साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०
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Wednesday, January 24, 2024

राम अयोध्या लौटे हैं- एड. रमाकान्त चौधरी

एड. रमाकान्त चौधरी
गोला गोकर्णनाथ, लखीमपुर खीरी।
उत्तर प्रदेश, मो. 9415881883


जो हाथ लगायेगा सीता को वह रावण मारा जायेगा।
राम अयोध्या लौटे हैं अब राम राज्य आ जायेगा।
सदियों से शोषित पीड़ित जो वह स्वाभिमान पा जायेंगे।
शोषण करने वालों पर कोड़े बरसाए जायेंगे।
दीप जलेंगे खुशियों के गम के बादल छंट जायेंगे।
जातिवाद और ऊंच नीच के सब गड्ढे पट जायेंगे।
अब ना होगा जुल्म किसी पर जुल्मी मारा जायेगा।
राम अयोध्या लौटे हैं अब राम राज्य आ जायेगा।
रिश्वतखोरी और दलाली अब ना होगी थानों पर।
रोक लगेगी भारत भर के मक्कारों बेईमानों पर।
बालाएं अब घूम सकेंगी मेलों में बाजारों में।
दुष्कर्म नहीं हो पाएंगे अब ट्रेन बसों व कारों में।
राहजनी और लूटपाट अब कोई नहीं कर पायेगा।
राम अयोध्या लौटे हैं अब राम राज्य आ जायेगा।
हर मानव अब सच बोलेगा अब सतयुग फिर से लौटेगा ।
झूठ बोलने वाला कोई दूर-दूर तक नहीं दिखेगा।
हर द्वारे पर गाय जनेंगी प्यारे-प्यारे बछड़ों को।
ताले अब लग जाएंगे भारत के बूच़डखानों को।
हर किसान खुशहाल रहेगा अब ना जान गंवाएगा।
राम अयोध्या लौटे हैं अब राम राज्य आ जायेगा।
भात भात कहकर के कोई अब न मरेगी संतोषी।
हर नंगा कपड़ा पायेगा हर भूख पायेगा रोटी।
मुनिया का अपहरण न होगा अब न बिकेगी कोठों पर।
मुजरिम को अब सजा मिलेगी न्याय न होगा नोटों पर।
सबके नाथ सियापति होंगे कोई न अनाथ कहायेगा।
राम अयोध्या लौटे हैं अब राम राज्य आ जायेगा।
आतंकवाद का दूर-दूर तक नामों निशां नहीं होगा।
गद्दारों का धड़ होगा सिर का पता नहीं होगा।
बेरोजगार अब कोई न होगा सबको मिलेगी अब रोजी।
देशद्रोहियों को मारेगा सरहद का इक-इक फौजी।
पुलवामा का किस्सा अब बिल्कुल न दोहराया जायेगा।
राम अयोध्या लौटे हैं अब राम राज्य आ जायेगा।
घर-घर जा साधु सन्यासी अब उपदेश सुनायेंगे ।
राजनीति से दूर रहेंगे अपना फर्ज निभाएंगे।
धोखा देने वालों का निश्चित ही जेल पठाना है।
सच कहता हूं सुनो मित्रों मुझे अयोध्या जाना है।
राम राज्य आ जाने से अब परिवर्तन आयेगा।।
राम अयोध्या लौटे हैं अब राम राज्य आ जायेगा।।


Tuesday, October 31, 2023

सोशल मीडिया पर नंगे होने की होड़ - रमाकान्त चौधरी


           रमाकान्त चौधरी           
ग्राम -झाऊपुर, लन्दनपुर ग्रंट, 
जनपद लखीमपुर खीरी उप्र।
सम्पर्क -  9415881883

