साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०
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Wednesday, April 17, 2024

सदियों से लाईलाज बीमारी का डॉक्टर-मुकेश वाळके

  कविता   
मुकेश वाळके
बंगाली कैम्प, मूल रोड, 
शांतिनगर, चंद्रपुर(महाराष्ट्र)
442401


डॉक्टर
मै फिर से खोज रहा हु 
तुम्हारा राष्ट्र मन जांचनेवाला टेटस्कोप
तुमने जो इजात किया था
जाति उन्मूलन का टीका-
और उसे लगाने के लिए इस्तेमाल की थी जो सिरिंज.

डॉक्टर
आज फिर से गर्व के साथ संक्रमित हुआ है-
जाति धर्म के द्वेष का चौमुखी वायरस 
कुरेद रहा सौहार्द्र रहित 
संवेदनशील मस्तिष्क का 
मानवतावादी ढांचा 
तुम्हारे मरीज का भटक रहा ध्यान और दिशाहीन,
हो रही तुमने जो सीधी कर दी वो गर्दन 
संविधान की फार्मसी देकर 
जहां तुमने उंगली दिखा कर लिखा था आर एक्स 
उस निरामय संसद की ओर 
दूसरो के कंधो पर जा रहें तुम्हारे 
स्वार्थ भावना से लापरवाह हुए मरीज, 
कोई पागलखाने भर्ती हो रहा हो जैसे!
पढ़ो, संघर्ष करो और संगठित रहो!
यह सब तुम्हारी जालीम टैबलेट्स खोज रहा हूँ, 
मै फिर से-
आजादी, समानता, न्याय और भाईचारे के 
सद्धम्म की स्थाई आराम देनेवाली सलाईन कहा खो गई है डॉक्टर?
चिंता करते करते ही तुमने बुनियाद रख छोड़ी,
दीक्षाभूमि के ग्लोबल मेडिकल कॉलेज की.
तुम्हारा मरीज ज्यादा समय दर्द और मर्ज से तड़पता ना रहें 
इसलिए ...  
लेकिन अब फिर अस्पताल के सामने दिखने लगी है कतार 
मरीजों की किसी महामारी की तरह. 
अब तुम ही बताओ डॉक्टर!
वो तुमने खोजा हुआ टीका कहा है?
तुम्हारा वो टेटस्कोप कहा है?
वो टैबलेट्स, और सलाइन कहा है?

Wednesday, January 24, 2024

राम अयोध्या लौटे हैं- एड. रमाकान्त चौधरी

एड. रमाकान्त चौधरी
गोला गोकर्णनाथ, लखीमपुर खीरी।
उत्तर प्रदेश, मो. 9415881883


जो हाथ लगायेगा सीता को वह रावण मारा जायेगा।
राम अयोध्या लौटे हैं अब राम राज्य आ जायेगा।
सदियों से शोषित पीड़ित जो वह स्वाभिमान पा जायेंगे।
शोषण करने वालों पर कोड़े बरसाए जायेंगे।
दीप जलेंगे खुशियों के गम के बादल छंट जायेंगे।
जातिवाद और ऊंच नीच के सब गड्ढे पट जायेंगे।
अब ना होगा जुल्म किसी पर जुल्मी मारा जायेगा।
राम अयोध्या लौटे हैं अब राम राज्य आ जायेगा।
रिश्वतखोरी और दलाली अब ना होगी थानों पर।
रोक लगेगी भारत भर के मक्कारों बेईमानों पर।
बालाएं अब घूम सकेंगी मेलों में बाजारों में।
दुष्कर्म नहीं हो पाएंगे अब ट्रेन बसों व कारों में।
राहजनी और लूटपाट अब कोई नहीं कर पायेगा।
राम अयोध्या लौटे हैं अब राम राज्य आ जायेगा।
हर मानव अब सच बोलेगा अब सतयुग फिर से लौटेगा ।
झूठ बोलने वाला कोई दूर-दूर तक नहीं दिखेगा।
हर द्वारे पर गाय जनेंगी प्यारे-प्यारे बछड़ों को।
ताले अब लग जाएंगे भारत के बूच़डखानों को।
हर किसान खुशहाल रहेगा अब ना जान गंवाएगा।
राम अयोध्या लौटे हैं अब राम राज्य आ जायेगा।
भात भात कहकर के कोई अब न मरेगी संतोषी।
हर नंगा कपड़ा पायेगा हर भूख पायेगा रोटी।
मुनिया का अपहरण न होगा अब न बिकेगी कोठों पर।
मुजरिम को अब सजा मिलेगी न्याय न होगा नोटों पर।
सबके नाथ सियापति होंगे कोई न अनाथ कहायेगा।
राम अयोध्या लौटे हैं अब राम राज्य आ जायेगा।
आतंकवाद का दूर-दूर तक नामों निशां नहीं होगा।
गद्दारों का धड़ होगा सिर का पता नहीं होगा।
बेरोजगार अब कोई न होगा सबको मिलेगी अब रोजी।
देशद्रोहियों को मारेगा सरहद का इक-इक फौजी।
पुलवामा का किस्सा अब बिल्कुल न दोहराया जायेगा।
राम अयोध्या लौटे हैं अब राम राज्य आ जायेगा।
घर-घर जा साधु सन्यासी अब उपदेश सुनायेंगे ।
राजनीति से दूर रहेंगे अपना फर्ज निभाएंगे।
धोखा देने वालों का निश्चित ही जेल पठाना है।
सच कहता हूं सुनो मित्रों मुझे अयोध्या जाना है।
राम राज्य आ जाने से अब परिवर्तन आयेगा।।
राम अयोध्या लौटे हैं अब राम राज्य आ जायेगा।।


