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डॉ. जुगुल किशोर चौधरी |
पैसा आते ही सब जमी को भूल जाते
हैं।
ये नेता हैं अपनी अम्मी को भूल
जाते हैं।
खता हुई है तो अफसोस कर,
माफ़ियां मांग,
क्यों गुनाह करके अपनी कमी को भूल
जाते हैं।
जमीन पे बरस रही है तुम्हारी ही
लगाई आग
क्यों रिश्ते-नाते देश-वेश सभी को
भूल जाते हैं।
खूब सिसकिया ले रहा है मौत का
सौदा करके
साहब हमी से वादा करके हमी को भूल
जाते हैं।
सुबह से शाम तक यूं ही भूखा रहा,
तुझको देखा गोया इफ्तार हो गया।
हर पल पी रहे हैं आप यूं गरीबों
का लहू,
ज़िन्दगी का खू गोया बियर बार हो
गया।
सरकार आप सो रहे हैं छीन कर चैनों
शुकूँ,
बेसहारों,
श्रमिको का जीवन दुश्वार हो गया।
आपने देखी है हमेशा अमीरों की
हवेलियाँ,
झोपडियों में बसा जीवन गोया बेकार
हो गया।
मस्जिदों में जाने की जरूरत नहीं
है!
यूं मूर्खता दिखाने की जरूरत नहीं
है!
वायरस से बचाने अल्हाह आएंगे न
राम!
ज्यादा भक्तई निभाने की जरूरत
नहीं है।
एक गलती ही काफी है मारे जाने के
लिए!
यू मौत से हाथ मिलाने की जरूरत
नहीं है।
सबको मिलती है जन्नत इसी जमी में!
यूं सैर-सपाटे में जाने की जरूरत
नहीं है।
आधा भारत जल रहा,
पेट और मुसीबत की आग में!
यूं पकवान की फोटो,
सेल्फी दिखाने की जरूरत नहीं है।
डॉक्टरों को चाहिए पीपीई किट,
सेनेटाइजर, सुरक्षा सभी!
हौसलों के लिए ताली-थाली,
घंटा बजाने की जरूरत नहीं है।
हिन्दू मुस्लिम की आग में जल रहे
हैं सभी,
यूं दिया-मोमबत्ती जलाने की जरूरत
नहीं है!
आप स्वतंत्र साहित्यिक लेखक हैं
जिला-सागर,
मध्य प्रदेश