    
    जैसे ही मनुष्य के हाथ में मोबाइल आया तो यूं लगा की सारी दुनिया उसकी मुट्ठी में आ गई। मोबाइल क्रांति ने मनुष्य के जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन कर दिया, जो कार्य करने में काफी लंबा सफर तय करना पड़ता था वही काम कुछ पलों में होने लगा।  सोने पर सुहागा तब हुआ जब सोशल मीडिया ने दस्तक दी , यू ट्यूब, फेसबुक, व्हाट्सएप, ईमेल, ट्विटर, इंस्टाग्राम जैसे दर्जनों प्लेटफार्म आ गए जहां मनुष्य अपने विचारों का एक दूसरे से आदान-प्रदान करने लगा।  गरीब से गरीब व्यक्ति जो सीधे-सीधे शासन प्रशासन से अपनी बात, अपना दुख दर्द नहीं  कह पाता था वह इन सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफार्म के माध्यम से अपनी बात शासन प्रशासन तक पहुंचाकर अपना मन हल्का  करने का रास्ता खोज निकाला। और तो और वर्षों बिछड़े पुराने मित्र जिनसे शायद दोबारा कभी मिलने की उम्मीद न थी सोशल मीडिया के माध्यम से वह सभी लोग मिलने लगे और मनुष्य अपनी जिंदगी का पूर्ण आनंद सोशल मीडिया पर ढूंढने लगा। जीवन में अपने सगे संबंधी से ज्यादा सगेपन की जगह इस अदने से प्लास्टिक के टुकड़े ने ले ली। वर्तमान समय में समाजनीति से लेकर राजनीति  व धर्मनीति का प्रचार प्रसार करने का माध्यम सोशल मीडिया से बेहतर दूसरा कोई नहीं है।  जैसे-जैसे देश दुनिया ने प्रगति की वैसे-वैसे छोटे बड़े हर हाथ में मोबाइल पहुंचने लगा।  फिर एक दौर ऐसा भी आया कि बड़ों से ज्यादा बच्चे एवं किशोर मोबाइल का उपयोग करने लगे, जो जानकारी चाहो मोबाइल से पूछो तुरंत हाजिर, किंतु सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक चीज यह हुई कि एक प्रश्न पूछने पर दस उत्तर हाजिर हो गए।  साथ साथ सोशल मीडिया के उपरोक्त तमाम प्लेटफार्म  वीडियो रील्स आदि बनाकर अपलोड करने के बदले अपने नियम शर्तों के मुताबिक अच्छा खासा  एमाउंट भी दे रहे हैं । मोबाइल फोन सोशल मीडिया लोगों के पैसा कमाने का एक बेहतरीन जरिया भी साबित हुआ। जहां एक और हर आदमी अखबार खरीद कर नहीं पढ़ पा रहा था और घर पर बैठकर टीवी पर समाचार देखने का समय नहीं था वहीं  व्यक्ति को अपने कार्य करते हुए भी  युटुब चैनलों के माध्यम से क्षेत्र से लेकर देश-विदेश तक की खबरें देखने का जानने का बेहतर प्लेट फार्म मिल गया।
 किन्तु  इन तमाम फायदों के साथ  अप्रत्याशित कार्य यह भी हुआ कि बहुत सारी वह भी चीजें मोबाइल पर खुलकर सामने आने लगी जिन्हें किशोर एवं बच्चों को नहीं देखना चाहिए।  किंतु जब सामने आई है तो फिर देखने व जानने की जिज्ञासा बढ़ जाना लाजिमी है।  इसी जिज्ञासा ने  पढ़ने वाले हाथों को अनावश्यक चीजे सर्च करने पर मजबूर कर दिया परिणाम स्वरूप जिन चीजों को जानने की अभी बिल्कुल आवश्यकता नहीं थी वह भी जानने लगे।  इसका प्रभाव यह रहा कि किशोरों द्वारा यौन अपराधों में अकल्पनीय वृद्धि हो गई । जिस कोरी स्लेट पर मानवता की इबारत लिखी जानी चाहिए थी उस स्लेट पर उम्र से पहले वे चीजें लिख गईं जो उनके जीवन के लिए अहितकर साबित हो रही हैं। आज  जो बच्चे व किशोर यौन अपराधी बन रहे हैं देखा जाए तो  मोबाइल एवं सोशल मीडिया की इस बिगड़ती सामाजिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका साबित हो रही है। किन्तु सबसे अहम परिवर्तन जो हुआ उसके विषय में सोच कर ही रूह कांप जाती है, पढ़ाई करने वाले, कैरियर बनाने वाले, कैरियर की फिक्र करने वाले युवा व किशोर  जिस तरह से रील्स बना बनाकर मोबाइल पर अपलोड करने में व्यस्त हैं वह भविष्य के लिए ठीक नहीं साबित होगा। जहां एक ओर फिल्मी गानों पर युवक युवतियां अर्धनग्न होकर वीडियो रील्स बना रहे हैं तो वहीं  दूसरी ओर आजकल  स्तनपान कराने वाली माताएं बच्चों को स्तनपान कराते हुए अर्द्धनग्न होकर रील्स बनाकर अपलोड कर रही हैं, जहां मातृत्व होना चाहिए वहां अश्लील तरीके से स्वयं को माताएं परोस रही हैं। जैसे ही सोशल मीडिया का कोई भी प्लेटफॉर्म खोला जाए कोई न कोई वीडियो रील्स जो फूहड़ता से लवरेज होगी, सामने खुलकर आ जाएगी। ऐसा लग रहा है कि मोबाइल सिर्फ इसी कार्य के लिए बनाया गया है। बच्चे, किशोर, युवा सभी नंगे होने की होड़ में लगे हुए हैं। इन्हीं नंगी पुंगी रील्स बनाने वाले हाथों में कल देश दुनिया का भविष्य  होगा, यह एक चिंतनीय व विचारणीय विषय है।

Tuesday, November 15, 2022

बिरसा मुंडा-रमाकांत चौधरी

   कविता   

क्रांति की अमिट कहानी था।
वह वीर बहुत अभिमानी था।
डरा नहीं वह गोरों से,
लहज़ा उसका तूफ़ानी था।

जल जंगल धरती की ख़ातिर,
जिसने सबकुछ वारा था।
क्रांति बसी थी रग-रग में,
वह जलता हुआ अंगारा था।

सन् 1875 में जन्मा,
राँची के उलिहातू ग्राम में।
नाम था बिरसा मुंडा जिसका,
जो हटा न कभी संग्राम में।
रमाकांत चौधरी
लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश)

आदिवासियों का महापुरुष,
जो आज भी पूजा जाता है।
जिसकी गाथा सुनने से,
रग-रग में साहस भर जाता है।


मानवता के विरुद्ध ज़ुल्म जब,
बहुत अधिक बढ़ जाता है।
बिरसा जैसा महापुरुष,
तब ज़ुल्म मिटाने आता है।

                

Wednesday, May 04, 2022

अगले पेज की खबर-रमाकान्त चौधरी

(लघुकथा) 
           रमाकान्त चौधरी           
ग्राम -झाऊपुर, लन्दनपुर ग्रंट, 
जनपद लखीमपुर खीरी उप्र।
सम्पर्क -  9415881883 