Tuesday, November 07, 2023

लिक्खेगी इतिहास चिरैया-नीरजा विष्णु 'नीरू'

नीरजा विष्णु 'नीरू'
कविता 
नन्हें पंखों से नापेगी 
यह पूरा आकाश चिरैया 
नहीं सुनेगी किसी बाज की 
अब कोई बकवास चिरैया।।

उसको है मालूम घरौंदा 
अपना स्वयं बनाना होगा,
फिर सारे झंझावातों से भी 
खुद   उसे   बचाना  होगा 
सुख-दुःख से आगे जाने का 
कर लेगी अभ्यास चिरैया।

नहीं सुनेगी किसी बाज की 
अब कोई बकवास चिरैया।।

जब दुनिया नफरत बोयेगी 
तब भी वह बस प्यार रचेगी,
नीले अम्बर की फुनगी पर 
सपनों का संसार रचेगी
हारों के भीतर भर देगी 
जीवन का उल्लास चिरैया।

नहीं सुनेगी किसी बाज की 
अब कोई बकवास चिरैया।।

आज भले ही कैद करो तुम 
या फिर उसके पर काटो,
ऊँच-नीच और लिंग भेद का 
कितना ही कचरा पाटो,
जगवालों! इक रोज गगन पर 
लिक्खेगी इतिहास चिरैया ।

नहीं सुनेगी किसी बाज की 
अब कोई बकवास चिरैया।।

जब तक चुप है; तब चुप है,
पर जब शौर्य  दिखाएगी..
हार नहीं मानेगी; जिस दिन 
जिद पर वो आ जाएगी..
बोल उठेगा तिनका-तिनका 
वाह! वाह! शाबाश चिरैया
नन्हें    पंखों    से   नापेगी 
यह  पूरा  आकाश  चिरैया।

नहीं सुनेगी किसी बाज की 
अब कोई बकवास चिरैया।

बुद्ध स्तुति-डॉ० कैलाश नाथ

डॉ० कैलाश नाथ
 (प्राचार्य) 
डॉ० भीमराव अम्बेडकर पी०जी० कॉलेज, 
मुराद नगर (पतरासी) लखीमपुर खीरी। 
मो- 9452107832 



!! बुद्ध स्तुति !!

हे बुद्ध ! हे बुद्ध ! हे बुद्ध ! हे बुद्ध ! 
जैसे जगे आप हमको जगा दो, 
महाज्ञानी हो ही मुझे ज्ञान दे दो ।
एक बार फिर से आ जाओ भगवन्, 
वट छाँव में ज्ञान- सुरसरि बहा दो ।

हे बुद्ध ! हे बुद्ध ! हे बुद्ध ! हे बुद्ध ! 
दुख ही दुख है पूरे जगत में, 
सुधामय वाणी का मंत्र दे दो ।
ज्ञान-ज्योति दिखा दो भटकते मनुज को,
पंचशील का मर्म हमको बता दो।

हे बुद्ध ! हे बुद्ध ! हे बुद्ध ! हे बुद्ध ! 
दुनिया ने जाना सबने है माना,
तथागत के बोल अमृत समाना। 
कला जीवन की जीना सिखाया,
अष्टम् मार्ग क्या है हमें भी बता दो ।

 हे बुद्ध ! हे बुद्ध ! हे बुद्ध !हे बुद्ध ! 
मेरी आज विनती तुमसे यही है,
पड़ी भीर भारी मनुज के है ऊपर । 
विपदा हरौ है व्यथित आज जन-जन, 
कर दो दया राह भटके जनों पर ।

हे बुद्ध ! हे बुद्ध ! हे बुद्ध ! हे बुद्ध !



Thursday, October 26, 2023

बलत्कृत रूहें-सुरेश सौरभ

 (कविता)
  सुरेश सौरभ
निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी
उत्तर प्रदेश पिन-262701
मो-7376236066


