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अरविन्द असर |
वहां काम आती नहीं बेगुनाही।
अभी आने वाले हैं ज़िल्लेइलाही,
अभी बंद है इस जगह आवाजाही।
वो धुन का है पक्का लगन का है सच्चा,
चला जा रहा है अकेले जो राही।
ज़रा सा ही है वो जरासीम लेकिन,
मचा दी है जिसने जहां में तबाही।
जो ख़ूं बन के बहती है सबकी रगो में,
कभी ख़त्म होती नहीं वो सियाही।
तुम्हारी ज़बां और कुछ कह रही है,
"नज़र और कुछ दे रही है
गवाही।"
वज़ीर, ऊंट, हाथी तो रहते हैं पीछे,
कि मरता है पहले हमेशा सिपाही।
ये देखा है मैंने , है फ्रिज, जिन घरों में,
घड़ा भी नहीं है नहीं है सुराही।
"असर" मेरे दिल में भी चाहत बसी है,
कि ग़ज़लों को मेरी मिले वाहवाही।
पता-D-2/10 ,रेडियो कालोनी,
किंग्स्वे कैम्प, दिल्ली-110009
pH no.9871329522, 8700678915