सम्पादकीय
अस्मिता (जन की बात) ब्लॉग/पेज का निर्माण अपनी उन रचनाओं के लिए किया था जो समाचार के साहित्यिक कलम और पत्रिकाओं के सम्पादकीय विभाग से अयोग्य करार दे दी जाति थीं. किसी ने कहा है की रचनाये कोई ख़राब नहीं होतीं. साल 2019 या 2020 में साहित्य का कोई बड़ा पुरस्कार (क्षमा करें याद नहीं आ रहा, याद आते सम्मिलित कर दूंगा) ऐसे को मिला जिसकी रचना (पुस्तक) को एक नहीं कई सम्पादकों ने यह कहते हुए लौटा दिया की यह पुस्तक (पाण्डुलिपि) बेअर्थ और निरर्थक है. इसलिए लिखते रहिये जो मन में आये उस लेख प्रति आपका सकारात्मक दृष्टिकोण होना चाहिए और साथ ही साथ यह भी ध्यान में रखिये जो हम लिख रहे हैं वह अपने आप में कितना सार्थक है उसका मूल्याङ्कन स्वयं के द्वारा किया जाना जरुरी है.
मेरे लेखकीय रूचि को देखते हुए ब्लॉग पर अपने लेखों का प्रकाशन करने का पहला सुझाव मेरे ही मझले भाई नवल किशोर ने दिया था. क्योंकि वह स्नातक की पढ़ाई पूरी कर घर की आर्थिक स्थिति के चलते दुबई चला गया, घर-परिवार और हम लोगों से बात करने के लिए स्मार्ट फोन लेना आवश्यक हो गया था. परिणामतः भाई तकनीकी की दुनिया में पहले ही आ गया. हम अपनी पढ़ाई-लिखाई और निजी समस्याओं तथा आर्थिक स्थिति आदि के चलते देर से जुड़ पाए. मेरे पढ़ने और लिखने का काम जारी था किन्तु पढ़ते हुए स्कूल में पढाने का काम सितम्बर या नवम्बर का महिना होगा, साल 2010 की बात होगी, महीने के अंत में पढ़ाना शुरू किया था तब हमें पढाये गए दिनों के हिसाब से 390 रूपये मेहनताना में मिले थे. मेरे स्वयं की पहली कमाई थी उस रूपये का सदुपयोग एक जाकेट लेने में किया जो शायद 590 रूपये का मिला था. मेरे सिंगल बॉडी होने के चलते उसका साथ हमे 10 या 11 वर्षों तक मिला. ऐसे में स्मार्ट मोबाइल फोन आदि लेना मेरे बस के बहार की बात थी. लेपटॉप (नवल किशोर दुबई से लेकर आया था) के आ जाने से सोशल मिडिया में आने का रास्ता प्रसस्त हुआ, इस दुनिया में मेरा मझला भाई ही मेरा गुरु है. 2014 से फेसबुक, ट्विटर, आदि का उपयोग करने लगा था. किन्तु कभी कभार......यहाँ निरंतरता 2016 से जारी है, तबसे लेकर आज तक ल्रेखन के क्षेत्र में थोड़ी-बहुत जान-पहचान बना लिया हूँ. लेखन में, मैं कक्षा छः से ही हूँ, उस समय के लेखन में भाव और लय की प्रधानता अधिक थी और साथ ही साथ वह लेखन दोष-पुंज भी था . पहली रचना कहानी "अज्ञात हमलावर" सरस सलिल २०१० या २०११ के अंक में छपी थी. तबसे लेखन का सिलसिला चल पड़ा, लेखन के क्षेत्र में फेसबुक, ट्विटर अच्छा माध्यम है नए लेखकों के लिए वैश्विक पहचान बनाने के लिए.....उससे भी एक कदम आगे बढ़कर है ब्लॉग/वेबपेज/ वेबसाइट पर लेखन करना देखते ही देखते आप एक अंतराष्ट्रीय पहचान बन जाते हैं, रातोंरात; और क्या चाहिए?
अस्मिता ब्लॉग पेज इस साल से मेरा स्वयं का न रहकर अब यह आप सभी साहित्यिक साथियों के रचनाओं के लिए एक ऑनलाइन मंच बन गया है. आज से 5 या 6 माह पहले साहित्य को लेकर अपने गुरु जी राजकिशोर जी के यहाँ बैठक हुई. यह वही जगह है, जहाँ सुरेश सौरभ जी से हमारी पहली मुलाकात हुई. आपकी रचनाएँ फेसबुक आदि पर हमें पढ़ने को मिलती रहीं, साहित्यिक परिचय के हम मोहताज़ नहिं थे किन्तु हम दोनों लोगों की पहली मुलाकात आमने-सामने पहले यहीं पर हुई. साहित्यिक रिश्ते में गहराई आती गई. इस क्षेत्र में ऑनलाइन वेबपेज बनाने का विचार सुरेश सौरभ जी (जिले के अग्रणी साहित्यकार) के मन में आया जिसको लेकर हम लोंगों में चर्चाएँ होने लगी.इस सम्बन्ध में एक बैठक महीने-भर के अन्तराल पर पुनः किया गया जिसमें राजकिशोर जी (प्रवक्ता) , नन्दलाल वर्मा जी (एसोसिएट प्रोफ़ेसर) सुरेश सौरभ जी (साहित्यकार), श्यामकिशोर बेचैन जी (कवि), रमाकांत चौधरी जी (अधिवक्ता/कवि) और अन्य लोग उपस्थित रहे. जिसमें निर्णय लिया गया की इसका सञ्चालन मेरे द्वारा किया जायेगा क्योंकि ऑनलाइन (अंतर्जाल) दुनिया में मेरा कुछ लगाव ज्यादा है...मैंने सहर्ष स्वीकार कर लिया. इस पेज का संचालन महज एक प्रयोग है जिले के साहित्य के क्षेत्र में और यह प्रयोग सफल भी रहा है. हमें खुशी हो रही है कि मई के अंतिम महीने से लेकर अब-तक साहित्यिक साथियों और पाठकों का भरपूर सहयोग मिला है. रचनाओं को लगाते समय यह भी देखने को मिला है कि जिले के नवोद्भिद साहित्यकार भी निकलकर आयें हैं, जिनकी रचनाओं को वापस न कर संशोधित करते हुए 'साहित्य के नवांकुर' कालम के तहत प्रकाशित कर दिया गया और जो उन्हें साहित्य से सम्बंधित जिन बारीकियों को बताया गया सहर्ष स्वीकार कर अपनी रचनाएँ जो पुनः प्रेषित किये उसमें काफी सुधार दिखा. हम सम्पादकीय मंडल के तरफ से इन नवांकुर साहित्यिक साथियों को उनके उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं और बधाई देते हैं. साहित्य के क्षेत्र में निर्वार्ध गति से अपनी लेखनी को धार दें और जन-मानस की आवाज बनें.
इस पेज पर साहित्य के धुरंधर विचारक, लेखक, साहित्यकार, साथिओं (मेरे लिए गुरुओं) का का सहयोग प्राप्त हो रहा है हम उनके बहुत-बहुत आभारी हैं और आशा करते हैं की साहित्य में आपका सहयोग और मार्गदर्शन सदा मिलता रहेगा. इसी के साथ इस लेखनी को हम यहीं विराम देते हैं.
उपसम्पदाकीय
अस्मिता ब्लॉग/पेज
https://anviraj.blogspot.com