साहित्य

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  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Friday, June 11, 2021

चित्त रंजन गोप, लिये लुकाठी हाथ -सुरेश सौरभ


   साक्षात्कार  

चित्तरंजन गोप
आज हिंदी लघुकथा के क्षेत्र में चित्तरंजन गोप एक चर्चित एवं सुपरिचित नाम है। मील आज हिंदी लघुकथा के क्षेत्र में चित्तरंजन गोप एक चर्चित एवं सुपरिचित नाम है। मील का पत्थर है। देश की प्राय: समस्त लोकप्रिय पत्र-पत्रिकाओं में उनकी रचनाएं छप रहीं हैं। सबसे बड़ी बात, वे पहले लघुकथाकार हैं जिन्हें लघुकथा के लिए किसी पत्रिका में स्थाई स्तंभ मिला हो। प्रखर गूंज प्रकाशन नई दिल्ली की पत्रिका 'विचार वीथिका' में उन्हें 'लिये लुकाठी हाथ' नामक लघुकथा का एक स्थाई स्तंभ दिया गया है। प्रस्तुत है, पिछले दिनों उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश :


*
सर, सबसे पहले आपको लघुकथा का स्थाई स्तंभ मिलने के लिए बधाई। इस स्तंभ के बारे में कुछ बताएं?

 *जी धन्यवाद, प्रखर गूंज प्रकाशन नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित मासिक पत्रिका 'विचार वीथिका' ने स्वत: संज्ञान लेते हुए मुझे यह स्थाई स्तंभ ( लिये लुकाठी हाथ ) दिया है। मैं उनका शुक्रगुजार हूं। खुश हूं कि मैं अपनी लघुकथाओ से इस स्तंभ को मजबूती देने के लिए हमेशा तत्पर रहूंगा।

*आपका लेखन किस उम्र में शुरू हुआ?

*जब मैं पांचवीं श्रेणी में पढ़ता था, उस समय बांग्ला में कविताएं (बच्चों की तरह ही) लिखा करता था। मुझे याद है, मैंने कविताओं से एक कॉपी भर दिया था। उसे देखकर पिताजी ने डांटते हुए कहा था, "पहले अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो। बाद में, रवीन्द्र नाथ ठाकुर बनना।" उस दिन मैंने रवीन्द्र नाथ ठाकुर का नाम पहली बार सुना था।

*आपको लेखन में किस-किस ने प्रेरित किया?

*जब मैं तीसरी कक्षा में पढ़ता था, तब बांग्ला रामायण एवं महाभारत का पाठ किया करता था। कृत्तिवास ओझा की रामायण और काशीराम दास का महाभारत अद्भुत ग्रंथ हैं। इन्हीं दो ग्रंथों ने मुझे साहित्य लेखन की कलम पकड़ा दी।

* क्या आपकी पढ़ाई बांग्ला माध्यम से हुई है?

* जी नहीं, हिंदी माध्यम से। बांग्ला मैंने घर में सीखी है। रामायण-महाभारत के अध्ययन ने इसे परिष्कृत किया है। बाद में, शौक से बांग्ला साहित्य का भी अध्ययन किया है।

* रामायण एवं महाभारत को आप किस रूप में देखते हैं?

*ये दोनों मिथक हैं। रामायण पूर्णत: काल्पनिक एवं महाभारत अल्प-सत्य महाकाव्य हैं। इनमें इतिहास का बीज है। ये इतिहास का पूरा आभास देते हैं। इनमें तत्कालीन समाज की पूरी रूपरेखा मिलती है। हां, यदि पाठक ,ज्ञान सचेतन न हो, तो इनके अध्ययन से वह गुलाम जरूर हो जाएगा।

* आपके पसंदीदा लेखक और लेखिका कौन कौन है?

*इस प्रश्न का उत्तर देना मेरे लिए कठिन है क्योंकि किसी भी लेखक को मैंने समग्रता से नहीं पढ़ा है। वैसे रवीन्द्रनाथ ठाकुर, शरत चंद्र चट्टोपाध्याय, महाश्वेता देवी, प्रेमचंद, रामवृक्ष बेनीपुरी, तस्लीमा नसरीन, रमाशंकर यादव विद्रोही, मलखान सिंह, ओमप्रकाश वाल्मीकि, धूमिल आदि का नाम ले सकता हूं।

*आपके लेखन का मूल उद्देश्य क्या है?