कुछ लोग कहते हैं
कि युद्ध थल पर
जल पर
नभ पर 
और साइबर पर होते हैं
पर ऐसा नहीं? कदापि नहीं?
युद्ध तो होते हैं, 
हम औरतों की छातियों की विस्तृत परिधियों पर
हमारे मासूम बच्चों के पेटों 
और उनकी रीढ़ों के भूगोलों पर 
जब तमाम बम, मिसाइलें गिरतीं हैं 
ऊंची-ऊंची इमारतों पर
रिहायशी इलाकों पर
रसद और आयुध पर
तब मातमी धुएं और घनी धुंध में,
चारों दिशाओं में हाहाकार-चीत्कार उठता है
लोग मरते हैं,घायल होकर तड़पते हैं 
लाशों चीथड़ों से सनी-पटी धरती का      
 कलेजा लाल-लाल हो 
घोर करूणा से चिंघाड़ता-कराहता है।
तब उन्हीं लाशों चीथड़ों के बीच तड़पड़ते हुए 
लोगों के बीच से
परकटे परिन्दों सी बची हुई घायल-चोटिल लड़कियों को, 
औरतों को मांसखोर आदमखोर गिद्ध उन्हें नोंच-नोंच कर तिल-तिल खाने लगते हैं।
आदमखोर वहशी गिद्ध बच्चों को भी नहीं बख्शते 
उनकी मासूमियत को नोंच डालते हैं
 हिटलरों के वहशीपन की तरह
जार-जार रोती उन स्त्रियों की, बच्चों की, 
रोती तड़पती रूहों की, 
कातर आवाजें आकाश तक गूंजती रहती हैं, 
पर अंधे बहरे लोभी धर्मांध सियासतदां
 उन्हें नहीं सुन पाते, नहीं देख पाते।
अगर न यकीं हों तो इस्राइल फलस्तीन के
युद्ध को देख समझ सकते हैं 
जहां धूं धूं कर जलती इमारतों के बीच से वहशियों से लुटती, पिटती, घिसटती
स्त्रियों के घोर करूण दारूण चीखों को सुन सकते हैं। 
कोई जीते कोई हारे, 
पर हम स्त्रियां की रूहें युद्ध में बलत्कृत होती रहेंगी, 
हमेशा लहूलुहान होती रहीं हैं 
और होती रहेंगी।

Wednesday, May 24, 2023

मैं गुनाहगार हूं- अखिलेश कुमार अरुण

कविता
अखिलेश कुमार 'अरुण' 
ग्राम- हज़रतपुर जिला-लखीमपुर खीरी 
मोबाईल-8127698147


मैं गुनाहगार हूं-
तुम्हारे सपनों का,
एक मौका तो दो-
अपनी बेगुनाही साबित करने का
क़ातिल हूं तो क्या हुआ?
पेशेवर कातिल तो नहीं,
हालातों ने मुझे क़ातिल बनाया
लोगों ने मेरे सपने को साकार करने में-
तुम्हारे सपनों का क़त्ल करवाया।
मैं अपराधी उस अपराध का हूं-
जिसका हमसे दूर तलक सम्बन्ध नहीं।
पिस रहा हूं मैं, पिसना तुमको भी पड़ रहा है।
सफ़र में साथ एक क़दम तुम्हारा मिले तो रुख़ हवाओं का मोड़ दूं
मैं गुनाहगार हूं-
तुम्हारे सपनों का।

Sunday, March 19, 2023

बोलना होगा-अखिलेश कुमार अरुण

अखिलेश कुमार अरुण
ग्राम हजरतपुर परगना मगदापुर
जिला लखीमपुर खीरी, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 8127698147

