सबल भाई की निर्बल भाई
पर गुंडा गर्दी ना होती ।
काश पिता जीवित होता तो
ऐसी सरदर्दी ना होती ।।
सबका अपना हिस्सा होता
सबका अपना घर होता ।
होता सच्चा प्यार सामने
झूठी हमदर्दी ना होती ।।
हांथ पिता का सर पे होता
तो अनाथ ना कहलाता ।
और जमाने भर में मेरी
ऐसी बे कदरी ना होती ।।
पिता एक अंकुश होता है
पिता हौसला होता है ।
पिता नही होता तो शायद
तनपे कोई वर्दी ना होती ।।
पिता के दम से मान हुआ
पूरा हर अरमान हुआ ।
पिता के होते हावी मुझपर
गर्मी और सर्दी ना होती ।।
हर बच्चे को मिलता चैन
होता ना कोई बेचैन ।
पिताके होते दुनियां ऐसी
जालिम बेदर्दी ना होती ।।
कवि श्याम किशोर बेचैन
संकटा देवी बैंड मार्केट
लखीमपुर खीरी