साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Friday, May 21, 2021

एक कविता ने दिलाई श्याम किशोर को वैश्विक पहचान (व्यक्तित्व)

एक कविता ने दिलाई श्याम किशोर को वैश्विक पहचान   (व्यक्तित्व)

 

कवि
कवि

साधारण सा व्यक्तित्व, साधारण से शहर के निवासी, साधारण सी शिक्षा, पर कृतित्व असाधरण। जी हां मैं बात कर रहा हूं, एक कविता के माध्यम अपनी वैश्विक पहचान बनाने वाले लखीमपुर उत्तर प्रदेश के कवि श्याम किशोर बेचैन की। आप ने वाट्सएप फेसबुक पर एक कविता कहीं न कहीं जरूर टहलती हुई देखी, पढ़ी होगी। यथा झाड़ू छोड़ो कलम उठाओ परिवर्तन आ जाएगा/शिक्षा को हथियार बनाओ परिवर्तन
आ जाएगा। 

इस कविता का वाचन बैचेन कई मंचों से कर चुके हैं और कई पत्र-पत्रिकाओं और संग्रहों में भी यह प्रमुखता से प्रकाशित हो चुकी है। इस कविता की लोकप्रियता इस हद तक हैं कि इसे कई सामाजिक संगठनों में सस्वर गायन किया जा रहा है। ’बेचैन’ अपनी कविता के कथानक और बिंब अपने आसपास के लोगों के बीच से उठातें हैं। गरीबों, किसानों महिलाओं व दलितों की जमीनी शोषण और सच्चाइयों के रेशे-रेशे में, अपनी कविताओं की गहन संवेदनाएं पिरोतें हैं। कविता की तरफ आप का झुकाव कब से हुआ? इस सवाल के जवाब में वे कहतें हैं,‘घर में बचपन से ही संगीत, साहित्य का माहौल था। पिता स्वर्गीय शंकर लाल 'रागी जी’ ने भारत खण्डे संगीत विद्यालय इलाहाबाद से संगीत शिक्षा प्राप्त की थी। रामायण महाभारत,वेद आदि धार्मिक ग्रन्थों का वह अध्ययन किया करते थे। संगीत की महफिलों में उनकी बड़ी कद्र थी। उनकी प्रेरणा से संगीत, साहित्य की बारीकियों को जानने समझने का प्रयास बचपन से करने लगा। सन 1985 से कीर्तनकारों के सम्पर्क में आया। रात्रि जागरण में एक कीर्तनकार के रूप में, पब्लिक के बीच में मेरी इन्ट्री हुई। आप क्या-क्या लिखतें है? इसके जवाब में 'बेचैन’ कहतें हैं, शुरूआत में भजन लिखता और गाता था, पर दलित चिंतक, वरिष्ठ साहित्यकार ओम प्रकाश वाल्मीकि जी का साहित्य पढ़ कर और लखीमपुर के कवि स्वः राजकिशोर पाण्डेय 'प्रहरी', फारूक सरल जी, अवधेश शुक्ल 'अवधेश' जी, सुरेश सौरभ आदि साहित्यकारों के सम्पर्क में आने के बाद गीत, गजल मुक्तक, छंद भी लिखने लगा। फिर मित्रों के सहयोग से मंचों से वाचन करने लगा।
   
