साहित्य
- जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
- लखीमपुर-खीरी उ०प्र०
Thursday, August 05, 2021
परिवार-अल्का गुप्ता
Wednesday, June 16, 2021
किसान-अल्का गुप्ता
Monday, June 14, 2021
शब्द मौन, अर्थ बौने हो गये हैं-अल्का गुप्ता
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अल्का गुप्ता |
Wednesday, June 09, 2021
कोई हो जो साथ दे- अल्का गुप्ता
साहित्य के नवांकुर
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अल्का गुप्ता |
हर किस्सा जिंदगानी
का अजीब सा है
क्यूं कहता है कोई? तूं खुशनसीब सा है
ग़म में मुस्काना भी एक तरकीब सा है
कोई हो जो साथ दे!
उल्फत में, हाथ-स्पर्श वो करीब सा है
दर्द अश्कों का मेरे यार तरतीब सा है
ग़म में मुस्काना भी एक तरकीब सा है
कोई हो जो साथ दे!
नावाकिफ, अपना बेशक वह गरीब सा है
तन्हा नहीं दौर-ए-आज वह अदीब सा है
तकलीफ में साथ दे, दिल-ए-करीब सा है
कोई हो जो साथ दे!
पता-लखीमपुर खीरी उ०प्र०
Tuesday, June 08, 2021
प्रकृति और योग-अल्का गुप्ता
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अल्का गुप्ता |
श्रष्टि, प्रकृति, योग हैं पुरस्कार,
मिला है, स्वरूप यह उपहार।
सुखी जीवन का एक आधार,
योग का पालन करो सरोकार।
मात्र योग एवं प्रकृति के,
सामीप्य से सब रोग निषिद्ध।
अर्जित, आत्मसिद्धि शांत-चित्त,
सात्विकता ही है फलसिद्ध।
हैं प्रकृति योग सम्बन्ध घनेरा,
प्रकृति और योग के सानिध्य में।
अभिसिंचित होता जीवन मेरा
व्यतीत हो जीवन के मध्य में।
मन भ्रान्ति मिट जाये सब,
अर्जित हो शांति जो योग ।
काया-क्लेश दूर हो,
काया प्रफुल्लित हो रहें निरोग।
पता-लखीमपुर-खीरी ( उ०प्र०)
पढ़िये आज की रचना
मौत और महिला-अखिलेश कुमार अरुण
(कविता) (नोट-प्रकाशित रचना इंदौर समाचार पत्र मध्य प्रदेश ११ मार्च २०२५ पृष्ठ संख्या-1 , वुमेन एक्सप्रेस पत्र दिल्ली से दिनांक ११ मार्च २०२५ ...

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