साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Tuesday, June 15, 2021

परिवर्तन की बात, सूरजपाल चौहान-अखिलेश कुमार अरुण

भावपूर्ण श्रृद्धांजलि

Surajpal Chauhan
अभी-अभी फेसबुक खोले सरसरी निगाह से देख ही रहे थे कि कौशल पवांर, अशोकदास, उर्मिलेश, सुमन कुमार सुमन आदि लोग जो दलित साहित्य और आन्दोलन के मुखर आवाज हैं, एक के बाद एक आप सभी के  फेसबुकवाल श्रद्धांजलि से पटा पड़ा है, पिछला साल और यह साल बहुत बुरा रहा, एक-एक कर हमने-जिसमें शांति स्वरूप बौद्ध, दीनानाथ निगम, अखिलेश कृष्णा मोहन आदि और आज सूरजपाल चैहान को खो दिया। यह दलित साहित्य के लिए अपूर्णीय क्षति है...जिसकी भरपाई नहीं हो सकेगी, शायद कभी नहीं। 

किसना “परिवर्तन की बात” कहानी का पात्र ही नहीं था। बल्कि वह प्रतिनिधित्वकर्ता था, दकियानूसी समाज के नियमों की अवहेलना करने वाला जो सूरज पाल चैहान के कहानी में चीख कर कहता है, "अब हमने और हमारे समाज के लोगों ने मरी गाय उठाना बंद कर दिया है" प्रतिशोध में नाग की तरह फुंफकारते हुए कहानी के अंत में ठाकुर कहता है, “ साले मारे लाठिय के घुटना तोड़ दूंगा............।, परिवर्तन हो रहा है ठाकुर साहब आप क्या चाहते हैं कि हम आज भी मरे हुए गायों को ही ठिकाने लगायें......... ।”  रघु ठाकुर “साले लीडर बनता है....चमारों का लीडर...... ।" यह कहानी, कहानी नहीं है अपने में बहुत कुछ सत्यता को समेटे हुए है। देश आजाद होने और संविधान लागू होने से लेकर आज तक के वंचित, दलित समुदाय के प्रतीकात्मक परिवर्तन के सच का आईना है।  देखिये परिवर्तन कहाँ हुआ है।  राजनैतिक परिवर्तन अधुरा है जब तक की सामाजिक परिवर्तन नहीं होता और जब तक लोग यह नहीं मान लेते कि व्यक्ति जन्म से नहीं कर्म से महान है।  जो कर्म परिवर्तन करना चाहता है उसे सम्मान दिया जाए और उसके प्रति हमारे बौद्धिक दृष्टिकोण भी परिवर्तित होने चाहिए। 

सूरजपाल चैहान को दलित साहित्य का अग्रदूत कहे जाने में अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए। आप दलित साहित्य को गति प्रदान करने वाले सामन्तवादी सोच के खिलाफ विगुल बजाने वाले साहित्यकार हैं, वर्तमान साहित्य को अपनी मुट्ठी में करने वाले विलक्षण साहित्यकार हैं। आपकी लेखनी जाति व्यवस्था पर करारा व्यंग्य के साथ ही साथ एक साहित्यिक क्रांति है। सूरजपाल चैहान के ‘हैरी कब आयेगा’ (1999), ‘नया ब्राह्मण’ (2009), ‘धोखा’ (लघुकथा संग्रह, 2011)  के साथ साहित्य जगत में देखते ही देखते छा जाते हैं। सूरजपाल चैहान अपने कथा लेखन में बड़ी सहजता से जाति व्यवस्था की भयकंर दुश्वारियों को सामने लाते हैं। ‘छूत कर दिया’, ‘घाटे का सौदा’, ‘साजिश’, ‘घमण्ड जाति का’,  सूरजपाल चैहान ‘आपबीती’ और ‘जगबीती’ अनुभवों से जातिवाद के बीहड़ इलाकों की शिनाख्त बड़ी ही सहजता और स्पष्टता से करते हैं। मैंने जितना पढ़ा उतने में आपको समेटने का एक छोटा सा प्रयास है, लिखूंगा दिल खोल के लिखूंगा तल्लीनता से लिखूंगा आपके बोये बीज को खाद-पानी देने का काम अब हम सबके सिर-माथे है। यही आपके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

-अखिलेश कुमार अरुण

ग्राम-हजरतपुर, पोस्ट मगदापुर

जिला-लखीमपुर(खीरी)


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