 'बैचैन’ का एक कविता संग्रह ’वन्य जीव और वन उपवन’ नमन प्रकाशन लखनऊ से प्रकाशित हो चुका है और कई अन्य पुस्तकें अभी प्रकाशन की बाट जोह रहीं हैं। जब उनसे मैंने उनकी शिक्षा के बारे में पूछा, तो वह गुनगुनाते हैं.. मैं  अनपढ़  हूँ  पढ़ाई  में/ मुझे  बच्चा  समझ  लेना/अगर हो जाए कुछ अच्छा/तो अच्छा  समझ  लेना/मैं सच का साथ देने के लिए ’बेचैन’ रहता हूँ/नजर आ जाए सच्चाई तो /फिर सच्चा समझ लेना। प्रसिद्ध साहित्यकार, संजीव जायसवाल ’संजय’, डॉ0 निरूपमा अशोक,चंदन लाल वाल्मीकि, डाॅ0 सुरचना त्रिवेदी, आदि प्रबु़द्ध जनों एवं पाठकों को अपना प्ररेणा स्रोत 'बेचैन’ बतातें हैं, जो निरन्तर कविता लेखन के लिए इन्हें प्रोत्साहित करते रहतें हैं। कौन साहित्यकार सबसे अधिक पंसद है? इस बारे में वह कहतें हैं कि नाम बहुत है, पर कुछ ही गिना पाऊँगा, जिनमें महादेवी वर्मा, पंत, निराला,नीरज,निदा फाजली,मुनव्वर राना, राहत इंदौरी, नन्दी लाल ’निराश’।  
      पूरे देश में कई मिशनियों का हिस्सा बनी, देश-विदेश में सोशल मीडिया पर वायरल अपनी चर्चित कविता ’परिवर्तन’ हमारे आग्रह पर 'बेचैन’ सुनाते हैं।
  परिवर्तन
झाडू छोडों कमल उठाओ
परिवर्तन आ जाएगा ।
शिक्षा को हथियार बना
परिवर्तन आ जाएगा ।।
दारू छोडों ज्ञान बढ़ाओ
परिवर्तन आ जाएगा ।
हर कीमत पर पढ़ो पढ़ाओ
परिवर्तन आ जाएगा ।।
मनुवादी साधु-संन्यासी
ढोंगी पाखंडी पंडे ।
जन्म-जन्म के दुश्मन हैं ये
मत थामो इनके झंडे ।।
समझ नहीं पाए जो अब तक
अब समझो इन के फंडे ।
इनको हमसे काम चाहिए
संडे हो या हो मंडे ।।
इनके झांसे में ना आओ
परिवर्तन आ जाएगा ।
शिक्षा को हथियार बनाओ
परिवर्तन आ जाएगा ।।
अपनी कथनी और करनी में
खुद सुधार करना होगा ।
ठग विद्या करने वालों का
तिरस्कार करना होगा ।।
आज तथागत की बातों पर
फिर विचार करना होगा ।
घर-घर जाकर बाबा साहब
का प्रचार करना होगा ।।
तुम इतना ही करके दिखाओ
परिवर्तन आ जाएगा ।
शिक्षा को हथियार बनाओ
परिवर्तन आ जाएगा ।।
हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई
कोई प्यार नहीं करता ।
दलित अछूतों के बच्चों को
कोई दुलार नहीं करता ।।
दलितों का उज्ज्वल भविष्य
कोई स्वीकार नहीं करता ।
दलित महापुरुषों का भी
कोई सत्कार नहीं करता ।।
इनके आगे सर झुकाओ
परिवर्तन आ जाएगा ।
शिक्षा को हथियार  बनाओ
परिवर्तन आ जाएगा ।।
कहने को तैंतीस करोड़ है
लेकिन कोई नहीं अपना ।
कोई नहीं चाहता है कि
दलितों का सच हो सपना ।।
सपना अपना सच करने को
खुद आगे आना होगा ।
यही हकीकत है, हकीकत
सबको समझाना होगा ।।
बात यही सबको समझाओ
परिवर्तन आ जाएगा ।
शिक्षा को हथियार बनाओ
परिवर्तन आ जाएगा ।।
मानवता के धर्म को मानो
कर्म को ही मानो पूजा ।
मात् पिता से बढ़के जग में
देव नहीं कोई दूजा ।।
भला चाहते हो तो ऊंची
कर लो अपनी सीढ़ी को ।
संसद तक पहुंचा दो अपनी
आने वाली पीढ़ी को ।।
खुद अपनी तुम राह बनाओ
परिवर्तन आ जाएगा
शिक्षा को हथियार बनाओ
परिवर्तन आ जाएगा ।।
आज भी गांवों में देखो
जिंदा हमैं बस मजबूरी में ।
नहीं गुजारा हो पाता है
गांवों की मजदूरी में ।।
हो अपना "बेचैन" कोई तो
थोड़ा फर्ज निभा देना ।
हो जाना गम में शरीक कुछ
कौम का कर्ज चुका देना ।।
तुम अपना कर्त्तव्य निभाओ
परिवर्तन आ जाएगा ।
शिक्षा को हथियार बनाओ
    परिवर्तन आ जाएगा ।।
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लेखक
-सुरेश सौरभ

-सुरेश सौरभ
निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी यूपी
पिन-262701
मोः-7376236066
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

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