पते की बात, एक विमर्श
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एन.एल.वर्मा |
ऐसी स्थिति में यूपी का कुर्मी समाज चाहते हुए अपना विश्वसनीय और हितैषी राजनैतिक नेतृत्व नही तलाश पा रहा है और राजनैतिक विकल्प की तलाश में वह राजनीति की अंतहीन अंधेरी सुरंग में फंसता हुआ नज़र आता है।मेरे विचार से प्रदेश के कुर्मी समाज को अपना दल के उस धड़े के साथ खड़ा होना चाहिये जिसका राजनैतिक गठबंधन ऐसे दल के साथ हो जिसके सामाजिक सरोकार ओबीसी/एससी/एसटी से व्यापक संदर्भों में मिलते-जुलते हों जिससे समाज को निर्णय लेने में राजनैतिक सहजता और सुविधा बनी रहे।
प्रदेश व केंद्र सरकार में
भाजपा की सहयोगी अनुप्रिया पटेल की अगुवाई वाले अपना दल (एस) ने विधान परिषद में
खाली हो रही सरकार की मनोनीत क्षेत्र के चार (एमएलसी सीटें) सदस्यों में से एक
सदस्य पद देने की मांग की है। अपना दल (एस) ने प्रदेश भाजपा के शीर्ष नेताओं के
सामने अपनी यह मंशा जाहिर कर दी है। पार्टी सारे विवादों को किनारे रखकर स्व.
सोनेलाल पटेल की पत्नी कृष्णा पटेल को एमएलसी बनाना चाहती है, ताकि विधानसभा चुनाव में पार्टी
परिवार की पूरी एकता के साथ जनता के बीच नजर आए।
अनुप्रिया पटेल की पार्टी के एक
वरिष्ठ नेता ने भाजपा के शीर्ष नेताओं को यह समझाने का प्रयास किया है कि इसका लाभ
विधान सभा चुनाव के दौरान राज्य में एनडीए के सभी प्रत्याशियों को मिलेगा। कृष्णा
पटेल के साथ आ जाने से विपक्षियों को चुनाव में पटेल समाज को दिग्भ्रमित करने का
मौक़ा भी नहीं मिलेगा। मिली जानकारी के मुताबिक कृष्णा पटेल के नाम पर सहमति न
बनने की स्थिति में अपना दल (एस) स्व. डा. सोनेलाल पटेल के राजनैतिक सहयोगी रहे
किसी पुराने कुर्मी नेता को विधान परिषद में भेजना चाहेगी। विधान परिषद में सपा के
चार मनोनीत सदस्यों का कार्यकाल
पांच जुलाई को समाप्त हो रहा है।यह खबर एक दिन पहले प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया
में थी।
उपर्युक्त खबर का खंडन करते हुए कृष्णा पटेल ने मीडिया से
मुखातिब होते हुए कहा है कि बेटी अनुप्रिया ने इस संबंध में मुझसे कोई बात नही की
है। इस खंडन से दो धड़ों में फंसे अपना दल की राजनीति में उलझे परिवार को फिर से एक
करने की अनुप्रिया पटेल की कोशिशें (खबरें) आसानी से परवान चढ़ती नज़र नहीं आ रही
हैं।अपना दल (कमेरावादी) की अध्यक्ष और सांसद अनुप्रिया पटेल की मां ने कहा है कि
ये सब बातें बेवज़ह हो रही हैं।उन्होंने स्पष्ट किया है कि उन्हें एमएलसी बनाने के
मुद्दे पर उनकी बेटी अनुप्रिया या उनके नेतृत्व वाले अपना दल के किसी भी जिम्मेदार
व्यक्ति ने मुझसे कोई बात नही की है।उन्होंने कहा कि जब चुनाव निकट आते हैं तो इस
तरह की बातें चर्चा में लाकर फैलाई जाती हैं जिससे समाज को दिग्भ्रमित किया जा
सके।उन्होंने यह भी कहा है कि इस तरह का कोई प्रस्ताव लाने से पूर्व एक साथ बैठकर
बात की जाती है,ऐसी कोई चर्चा उनसे या उनके दल
के किसी जिम्मेदार व्यक्ति से नही हुई है।उन्होंने कहा कि वह इस समय विधानसभा
चुनाव की तैयारियों में जुटी हैं।चुनाव के लिए जिस दल से बेहतर और सम्मानजनक
गठबंधन होने की संभावना दिखेगी,उससे
ही गठबंधन किया जाएगा और अपना दल ( कमेरावादी) पूरी मजबूती के साथ डॉ. सोने लाल
पटेल के राजनैतिक सपने को साकार करने के संकल्प के साथ चुनाव में उतरेगी।
विधान
परिषद की सीट पर अनुप्रिया पटेल और कृष्णा पटेल के इन परस्पर विरोधी
वक्तव्य/बयानबाज़ी का सामाजिक और राजनैतिक निहितार्थ/संदेश क्या हो सकता है?डॉ. सोने लाल पटेल द्वारा
स्थापित अपना दल में आस्था और उम्मीद रखने वाला कुर्मी समाज दो धड़ों में बंटे अपना
