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लक्ष्मी पांडे |
साहित्य के नवांकुर
काटे हैं हमने पेड़ भी दीवान के लिए ।
छोड़े नही पहाड़ भी , मकान
के लिए ।।
वसुधा के साथ खेल इतना ठीक
नहीं है ।
खतरा है ये बहुत बड़ा इंसान
के लिए ।।
सांसों के लिए सांस, जो ले
रहे हैं हम ।
सांस नहीं जहर है, अपनी जान
के लिए ।।
पीने के योग्य पानी बहुत ही,
कम है दोस्तों ।
रखना है सुरक्षित ये जल,
जहान के लिए ।।
अब पैलोथिन भी बन गई है
शत्रु देखिए ।
कोई विकल्प ढूंढिए भावी-भविष्य
के लिए ।।
अब लक्ष्य घर की लक्ष्मी को
साधना होगा ।
इंसानियत के इस धर्म और ईमान के लिए ।।
पता-नहर रोड निकट बुद्ध बिहार
लखीमपुर