साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०
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Thursday, August 05, 2021

परिवार-अल्का गुप्ता

अल्का गुप्ता
मीलों चलते हैं,हर पग में ढलते हैं
कितने ही मूढ़ ,भले ही ज्ञानी हो
गुमनाम थपेड़ों में खुशियों की लहरों में
जन होते हैं जो पहरों में होते हैं परिवार... 
युगों से होती आयीं प्राकृतिक विपदायें सब पर आनी हैं
इस काल मृत्यु लोक में नवाचार नहीं हुआ जन्मदाताओं में
धर्म की सूक्तियो को जीवन में प्रशस्त किया
करते हैं जो अभिनेता संचरित करते हैं प्रेरणा
जीवन की बौछारों में लिख देते हैं अधिकारों में 
कई गुना बढ़कर शीर्ष नेतृत्व जीवन के
मन के संग्रहालयों में . .. 
फूलों की खुश्बुदार ,नव लताओं में सजी
प्रेम की बसन्ती हवाऐं ,हिलोरें लेती हैं
पितृत्व की अनुभूतियों से,पूरित कच्चे धागों से बंधक
मर्यादित,अनुभवों के उपरांत परमानन्द
स्नेह के चुंबकीय भाव ममता के थपकियाँ
सिहरन भी महसूस कर लेती हैं परिवार में.. 
इकाई को दहाई की व्याख्या में पिरोती है
यदि हम बंधे हैं आज के युग मेंप्रेम के कच्चे धागो से
जब कुहासा(अंधेरा) प्रतीत होता हैं जब गली चैबारों 
में चांदनी बिखरी लगती हैं 
आंगन की उपमाओं में नहीं है नौ रत्नों में
पावन, नीर, पयोधि से पूरित प्रेम में... 
निजता को परिभाषित जिस आभा से पूरित
उपमान हैं हम जिनके सौभाग्यशाली हैं मनुज
श्रष्टा को भी प्राप्त नहीं जो अमर तत्व पालनहार.
प्रेम फुलवारी से खिली रिश्तों की बगिया है परिवार



लखीमपुर खीरी, उत्तर प्रदेश

Wednesday, June 16, 2021

किसान-अल्का गुप्ता

सच्चे नायक हैं  
करते तनिक आराम नहीं
भविष्य आश्रित है जिनपर
देवदूत हैं किसान वही.

करता परिश्रम 
हर मौसम की ढिठाई में 
जो भूमिपुत्र किंचित् सी कमाई में 
क्या आवश्यक है नहीं संशोधन? 
नये सत्ता की अगुवाई में.
पता-लखीमपुर(खीरी), उ०प्र०

Monday, June 14, 2021

शब्द मौन, अर्थ बौने हो गये हैं-अल्का गुप्ता

अल्का गुप्ता
शब्द मौन, अर्थ बौने हो गये हैं 
दृश्य मानव के, घिनौने हों गये हैं!!

वेदना में लिपटी हैं अनुकंपाए
भाव कलह के, डिठौने हो गये हैं!!

स्पर्श,अंकमाल हुए श्राप ज्यों 
वायरल चीनी, किरौने हो गये हैं!!

शांत हैं पुरूषार्थ सर्व पराक्रम
सुषुप्त शांति के, बिछौने हो गये हैं!!

विश्व के निर्धन, मुर्छित हाथ बांधे
बिलखते खाली, भगौने हो गये हैं!!

सभी विकासशील प्रणालियों की
इकाइयों के, औने-पौने हो गये हैं!!

दिनकर की प्रकाशित ज्वाला में भी
ग्रीष्म के सुर, आगि लगौने हो गये हैं!!

पता-लखीमपुर खीरी उ०प्र० २६२७०१

Wednesday, June 09, 2021

कोई हो जो साथ दे- अल्का गुप्ता

  साहित्य के नवांकुर 

अल्का गुप्ता

हर किस्सा जिंदगानी का अजीब सा  है

क्यूं कहता है कोई? तूं खुशनसीब सा है

ग़म में मुस्काना भी एक तरकीब सा है

कोई हो जो साथ दे!

 

उल्फत में, हाथ-स्पर्श  वो करीब सा है

दर्द अश्कों का मेरे यार  तरतीब सा है

ग़म में मुस्काना भी एक तरकीब सा है

कोई हो जो साथ दे!

 

नावाकिफ, अपना बेशक वह गरीब सा है

तन्हा नहीं दौर-ए-आज वह अदीब सा है

तकलीफ में साथ दे, दिल-ए-करीब सा है

कोई हो जो साथ दे!

पता-लखीमपुर खीरी उ०प्र०

Tuesday, June 08, 2021

प्रकृति और योग-अल्का गुप्ता

 साहित्य के नवांकुर

अल्का गुप्ता

श्रष्टि, प्रकृति, योग हैं पुरस्कार,

मिला है, स्वरूप यह उपहार

सुखी जीवन का एक आधार,

योग का पालन करो सरोकार

 

मात्र योग एवं प्रकृति के,

सामीप्य से सब रोग निषिद्ध

अर्जित, आत्मसिद्धि शांत-चित्त,

सात्विकता ही है फलसिद्ध

 

हैं प्रकृति योग सम्बन्ध घनेरा,

प्रकृति और योग के सानिध्य में

अभिसिंचित होता जीवन मेरा

व्यतीत हो जीवन के मध्य में

 

मन भ्रान्ति मिट जाये सब,

अर्जित हो शांति जो योग 

काया-क्लेश दूर हो,

काया प्रफुल्लित हो रहें निरोग

पता-लखीमपुर-खीरी ( उ०प्र०)

alka7398718446@gmail.com


 

पढ़िये आज की रचना

चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

(फिल्म समीक्षा)      एक मां के लिए उसका बेटा चाहे जैसा हो वह राजा बेटा ही होता है, बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिन्हें हम अपने विचार...

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