क्या जमाना आ गया है ? लगता है इंसान का जमीर मर गया है अब छोटी छोटी बच्चियाँ भी सुरक्षित नही  हैं आखिर इनकी सुरक्षा करने के लिए क्या दूसरे गृह  से लोग आएंगे अखबार पढ़ते हुए रामधन बड़बड़ाने लगे। 
रामधन को बड़बड़ाते देख महेंद्र बाबू ने पूछा -क्या हुआ भाई क्यों बड़बड़ा रहे हो? 
रामधन ने अखबार की ओर इशारा करते हुए कहा इस खबर को देखो 'एक अधेड़ ने 6 माह की बच्ची को बनाया हवस का शिकार, इसी के साथ रामधन बोले ऐसे मामले में कानून व्यवस्था और अधिक सख्त हो तभी महिलायें व बच्चियाँ सुरक्षित रह सकती हैं।
अगले पेज की खबर नहीं देखे हो। महेंद्र बाबू ने प्रश्नभरी नजरों से देखते हुए रामधन से पूछा। 
अगले पेज पर क्या कोई विशेष खबर है? रामधन उत्सुक निगाहों से देखते हुए बोले। जवाब में महेंद्र बाबू ने कहा अगले पेज पर खबर लगी है ' दुष्कर्म पीड़िता का रिपोर्ट लिखाने के बहाने कई लोगों ने किया यौन शोषण।, 
अब शासन प्रशासन को लेकर रामधन के पास कोई सवाल न था रामधन की आंखें सिर्फ महेंद्र बाबू को ही देख रही थीं। 
 ...

Sunday, April 24, 2022

संतू जाग गया, पक्की दोस्ती का विमोचन सम्पन्न हुआ

    पुस्तक विमोचन   
संतू जाग गया, पक्की दोस्ती विमोचन सम्पन्न लखीमपुर खीरी आज सनातन धर्म विद्यालय में परिवर्तन फाउंडेशन संस्था के तत्वावधान में एक काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें गोला गोकर्णनाथ से मुख्य  अतिथि के रूप में वरिष्ठ कवि नंदी लाल विशिष्ट अतिथि कवि  समाजसेवी  द्वारिका प्रसाद रस्तोगी ने, डॉ मृदुला शुक्ला "मृदु" की कहानी संग्रह 'संतू जाग गया' और सुरेश सौरभ की कृति पक्की दोस्ती लघुकथा संग्रह का विमोचन किया। मुख्य वक्ता प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ राकेश माथुर ने पुस्तकों की समीक्षा  प्रस्तुत करते हुए कहा मृदुला की कहानियां गद्य गीत की तरह मार्मिक और हार्दिक हैं वहीं सौरभ की पक्की दोस्ती की बाल कहानियां बच्चों के लिए प्रेरणा दायक है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे शिक्षाविद् सत्य प्रकाश शिक्षक ने कहा रचनाकार सूर्य की तरह है जो समाज को सूर्य की तरह ही आलोकित करता है। सिधौली से पधारे  "श्रमवीर" कृति के रचयिता  देवेन्द्र कश्यप 'निडर' ने कहा सौरभ जी की रचनाओं में युगीन समय बोध है।

कार्यक्रम का संचालन कर रहे कवि श्याम किशोर बेचैन और शायर कवि विकास सहाय ने अपने बेहतरीन अंदाज से कविता पाठ करके सभा में समां बांध दिया। गोला गोकर्णनाथ के संत कुमार बाजपेई संत, रमाकांत चौधरी, डॉ शिव चन्द्र प्रसाद, हरगांव के युवा कवि विनोद शर्मा "सागर" नकहा के नवोदित कवि दुर्गा प्रसाद नाग, रंजीत बौद्ध, इन्द्र पाल, मृदुला शुक्ला, द्वारिका प्रसाद रस्तोगी ने भी सुमधुर काव्य पाठ किया। सरदार जोगिंदर सिंह चावला, अखिलेश अरूण, चंदन लाल वाल्मीकि, ने साहित्य की प्रासंगिकता पर विचार प्रकट किए। बालिका मानसी, रूपांसी, अपूर्वा शाक्य,  पूर्णिमा शाक्य ने भी कविता पाठ किया। संयोजक श्याम किशोर बेचैन ने अतिथियों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। सभा में शमशुल हसन उर्मिला शुक्ला, राम बाबू, मनीष गौतम, राज कुमार वर्मा, आदि काफी संख्या में लोग मौजूद रहे।

घायल है कानून व्यवस्था-रमाकान्त चौधरी


गोला  गोकर्ण नाथ लखीमपुर खीरी
 मोब 94 15 88 18 83 
घायल है कानून व्यवस्था,संविधान पर ताले हैं। 
संसद में जो बैठें हैं, सब सत्ता में मतवाले हैं। 

भरी भीड़ में नारी के जब वस्त्र उतारे जाते।
संसद में बैठे मंत्री जी  तनिक नही शरमाते। 
 बंद किए आंखें सबके सब देश के जो रखवाले हैं।
 संसद में जो बैठें हैं, सब सत्ता में मतवाले हैं।
 
निर्दोषों पर चले लाठियां,दोषी सब बच जाते।
बन के दल्ले घूम रहे ,वे राम नाम गुण गाते।
सबके सब हैँ चोर उचक्के, सब ही देखे भाले हैँ। 
संसद में जो बैठें हैं, सब सत्ता में मतवाले हैं।

संविधान की पीड़ा का मैं किसको दर्द  सुनाऊँ। 
आंसू पोंछू भारत के या खुद ही अश्क बहाऊँ। 
ऐसी अजब व्यवस्था में हम कैसे खुद को संभाले हैं। 
संसद में जो बैठें हैं, सब सत्ता में मतवाले हैं।

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Thursday, April 14, 2022

चौदह अप्रैल में लंदनपुर- रमाकांत चौधरी एडवोकेट

रमाकांत चौधरी एडवोकेट

गली व नगर की सफाई हुई है, 
रंगाई  हुई   है   पुताई   हुई  है, 
चमाचम चमकने लगे घर सभी के, 
खुशियों से भरने लगे घर सभी के, 
द्वारे  पर   रंगोली   सजने  लगी है, 
युवाओं की टोली निकलने लगी है, 
बजा बैंड बाजा  थिरकने लगे सब, 
जयभीम जयभीम कहने लगे सब, 
 खुशी  से  मगन  है चाचा व चाची, 
 उनकी छोटी बिटिया जी भर के नाची, 
 ना डर है किसी को किसी का किसी से, 
 प्यार  से  मिल  रहे  लोग  सब  सभी से, 
चौदह  अप्रैल  सबसे  आला हुआ है। 
 लंदनपुर का जलवा निराला हुआ है। 