* सच कहूं तो कोई उद्देश्य लेकर नहीं लिखता हूं। जब कोई बात या कोई घटना मेरे भीतर को झकझोर देती है, तो स्वत: कुछ लिखा जाता है। बाद में, सोचता हूं कि इस रचना के माध्यम से मैं समाज को क्या संदेश दे सकता हूं और उस संदेश को उसमें प्रतिस्थापित कर देता हूं।

* हिंदी साहित्य की किन-किन विधाओं में लिखते हैं?

*फिलहाल तो केवल लघुकथा और कविता।

* आपकी पहली प्रकाशित लघुकथा कौन सी है?

*अकाल जन्म। दैनिक जागरण की 'पुनर्नवा' में 3 दिसंबर 2012 को यह लघुकथा छपी थी। हालांकि मेरी लिखी हुई पहली लघुकथा 'दस दहाई सौ' है जो हाल में लघुकथा कलश के जुलाई-दिसंबर 2019 अंक में छपी है।

*आपकी प्रकाशित कुछ प्रमुख लघुकथाओं के नाम?

*दस दहाई सौ, अकाल जन्म, हरामखोर, एक ठेला स्वप्न, परिवार के सदस्य, कंधे पर लाश, हजार साल बाद, सरस्वती पूजा, ऐतिहासिक भ्रातृ मिलन, मरहम आदि।

*और प्रमुख कविताएं?

*खरीदारी, पूजा की साड़ी, माटी से दूर, क्या कभी देखा है आपने, कासगंज की उस गली से होकर, आदमखोर : आदमी और शेर आदि।

*पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में कुछ बताएं।

*मेरा जन्म एक किसान परिवार में हुआ है। गाय-भैंस का कारोबार था। दूध बिक्री जीविकोपार्जन का मुख्य आधार थी। मगर मेरा काम केवल पढ़ना था। मुझे इन सब कामों में हाथ बंटाने के लिए किसी ने कभी नहीं कहा बल्कि मना ही किया। परिवार में मां, पिताजी, पत्नी, एक बेटा और दो बेटियां हैं। पिताजी किसान हैं और एक अध्ययनशील व्यक्ति भी। पत्नी मेरी तरह ही रवीन्द्रानुरागिनी हैं।

* क्या आप सामाजिक संगठनों से भी जुड़े हैं?

*नहीं। बस, चलते-फिरते किसी की कोई मदद करने का मौका मिलता है, तो कर देता हूं।

* आज के समय में स्त्री और दलित विमर्श कितना सफल और कितना असफल रहा है? इसकी क्या प्रासंगिकता है?

*आज स्त्री और दलित विमर्श पर खूब लिखा जा रहा है। लिखा जाना भी चाहिए क्योंकि उनका हजारों सालों से शोषण होता आ रहा है। वे आज भी बदतर स्थिति में हैं। हां, लेखन तो खूब हो रहा है मगर जिनके लिए लिखा जा रहा है, बात उन तक पहुंच नहीं रही है। वे जागृति से कोसों दूर है। इस पर विशेष रूप से सोचने की जरूरत है।

* आपकी रचनाएं लीक से हटकर होती है, ऐसा क्यों?

*क्योंकि मेरी सोच ही लीक से हटकर है।

*आप देश और समाज के उत्थान के लिए क्या सोचते हैं?

* मैं सोचता हूं कि दुनिया के अधिकांश देशों की तरह हमारे देश में भी जन्म लेने वाला बच्चा केवल और केवल एक मानव-शिशु के रूप में जन्म ले।

*किसी कहानी पर कोई फिल्म या धारावाहिक का निर्माण हुआ है?

*नहीं भाई। मैं उस योग्य हूं भी नहीं।

* अभी तक आपको कौन-कौन से पुरस्कार और सम्मान मिले हैं?

*उल्लेख करने लायक तो कोई सम्मान या पुरस्कार नहीं मिला है। शायद उस योग्य भी मैं नहीं बन पाया हूं।

*आप अपनी जन्म तिथि एवं जन्म स्थान का कुछ विवरण दें।

* मेरी जन्म तिथि 9 अप्रैल 1973 है। झारखंड के बोकारो जिले के चंदनकियारी क्षेत्र में जंगल से घिरा एक छोटा-सा गांव है-- बांसगाड़ी। वही मेरा जन्म स्थान है। फिलहाल मैं धनबाद के निरसा में अध्यापक के पद पर कार्यरत हूं। महीने में एक-दो बार गांव जाता हूं।

* लेखन में आगे की कोई योजना?

*कोई योजना नहीं क्योंकि मैं थोक में लिखने वाला नहीं हूं। मन के उफान को शांत करने के लिए कभी-कभार लिख लेता हूं। मगर हां, ठोक बजाकर लिखता हूं।



-सुरेश सौरभ

निर्मल नगर लखीमपुर खीरी

पिन-262701

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