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अल्का गुप्ता |
शब्द मौन, अर्थ बौने हो गये हैं
दृश्य मानव के, घिनौने हों गये हैं!!
वेदना में लिपटी हैं अनुकंपाए
भाव कलह के, डिठौने हो गये हैं!!
स्पर्श,अंकमाल हुए श्राप ज्यों
वायरल चीनी, किरौने हो गये हैं!!
शांत हैं पुरूषार्थ सर्व पराक्रम
सुषुप्त शांति के, बिछौने हो गये हैं!!
विश्व के निर्धन, मुर्छित हाथ बांधे
बिलखते खाली, भगौने हो गये हैं!!
सभी विकासशील प्रणालियों की
इकाइयों के, औने-पौने हो गये हैं!!
दिनकर की प्रकाशित ज्वाला में भी
ग्रीष्म के सुर, आगि लगौने हो गये हैं!!
पता-लखीमपुर खीरी उ०प्र० २६२७०१