कविता
कपिलेश प्रसाद |
न श्याम रखूँगा
न मुरारी ,
न त्रिपुरारी
न ब्रह्म , न इन्द्रासन
न राधा , न सीता
न गौरी , न गणेश
न महादेवा
न अंजनिपुत्र हनुमान रखूँगा ,
तुम्हारे इन सम्बोधनों से पृथक
तुम्हारे मिथकों से दूर
भला हो
अपनी संतान को मैं तो
बेनाम रखूँगा ।
संस्कृति की कुछ धरोहरें
हैं शेष हमारे पास भी ...
प्रकृत्ति की नेमत हैं हम
नाम से विकृत नहीं कर पाओगे
हम स्वयं में बृहद ,
नहीं कपोल-कल्पित
कर्मेक्षा नामधारी हैं ।
मंगरू - मँगला , बुधना -बुधनी
सोमारू और शनिचरा
मराछो और एतवारी ,
लालो और गुलबिया
क्या-क्या नहीं हँकाया हमको ... !
हरि था तुमको अति पावन ,
और वह हो गया हरिया ?
साँवले को रचा श्यामल
और काला हो गया कलुआ ?
राम न तुमको भाया उसका
कह दिया उसको रमुआ ?
राम नाम एक सत्य तुम्हारा ... ?
शेष अधम सब नीच पुकारा !
दुत्कार लिया , सो दुत्कार लिया,
खबरदार जो पुन: दुत्कारा ! पता-बोकारो झारखंड