पारिवारिक मशला
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अजय बोकिल |
पुरूषार्थी जिओना चाना के दुखद निधन और उनकी 38 पत्नियों के एक साथ
विधवा होने की खबर पढ़ते ही मन में सवाल उठा कि पृथ्वी पर ऐसा चुनौतीभरा स्वर्ग है
कहां? बता दें कि यह चाना परिवार मिजोरम के पहाड़ी गांव बकत्वांग
तलंगनुमा में रहता है, जो राजधानी आइजोल से करीब दो घंटे की दूरी पर है। कहते हैं कि जिओना
चाना की पहली शादी 17 की उम्र में उनसे तीन साल बड़ी लड़की से हुई थी। इसके बाद दस
शादियां तो जिओना ने एक साल में ही निपटा दी थीं। बाकी की 27 शादियां कितने
अंतराल से हुईं, यह स्पष्ट नहीं है, लेकिन उनकी 22 बीवियो की उम्र 40 से कम है। जीते जी
हर वक्त 6-7 बीवियां जिओना की सेवा मे रहती थीं। दावा है कि इतनी बीवियां एक छत
के नीचे रहने के बाद भी कभी सौतिया डाह या गृह कलह नहीं हुआ। जो घर चाना ने बनाया, उसे नाम दिया ‘छौन थार रून’ यानी ‘नई पीढ़ी का घर।‘ पूरा चाना
महापरिवार खेती-किसानी करता है। रसोई बोले तो इस परिवार में रोजाना 45 किलो चावल, 25 किलो दाल, 20 किलो फल, 30 से 40 मुर्गे और 50 अंडों की खपत होती
है।
यहां सवाल उठ सकता है कि क्या पहले की पत्नियों ने चाना की हर नई
शादी पर कभी कोई ऐतराज नहीं किया?
तो इसका जवाब यह है कि जिओना जिस
आदिवासी समुदाय से आते हैं, वहां बहुपत्नी प्रथा समाजमान्य है। चाना परिवार ईसाई धर्म को मानता
है। हालांकि ईसाइयत में बहुपत्नी प्रथा को अच्छा नहीं माना जाता। लेकिन इस परंपरा
को जायज ठहराने के लिए स्वर्गीय जिओना के दादा खुआंगतुआ ने एक नए सम्प्रदाय की
स्थापना की। इसे ‘चाना पाॅल’ या ‘चाना छौनथर’ सम्प्रदाय कहा जाता है। अपने समाज की बहुविवाह को धार्मिक मान्यता
दिलाने के लिए उन्होंने बाइबल के अध्याय 20 का हवाला दिया। जिसमे जीसस के पृथ्वी
पर 1000 वषों के शासन का उल्लेख है। बकत्वांग के गांव के चार सौ परिवार
इसी ईसाई सम्प्रदाय के अनुयायी हैं। जिओना इस सम्प्रदाय के मुखिया भी थे। यह
सम्प्रदाय हर साल 12 जून को ‘बावक्ते कुत’
( स्था पना दिवस) मनाता है।
वैसे भी इतनी पत्नियां और बच्चे एक साथ रखना और उन्हें सुकून के
साथ पालना किसी दैवी शक्ति वाले पुरूष का ही काम हो सकता है। इतिहास और पुराणों
में ऐसे कुछ उदाहरण मिलते हैं। कहते हैं कि राजा सोलोमन की 700 पत्नियां और 300 रखैलें थीं तो
मंगोल शासक चंगेज खान ( बहुत से लोग ‘खान’ शब्द से उसे मुस्लिम समझ बैठते हैं।
वह स्थानीय तेनग्रीज धर्म को मानता था। जिसमे आकाश को देवता के रूप में पूजा जाता
है। मंगोल भाषा में खान का अर्थ होता है शासक) की 14 अधिकृत बीवियां थीं और रखैलों का तो
कोई हिसाब ही नहीं था। हाल में िकसी खोजी इतिहासकार ने हमे बताया था कि चंगेज के
वशंज दुनिया के कई देशों में फैले हुए हैं। हिंदू धर्म में भी कई देवताओं की एक से
अधिक पत्नियां बताई गई हैं। लीला पुरूषोत्तम कृष्ण की 16108 हजार पत्नियों की
