साहित्य

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  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Tuesday, June 01, 2021

सफाई वाला (लघुकथा)

    एक सड़ी हुई क्षत-विक्षत लावारिस डेड बॉडी अस्पताल में आई। पोस्टमार्टम हाउस में कोई डॉक्टर उसे पहचान नहीं पा रहा था कि बॉडी स्त्री की है या पुरूष की। सड़ांध के कारण, दूर से ही डॉक्टर खानापूरी करना चाह रहे थे। तब डॉक्टरों ने सफाईकर्मी कमरूद्दीन को बुलाया। डॉक्टरों ने उससे कहा कि वह पहचाने कि बॉडी किस की है। कमरूद्दीन ने एक ही क्षण में निहार कर कहा-साहब स्त्री की है।

   तब एक डॉक्टर ने उससे चुटकी ली-यार! ये बताओ हम उतनी देर से नहीं पहचान पाए, तुम इतनी जल्दी कैसे पहचान गये?

   कमर-मैंने दिल की आँखों से, मन की आँखों से देखा।

   दूसरा डॉक्टर बोला-अरे! यार, ये आँखें हमें क्यों नहीं मिली?

   कमर-क्यों कि आप डॉक्टर हैं, मैं सफाई कर्मी हूँ?

   अब वहाँ निःशब्दता में मिश्रित शून्यता, छा गई। डॉक्टर शान्ति से खानापूरी में लग गए।

 

सुरेश सौरभ

 

निर्मल नगर लखीमपुर खीरी

पिन-262701

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