 आगे   चले  भीमराव   जी   की  झांकी, 
 साहू जी की झांकी बुद्ध फुले की झांकी, 
 हजारों   लोग  संग   चले   जा   रहे   हैं, 
 बाबा साहब की जय-जय कहे जा रहे हैं, 
 कोई पैदल चले कोई ट्राली पर बैठा, 
 कोई रूठा - रूठा  चले  ऐंठा - ऐंठा, 
 नई   साड़ी   पहन   इतराती   फिरें, 
 दादी बाबा को आंखें दिखाती फिरें, 
 महेंदर की बीवी जितेंदर की भाभी, 
 न  माने  किसी  की भरे खूब चाबी, 
 खुद  भी  वे  नाचे  नचावें सभी को, 
 गीत बाबासाहब के गवावें सभी को, 
 हर शख्स बस जयभीम वाला हुआ है। 
लंदनपुर  का  जलवा  निराला  हुआ है। 

दादी   व   पोती   का  लफड़ा  हुआ   है, 
आगे बैठइ की खातिर ये झगड़ा हुआ है, 
हँसि - हँसि मजा  सब  लिए जा रहे हैं, 
बुद्ध फूले की जय-जय किए जा रहे हैं, 
लड़िका डीजे का वॉल्युम फुल पर किए हैं, 
 मारे    खुशी   के   वै    मन    की किए हैं, 
कभी दौड़ि पीछे कभी आगे - आगे, 
 रैली  के मुखिया फिरें  भागे - भागे, 
 न  माने  किसी की करें जोरा - जोरी, 
 नीला गुलाल सब लगावें छोरा - छोरी, 
 नीला   झंडा   सभी   लहराते  फिरें, 
 हीरो माफिक वै रुतबा दिखाते फिरें, 
 बुरी नजर वालों का मुंह काला हुआ है। 
 लंदनपुर  का  जलवा  निराला  हुआ है। 

 पसीना - पसीना   नहाए     हैं   सब, 
 बैंड वाले का मिलिके थकाए हैं सब, 
संभाले न संभले ये भीम जी का रेला, 
फैल इसके आगे सब दुनिया का मेला, 
 बाबासाहब  के  दर्शन  करें ग्रामवासी, 
 उनके   लिए   बस  यही मथुरा काशी, 
 आरती   उतारे   उनकी   पुष्प चढ़ावें, 
 बाकी   सभी   का  वै शरबत पिलावें, 
मिला जो हमें सब इन्हीं की बदौलत, 
 कुर्बान चरणन मा इनके सब दौलत, 
 पूरे    बरस    वे     चिंतित    रहे हैं, 
 जो जुलूस में जाने से वंचित रहे हैं, 
 भीम जैसा न कोई रखवाला हुआ है। 
 लंदनपुर  का जलवा निराला हुआ है। 


 ग्राम- झाऊपुर लंदनपुर ग्रंट, तहसील गोला गोकर्णनाथ, 
जिला लखीमपुर खीरी, उत्तर प्रदेश। 
मोब 9415881883


Wednesday, March 09, 2022

पूछ रहा है घायल-रमाकान्त चौधरी एडवोकेट

मुद्दे की बात 

रमाकान्त चौधरी एडवोकेट
लोकतंत्र का हनन हुआ है तानाशाही जारी है। 
संविधान के अनुच्छेदों पर चलती रोज कटारी है। 

समता और समानता वाले केवल भाषण होते हैं। 
जनता को बहकाने के अच्छे आकर्षण होते हैं। 
भीमराव के सपनों का भारत लुटा दिखाई देता है। 
 नेहरू पटेल गांधी का सपना टुटा दिखाई देता है। 
प्रस्तावना रो देती उस दम  सारे एक्ट लजाते हैं। 
संविधान निर्माता को जब अनपढ़ गाली दे जाते हैं। 
ग़द्दारों द्वारा संविधान के जब पृष्ठ जलाये जाते हैं। 
उनके समर्थन के खातिर जयघोष कराये जाते हैं। 
कोई रेपिया संसद जा कर मंत्री पद पा जाता है। 
और माफिया गुंडा आ अधिकारी पर रौब जमाता है। 
एक अनपढ़ नेता के आगे  प्रशासन झुक जाता है। 
शोषित पीड़ित वंचित को तब न्याय नहीं मिल पाता है। 
पूछ रहा है घायल भारत इतनी क्यों लाचारी है। 
संविधान के अनुच्छेदों पर चलती रोज कटारी है। 

