साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०
Showing posts with label डॉ. सतीश चन्द्र भगत. Show all posts
Showing posts with label डॉ. सतीश चन्द्र भगत. Show all posts

Thursday, June 17, 2021

मन में साहस भरना भैया-डॉ. सतीश चन्द्र भगत

अच्छी बातें रखें ध्यान में,

काम समय पर करना भैया।

 

आपस में शुचि प्रेमभाव हो,

एक- दूसरे प्रति लगाव हो।

हिंसा चोरी बुरी बात है ,

सही राह पर चलना भैया।

 

अहंकार से तोड़ें नाता,

श्रम - संयम से बने विधाता।

करें सभी के साथ भलाई ,

निर्बल के दुरूख हरना भैया।

 

आपस में हो भाईचारा,

थोड़े में ही करें गुजारा।

मातृभूमि पर बलि- बलि जाएं,

मन में साहस भरना भैया।


 

निदेशक- हिन्दी बाल साहित्य शोध संस्थान,

बनौली, दरभंगा ( बिहार) -847428

 

लाल अनार-सतीश चन्द्र भगत

लाल अनार लाल अनार,

गेंद सरीखे गोल अनार।

 

लदे फदे हैं पेड़ों पर,

लगते अच्छे लाल अनार।

 

इसके अंदर लाल दाने,

करता है मन, इसको खाने।

 

जब खाएंगे लाल अनार,

नहीं पड़ेंगे हम बीमार।

 

जमकर खाएं लाल अनार,

हमें मिलेंगे शक्ति अपार।



पता- निदेशक- हिन्दी बाल साहित्य शोध संस्थान,

बनौली, दरभंगा ( बिहार) -847428

भाईचारा-डॉ. सतीश चन्द्र भगत

प्रेम  मुहब्बत रहे  सभी  में

घृणा- द्वेष से दूर रहें  हम

हिंसा- चोरी  बात हो झूठी

मुंह मोड़ना  अच्छा भैया ।

 

अहंकार से  तोड़े  नाता

सदा क्रोध से दूर रहें हम

करें भलाई दीन- दुखियों का

ईर्ष्या कभी न करना भैया।

 

निर्मल  मन  से  भाईचारा

कायम रहे तभी तो अच्छा

कितना प्यारा  भाईचारा

सबसे हिलमिल रहना भैया।


 

पता- निदेशक- हिन्दी बाल साहित्य शोध संस्थान,

बनौली, दरभंगा ( बिहार) -847428

Sunday, June 13, 2021

स्वाद निराला- सतीश चन्द्र भगत

ले लो भैया गरम समोसा

खाओ भैया इडली डोसा ।

 

अजब- गजब संग चटनी वाला,

चटपट- चटपट स्वाद निराला ।

 

बोलो बोलो क्या है लेना,

नहीं अधिक है दाम देना ।

 

मेरी जेब में दस रुपैया,

जो है सस्ता दे दो भैया ।

 

गरम समोसा मीठी चटनी,

खाकर फिर पुस्तक है पढ़नी ।

निदेशक- हिन्दी बाल साहित्य शोध संस्थान

बनौली, दरभंगा ( बिहार) -847428

Wednesday, June 02, 2021

ज्ञान भरें हैं पुस्तक में


डॉ. सतीश चन्द्र भगत


मेरे घर में है अलमारी,

रखी पुस्तकें इसमें सारी ।

 

सजे हुए हैं इसके खाने,

मोटे- पतले ग्रंथ पुराने ।

 

कहते दादा पढ़ना सीखो,

सोच समझकर बढ़ना सीखो ।


मिहनत करके मंजिल चढ़ना,

अच्छी- अच्छी पुस्तक पढ़ना ।


इनसे तुमको  ज्ञान मिलेंगे,

जीवन में सम्मान मिलेंगे ।

निदेशक- हिन्दी बाल साहित्य शोध संस्थान, बनौली, दरभंगा ( बिहार) -847428

Monday, May 31, 2021

कबूतर बोले

 कबूतर बोले

गूटुरू गूं कबूतर बोले,

हुआ सबेरा तुम क्यों सोए ।

 

सूरज की किरणें खिड़की पर,

तुम क्यों अब सपने में खोए ।

 

सुबह- सबेरे जो उठ जाए,

आलस भी उससे डर जाए ।

 

बड़े लगन से दिनभर अपने,

कामों में भी वे जुड़  जाए ।

 

प्रतिदिन आगे बढ़ते हुए,

अपना जीवन सफल बनाए ।

 

-डॉ. सतीश चन्द्र भगत


निदेशक-- हिन्दी बाल साहित्य शोध संस्थान, बनौली, दरभंगा (बिहार) -847428

अगड़म- बगड़म चित्र बनाते

अगड़म- बगड़म चित्र बनाते


कुछ उजले कुछ  काले  बादल,

अजब- गजब मतवाले बादल ।

कहाँ- कहाँ से उड़- उड़ आते,

अगड़म- बगड़म चित्र बनाते 

 