कविता

आज भी हमें, बराबरी करने देते नहीं हो और सोचते हो कि हम कुछ न बोलें।

संविधान एक सहारा था उस पर भी हाबी हो और सोचते हो कि हम कुछ न बोलें।।


बोल ही तो नहीं रहे थे-

आदि-अनादि काल के हम शासक न जाने कब हम गुलाम बन गए,

तूती बोलती थी कभी हमारी और  न जाने हम कब नाकाम हो गए

राज-पाट सब सौंप दिए या हड़प लिया गया हो और सोचते हो कि हम कुछ न बोलें।


बोल ही तो नहीं रहे थे-

शिक्षा के द्वार बंद कर दिए, किये हमें हमारे अधिकार से वंचित,

हम कामगार लोग जीने को मजबूर थे, हो समाज में कलंकित।

गुणहीन न थे हम, हमको अज्ञानी बना दिए और सोचते हो कि हम कुछ न बोलें।


बोल ही तो नहीं रहे थे-

जब तुमने हम पर अत्याचार किया, जातीय प्रताड़ना किये,

गले में मटकी कमर में झाड़ू और पानी को मोहताज किये,

छूने पर घड़ा आज भी जहाँ मार देते हो और सोचते हो कि हम कुछ न बोलें।


बोल ही तो नहीं रहे थे-

अपनी बहन-बेटी की आबरू को तुम्हारी विलासिता के लिए,

है, नांगोली का स्तन काटना आज भी इस बात का प्रमाण लिए,

हाथरस की उस लड़की का कुनबा तबाह किए और सोचते हो कि हम कुछ न बोलें।


बोल ही तो नहीं रहे थे-

अमनिवियता को समर्पित भरे-पड़े तुम्हारे साहित्य पर,

जहाँ लिखते हो पुजिये गुणहीन, मूर्ख सम विप्र चरण,

जहाँ, मानवीयता को सोचना ही पाप लिए हो और सोचते हो कि हम कुछ न बोलें।


बोल ही तो नहीं रहे थे-

तुमने पशु को माता कहा और एक वर्ण विशेष को अछूत,

गोबर को गणेश कहा और तर्क करने को कहा बेतूक,

हम बने रहे मूर्ख, बेतुकी बातों को मानते गए और सोचते हो कि हम कुछ न बोलें।


बोल ही तो नहीं रहे थे-

मंदिर कौन जाता है किन्तु हमारे राष्ट्रपति को जाने नहीं दिए,

सत्ता क्या गयी, बाद एक मुख्यमंत्री के जो कुर्सी धुलवा दिए,

बाद हमारे विधानसभा को शुद्ध  करवाते हो और सोचते हो कि हम कुछ न बोलें ।।


बोल ही तो नहीं रहे थे- 

लेकिन अब बोलेंगे तुम्हारे गलत को ग़लत और सही को सच्च से,

मिडिया तुम्हारी है फिर डरते हो तुम हमारी अनकही एक सच्च से

क्योंकि तुम्हारे लाखों झूठ पर हमारा एक सच्च काफी है,

हम, इस रोलेक्टसाही में लोकतंत्र के मुखर आवाज हैं और सोचते हो कि हम कुछ न बोलें।


 


Tuesday, November 15, 2022

बिरसा मुंडा-रमाकांत चौधरी

   कविता   

क्रांति की अमिट कहानी था।
वह वीर बहुत अभिमानी था।
डरा नहीं वह गोरों से,
लहज़ा उसका तूफ़ानी था।

जल जंगल धरती की ख़ातिर,
जिसने सबकुछ वारा था।
क्रांति बसी थी रग-रग में,
वह जलता हुआ अंगारा था।

सन् 1875 में जन्मा,
राँची के उलिहातू ग्राम में।
नाम था बिरसा मुंडा जिसका,
जो हटा न कभी संग्राम में।
रमाकांत चौधरी
लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश)

आदिवासियों का महापुरुष,
जो आज भी पूजा जाता है।
जिसकी गाथा सुनने से,
रग-रग में साहस भर जाता है।


मानवता के विरुद्ध ज़ुल्म जब,
बहुत अधिक बढ़ जाता है।
बिरसा जैसा महापुरुष,
तब ज़ुल्म मिटाने आता है।

                

Monday, June 06, 2022

पर्यावरण दिवस-विकास कुमार

विकास कुमार 
अन्छा दाऊदनगर 
औरंगाबाद बिहार
     
ऑक्सीजन के बिना हम लोगो को जीवन जीना कैसे सिखाए,
इतना प्रदूषित वातावरण को हम पर्यावरण दिवस कैसे मनाए।

अब किसको, कब और कैसे हम उनको क्या समझाए,
कुछ पैसे की लालच में अपने ही घर के जो पेड़ कटवाए।

दो–चार लोग जो आए थे पेड़ को काटने हमारे गांव में,
धूप से परेशान होकर बैठ गए उस पेड़ के ही छांव में।

ऑक्सीजन के बिना हम लोगो को जीवन जीना कैसे सिखाए,
इतना प्रदूषित वातावरण को हम पर्यावरण दिवस कैसे मनाए।

अपने जीवन के बचाव में आइए मिलकर हम पेड़ लगाए,
कुछ लोग तो समझ चुके है, कुछ लोग को आप समझाए।


शुद्ध हवा न मिल पाता है ऑक्सीजन खरीदने पर विवस है,
कितना खुशी की बात है आज शुद्ध पर्यावरण की दिवस है।

ऑक्सीजन के बिना हम लोगो को जीवन जीना कैसे सिखाए,
इतना प्रदूषित वातावरण को हम पर्यावरण दिवस कैसे मनाए।

 

Tuesday, May 24, 2022

प्यार का एहसास-विकास कुमार

   कविता   

विकास कुमार
अन्छा दाउदनगर, औरंगाबाद बिहार
कभी हमारी मुलाकात हो या न हो बस मेरा हर बात याद रखना,
जिस दिन तुम मेरे लिए तड़पी थी बस ओ रात याद  रखना।

कल को मेरी चेहरा तुम्हे याद हो ना हो बस फोटो साथ रखना।
चाहे हम जहाँ भी रहे जिस हाल में रहे बस मुझे न तुम परखना।।

मैं अगर पागल भी हो जाऊ, तो तुम मुझे बस पागल मत कहना।
मुझे देखकर तुम्हे दर्द भी हो, तो तुम मुझे भूलकर भी सहना।।

मैं तो टूट के बिखर गया हूं, अब न हो पाता  मुझे कोई बहाना।
इस दुनिया भरी बाजार में तुम्हे,  मिल जायेंगे भले हजार दीवाना।।

        ....

