![]() |
| रिंकी सिद्धार्थ |
साहित्य
- जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
- लखीमपुर-खीरी उ०प्र०
Sunday, July 11, 2021
मेरी अजीब किस्मत, -रिंकी सिद्धार्थ
Monday, July 05, 2021
मेरी अजीब किस्मत-रिंकी सिद्धार्थ
समाज को आईना दिखाती एक लड़की के जीवन के संघर्षों की सच्ची कहानी
![]() |
| गूगल से साभार |
जब उसके माता पिता ने गाँव छोड़ कर शहर में रहने का फैसला लिया, गांव में सारा परिवार साथ रहता था। अतः मां बाप चाहते हुये भी अपनी बेटियों के साथ ज्यादा बुरा व्यवहार नहीं कर पाते थे। बाकी परिवार वाले बेटियों को बचा लेता थे उनके जुल्म से. पर शहर आने पर माता पिता का व्यवहार बेटियों के प्रति और खराब होता चला गया गाँव में चैन से खेलने वाली लड़कियों को घर के काम में जुतना पड़ा। उन पति पत्नी के पास एक बहाना था क्योंकि वो दोनों पति पत्नी सरकारी नौकरी करते थे तो जब कभी कोई उन्हें बोलता आप छोटी बच्चीयों से इतना काम क्यों लेती है तो वो बोल देती मैं नौकरी करती हूं तो मुझे लड़कियों की मदद लेनी पड़ती हैं और लड़कीयां अगर उनकी बात न माने घर के काम न करके पढना चाहे तो वो लड़कीयों को चिल्लाते और मारते थे जब कोई पडोसी उनसे पूछता क्यों डाँट मार रही हैं लड़की को तो वो बोल देते हमारी बात नहीं मानती है इसलिए जबकि उनकी बड़ी बेटी और छोटी बेटी के बीच में एक बेटा था उससे कोई काम नहीं कहती करने को वो पढाई भी नहीं करता था सारा दिन वो सिर्फ टीवी देखता और दोस्तों के साथ घूमता फिर भी वो अपने बेटे को कभी डांटती भी नहीं थी पति कुछ बोले तो उसे भी रोक लेती लड़का है हमारे बुढ़ापे का सहारा है इसको कुछ मत बोलो. सुधा रुपवती और पैसा कमाने वाली स्त्री थी और रुप और गर्व में चोली-दामन का नाता है।
वह
अपने हाथों से कोई काम न करती।घर का सारा काम बेटियों से कराना चाहती।पिता की
आँखें कुछ ऐसी फिरीं कि उसे अब बेटीयों में सब बुराइयाँ-ही- बुराइयाँ नजर आतीं थी
बेटों में नहीं । सुधा की बातों को वह प्राचीन मर्यादानुसार आँखें बंद करके मान
लेता था। बेटीयों की शिकायतों की जरा परवाह न करता। नतीजा यह हुआ कि बेटियों ने
शिकायत करना ही छोड़ दिया। किसके सामने रोये? जब मां बाप ही
गलत करते हैं , अब कुछ लोगों को छोड़ कर लगभग सारे लोग ही जैसे
उसके दुश्मन बन गये। बड़ी जिद्दी लड़कीयां है,सुधा को तो कुछ
समझती ही नहीं; बेचारी उनका दुलार करती है, खिलाती-पिलाती
है यह उसी का फल है। दूसरी औरत होती, तो निबाह न होता। वह तो कहो, सुधा
इतनी सीधी-सादी है कि निबाह हो जाता है। सबल की शिकायतें सब सुनते हैं, निर्बल
की फरियाद भी कोई नहीं सुनता! बेटियों का हृदय माँ बाप की ओर से दिन-दिन फटता रहा
बेटीयां माता पिता के जुल्म सहती रही सिर्फ इस डर में कि जब घर के लोग इतना बुरा
व्यवहार करते हैं तो बाहर के लोग कैसा व्यवहार करेंगें उनके साथ और वो अगर घर से
भाग कर घर वालों के जुल्मों से बच कर जाना भी चाहे तो जाये तो जाये कहां जहां उनके
साथ बुरा न हो कोई ऐसी सुरक्षित जगह नजर न आती उन्हें जहां वो रह सके जुल्मों से
बच सके इसलिए उन्होंने इतने बुरे माता पिता का मिलना अपने प्रारब्ध के बुरे कर्मो
का फल मान लिया और वैसे ही घरवालों के अत्याचार सह कर जीवन व्यतीत करती रही!
![]() |
| रिंकी सिद्धार्थ |
पता-बनारस उत्तर प्रदेश
पढ़िये आज की रचना
शेर का परिवार-अखिलेश कुमार अरुण
व्यंग्य (दिनांक ११ सितम्बर २०२५ को मध्यप्रदेश से प्रकाशित इंदौर समाचार पत्र पृष्ठ संख्या-१०) अखिलेश कुमार 'अरुण' ग्राम- हज़...
सबसे ज्यादा जो पढ़े गये, आप भी पढ़ें.
-
अजय बोकिल विचारणीय स्थिति है। मोदी सरकार सोशल मीडिया खासकर ट्विटर जैसी सोशल साइट्स पर लगाम लगाने की कोशिश कर रही है, वही सत्तारूढ़ भाजपा मे...
-
नीरजा विष्णु 'नीरू' कविता नन्हें पंखों से नापेगी यह पूरा आकाश चिरैया नहीं सुनेगी किसी बाज की अब कोई बकवास चिरैया।। उसको है मालूम...
-
अजय बोकिल वरिष्ठ संपादक, दैनिक सुबह सवेरे म०प्र० सार राहुल की यात्रा अभी भावुकता के दौर में है। असली चुनौतियां तो उसके बाद शुरू होंगी। राह...
-
साहित्यिक आमंत्रण साहित्यकार समाज का सजग प्रहरी होता है। समय की धारा को अपनी लेखनी से लिपबिद्ध करता चले , यह उसका दायित्व भी होता है। दरबार...
-
राजनैतिक चर्चा अजय बोकिल किसी अखबार की मौत पर विदाई हो तो ऐसी, जैसी कि हांगकांग के अखबार ‘एप्पल डेली’ को उसके चाहने वालों ने दी। इस अखब...
-
अजय बोकिल लगता है मशहूर फिल्म अभिनेता, निर्माता आमिर खान और उनकी दूसरी पत्नी किरण राव का तलाक देश में राजनीतिक जुमला भी बनता जा रहा है। हाल...
-
संविधान दिवस की पूर्व संध्या पर N.L.Verma (Associate professor) किसी भी देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था एक ऐसी खूबसूरत और सर्वोत्तम राज्य व...
-
अम्बेडकरवाद एक विश्लेषण नन्दलाल वर्मा (एसोसिएट प्रोफेसर) युवराजदत्त महाविद्यालय,लखीमपुर-खीरी आज के दौर में जैसी राजनीतिक परिस्थिति...
-
(लघुकथा) -सुरेश सौरभ निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी पिन-262701 मो-7376236066 लाठी के पीछे का सिरा वह अंधा बूढ़ा पकड़ता, आगे का, वह काली ...