अन्न उगाने वालों पर ऐसी भी हुकुमत चलती है।
फसलों के दाम नही मिलते बदले में लाठी मिलती है। 
युवा घूमता परेशान है रोजगार को तरस रहा। 
हक हकूक की बात करे तो उस पर डंडा बरस रहा। 
बहू बेटियाँ नही सुरक्षित ये कैसी आजादी है। 
घर से बाहर गर निकले तो अस्मत की बर्बादी है। 
भारत की एकता पर ऐसे भी घाव बनाये जाते हैं। 
जाति धर्म का ताना देकर युद्ध कराये जाते हैं। 
माना धर्म का ज्ञान मिले तब मानव पूरा होता है। 
पर संविधान की शिक्षा बिन सब ज्ञान अधूरा होता है। 
लोकतंत्र का हत्यारा है वह भारत का दुश्मन है। 
मानवता को भूल गया जिसे संविधान से नफ़रत है। 
ऐसे लोगों पर भी क्यों सत्ता की चौकीदारी है। 
संविधान के अनुच्छेदों पर चलती रोज कटारी है। 
शोषित  पीड़ित वंचित कोई  साहस कर जाता है। 
अपनी मेहनत के बलबूते जब आगे बढ़ जाता है। 
देख तरक्की उसकी तब कुछ बंदे शोर मचाते हैं। 
मंचों पर  चिल्लाकर वे आरक्षण गलत बताते हैं। 
आरक्षण क्यों हुआ जरूरी प्रश्न खड़ा रह जाता है।
उनपर किसने जुल्म किये ये कोई नही बतलाता है। 
संविधान जब मिला देश को तब उनको
अधिकार मिला। 
अहसास हुआ जीने का उनको जीवन का आधार मिला। 
संविधान ने ही नारी को अधिकार बराबर दिलवाया। 
संविधान ने ही नारी को सम्मान बराबर दिलवाया। 
लोकतंत्र की उचित व्यवस्था से पहचाना जाता है। 
सर्वश्रेष्ठ  दुनिया  में  भारत इसीलिए कहलाता है। 
ऊंच नीच की फिर भारत में क्यों  फैली बीमारी है। 
संविधान के अनुच्छेदों पर चलती रोज कटारी है। 
जाने कितने शीश कटे थे तब भारत आजाद हुआ। 
एक हुए जो बँटे हुए थे तब भारत आजाद हुआ। 
सबने मिलकर जंग लड़ी थी तब भारत आजाद हुआ।
 खून की नदियाँ खूब बहीं थी तब भारत आजाद हुआ। 
कुर्बान किये माँओं ने बेटे  तब भारत आजाद हुआ। 
 बहनों ने रण में भाई भेजे तब भारत आजाद हुआ। 
दुल्हनों ने  सिंदूर दिये थे तब भारत आजाद हुआ।
पिता ने लख्ते जिगर दिये थे तब भारत आजाद हुआ। 
खून खराबा खूब हुआ था तब भारत आजाद हुआ। 
काशी काबा नही हुआ था तब भारत आजाद हुआ। 
माली बन कर की रखवाली देश के जिम्मेदारों ने। 
नींद त्याग कर इसे बचाया देश के पहरेदारों ने। 
आज लुट रहा अपना गुलशन कैसी पहरेदारी है। 
संविधान के अनुच्छेदों पर चलती रोज कटारी है। 

अश्फाक बोस बिस्मिल आजाद का प्यारा भारत कहाँ गया। 
राजगुरु, सुखदेव, भगत का प्यारा भारत कहाँ गया। 
सोने की चिड़िया कहलाने वाला भारत कहाँ गया। 
 दिनकर, पंत निराला वाला प्यारा भारत कहाँ गया। 
रहमान  हों शामिल राम के दर्द में ऐसा भारत कहाँ गया। 
राम बने हमदर्द रहीम के ऐसा भारत कहाँ गया। 
लहू बहे न धर्म के नाम पे ऐसा भारत कहाँ गया । 
मर जाए कोई शर्म के नाम से ऐसा भारत कहाँ गया। 
लहू बहाते बात - बात पे धर्म के ठेकेदार यहाँ। 
धर्म के नाम से पनप गए हैं कुछ गुंडे गद्दार यहाँ। 
मानवता को बेंच के सारे धर्म बचाने निकले हैं। 
वस्त्र नोच के भारत माँ के मान बचाने निकले हैं। 
अपनों की ही अपनों के प्रति ये कैसी गद्दारी है। 
संविधान के अनुच्छेदों पर चलती रोज कटारी है। 

Tuesday, February 08, 2022

खत नहीं आते-रमाकान्त चौधरी

संस्मरण के बहाने
रमाकांत चौधरी
"क्या हुआ है आजकल खत का आना बंद है, डाकिया मर गया या डाकखाना बंद है" आशिकों की ये शायरियां या पंकज उधास का "गीत चिट्ठी आई है, आई है चिट्ठी आई है"  यह सब बातें गुजरे जमाने की लगती हैं।  एक समय होता था, जब दूर गए साजन की चिट्ठी का सजनी  या फिर सजनी के मायके जाने पर साजन उस तरफ निगाहें रखता था जिधर से डाकिया खाकी वर्दी में कंधे पर झोला लटकाए, साइकिल की घंटी टनटनाता हुआ आता दिखाई पड़ता था। जैसे ही डाकिया सामने से गुजरता और आवाज तक न देता था, तो फिर मन में बहुत गुस्सा आता  कि क्या उन्हें एक चिट्ठी भी लिखने की फुर्सत नहीं है ।  कई-कई दिन इंतजार में गुजर जाते थे और तब डाकिए से पूछना पड़ता था, काका अबकी मेरी चिट्ठी नहीं आई क्या? और अचानक डाकिया झोले से निकाल कर जब चिट्ठी देता तो फिर खुशी का ठिकाना नहीं रहता था। आंखों में खुशी के आंसू छल छला पड़ते थे और फिर वह चिट्ठी साजन या सजनी की होती तो बात ही कुछ अलग होती, पढ़ने का आनंद ही कुछ अलग होता, एक-एक शब्द इत्मिनान से कई-कई बार पढ़ा जाता और हर एक शब्द पर होठों की मुहर लगाई जाती, फिर सीने से लिपटाया जाता। उसके बाद उठती कलम और कागज ,खत का जवाब लिखने के लिए। प्रेमियों का तो अंदाज ही सबसे जुदा होता था, उनकी चिट्ठी ले जाने के लिए तो उनका डाकिया भी अलग यानी निजी होता था। और उनकी चिट्ठी के ऊपर लिखा होता था 'चला जा पत्र चमकते-चमकते, मेरे महबूब से कहना नमस्ते-नमस्ते' या फिर 'पढ़ने वाले पत्र छुपा के पढ़ना, तुझे कसम है मेरी जरा मुस्कुरा के पढ़ना, वह खत वाकई प्रेमी-प्रेमिका छुपा के पढ़ते थे, अपने महबूब की निशानी समझकर किताबों में छुपा कर रखते थे। जब प्रेमियों का बिछोह होता तो आशिकों की जुबां पर यह शायरी 'जवाबे खत नहीं आता लहू आंखों से जारी है, न जीते हैं न मरते हैं अजब किस्मत हमारी है'  मचलने लगती थी। कई-कई बार तो ऐसा भी होता था कि खत के सहारे ही सारी जिंदगी प्रेम अथवा दोस्ती चलती रहती थी दो दोस्त या प्रेमी कभी एक दूसरे की शक्ल से ताउम्र परिचित नहीं हो पाते थे किंतु विचारों का आदान-प्रदान खतों के जरिए ही होता था। खत पाने का या फिर खत भेजने का जो आनंद था वह जुबान से बयां कर पाना संभव ही नहीं है। 