Sunday, April 24, 2022

घायल है कानून व्यवस्था-रमाकान्त चौधरी


गोला  गोकर्ण नाथ लखीमपुर खीरी
 मोब 94 15 88 18 83 
घायल है कानून व्यवस्था,संविधान पर ताले हैं। 
संसद में जो बैठें हैं, सब सत्ता में मतवाले हैं। 

भरी भीड़ में नारी के जब वस्त्र उतारे जाते।
संसद में बैठे मंत्री जी  तनिक नही शरमाते। 
 बंद किए आंखें सबके सब देश के जो रखवाले हैं।
 संसद में जो बैठें हैं, सब सत्ता में मतवाले हैं।
 
निर्दोषों पर चले लाठियां,दोषी सब बच जाते।
बन के दल्ले घूम रहे ,वे राम नाम गुण गाते।
सबके सब हैँ चोर उचक्के, सब ही देखे भाले हैँ। 
संसद में जो बैठें हैं, सब सत्ता में मतवाले हैं।

संविधान की पीड़ा का मैं किसको दर्द  सुनाऊँ। 
आंसू पोंछू भारत के या खुद ही अश्क बहाऊँ। 
ऐसी अजब व्यवस्था में हम कैसे खुद को संभाले हैं। 
संसद में जो बैठें हैं, सब सत्ता में मतवाले हैं।

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Wednesday, March 30, 2022

जल तुम्हें बचाना है-विकास कुमार

   कविता  

जीवन बचाना चाहते हों तो, इस मीठी जल को तुम्हे बचाना होगा।
खुद में सुधार लाकर हम सबको, अच्छी आदत को अपनाना होगा।।

जल को मानिए अमृत हमसब थोडा–थोडा सा करके प्रयोग करे।
वर्षा के जल को बचाकर हम जल संरक्षण का लोग उपयोग करें।।

नदियों में कूड़ा–कचरा न डाले, जल को प्रदुषित ना करना होगा।
जीवन बचाना चाहते हों तो, इस मीठी जल को तुम्हे बचाना होगा।।

नीर, वारी, तोय, सलिल कितने सारे अनेको नाम है इसके।
साधारण सा दिखता है कितने सारे महत्वपूर्ण काम है इसके।।

जल के महत्व को जो ना समझें, उसे भी एक दिन पछताना होगा।
जीवन बचाना चाहते हों तो इस मीठी जल को तुम्हे बचाना होगा।

जल भी एक सीमित साधन है, करते हमसब मिलकर आराधन है।
हर बूंद है कीमती जल की, यह भविष्य का ही सबसे बड़ा धन है।।

साधारण ना समझे इसको, विशेष रूप से इसको समझना होगा।
जीवन बचाना चाहते हों तो, इस मीठी जल को तुम्हे बचाना होगा।

         


      दाऊदनगर औरंगाबाद बिहार
       मो :– 8864053595


प्यारी सी तितली रानी-विकास कुमार

   बाल-कविता  
विकास कुमार

आई आई नई नवेली, रंग बिरंगे तितली रानी।
देखने में लगती है बहुत अच्छी और मस्तानी।।

देखने से लगे छोटी, लेकिन इसकी बड़ी कहानी।
जितनी सीधी लगती है, कही उससे ज्यादा शैतानी।।

इसके है छोटे–छोटे से बाल–बच्चे अच्छे दिवाने।
कोई इसकी चाल–चलन को भी नही पहचाने।।

कोई बोले तितली रानी, कोई बोले पंख उड़ान।
इसमे ओ जादू है जिससे भटकाये बच्चो का ध्यान।।

रंग बिरंगे पंख है मेरे, जिससे मैं समझाना चाहती हूं।
एसे ही जिवन के सुख दुख है जिसे मैं बताना चाहती हूं।।

उड़ तुम भी सकते हो मानव, जोर ताकत तुम लगाओ।
अपने इस हौसले को, मेरी तरह सब को तुम दिखाओ।।

               
दाऊदनगर, औरंगाबाद  बिहार

Wednesday, March 09, 2022

पूछ रहा है घायल-रमाकान्त चौधरी एडवोकेट

मुद्दे की बात 

रमाकान्त चौधरी एडवोकेट
लोकतंत्र का हनन हुआ है तानाशाही जारी है। 
संविधान के अनुच्छेदों पर चलती रोज कटारी है। 

समता और समानता वाले केवल भाषण होते हैं। 
जनता को बहकाने के अच्छे आकर्षण होते हैं। 
भीमराव के सपनों का भारत लुटा दिखाई देता है। 
 नेहरू पटेल गांधी का सपना टुटा दिखाई देता है। 
प्रस्तावना रो देती उस दम  सारे एक्ट लजाते हैं। 
संविधान निर्माता को जब अनपढ़ गाली दे जाते हैं। 
ग़द्दारों द्वारा संविधान के जब पृष्ठ जलाये जाते हैं। 
उनके समर्थन के खातिर जयघोष कराये जाते हैं। 
कोई रेपिया संसद जा कर मंत्री पद पा जाता है। 
और माफिया गुंडा आ अधिकारी पर रौब जमाता है। 
एक अनपढ़ नेता के आगे  प्रशासन झुक जाता है। 
शोषित पीड़ित वंचित को तब न्याय नहीं मिल पाता है। 
पूछ रहा है घायल भारत इतनी क्यों लाचारी है। 
संविधान के अनुच्छेदों पर चलती रोज कटारी है। 

