे  प्रतिबंध।।

 

नानी के किस्से चुके, दादी के चिर गीत।

मूल्यहीन  संवेदना,  अर्थहीन  संगीत।।

 

सहमी  सहमी  रश्मियां, सूना सूना  प्रात।

अंधियारे  देने  लगे, रोशनियों  को  मात।।

                 

जनता  सूखी  रोटियां,  नेता  खाए  खीर।

जयचंदों  के  हाथ  में, भारत  की तक़दीर।।

 

राष्ट्र अस्मिता पर खड़े, संकट अति गंभीर।

पहले जो तिल मात्र थे, अब वो पर्वत पीर ।।

 

सहमा  सहमा  लोक है, तंत्र हुआ खूंखार।

संविधान  बेबस  खड़ा,  लोकतंत्र  बीमार।।

 

नई गुलामी आ गयी ले विकास का नाम।

उतनी सांसें मिलेगी जेब में जितना दाम।।

 

जो किसान का खाइ के, उसी को रहा रुलाय।

ऐसा  राजा  जब  मरे,  सीधे  नरक  में  जाय।।

 

संविधान का  हो  रहा,  निर्ममता  से खून।

पूंजीपति के काज हित, ले आते  कानून।।

 

ध्वस्त  धर्मनिरपेक्षतानारों  की  हुंकार।

तार  तार  शुचिता  हुई, लुटी  सरेबाजार।।

 

दुम  दोलन  की  साधना  होते  लाभ  अनेक

अगर यकीन न होय तो तनिक हिलाकर देख

 

राम नाम करता कभी, था  भवसागर  पार।

वही आज है बन गया, नफरत का औजार।।

 

जाति धरम की ओखली, मूसल भ्रष्टाचार।

जनहित  मुद्दे कूटियो, होवै जय जयकार।।

 

गांधी की तस्वीर को, करके नमन हजार।

नाथूराम  चुनाव  में, जीत  रहा  हर  बार।।

 

मानवता सिद्धांत तजि, जीत का झंडा गाड़।

हर दल में करते रहो, अपना टिकट जुगाड़ ।।

 

लाज शर्म सब छोड़ दें, सबकी अलख जगाव।

पांच दिवस कर जोरि ले, पांच बरस लतिआव।।

 

-मोहनलाल यादव

 फोन नं- 9956724341


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