जब किसी मां का बेटा या फिर सजनी का साजन देश की रक्षा के लिए सीमा पर लड़ने जाता था और वहां से जब चिट्ठी लिखता था,  वह दृश्य जब शाम गोधूलि के वक्त डाकिया चिट्ठी लेकर आता था। जब मोहल्ले वाले सुनते की फौजी की चिट्ठी आई है तो सभी उसका हाल पता जानने के लिए इकट्ठे हो जाते कि क्या लिखा है? कैसा है फौजी? फिर डाकिया बाबू उस चिट्ठी को खोलकर पढ़ता तो सबसे पहले ही लिखा होता 'पूजनीय माता-पिता को सादर चरण स्पर्श' उस वक्त माता-पिता की आंखें खुशी से भर जाती, सीना फूलकर गदगद हो जाता। तत्पश्चात तमाम बातें लिखी होती, फिर मोहल्ले में बच्चों से लेकर बूढ़ी ताई तक का हाल-चाल अगले जवाबी खत में लिखने के लिए लिखा होता। उस वक्त सभी मोहल्ले वाले खुशी से फूले नहीं समाते थे। और फिर खतों का सिलसिला न थमने की गति से चलता रहता था।

नई तकनीकी के विकास से जहां पर हालचाल जानने के लिए इंतजार नहीं करना पड़ता है, वहीं पर सम्मानजनक शब्दों का विलोपन होता चला गया है। खतों में जहाँ पुत्र अपने माता-पिता को 'पूजनीय सादर चरण स्पर्श'  व अपनी पत्नी को 'मेरी प्यारी प्राण प्रिया' इत्यादि शब्दों को प्यार के साथ लिखता था, उसकी  जगह अब सिर्फ नमस्ते और हाय-हेलो ने ग्रहण कर ली है। नई तकनीक ने वह प्यार, मोहब्बत, बेचैनी, बेकरारी, इंतजार सब का विलोपन कर दिया अब किसी को फुर्सत कहां है जो चिट्ठी लिखने वाला झंझट का काम करें। बेटा फौज में है तो माता-पिता से बात करने की आवश्यकता ही नहीं है, पत्नी के पास ही सारी जानकारियां पहुंच जाती हैं और फिर माता-पिता बहू से ही बेटे का हाल मालूम कर लेते हैं। भाई बहनों का प्यार भी चिट्ठी में बंद होता था, बहन के घर जब चिट्ठी भाई की पहुंचती तो वह फूले नहीं समाती थी।अब नई तकनीक ने वह भी रीति खत्म कर दी।  अब तो प्रेमी प्रेमिकाओं का रूठना  मनाना मोबाइलों के सहारे होता है। पहले जो बात लबों से नहीं हो पाती थी वह खतों के जरिए हो जाती थी, किंतु अब उसकी जगह एसएमएस यानी शॉर्ट मैसेज संदेश ने ले ली है। शॉर्ट होने के कारण उस पर दिल के हालात पूर्णतया बयां नहीं किये जा सकते। इसका परिणाम यह होता है कि शॉर्ट मैसेज संदेश के चक्कर में प्यार भी शॉर्ट होता चला गया  और एक दिन ऐसा भी आता है कि मोबाइल पर ही प्यार की आहूति चढ़ जाती है ।  नए सिम की तरह नया प्रेमी भी आ जाता है । रही डाकिया बाबू की बात तो वह सिर्फ सरकारी चिट्ठियां ढोते हैं जो किसी बैंक से कर्ज जमा करने हेतु भेजी जाती हैं या फिर किसी मोहकमे  में रिक्त पदों हेतु फार्म भरे जाते हैं, उनकी रजिस्ट्री रिटर्न इत्यादि ।  अब किसी को किसी की चिट्ठी का इंतजार नहीं होता है। अब तो बस इतना है कि कब किसकी घंटी बज जाए और जेब से निकलकर छोटा सा इंस्ट्रूमेंट किस समय कान से चिपक जाए और कब कोई भयानक दुर्घटना घटित हो जाए किसी को कुछ नहीं पता। इस छोटे से इंस्ट्रूमेंट ने जहां एक और लंबे इंतजार को खत्म करके फेस टू फेस बात करने जैसी सुविधा प्रदान की है वहीं पर वह खत पढ़ने का, लिखने का, सीने से छुपाने का आनंद खत्म कर दिया है। अब पत्नी अपने  जाते हुए पति से ये शायद कभी ना कहेगी कि 'जाते हो परदेस पिया, जाते ही खत लिखना।'
पता- गोला गोकर्णनाथ, लखीमपुर खीरी
उत्तर प्रदेश 2622701