कथा है, लेकिन वो प्रतीकात्मक थीं। कृष्ण की अधिकृत तौर पर आठ पत्नियां ही
थीं।
खैर, मुद्दा यह है कि आज के जमाने में जब बहुपत्नी प्रथा (कई मुस्लिम
देशों में भी अब इस पर कानूनन रोक है) कुछ आदिम समाजों में ही बची है, तब मिजोरम का यह
बंदा इतने विशाल परिवार को एक छत के नीचे बिना किसी तनाव के कैसे ‘मैनेज’ करता रहा ? यह भी अपने आप में
चमत्कार और व्यक्ति के तौर पर चाना की सभी पत्नियों के संयम और सौहार्द की
पराकाष्ठा है। वरना कई आदिवासी समाजों में भी ‘दूसरी बीवी’ लाने पर पहली बगावत
कर बैठती है।
समाजशास्त्र की दृष्टि से देखें तो बहुपत्नी प्रथा के लाभ और
नुकसान दोनो हैं। पहला लाभ तो यह है कि इतनी बीवियों के रहते ‘ ‘हर दिन नया दिन, हर रात नई रात’ हो सकती है। दूसरे, मंगल कार्य के वक्त
मेहमानों को बुलाने की गरज नहीं रहती और न ही वक्त काटना कोई समस्या हो सकती है।
इतना ही नहीं, चुनाव में वोट मांगने किसी के आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं है।
चाना भी किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़े हुए थे।
नुकसान यह है कि अगर परिवार की आमदनी पर्याप्त न हुई तो रोज टंटा
होने का खतरा है। घर में एक रेफरी की दरकार हर वक्त हो सकती है। अगर चाना के
बीवी-बच्चों ने लड़ना-झगड़ना सीखा ही नहीं है तो यह जंगल के शेर का चिडि़याघर के
शेर में ह्रदय परिवर्तन जैसा है। अगर बापू को ऐसे किसी परिवार की जानकारी होती तो
वो उसे ही अपना आश्रम घोषित करने में देरी नहीं करते। क्योंकि यह तो ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का साक्षात रूप ही
है। अलबत्ता दिवंगत चाना घर की इतनी भीड़ में ‘एकांत’ कैसे खोजते होंगे, इस पर गहन शोध
जरूरी है। वैसे जमाने में चाना जैसा महापरिवार किसी जंगल में ही संभव है। वरना
आजकल तो किसी टू बीएचके में पांचवां शख्स भी ‘भीड़’ की माफिक लगने लगता है। अक्सर मंच से
बीवियों पर तंज करने वाले हिंदी कवि भी अगर एक बार चाना परिवार की विजिट कर लें तो
हास्य कविता के बजाए गोकुल पुराण लिखने बैठ जाएं। इतना बड़ा परिवार सुकून के साथ
पालना भी ‘गिनीज बुक आॅफ रिकार्ड्स’ में जगह पाने का निमित्त बन सकता है, यह चाना ने हमे
बताया। या यूं कहें कि आज जब हर मामले में ‘एक देश, एक हर कुछ’ का हर तरफ आग्रह है, तब चाना ‘एक छत-एक महापरिवार’ का आदर्श बहुत पहले
सामने रख चुके थे। यह बात अलग है कि चाना से इतर ज्यादातर परिवारों में ज्यादातर
पति अपनी इकलौती बीवी के आगे भी भीगी बिल्ली बने रहते हैं। और अपनी इस दुर्दशा को
सार्वजनिक करने से भी डरते हैं। मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी बहुत पहले कह गए थे- ‘अकबर दबे नहीं किसी
सुल्तां की फौज से, लेकिन शहीद हो गए बीवी की नौज से। ऐसे पतियों के लिए दिवंगत जिओना
का चरित्र हमेशा साहस का संबल बना रहेगा!
(वरिष्ठ संपादक दैनिक सुबह सवेरे मप्र-9893699939)