अन्न उगाने वालों पर ऐसी भी हुकुमत चलती है।
फसलों के दाम नही मिलते बदले में लाठी मिलती है। 
युवा घूमता परेशान है रोजगार को तरस रहा। 
हक हकूक की बात करे तो उस पर डंडा बरस रहा। 
बहू बेटियाँ नही सुरक्षित ये कैसी आजादी है। 
घर से बाहर गर निकले तो अस्मत की बर्बादी है। 
भारत की एकता पर ऐसे भी घाव बनाये जाते हैं। 
जाति धर्म का ताना देकर युद्ध कराये जाते हैं। 
माना धर्म का ज्ञान मिले तब मानव पूरा होता है। 
पर संविधान की शिक्षा बिन सब ज्ञान अधूरा होता है। 
लोकतंत्र का हत्यारा है वह भारत का दुश्मन है। 
मानवता को भूल गया जिसे संविधान से नफ़रत है। 
ऐसे लोगों पर भी क्यों सत्ता की चौकीदारी है। 
संविधान के अनुच्छेदों पर चलती रोज कटारी है। 
शोषित  पीड़ित वंचित कोई  साहस कर जाता है। 
अपनी मेहनत के बलबूते जब आगे बढ़ जाता है। 
देख तरक्की उसकी तब कुछ बंदे शोर मचाते हैं। 
मंचों पर  चिल्लाकर वे आरक्षण गलत बताते हैं। 
आरक्षण क्यों हुआ जरूरी प्रश्न खड़ा रह जाता है।
उनपर किसने जुल्म किये ये कोई नही बतलाता है। 
संविधान जब मिला देश को तब उनको
अधिकार मिला। 
अहसास हुआ जीने का उनको जीवन का आधार मिला। 
संविधान ने ही नारी को अधिकार बराबर दिलवाया। 
संविधान ने ही नारी को सम्मान बराबर दिलवाया। 
लोकतंत्र की उचित व्यवस्था से पहचाना जाता है। 
सर्वश्रेष्ठ  दुनिया  में  भारत इसीलिए कहलाता है। 
ऊंच नीच की फिर भारत में क्यों  फैली बीमारी है। 
संविधान के अनुच्छेदों पर चलती रोज कटारी है। 
जाने कितने शीश कटे थे तब भारत आजाद हुआ। 
एक हुए जो बँटे हुए थे तब भारत आजाद हुआ। 
सबने मिलकर जंग लड़ी थी तब भारत आजाद हुआ।
 खून की नदियाँ खूब बहीं थी तब भारत आजाद हुआ। 
कुर्बान किये माँओं ने बेटे  तब भारत आजाद हुआ। 
 बहनों ने रण में भाई भेजे तब भारत आजाद हुआ। 
दुल्हनों ने  सिंदूर दिये थे तब भारत आजाद हुआ।
पिता ने लख्ते जिगर दिये थे तब भारत आजाद हुआ। 
खून खराबा खूब हुआ था तब भारत आजाद हुआ। 
काशी काबा नही हुआ था तब भारत आजाद हुआ। 
माली बन कर की रखवाली देश के जिम्मेदारों ने। 
नींद त्याग कर इसे बचाया देश के पहरेदारों ने। 
आज लुट रहा अपना गुलशन कैसी पहरेदारी है। 
संविधान के अनुच्छेदों पर चलती रोज कटारी है। 

अश्फाक बोस बिस्मिल आजाद का प्यारा भारत कहाँ गया। 
राजगुरु, सुखदेव, भगत का प्यारा भारत कहाँ गया। 
सोने की चिड़िया कहलाने वाला भारत कहाँ गया। 
 दिनकर, पंत निराला वाला प्यारा भारत कहाँ गया। 
रहमान  हों शामिल राम के दर्द में ऐसा भारत कहाँ गया। 
राम बने हमदर्द रहीम के ऐसा भारत कहाँ गया। 
लहू बहे न धर्म के नाम पे ऐसा भारत कहाँ गया । 
मर जाए कोई शर्म के नाम से ऐसा भारत कहाँ गया। 
लहू बहाते बात - बात पे धर्म के ठेकेदार यहाँ। 
धर्म के नाम से पनप गए हैं कुछ गुंडे गद्दार यहाँ। 
मानवता को बेंच के सारे धर्म बचाने निकले हैं। 
वस्त्र नोच के भारत माँ के मान बचाने निकले हैं। 
अपनों की ही अपनों के प्रति ये कैसी गद्दारी है। 
संविधान के अनुच्छेदों पर चलती रोज कटारी है। 

Thursday, January 13, 2022

स्वामी विवेकानंद जयन्ती-कवि श्याम किशोर बेचैन

स्वामी विवेकानंद जयन्ती
जन्म 12.01.1863                                         मृत्यु 04.07.1902
 

कुछ  भी ना  पूछना पड़ेगा  हमसे  बार बार।
स्वामी  विवेकानंद  को  पढ़िए तो  एक बार।।
 
बोले  थे  शिकागो  में  अपने  धर्म  के  लिए।
दुनिया  के  युवाओं  के  श्रेष्ठ  कर्म  के लिए।।
 
