साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Thursday, June 03, 2021

पियरे और जोसेफ़ के जैसा है मेरा और मेरे साईकिल का रिश्ता-अखिलेश कुमार अरुण


पर्यावरण के अनुकूल है और यह ज्यादा खर्चीला भी नहीं है इसलिए हमें साइकिल की तरफ लौटना चाहिए कुछ लोग तो अभी से कहने लगे हैं आएगा तो साईकिल ही, अब साइकिल आए या हाथी पर कमल नहीं आना चाहिए, का बुरा कह दिए।

 

2014

आज विश्व साइकिल दिवस है, 3 जून 2018 को संपूर्ण विश्व में पहली बार विश्व साइकिल दिवस मनाया गया था, आज तक के वैज्ञानिक आविष्कारों में एक यही ऐसा अविष्कार है जो सस्ता होने के साथ-साथ पर्यावरण के अनुकूल है और यह ज्यादा खर्चीला भी नहीं है इसलिए हमें साइकिल की तरफ लौटना चाहिए कुछ लोग तो अभी से कहने लगे हैं आएगा तो साईकिल ही, अब साइकिल आए या हाथी पर कमल नहीं आना चाहिए, का बुरा कह दिए।

 

ऊपर चित्र में यही हमारी साईकिल है, कभी हमने अपनी साईकिल को साईकिल नहीं कहा हमेशा गाड़ी कहते थे...इससे सम्बन्धित एक बाकया है हम  हमारा मित्र रविन्द्र कुमार गौतम सरकारी अस्पताल में अपने मित्र का हाल-चाल लेने पहुंचे थे ...साईकिल अस्पताल गेट पर खड़ी किये और अस्पताल में जो भर्ती थे उनके तीमारदार बाहर ही मिल गए पर साईकिल से उतरते नहीं देखा था यह हमें बाद में पता चला........गाड़ी खड़ी बा तनी देखत रहिह....कहते हुए अस्पताल के अन्दर गए हाल-चाल लिया कुछ देर बाद लौटना हुआ तब तक आप हमारी गाड़ी देखते रहे उनसे मिलकर साईकिल का ताला जब खोलने लगे तब ऊ बोले ई का हो .....गाडी से आईल रहल ह न......फिर बहुत हंसी हुई हम कहे, “इहे हमार गाडी ह।” अब जब भी मुलाकात उनसे होती है ठहाका लग ही जाता है।

 

साइकिल से हमारा बहुत पुराना नाता है सन 1998-99 की बात होगी। जब हमारे लिए पापा जी सेकंड हैंड साइकिल लेकर आए थे, 11 या 12 सौ की थी। उसका कलर नीला है तब से लेकर आज तक हम नीले रंग के दीवाने हो गए हमें लगता है कि नीला हमारा अपना रंग है जो हमेशा आसमान की उचाई को छूने के लिए प्रेरित करता रहता है। वह साइकिल आज भी हमारे प्रयोग में लाई जाती है पर कम दूरी के लिए या बाजार तक कभी हम पूरा लखीमपुर उसी से छान मारते थे, हमारा मोटरसाईकिल चलना उसको खलता होगा, लम्बी दुरी पर जो नहीं जाती सजीव होती तो शिकायत जरुर करती। 22/23 साल का हमारा उसका पुराना सम्बन्ध है,  उसके एक-एक पुर्जे से हम बाकिब हैं, और हो भी क्यों ना चलाते कम उसको बनाने का काम ज्यादा करते थे, पढ़ाई के दौरान महीने का दो रविवार साइकिल के नाम ही रहता था। हमारे साइकिल में टायर-ट्यूब का प्रयोग इतना जबरदस्त तरीके से किया जाता था कि बच्चों के खेलने लायक भी नहीं रह जाता। जगह-जगह टायर की सिलाई और ट्यूब में पंचर लगाने का काम तब तक जारी रहता था जब तक की वह लुगदी-लुगदी न हो जाए। हमारी साइकिल इतना वफादार थी कि वह छमाही या वार्षिक परीक्षा होने के पूर्व ही बयाना फेर देती उसका सीधा-सीधा संकेत था कि हम इतना कंडम हो गए हैं हमको सुधरवालो नहीं तो तुम्हारा पेपर हम दिलवा नहीं पाएंगे फिर तीन-चार सौ का खर्चा होना तय था... पीछे का टायर आगे, आगे किसी काम का नहीं ऐसा भी नहीं था टायरों में गोट (कत्तल) रखने के काम आता था। मूलरूप में साईकिल में अब केवल फ्रेम और पीछे का करिएर ही शेष हैं नहीं तो सब कुछ बदल चूका है। मेरे और साइकिल के बीच का सम्बन्ध पियरे और उसके घोड़ा जोसेफ़ के जैसा है हम दोनों एक दुसरे की भावनाओं को आसानी से समझ लेते हैं। हमारी साईकिल को देखकर हमारे होने का सहज अनुमान लोग आज भी लगा लेते हैं।

 जब हम छोटे थे तब साईकिल दुसरे को अपनी साईकिल देने में आना-कानी करते थे। जिसका फायदा उठाकर हमारे चाचा लोग चिढ़ाने का काम करते थे, कभी लेकर चले जाते तो गुस्सा भी बहुत आता था जब साईकिल आ जाती तब चुपके से उसका निरिक्षण करने जाते कहीं कुछ गड़बड़ी तो नहीं है................चोरी पकड़ी जाती हाँ-हाँ देख लो कुछ घिस तो नहीं गया ......हमारा भी जबाब होता आउर नाहीं त का????

 अंत में आएगा तो साईकिल ही की उपयोगिता के लिए एक जयकारा तो बनता है .........जय साईकिल जिंदाबाद साईकिल अब कुछ लोग हमको सपाई होने की भूल भी कर बैठेंगे ऐसे में हम राजनीति से दूर हैं, आएगा साईकिल से तात्पर्य बस इतना है की पेट्रोल-डीजल आसमान छू रहे हैं ऐसे में लोग साईकिल की तरफ़ जा सकते हैं......बहुत कोशिश कर रहा हूँ इस पैराग्राफ में पर पता नहीं क्यों इसमें राजनीति की बू आ रही है हमको राजनीति से दूर रखियेगा वैसे हाथी भी ठीक रहेगा......राजनीति अपनी जगह साहित्य अपनी जगह, चलते है

ए०के०अरुण
नमस्ते


ग्राम-हजरतपु, जिला खीरी

उ०प्र० 262701

8127698147

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