दल की पारिवारिक और राजनैतिक रस्साकशी, फूट और परस्पर विरोधी बयानबाज़ी से राजनैतिक रूप से
असमंजस और अनिर्णय की स्थिति में दिखाई देता है।आरएसएस नियंत्रित और ओबीसी विशेषकर
आरक्षण विरोधी बीजेपी सरकार की नीतियों और रीतियों से कुर्मी समाज का शिक्षित और
जागरूक वर्ग पूरी तरह नाखुश और आक्रोशित नज़र आता है और अपना दल का एक धड़ा उसी
बीजेपी सरकार का लंबे अरसे से सहयोगी बना हुआ है। पूंजीवाद परस्त बीजेपी सरकार का
ओबीसी,एससी और एसटी जिसका बहुत बड़ा
भाग जो खेत-खलिहान पर निर्भर है उसके सामाजिक-सांस्कृतिक- आर्थिक और शैक्षणिक
सरोकारों से दूर- दूर तक सम्बन्ध नही है या यह कहना भी अनुचित नही होगा कि बीजेपी
सरकार इन वर्गों के हितों के विरुद्ध कार्य करती नज़र आती है।यूपी सरकार किसानों के
गन्ना मूल्य के भुगतान/बढ़ोतरी और गेहूं खरीद के मसले पर पूरी तरह लचर, असहाय और विफल सिद्ध हुई है।
यहां यह उल्लेख करना जरूरी हो
जाता है कि सतना,मध्यप्रदेश से लगातार चार बार
से सांसद श्री गणेश सिंह पटेल को ओबीसी कल्याण की पार्लियामेंट कमेटी के चेयरमैन
के पद पर दुबारा नियुक्ति इसलिए नही की गई क्योंकि उन्होंने पद पर रहते हुए ओबीसी
के लिए बनी "क्रीमी लेयर" की आय सीमा को आठ लाख रुपये से बढ़ाकर पन्द्रह
लाख रुपये (कृषि आय और वेतन को न शामिल कर) करने की सिफारिश मोदी सरकार से की
थी।जब सरकार ने पटेल जी की सिफारिशों को तवज्जो न देकर एक सेवानिवृत्त भ्रष्ट
आईएएस अफसर पं. बीके शर्मा की अध्यक्षता में बनाई गई डीओपीटी की कमेटी जो
पार्लियामेंट कमेटी के सामने बहुत छोटी और नगण्य होती है, की बारह लाख रुपए (कृषि आय और
वेतन को शामिल कर ) की सिफारिश को मोदी सरकार मान लेती है तब पटेल जी ने संसद के
सभी पार्टियों के ओबीसी सांसदों को पत्र लिखकर इस सम्बंध में ट्वीट या पत्र के
माध्यम से मोदी सरकार पर दबाव बनाने के लिए ओबीसी के व्यापक हित मे आग्रह किया
था।पटेल जी के इस पत्र के सिलसिले में एनडीए में शामिल किसी दल के ओबीसी सांसद ने
पत्र लिखना तो दूर संसद में एक शब्द तक बोलने की हिम्मत नहीं जुटा सका था। श्री
पटेल जी के कार्यकाल समाप्त होने के लगभग सात महीने बाद उसी अध्यक्ष पद पर सीतापुर
से सांसद श्री राजेश वर्मा को मनोनीत किया गया है।पटेल जी की सिफारिशों को न मानने
से ओबीसी के बहुत से बच्चे सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण की
परिधि से बाहर कर दिए गए हैं। मोदी नेतृव बीजेपी सरकार की कथनी और करनी में कोई
तालमेल नही है और सरकार ने जितने निर्णय लिए हैं उनसे आम आदमी ही परेशान हुआ है।
काला धन के नाम पर नोटबन्दी,जीएसटी, कृषि कानून,विदेशों में जमा काला धन वापस
लाने और जनता में बांटने के अतिरंजित वक्तव्यों,भ्रष्टाचार और निजीकरण आदि पर बीजेपी सरकार के
निर्णयों का अवलोकन-आकलन करने का वक्त आ गया है।
ऐसी
स्थिति में यूपी का कुर्मी समाज चाहते हुए अपना विश्वसनीय और हितैषी राजनैतिक
नेतृत्व नही तलाश पा रहा है और राजनैतिक विकल्प की तलाश में वह राजनीति की अंतहीन
अंधेरी सुरंग में फंसता हुआ नज़र आता है।मेरे विचार से प्रदेश के कुर्मी समाज को
अपना दल के उस धड़े के साथ खड़ा होना चाहिये जिसका राजनैतिक गठबंधन ऐसे दल के साथ हो
जिसके सामाजिक सरोकार ओबीसी/एससी/एसटी से व्यापक संदर्भों में मिलते-जुलते हों
जिससे समाज को निर्णय लेने में राजनैतिक सहजता और सुविधा बनी रहे।सामाजिक और
राजनीतिक महानुभावों से विनम्रता और आदर के साथ आग्रह करना चाहता हूं कि व्यक्तिगत
सामाजिक/राजनैतिक लाभ को दरकिनार कर मेरे उक्त विचार को निष्पक्ष और निरपेक्ष भाव
से स्वीकार कर उस पर चिंतन और मनन करें।
नन्द लाल वर्मा (एसोसिएट प्रोफेसर)