Tuesday, July 20, 2021

आंगन की दीवारों से, 'नन्दी लाल'-रमाकांत चौधरी

पुस्तक समीक्षा

पुस्तक-आंगन की दीवारों से (ग़ज़ल संग्रह)
कवि-नंदी लाल
मोबाइल:9918879903
प्रकाशक-निष्ठा प्रकाशन गाजियाबाद
मूल्य-220/-
पेज संख्या- 176
समीक्षक-रमाकांत चौधरी
पता- गोला गोकरण नाथ, 
जनपद लखीमपुर खीरी
उ. प्र.। 
मोबाइल : 9415881883


विधा चाहे कहानी हो, व्यंग्य हो, कविता हो, गीत, गजल, छंद, रुबाई अथवा सवैया आदि। उसे  पढ़ते ही यदि पढ़ने की जिज्ञासा निरन्तर बढ़ती  जाए तो फिर उस रचनाकार की तारीफ में स्वयं ही तमाम विचार दिमाग में उपजने लगते हैं। ऐसे ही जनकवि नंदीलाल जी हैं जो कि देश के जाने-माने सुविख्यात कवि हैं जिन्हें गजल ,घनाक्षरी, छंद, सवैया, दोहा, शायरी लिखने में तो महारत हासिल है ही साथ ही साथ लोकगीत, आल्हा, नौटंकी आदि विलुप्त होती विधाओं को भी जीवित रखने का अद्भुत हुनर है। नंदी लाल जी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं, उनकी तमाम गजलों का चयन विश्व कविता कोश में हो चुका है। उनके तीन गजल संग्रह "जमूरे ऑफिस है", "मैंने कितना दर्द सहा है"तथा "आंगन की दीवारों से" प्रकाशित हो चुके हैं तथा कई गजल संग्रह प्रकाशन के इंतज़ार में हैं। उनका गजल संग्रह "आंगन की दीवारों से" मेरे हाथ में है जिसे मैंने पढ़ा तो यूं लगा गजल लिखना वाकई कोई नंदी लाल जी से सीखें। जनकवि नंदी लाल जी ने समाज में हो रही तमाम विसंगतियों, विद्रूपताओं को इस गजल संग्रह में अपनी गज़लों  माध्यम से उजागर किया है। जहां शुरुआत मां के प्यार से की है.. 
'दुनिया की सब नेमत झूठी लेकिन सच्ची होती मां। 
बेटे की दो सुंदर आंखें होती हीरा मोती मां।।'
वही अपने किस तरह छोड़ कर चले जाते हैं उनके शेर-
' थी बड़ी उम्मीद अपने ही बचा लेंगे मगर, 
छोड़कर हमको हमारे हाल पर जाने लगे।।
पढ़कर बखूबी समझा जा सकता है। 
अपनी ग़ज़ल के शेर -
'लूट हत्या और दुष्कर्मों की खबरें क्या पढ़े, 
रख दिया है आज का अखबार हमने मोड़कर।।
वर्तमान समय में मरी हुई इंसानियत को स्पष्ट रूप से लिख दिया है। समाज में जिस तरह से प्रत्येक कार्य को कराने के लिए दलालों की जरूरत होती है इस शेर में करारा प्रहार है यथा  -
 'सिर्फ दस्तखत बना दिया करता, 
काम सारे दलाल करता है।'
वहीं  'बीस भूखों को इकट्ठा देखकर, एक रोटी तोड़ कर डाली गई।'
 आगे देखिए..
 'बंद कमरे में सभा सरकार की होती रही, 
भूख से व्याकुल अभागिन द्वार पर रोती रही।।
 सरकारी तंत्र की अव्यवस्था की सच्चाई को उजागर करते हुए उनके बेहतरीन शेर हैं । इश्क़ पर भी उनकी लेखनी जोरदार तरीके से चली है उनका यथा..
 'आज कोई मचल गया जैसे। 
तीर आंखों से चल गया जैसे।'
आगे लिखतें है..
'समूचा फूल तो मिलना बड़ा मुश्किल है यादों का, 
अभी कुछ पाँखुरी किताबों में रखी होंगी।,
युवा दिलों की धड़कन बढ़ा देते हैं । 
तथा राजनीति में कैसे कैसे लोग शामिल हो रहे हैं  एक बानगी देखिए..
चार छ: लोगों के संग मोटर पर भोपू बांधकर, 
आ गए हैं बस्तियां वीरान करने के लिए।
आज वह सबके चहेते रहनुमा बनने चले, 
ले गई थी कल पुलिस चालान करने के लिए।।'
उनके इस शेर से स्पष्ट समझा जा सकता है। 
जब व्यक्ति भूख से परेशान होता है तो क्या-क्या नहीं करता यथा..
 'खेल करतब, लूट, हत्या, और हंगामा हुआ। 
एक रोटी के लिए क्या-क्या नहीं ड्रामा हुआ।।'
से सब कुछ साफ स्पष्ट हो जाता है। 
अपने देश की एकता अखंडता भाईचारा और प्यार कहां चला गया-
' राम और रहमान साथ में हंसते खेला करते थे, 
छीन ले गया कौन संस्कृत फिर अपने चौबारे से।'
इस शेर में बहुत ही खूबसूरत तरीके से प्रश्न उठाया गया है। उनकी कई गजलों में हास्य का पुट भी देखने को मिला यथा.. 
'मिलाता  किस तरह नजरें नजर से वहां भला मेरी, 
हटा चश्मा तो देखा आँख का तक्खा लगा जानू।
पेज नंबर 111 पर लिखा शेर-  'खता मुझसे अगर कोई हुई तो माफ कर देना/ तुम्हारी जिंदगी में अब न कोई दखल देंगे। 
  उक्त शेर प्यार में माफी  मांगने का सबक सिखाता है। संग्रह की गजल नं• 104 का शेर समय का महत्व बताता है -
'समय का मूल्य  जिसने आज तक समझा नहीं  कोई, 
समय के बीत जाने पर वही भी हाथ मिलते हैं।'
पेज नंबर 163 की ग़ज़ल 'फिजाओं में' का शेर -
'तुम्हारा जब कहे मन तब हमारे घर चले आना/ खुले हर पल रहेंगे यह किवाड़े द्वार के अपने' वाकई में आज के मतलबी दौर में।   
....जो अपनेपन का एहसास कराता है। कुल मिलाकर पूरा का पूरा गजल संग्रह में जहां वर्तमान अव्यवस्थाओं पर कवि की मार्मिक संवेदनाएं हैं वहीं भूत और भविष्य की गहरी मौलिक चिंतन और चेतना को स्वयं में समेटे हुए है, मेरा विश्वास है, जो भी पाठक इसे पढ़ना शुरू करेगा, तो वह शुरू से लेकर अंत तक बस पढ़ता ही चला जायेगा, निश्चित रूप से यह संग्रह वंदनीय सराहनीय और संग्रहणीय है। 
इति


