साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०
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Wednesday, December 22, 2021

सिंदबाद की स्वरुचि भोज यात्रा-रामविलास जांगिड़

सामाजिक मुद्दा

सिंदबाद जहाजी ने प्रेस रिलीज में कहा कि मुझे सात यात्राओं में काफी समस्याएं और परेशानी हुई। लेकिन फिर भी मेरा इरादा नहीं टूटा और मैं आठवीं यात्रा करने के लिए स्वरुचि भोज पर निकल पड़ा। घटनास्थल पर पहुंच कर कार का लंगर डाला और पांडाल के अंदर घुस गए। धीरे-धीरे उस इलाके में पहुंच गया जो फास्ट फूड के नाम से जाना जाता है। वहां महिलाओं की इतनी भीड़ थी की फास्ट फूड फास्ट तरीके से गायब होता जा रहा था। भीड़ को देखकर मेरी हिम्मत गायब हो रही थी लेकिन मैंने इधर-उधर से साहस बटोरा और भीड़ का हिस्सा हो लिया। दो घंटे जीभ लप-लपाहट के बाद मुझ पर कई तरह की चटनियां व आलू, मिर्च, जलजीरा से युक्त द्रव्य पदार्थ की रुक-रुक कर बारिश-बर्फबारी होने लगी। जब मेरे कपड़े इन द्रव्य पदार्थों से पूरी तरह भीग गए तो मैंने मान लिया कि मैंने फास्ट फूड का भक्षण कर लिया है। महिलाओं की चीख-पुकार एवं खनकती चूड़ियों के बीच मैंने यूं ही हवा में फास्ट फूड का आनंद लिया। जिधर भी नजरें घुमाता उधर ही खाने के कीमती खजानों का भंडार भरा हुआ था।

महिला-पुरुष, किशोर-किशोरियां सभी अपने प्लेट-चम्मच के हथियारों से उस खजाने की खुदाई करने में व्यस्त थे। चीख-पुकार मचा रहे थे। भोजन खदान में खुद के दबने-कुचलने के गीत गा रहे थे। ऐसे स्वरुचि भोज में आज सिंदबाद जहाजी को भूमध्य सागर में शार्क मछलियों के बीच में जहाज चलाने की घटना याद आ गई। मैंने बड़ी कठिनाई हिम्मत और कुशलता के साथ प्लेट चम्मच हासिल की और स्वरुचि भोज के उस विशाल महासागर में अपनी जहाजी भूख का को आगे बढ़ाने का निश्चय किया। इसी समय डीजे की आवाज इतनी जोरदार थी कि स्वरुचि भोज का जहाज एक शराबी की तरह झूम रहा था। भोज के सारे काउंटर झूले की तरह झूल रहे थे। यह सब शादी समारोह में बजाए जाने वाले डीजे देव की कृपा से हुआ। सभी जहाजी अपने कानों में रूई के मोटे-मोटे फाहे डाले हुए थे। कानों को मजबूत पट्टी से बांधा हुआ था। मैंने भी अपने झोले में से रुई के बड़े-बड़े फाहे निकाले और दोनों कानों में डाट कर मजबूत पट्टी से बांध लिया। 

पास ही एक धुआं छोड़ने की मशीन भी पड़ी थी। वह हर 2 मिनट के अंतराल में अजीब सा धुआं छोड़ती थी। यह धुआं आंखों के रास्ते पेट में धमाल मचाते हुए खोपड़ी में अपनी किल-किलाहट मचा रहा था। भारी भीड़ में एक का पांव दूसरे के ऊपर, तीसरे की खोपड़ी चौथे के ऊपर और पांचवे की प्लेट छठे के हाथ में दिखाई दे रही थी। खोपड़ियां आपस में टकरा रही थी। इनसे बचने के लिए मैंने झोले में से हेलमेट निकाल कर सिर पर धारण कर लिया। शादी में पटाखे, फुलझड़ियां, अनार, रॉकेट आदि बराबर रूप से छूट रहे थे। उनकी गगनभेदी आवाजें व इनसे निकला धुआं फेफड़ों को 50 बार स्वर्गवासी कर चुका था। आंखों के कोर्निया को भी भेदने वाली तीव्र प्रकाश की व्यवस्था इन पटाखों में पर्याप्त मात्रा में थी। मैंने एक किसी भोज काउंटर के सामने अपना डेरा डाल दिया। इसके निकट ही किसी अन्य काउंटर पर रोटियां हासिल करने की मारामारी थी। रोटियां मिलना लगभग असंभव था। प्लेट में किसी तरह हासिल की गई बेचारी दाल बस अकेली रहकर विरह के गीत गा रही थी। इस खतरनाक यात्रा के बाद आज का दिन है कि मैं कभी भी ऐसी स्वरुचि भोजन यात्रा पर नहीं निकला।

- रामविलास जांगिड़,18, उत्तम नगर, घूघरा, 
अजमेर  (305023) राजस्थान  मो 94136 01939) 

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