लघुकथा
मैं उस दावत में जाने को कतई तैयार न था, पर मेरा मित्र पीछे
पड़ गया ’अमां चलो यार,
मेरे रिश्तेदार की शादी है। फिर कोई
क्या कहेगा?
मैंने कहा-देखो मेरा निमत्रंण नहीं है, उचित नहीं लगता है।
'अरे! यार तू भी किन
दकियानूसी बातों में पडा है। इतनी बड़ी पार्टी में कौन आया, कौन गया, कौन ध्यान दे पाता
है। उसने अपने तर्क से मुझे निरुत्तर कर दिया।
हम दोनों पार्टी में पहुंचे। अपनी-अपनी इच्छानुसार प्लेटों में
लजीज व्यंजन लेकर खाने लगे। तभी मेरे मित्र की नजर, सामने भीड़ में जल्दी-जल्दी खाना खा
रहे एक युवक पर पड़ी। ‘और श्याम भाई बढ़िया है’ मित्र ने एक सवाल उस पर फेंका। श्याम
ने अचकचा कर खाते-खाते हैरत से,
मेरे मित्र की ओर देखते हुए, थोड़ा गर्दन झुका कर
झेंपते हुए,मौन भाषा में फौरन नमस्कार किया। ’ठीक है, ठीक है, अरे! कोई दिक्कत नहीं, आराम से खाइए।
मैंने देखा अब वह भय-विस्मय से खाते हुए इधर-उधर कनखियों से देखने लगा।
हम दोनों दावत खाकर लौट रहे थे। तभी मैंने अपने मित्र से पूछा-यार!
ये बताओ उस युवक से तुमने ये क्यों कहा ठीक है! ठीक है! कोई दिक्कत नहीं आराम से
खाइए।
मित्र हंसते हुए बोला-मेरे गांव का वह गरीब युवक था। बेचारा कोई
छोटा-मोटा प्राइवेट काम जहां-तहां करता रहता है। अक्सर देर रात को थका-हारा लौटता
है और खाना नहीं बना पाता, तो मजबूरन ऐसे ही किसी न किसी अनजानी पार्टियों में अपने पेट की आग
बुझा लेता है।
'अगर किसी ने इसे
पहचान लिया तो-मैंने अधीरता से पूछा।
’तो क्या एक-दो
तमाचे पड़ेंगे, पर भूख के आगे एक-दो तमाचे की परवाह इस जैसे गरीब, बेकार, लाचार बिलकुल नहीं
करते?
'अब मुझे लगा दावत
का लजीज खाना मेरे हलक में अटकने लगा है। मैं अंदर ही अंदर छटपटाने लगा, फिर अजीब तड़प और
खासी उलझन में एकाएक अपने गालों पर हाथ फेरने लगा, सहलाने लगा, ऐसा लगा, किसी ने मेरी कनपटी
पर एक जोरदार तमाचा रसीद कर दिया हो।
निर्मल नगर लखीमपुर
खीरी पिन-262701 यूपी
मो-7376236066