बचपन से इनमे हो रहा था ज्ञान का विस्तार।
स्वामी  विवेकानंद  को  पढ़िए तो  एक बार।।
 
दुनिया के  हर  युवा के  वो  आधार  बने  थे।
स्वामी    विवेकानंद     सूत्रधार    बने थे।।
 
तेजी  देश  में   बढ़ा   था   इनका जनाधार।
स्वामी  विवेकानंद  को  पढ़िए तो  एक बार।।
 
थी  आत्मा  परमात्मा   में  आस्था  अखण्ड।
लेकिन  इन्हें  पसंद  नहीं था  कोई  पाखण्ड।।
 
हर  एक  युवा  कर  रहा  था  इनपे  ऐतबार।
स्वामी  विवेकानंद  को  पढ़िए  तो एक बार।।
 
स्वामी   विवेकानंद   के   आदेश   के  लिए।
बेचैन  युवा   चल   पड़े   थे  देश  के लिए।।
 
हर  एक पे  स्वतंत्रता  का  जोश  था  सवार।
स्वामी  विवेकानंद  को  पढ़िए  तो एक बार।।

पता-
संकटा देवी बैंड मार्केट लखीमपुर खीरी

Saturday, January 08, 2022

विश्व बौद्ध धम्म ध्वज-कवि श्याम किशोर बेचैन

कवि
श्याम किशोर बेचैन
विश्व बौद्ध धम्म ध्वज दिवस  पर विशेष    
08 जनवरी 1880


बौद्घ  धम्म ध्वज  के बारे में  आओ जरा  विचार करें ।
नजर अगर आए  सच्चाई  तो  सादर   स्वीकार  करें ।।

आओ तथागत के ध्वज का आदर और सतकार करें ।
नजर  अगर आए सच्चाई तो सादर स्वीकार करें ।।

बौद्ध धम्म का  ध्वज दुनिया  को देता है  संदेश बड़ा ।
पंच शील का इस ध्वज में है छुपा हुआ उपदेश बड़ा ।।

बौद्ध  धम्म  के  उपदेशों   आओ  हम  विस्तार  करें ।
नजर  अगर आए  सच्चाई तो  सादर  स्वीकार  करें ।।

नीला रंग ये आसमान का कहता हृदय विशाल करो ।
पीला रंग ये बता रहा है  जन जीवन  खुशहाल करो ।।

आओ  इन  रंगो को  अपने  जीवन का  आधार करें ।
नजर  अगर आए  सच्चाई तो  सादर  स्वीकार  करें ।।

लाल  रंग  गतिशील  बनाकर   उर्जावान  बनाता  है ।
स्वेत रंग है शांति का सूचकऔर समृद्धि का दाता है ।।

रंगो के भावार्थ समझ कर खुद पर एक उपकार करें ।
नजर  अगर आए  सच्चाई तो  सादर  स्वीकार  करें ।।

केसरिया  रंग  त्याग और  बलिदान  पाठ  पढ़ाता है ।
बौद्ध धम्म का ध्वज मानव में मानवता भर जाता है ।।

चैन  बेचैन को  देने वाले  धम्म का आओ प्रचार करें ।
नजर  अगर आए  सच्चाई  तो  सादर  स्वीकार  करें ।

पता-संकटा देवी बैंड मार्केट लखीमपुर खीरी

Monday, January 03, 2022

माँ सावित्री बाई फुले- कवि श्याम किशोर बेचैन

  सावित्री बाई पर विशेष                                                                                             कविता                            
जन्म 03 जनवरी 1831                                                                              मृत्यु 10 मार्च 1897

मां  सावित्री  बाई  फूले  को 
नमन   हजारों   बार   करें |
समझें उनका त्याग और तप 
फिर  उनका  सतकार करें ||

अट्ठारह  सौ  इकत्तीस  की 
तीस  जनवरी  खास  बनी |
जन्मी  सावित्री  बाई  और 
दुनियां  का  इतिहास बनी ||

आओ हम भी सादर उनको 
भेट   पुष्प   उपहार   करें |
समझें उनका त्याग और तप 
फिर  उनका  सतकार करें ||

पिता श्री खांडोजी नेवसे 
पाटिल  एक  किसान  थे |
मांता  पूज्य  लक्ष्मी  बाई 
पति  जोतिबा  महान  थे ||

सहयोगी  फातिमा  शेख का 
याद   सदा   उपकार   करें |
समझें उनका त्याग और तप 
फिर  उनका  सतकार  करें ||

जब भारत में महिलाओं को 
पढ़ने  का  अधिकार ना था |
किसी  क्षेत्र  में  नर  से आगे 
बढ़ने  का अधिकार ना था ||

तब  शिक्षा अपनाई जिन्होंने
उनका प्रकट आभार करें |
समझें उनका त्याग और तप 
फिर उनका सतकार करें ||

शिक्षा से वंचित लोगों को
शिक्षा का अधिकार दिया |
घर से  बेघर होकर के भी 
विद्यालय  उपहार  दिया ||

