साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०
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Wednesday, March 30, 2022

प्यारी सी तितली रानी-विकास कुमार

   बाल-कविता  
विकास कुमार

आई आई नई नवेली, रंग बिरंगे तितली रानी।
देखने में लगती है बहुत अच्छी और मस्तानी।।

देखने से लगे छोटी, लेकिन इसकी बड़ी कहानी।
जितनी सीधी लगती है, कही उससे ज्यादा शैतानी।।

इसके है छोटे–छोटे से बाल–बच्चे अच्छे दिवाने।
कोई इसकी चाल–चलन को भी नही पहचाने।।

कोई बोले तितली रानी, कोई बोले पंख उड़ान।
इसमे ओ जादू है जिससे भटकाये बच्चो का ध्यान।।

रंग बिरंगे पंख है मेरे, जिससे मैं समझाना चाहती हूं।
एसे ही जिवन के सुख दुख है जिसे मैं बताना चाहती हूं।।

उड़ तुम भी सकते हो मानव, जोर ताकत तुम लगाओ।
अपने इस हौसले को, मेरी तरह सब को तुम दिखाओ।।

               
दाऊदनगर, औरंगाबाद  बिहार

Thursday, June 24, 2021

धन-रमा कनौजिया

साहित्य के नवांकुर

रमा कनौजिया
इक वस्तु जिसे कहते सब धन

है इसके लिए कुछ बदले मन ।

न स्थिर रहने वाला, गति करता है

फिर क्यों? मनुस ईमान भी धरता है।।

 

हैं चर्चे इसके जगत व्यहार में

हर कोई इसको जाने अपना माने,

क्या बच्चे, क्या बूढ़े और जवान

न मिले तो बन जाते हैं हैवान।।

 

माना कि है जीवन में जरुरी,

किन्तु मनुज, आधार तो नहीं

संतोष पर असंतोष की जीत को,

अपने पर हावी होने तो न दो।।

 

चाहे काली हो या गोरी सूरत

है सबको ही इसकी  जरूरत।

पापी से लेकर धर्मात्मा तक

जताते, सब अपना अपना हक ।।

 

बावली हुई है रे दुनिया सारी

दुश्मन हो गई लोगों की यारी।

मानव की सोच समंदर में

भाव हैं इसके अपने कलंदर के  ।।

 

ग्राम व पोस्ट- गुदरिया

जिला - लखीमपुर खीरी

जाड़ा-अक्षत अरविन्द

नवांकुर नन्हे-मुन्हे कवि

आया जाड़ा आया जाड़ा,

पढ़ने लगे हैं दाँत पहाड़ा।

हवा चल रही ठंडी-ठंडी,

बंद करो अब खुले किवाड़ा।

सूरज कोहरे से डर जाता,

गर्मी ने भी पल्ला झाड़ा।

दादी हलुआ दो गाजर का,

शकरकंद दो और सिंघाड़ा।

पड़े रहे  बिस्तर में हरदम,

जाड़े ने हर खेल बिगाड़ा।

 

अक्षत अरविन्द

कक्षा-5

श्री राजेन्द्र गिरि मेमोरियल एकेडमी गोला गोकर्ण नाथ-खीरी

 पता-नन्दी लाल निराशहनुमान मंदिर के पीछे

लखीमपुर रोड गोला गोकर्णनाथ-खीरी

Wednesday, June 16, 2021

किसान-अल्का गुप्ता

सच्चे नायक हैं  
करते तनिक आराम नहीं
भविष्य आश्रित है जिनपर
देवदूत हैं किसान वही.

करता परिश्रम 
हर मौसम की ढिठाई में 
जो भूमिपुत्र किंचित् सी कमाई में 
क्या आवश्यक है नहीं संशोधन? 
नये सत्ता की अगुवाई में.
पता-लखीमपुर(खीरी), उ०प्र०

Tuesday, June 15, 2021

ये जिन्दगी, तूं हौसला दे जरा-प्रीती

साहित्य के नवांकुर

प्रीती

मेरी खामोशी के इस पहलू में,

ये जिन्दगी तूं साथ दे जरा।

इन तानों कि बेड़ियों से,

हर रोज गुजरती हूँ यहां-

होता है खामोसी का मनहूस पल,

ये जिन्दगी, तूं हौसला दे जरा ।

ख्वाहिशें है मेरे में, कुछ कर गुजरने की,

मैं हिम्मत हारी हूं न हारूंगी-

क्योंकि तुझमें मैं हूं, मुझमें तूं

ये जिन्दगी, तूं हौसला दे जरा ।

तुझसे मैं, शिकायत करूँ क्या?

हर रोज गिराकर सम्भालती  है,

मंजिल तक जाने की जिद में-

मैं गिरकर उठती हूँ, बस-

ये जिन्दगी, तूं हौसला दे जरा ।

इन कंटक भरे राहों पर-

मैंने खुद को अकेला पाया है,

पर साथ तेरा जो था-

गिरना, उठना फिर चलना,

तुमसे ही तो सीखा है-

ये जिन्दगी, तूं हौसला दे जरा ।

 पता-ग्राम तिवारीपुर पोस्ट अमसिन

जिला-फैजाबाद (अयोध्या), उ०प्र०

Wednesday, June 09, 2021

खौफ़जदा हूँ मैं-राजरानी

             साहित्य के नवांकुर            

राजरानी
साहित्य की दुनिया में यह आपकी पहली रचना है, उज्जवल भविष्य की मंगलकामनाएं -अस्मिता ब्लॉग/पेज

