कविता
![]() |
मुकेश वाळके बंगाली कैम्प, मूल रोड, शांतिनगर, चंद्रपुर(महाराष्ट्र) 442401 |
डॉक्टर
मै फिर से खोज रहा हु
तुम्हारा राष्ट्र मन जांचनेवाला टेटस्कोप
तुमने जो इजात किया था
जाति उन्मूलन का टीका-
और उसे लगाने के लिए इस्तेमाल की थी जो सिरिंज.
डॉक्टर
आज फिर से गर्व के साथ संक्रमित हुआ है-
जाति धर्म के द्वेष का चौमुखी वायरस
कुरेद रहा सौहार्द्र रहित
संवेदनशील मस्तिष्क का
मानवतावादी ढांचा
तुम्हारे मरीज का भटक रहा ध्यान और दिशाहीन,
हो रही तुमने जो सीधी कर दी वो गर्दन
संविधान की फार्मसी देकर
जहां तुमने उंगली दिखा कर लिखा था आर एक्स
उस निरामय संसद की ओर
दूसरो के कंधो पर जा रहें तुम्हारे
स्वार्थ भावना से लापरवाह हुए मरीज,
कोई पागलखाने भर्ती हो रहा हो जैसे!
पढ़ो, संघर्ष करो और संगठित रहो!
यह सब तुम्हारी जालीम टैबलेट्स खोज रहा हूँ,
मै फिर से-
आजादी, समानता, न्याय और भाईचारे के
सद्धम्म की स्थाई आराम देनेवाली सलाईन कहा खो गई है डॉक्टर?
चिंता करते करते ही तुमने बुनियाद रख छोड़ी,
दीक्षाभूमि के ग्लोबल मेडिकल कॉलेज की.
तुम्हारा मरीज ज्यादा समय दर्द और मर्ज से तड़पता ना रहें
इसलिए ...
लेकिन अब फिर अस्पताल के सामने दिखने लगी है कतार
मरीजों की किसी महामारी की तरह.
अब तुम ही बताओ डॉक्टर!
वो तुमने खोजा हुआ टीका कहा है?
तुम्हारा वो टेटस्कोप कहा है?
वो टैबलेट्स, और सलाइन कहा है?