हिम्मत  वाले  सारे   बादल,

बरखा के गुण खूब बताते 

अजब- गजब वह शोर मचाते,

खेतों में हरियाली   लाते 

 

चित्रकार बनकर वह नभ में,

मनमोहक चित्र खूब बनाते ।

उमड़- घुमड़कर नभ से बादल,

पेड़ों को जल से   नहलाते ।

 

सूखे  ताल- तलैया भरकर,

अगड़म- बगड़म शोर मचाते ।

नदियों को भरकर  इठलाते

गाते,  सागर में मिल जाते 


-डॉ. सतीश चन्द्र भगत



निदेशक- हिन्दी बाल साहित्य शोध संस्थानबनौली, दरभंगा (बिहार) -847428

Saturday, May 29, 2021

अगड़म- बगड़म चित्र बनाते


-डॉ. सतीश चन्द्र भगत


कुछ उजले कुछ  काले  बादल,

अजब- गजब मतवाले बादल।

कहाँ- कहाँ से उड़- उड़ आते,

अगड़म- बगड़म चित्र बनाते।

 

हिम्मत  वाले  सारे   बादल,

बरखा के गुण खूब बताते।

अजब- गजब वह शोर मचाते,

खेतों में हरियाली   लाते।

 

चित्रकार बनकर वह नभ में,

मनमोहक चित्र खूब बनाते।

उमड़- घुमड़कर नभ से बादल,

पेड़ों को जल से   नहलाते।

 

सूखे  ताल- तलैया भरकर,

अगड़म- बगड़म शोर मचाते।

नदियों को भरकर  इठलाते

गाते,  सागर में मिल जाते।

लेखक निदेशक हैं, हिन्दी बाल साहित्य शोध संस्थान,

बनौली, दरभंगा (बिहार) -847428

Friday, May 28, 2021

झर रही फुहार

झर रही फुहार


 

-डॉ. सतीश चन्द्र भगत

उमड़- घुमड़

मेघ रह- रह बरसे

हवा के झोंके से

आम के डंडी से

बिछुड़- बिछुड़ कच्चे ही

आम गिरे ढप- ढप |

 

गाँव के बच्चे

चुन रहे हैं आम टप- टप

भींग रहे बरखा में

कूद रहे छप- छप |

 

उमंगो से झूम - झूम

नाचें हैं बरखा में

बौरा गई हवा भी

उड़ रहे बादल

बरसे बरखा रह- रह

आज सबके मन में

भर रहे हैं उल्लास  |

 

बौखलायी गर्मी की लपटें

हो गई चुपचाप

धरती की आंचल

हरियाली में हवा के संग

लहराने लगे गाने लगे

निज- निज पंख फैलाने लगे |

 

सुनाए स्वर हवा

बरखा के संग

रूनझुन- रूनझुन

कर दिया मौसम सुहाने

मची सबके दिलों में

हलचल -हलचल |

 

झर रही फुहारें

सड़क पर बह रही दरिया

बच्चे कर रहे चहलकदमी

कागज की नांव रहे

कूद रहे छप- छप |


लेखक-हिन्दी बाल साहित्य शोध संस्थान के निदेशक हैं, 

बनौली, दरभंगा ( बिहार) -847428

करें वन्दना मातृभूमि की

 

-डॉ.सतीश चन्द्र भगत

करें वन्दना मातृभूमि की  !

 

गरिमा- मंडित भारत माता,

हम सब उसकी संतान  हैं |

सब दिन गूंजे दिग्दिगंत  में,

शाश्वत सुखदायक गान हैं |

 

भरापूरा सौरभ से  सज्जित,

महके आंचल मातृभूमि की!

 

पेड़- पौधे फसलों से हर्षित

हो, झूमे धरती  का माली  |

स्नेह-घट छलके सबके मन में,

बजे खुशी से सबकी  ताली |

 

दिया गुरूओं ने समुचित शिक्षा,

करें वन्दना मातृभूमि की  !

 

हिलमिल सब मेहनत करते हैं,

किसान, जवान इसकी संतान|

ममता समता का संदेश दिया,

है वेद- ऋचा, गीता  पुराण |

 

राष्ट्रीय झंडा  आकाश चूमती,

करें वन्दना मातृभूमि की  !


(लेखक हिन्दी बाल साहित्य शोध संस्थान के निदेशक हैं),

पता-बनौली, दरभंगा ( बिहार) -847428

पढ़िये आज की रचना

चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

(फिल्म समीक्षा)      एक मां के लिए उसका बेटा चाहे जैसा हो वह राजा बेटा ही होता है, बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिन्हें हम अपने विचार...

सबसे ज्यादा जो पढ़े गये, आप भी पढ़ें.