लघु चलचित्र समीक्षा
'पापा पिस्तौल ला दो' कुल सात मिनट छ: सेकेंड की यह लघु फिल्म पिता और पुत्री के रिश्तों की हृदय स्पर्शी प्रेरणादायक कहानी है, जो आजकल बेहद चर्चा का विषय बनी हुई है, माधव (आर. चंद्रा) अपनी पत्नी के स्वर्गवास के बाद तीन बेटियों को गरीबी में पाल-पोस रहा है। एक दिन शाम होने को, माधव बाज़ार जाने को तैयार हो रहा है। मगर उसकी बड़ी बेटी निम्मी (ऋचा राजपूत) अभी तक घर नहीं आई है। इस बात को लेकर माधव थोड़ा चिंतित है।
अपनी साइकिल के पास बाजार जाने के लिए तैयार है, वह अपनी दोनों बेटियों पिहू और भूमि से बाज़ार से क्या लाना है, पूछता है, तभी माधव की बड़ी बेटी निम्मी स्कूल से वापस आ जाती है। मगर वो बेहद गुस्से में हैं, और आते ही, अपने पापा से पिस्तौल लाने को कहती है। माधव पहले तो भयभीत होता है। मगर निम्मी से पिस्तौल मांगने की वजह पूछता है। तब निम्मी समाज के कुछ अराजक तत्वों से परेशान होने की बात करती है, जिससे माधव निम्मी को आत्मरक्षा के लिए एक एकेडमी ले जाता। वहाँ निम्मी ताईकांडो की ट्रेनिंग लेती है,और फिर एक दिन उन बदतमीज शोहदों को सबक सिखाती है जो उसे रोज परेशान करते रहते थे। ऐसे निम्मी की ज़िन्दगी ही बदल जाती है, एक कमजोर लड़की ताकतवर बन जाती है। माधव की सोच समाज को एक नई सीख देती है। दिशा देती है। कम समय में बड़ी ही स्पष्टता से कहानी बहुत कुछ कह जाती है।
फिल्म के कई दृश्य सिहरन पैदा करते हैं। केंद्रीय भूमिका में ऋचा राजपूत ने अपने अभिनय से सबका मन मोह लिया है।
पिता की भूमिका में आर. चंद्रा खूब जमे हैं। कुछ और सहायक कलाकारों ने लघु फिल्म को अपनी मेहनत लगन से अच्छी बनाने का पूरा प्रयास किया है। फिल्म के निर्माता/ निर्देशक हैं शिव सिंह सागर, फिल्म की कहानी चर्चित लघुकथाकार सुरेश सौरभ ने लिखी है। कैमरे पर पिंकू यादव ने उतारा है। इस फिल्म को आप लोग यूट्यूब पर अर्पिता फिल्म्स इंटरटेनमेंट पर देख सकते हैं।
रमेश मोहन शुक्ल
संपादक, संभावित संग्राम फतेहपुर