उनके  विद्यालय  का  सपना 
आओ  हम   साकार   करें |
समझें उनका त्याग और तप 
फिर  उनका  सतकार करें ||

संत  जोतिबा  राव  फुले ने 
सावित्री  को   ज्ञान  दिया |
और  सावित्री  बाई फूले ने 
नारी  को   सम्मान  दिया ||

नारी  के  सम्मान   का  फिर 
आओ  हम   विस्तार   करें |
समझें उनका त्याग और तप 
फिर  उनका  सतकार  करें ||

नेकी के  खातिर  अपनो ने 
घर से जिन्हें निकाल दिया |
सामन्ती  लोगों  ने  जिनके 
ऊपर  कीचड़  डाल दिया ||

प्रथम शिक्षिका का यह सच
आओ  हम  स्वीकार  करें |
कवि श्याम किशोर बेचैन 
बक्सा मार्किट, लखीमपुर-खीरी
मोबाइल न 9125888207
समझें उनका त्याग और तप 
फिर  उनका  सतकार करें ||

जिन्होंने अपना सारा जीवन 
मानवता   के   नाम   किया |
जिन्होंने चैन दिया बेचैन को 
और  राष्ट्रहित  काम  किया ||

ऐसी   विद्या   की   देवी  पर 
आओ  और   विचार   करें |
समझे उनका त्याग और तप 
फिर  उनका  सतकार  करें ||

 

Sunday, January 02, 2022

घुटन-अनुभूति गुप्ता

  कविता  
अनुभूति गुप्ता
लेखक/सम्पादिका
कोई मर रहा होगा
तो उसे बूंद भर जिंदगी दोगे क्या,
सांसें मोहताज है यकीं की, मुझे उम्मीद दोगे क्या..

सोच मेरी इतनी सी नहीं
जो तुमको कत्ल कर दें
क्या सच बोलकर मुझे महफूज़ कर दोगे क्या...

मैंने इक निवाला चुराया था
एक बच्चे के दांतों के बीच.. क्या मुझे माफ़ी दोगे क्या,
सच कहती हूं, इस दौर में
मां को दूर बैठे देखती हूं, क्या क़रीब कर दोगे क्या...!

मैं शरीर नहीं मांगती हूं
मैं वक्त मांगती हूं तुम्हारा
निगाह में, समंदर नहीं
रेत चाहती हूं क्या मुझे इन नेत्रों में बिछने दोगे क्या..!
पता-लखीमपुर खीरी उ०प्र०

Wednesday, December 29, 2021

झूठ मचाता शोर-जयराम जय

नवगीत

बेहूदे ने समय देखकर
खीसे दिया निपोर
दो कौड़ी का ढोंगी कहता
राष्ट्रभक्त को चोर 

स्वतंत्रता के युद्ध से जिनका
रहा न कोई नाता
राष्ट्रद्रोहियों को संसद में
राष्ट्रभक्त बतलाता 

जान बूझकर शब्द-शब्द में
ज़हर रहा है घोर 

धर्म का फ़र्जी चोला ओढ़े
चंदन तिलक लगाए
झूंठ-मूठ के मंत्र फूककर
बुद्धी है पलटाए 

सत्य हमेशा शांत रहा है
झूठ मचाता शोर 

पाठ पढ़ाया गया है जितना
उतना पढ़ता पट्टू
भौक रहा है सभी जानते 
है वो बड़ा निखट्टू 

हालत पतली देख के,पट्ठा
लगा रहा है जोर 

आखिर कितना और करेगा 
करले तू मनमानी
वख्त एक सा नहीं रहा है
बतलाते सब ज्ञानी 

रात अभी है काली लेकिन 
कल फिर होगी भोर.
'पर्णिका'बी-11/1,कृष्ण विहार,आवास विकास,
कल्याणपुर,कानपुर-208017(उ.प्र.)
मो.नं .9415429104 & 9369848238

Monday, December 27, 2021

स्त्री की पीड़ा-अनुभूति गुप्ता

  कविता  
अनुभूति गुप्ता
संपादक/लेखिका
मुझे पता है
कैसी होती हैं मानसिक यातनाएं
क्या होता है ढोना
क्या होता है एकाकी रोना....!

मुझे पता है
कैसी होती हैं सामाजिक धारणाएं
जिसमे कहा जाता है
स्त्री को बोझ, बांझ 
और कहा गया परायाधन, विवाह के उपरांत..!

मुझे पता है
कैसी होती हैं परियों की कथाएं
क्या होता है बेटी का होना
कैसे भ्रूण से लेकर का सफ़र
परिवार में, जन्मी बेटी के, अस्तित्व का असर...!

मुझे पता है
कैसी होती हैं चेहरे पर की मात्राएं
कहने की आज़ादी का द्वंद
लगाएं गए हुए प्रतिबंध
विवशता से भरा मन, प्रतिपल आश्रित तन...!


पता-लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

पढ़िये आज की रचना

चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

(फिल्म समीक्षा)      एक मां के लिए उसका बेटा चाहे जैसा हो वह राजा बेटा ही होता है, बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिन्हें हम अपने विचार...

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