साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Thursday, June 03, 2021

गजल (नन्दी लाल)

नन्दी लाल


रोशनी में बैठकर के   खो गया महताब में।

राज महलों के झरोखे खूब देखे ख्वाब में।।

 

 बाढ़ क्या आई , कहर टूटा गरीबी पर मेरी,

 मुश्किलें  बहकर हजारों आ गईँ सैलाब में।।

 

 नाज नखरे नक्श उनकी जिंदगी में देखकर,

अक्श उनका आ गया सारा  दिले बेताब में।।

 

 मार मौसम की पड़ी सब सूख कर बंजर हुआ,

 मछलियाँ मरने लगी    पानी बिना तालाब में।।

 

 गिड़गिड़ाता फिर रहा है वह खुदा के नाम पर,

जल रहा था कल दिया जिस शख्स के पेशाब में।।

 

 जिंदगी के दाँव सारे      भूल बैठा आजकल,

 बाज आखिर आ गया उड़ती चिड़ी के दाब में।।

 

 ज़ीस्त की जादूगरी में कैद होकर रह गया,

 खो गया जो भीड़ में, इस दौर केअसबाब में ।।

 


गोला गोकर्णनाथ खीरी

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