![]() |
प्रीती |
मेरी खामोशी के इस पहलू में,
ये जिन्दगी तूं साथ दे जरा।
इन तानों कि बेड़ियों से,
हर रोज गुजरती हूँ यहां-
होता है खामोसी का मनहूस पल,
ये जिन्दगी, तूं हौसला दे जरा ।
ख्वाहिशें है मेरे में, कुछ कर गुजरने की,
मैं हिम्मत हारी हूं न हारूंगी-
क्योंकि तुझमें मैं हूं, मुझमें तूं
ये जिन्दगी, तूं हौसला दे जरा ।
तुझसे मैं, शिकायत करूँ क्या?
हर रोज गिराकर सम्भालती है,
मंजिल तक जाने की जिद में-
मैं गिरकर उठती हूँ, बस-
ये जिन्दगी, तूं हौसला दे जरा ।
इन कंटक भरे राहों पर-
मैंने खुद को अकेला पाया है,
पर साथ तेरा जो था-
गिरना, उठना फिर चलना,
तुमसे ही तो सीखा है-
ये जिन्दगी, तूं हौसला दे जरा ।