साहित्य के नवांकुर
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राजरानी |
ऐसे छोड़ के ना जा तूं, नदी में नाव
बिन पतवारा।
तेरा जो बचपन मेरा था, मेरा बचपन तेरा
है,
राहें भले अनेक थी किन्तु मंजिल
मेरी एक थी
बचपन की रीत याद कर साथ-साथ चल जरा
ये जिंदगी ना रूठ यूँ, तूं धारा है,
तो मैं किनारा।
दुनिया के रीति-नीति में, हमें भी
साथ चलना है
इन कंकड़ो के डरकर मुझे राह न बदलना
है
पीछे है तेरे कोई उसे भी साथ लेके
चल जरा
ये जिंदगी ना रूठ यूँ, तूं धारा है,
तो मैं किनारा।
जो अपने थे वे पराये हैं, तूं
परायों में अपना
तूं हकीकत है आज भी मेरी, मैं तेरी
कल्पना
खौफ़जदा हूँ मैं, इन दरिंदों से मुझे
बचा जरा
ये जिंदगी ना रूठ यूँ, तूं धारा है,
तो मैं किनारा।
पता-ग्राम-हजरतपुर,
लखीमपुर खीरी उ०प्र०