 ये जिंदगी ना रूठ यूँ, तूं धारा है, तो मैं किनारा

ऐसे छोड़ के ना जा तूं, नदी में नाव बिन पतवारा।

 

तेरा जो बचपन मेरा था, मेरा बचपन तेरा है,

राहें भले अनेक थी किन्तु मंजिल मेरी एक थी

बचपन की रीत याद कर साथ-साथ चल जरा

ये जिंदगी ना रूठ यूँ, तूं धारा है, तो मैं किनारा।

 

दुनिया के रीति-नीति में, हमें भी साथ चलना है

इन कंकड़ो के डरकर मुझे राह न बदलना है

पीछे है तेरे कोई उसे भी साथ लेके चल जरा

ये जिंदगी ना रूठ यूँ, तूं धारा है, तो मैं किनारा।

 

जो अपने थे वे पराये हैं, तूं परायों में अपना

तूं हकीकत है आज भी मेरी, मैं तेरी कल्पना

खौफ़जदा हूँ मैं, इन दरिंदों से मुझे बचा जरा

ये जिंदगी ना रूठ यूँ, तूं धारा है, तो मैं किनारा।

 

पता-ग्राम-हजरतपुर, लखीमपुर खीरी उ०प्र०

 

कोई हो जो साथ दे- अल्का गुप्ता

  साहित्य के नवांकुर 

अल्का गुप्ता

हर किस्सा जिंदगानी का अजीब सा  है

क्यूं कहता है कोई? तूं खुशनसीब सा है

ग़म में मुस्काना भी एक तरकीब सा है

कोई हो जो साथ दे!

 

उल्फत में, हाथ-स्पर्श  वो करीब सा है

दर्द अश्कों का मेरे यार  तरतीब सा है

ग़म में मुस्काना भी एक तरकीब सा है

कोई हो जो साथ दे!

 

नावाकिफ, अपना बेशक वह गरीब सा है

तन्हा नहीं दौर-ए-आज वह अदीब सा है

तकलीफ में साथ दे, दिल-ए-करीब सा है

कोई हो जो साथ दे!

पता-लखीमपुर खीरी उ०प्र०

Monday, June 07, 2021

पर्यावरण बचाना है-साधना रस्तोगी पंखु

साधना रस्तोगी पंखु

साहित्य के नवांकुर     
पर्यावरण दिवस अपना कर

पर्यावरण बचाना है ।

आओ करें संकल्प कि हमको

पौधा एक लगाना है ।।

 

अपनी संस्कृति और सभ्यता

का परिचय देना होगा ।

पर्यावरण को संरक्षित करने

का प्रण लेना होगा ।।

 

पौधों  को  नुकसान  न  पहुचे

सबको ये समझाना है ।

आओ करें संकल्प कि हमको

पौधा एक लगाना है ।।

 

वन उपवन के पेड़ों को पौधों

को मित्र बनाएं हम ।

खुशियां उनसे शेयर करें संबंध

विचित्र बनाएं हम ।।

 

पूज्य है जो श्रद्धेय है जो उसको

सादर अपनाना है ।

आओ करें संकल्प कि हमको

पौधा एक लगाना है ।।

 

यही  हैं  माता पिता यही हैं

यही बंधु हैं सखा यही ।

इन  पेड़ों  जैसा   हित कारी

दूजा कोई दिखा नही ।।

 

यही  साधना है  बाकी  बाकी

कर्तव्य  निभाना  है ।

आओ करें संकल्प कि हमको

पौधा एक लगाना है ।।

पता-लखीमपुर खीरी उ०प्र०

Sunday, June 06, 2021

विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष- लक्ष्मी पाण्डेय

लक्ष्मी पांडे

साहित्य के नवांकुर

काटे हैं हमने पेड़ भी  दीवान के लिए ।

छोड़े नही पहाड़ भी , मकान के लिए ।।

 

वसुधा के साथ खेल इतना ठीक नहीं है ।

खतरा है ये बहुत बड़ा इंसान के लिए ।।

 

सांसों के लिए सांस, जो ले रहे हैं हम ।

सांस नहीं जहर है, अपनी जान के लिए ।।

 

पीने के योग्य पानी बहुत ही, कम है दोस्तों ।

रखना है सुरक्षित ये जल, जहान के लिए ।।

 

अब पैलोथिन भी बन गई है शत्रु देखिए ।

कोई विकल्प ढूंढिए भावी-भविष्य के लिए ।।

 

अब लक्ष्य घर की लक्ष्मी को साधना होगा ।

इंसानियत के इस धर्म और ईमान के लिए ।।

पता-नहर रोड निकट बुद्ध बिहार लखीमपुर

Monday, May 31, 2021

ये कैसी हवा चली-जसवंत कुमार

साहित्य के नवांकुर 

उज्ज्वल भविष्य की कामनाओं के साथ पहली कविता प्रकाशित है.

ये कैसी हवा चली, सुनसान हो गया-

सारा शहर और गली ।

कुछ तो बात है इस राज में,

जो उम्मीद की हमने वह व्यवस्था न मिली ।।

पानी बिन सूख गए-

खिलने से पहले, कितने फूल और कली ।

जो लोगों की जान बचाते थे,

वही दे रहे हैं- इंसानों की बली ।।

कोई दवी -देवताओं से उम्मीद लगाये बैठा है,

तो कोई कहता है-ठीक कर देगा मेरा अली ।

ये कैसी हवा चली  सुनसान हो गया,

सारा शहर और गली ।



जसवन्त कुमार (बी०ए० द्वितीय वर्ष)

ग्राम-सरवा पोस्ट-पिपरागूम

जिला-लखीमपुर

पढ़िये आज की रचना

चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

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