Tuesday, June 15, 2021

भीमराव थे बड़े महान-रमाकान्त चौधरी

 बाल-कविता  

बना गए भारत का संविधान।

भीमराव  थे     बड़े     महान। 

 

दीनजनों   के   थे रखवाले । 

समता का पाठ पढ़ाने वाले। 

शोषित   पीड़ित   वंचित को

उनका अधिकार दिलाने वाले। 

 

करके गए सब का उत्थान। 

भीमराव  थे  बड़े     महान। 

 

खूब  किताबें  पढ़ते  थे   वो। 

कलम से केवल लड़ते थे वो।

झुकना  कभी    सीखा था

ना  ही  किसी से डरते थे वो। 

 

उनको जाने सकल जहान। 

भीमराव  थे  बड़े    महान। 

 

शिक्षा का अधिकार दिलाया। 

नारी  को  सम्मान    दिलाया। 

जाति-पाति का भेद मिटाकर

मिलजुलकर जीना सिखलाया। 

 

सब   मिल करो उन्हें प्रणाम। 

भीमराव  थे     बड़े   महान। 

रमाकान्त चौधरी





पता-गोला गोकर्णनाथ जिला-खीरी

Thursday, June 03, 2021

आजादी फिर मांग रहा है अपना हिंदुस्तान

 

रमाकान्त चौधरी

गैरों से तो बचा हुआ है अपना मुल्क महान।

 अपनों से पर लुटा जा रहा भारत का अभिमान ।

आओ मिलकर तोड़े हम सब जंग लगी जंजीरों को,

 आजादी फिर मांग रहा है अपना हिंदुस्तान।

 

भगत बोस बिस्मिल आजाद ने अपनी बलि चढ़ा दी।

 और देश के दीवानों ने हंसकर जान लुटा दी।

 उसी देश में आज खो रहा वीरों का बलिदान ।

आजादी फिर मांग रहा है अपना हिंदुस्तान।

 

 जिनको आया देश की खातिर केवल जान लुटाना।

 कुर्बानी उनकी भूल चुका है यह खुदगर्ज जमाना।

 आज झूठ को ताज बंधा है सत्य हुआ बदनाम।

 आजादी फिर मांग रहा है अपना हिंदुस्तान।

 

 याद करो झांसी की रानी जिसने लोहा मनवाया ।

उसकी हिम्मत देखके यारों हर  दुश्मन था थर्राया ।

उसी देश में आज हो रहा नारी का अपमान।

 आजादी फिर मांग रहा है अपना हिंदुस्तान।

 

 कभी जहां पर मंदिर मस्जिद और शिवाले होते थे,

 आज वहां पर रिश्वतखोरी और घोटाले होते हैं।

 बदल गए हैं लोग यहां के बदल गया ईमान ।

आजादी फिर मांग रहा है अपना हिंदुस्तान।

 

 आज हो रहा कुर्सी खातिर गली-गली में दंगा ।

मानवता को भूलके मानव नाच दिखाता नंगा ।

भूल गया संस्कृति अपनी भूल गया संविधान।

 आजादी फिर मांग रहा है अपना हिंदुस्तान ।

 

शासन सत्ता हाथ में उनके जिनका कोई ईमान नहीं ।

कुछ भी हो सकते हैं लेकिन हो सकते इंसान नहीं ।

जो गली-गली में बेच रहे हैं टुकड़ों में ईमान।

 आजादी फिर मांग रहा है अपना हिंदुस्तान ।

 

अब तो सबक सिखाना होगा छुपे हुए गद्दारों को ।

मारके तुम्हें भगाना होगा देश के इन हत्यारों को।

 और यहां पर लाना होगा फिर से वही सम्मान ।

आजादी फिर मांग रहा है अपना हिंदुस्तान ।

 

बच्चे खेले खेल जहां पर गुड्डे गुड़ियों वाला ।

उनके मन में डर न कहीं हो हब्सी भेड़ियों वाला।

 और शान से बोल सके वह मेरा देश महान ।

आजादी फिर मांग रहा है अपना हिंदुस्तान ।

 

गैरों से तो बचा हुआ है अपना मुल्क महान ।

अपनों से पर लुटा जा रहा भारत का अभिमान।

आओ मिलकर तोड़े हम सब जंग लगी जंजीरों को,

आजादी फिर मांग रहा है अपना हिंदुस्तान।

 


ग्राम - झाऊपुर, लंदनपुर ग्रंट,

गोला गोकर्णनाथ, लखीमपुर खीरी।

उत्तर प्रदेश।

Mob. No.- 9415881883

Gmail- rkchaudhary2012@gmail.com

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पढ़िये आज की रचना

चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

(फिल्म समीक्षा)      एक मां के लिए उसका बेटा चाहे जैसा हो वह राजा बेटा ही होता है, बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिन्हें हम अपने विचार...

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