साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०
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Wednesday, May 26, 2021

बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष "बुद्ध का संदेश 'अप्प दीपो भवः'

बुद्ध का संदेश 'अप्प दीपो भवः'

“बुद्ध ने 'अप्प दीपो भवः' का शाश्वत संदेश देते हुए कहा था कि अपना दीपक स्वयं बनो। उठो, बैठो, चलो, खाओ, पियो, सोओ, विश्राम करो, जागरण के सूत्रों को अपने भीतर धारण करो। जिस दिन से हमारे जीवन में जागृति आएगी, उसी दिन से हमारा सच्चा जीवन शुरू होगा।”

 

                                                                                                                           देवेन्द्रराज सुथार

बुद्ध पूर्णिमा को गौतम बुद्ध के अवतरण दिवस के रूप में बौद्धों द्वारा मनाया जाता है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार, बुद्ध 29 वर्ष की आयु में घर छोड़कर संन्यास का जीवन बिताने लगे थे। उन्होंने एक पीपल वृक्ष के नीचे करीब 6 वर्ष तक कठिन तपस्या की। वैशाख पूर्णिमा के दिन ही बुद्ध को पीपल के वृक्ष के नीचे सत्य के ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। बुद्ध को जहां ज्ञान की प्राप्ति हुई वह जगह बाद में बोधगया कहलाई। इसके पश्चात महात्मा बुद्ध ने अपने ज्ञान का प्रकाश पूरी दुनिया में फैलाया और एक नई रोशनी पैदा की। महात्मा बुद्ध का महापरिनिर्वाण वैशाख पूर्णिमा के दिन ही कुशीनगर में 80 वर्ष की आयु में हुआ था। बुद्ध का जन्म, सत्य का ज्ञान और महापरिनिर्वाण एक ही दिन यानी वैशाख पूर्णिमा के दिन ही हुआ। इस कारण वैशाख महीने में पूर्णिमा के दिन ही बुद्ध पूर्णिमा मनाई जाती है।

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चित्रकार-विजय वीर 

 

दरअसल, बुद्ध एक नाम नहीं बल्कि एक उपाधि है। बुद्ध हमें धर्म का सही पालन करना सिखाते हैं। हम सभी गलत धारणाओं और अशुद्धियों - घृणा, लालच, अज्ञानता द्वारा निर्मित भ्रम के कोहरे में रहते हैं। लेकिन बुद्ध इस घने कोहरे से मुक्त होने की अवस्था है। बुद्ध ने 'अप्प दीपो भवः' का शाश्वत संदेश देते हुए कहा था कि अपना दीपक स्वयं बनो। उठो, बैठो, चलो, खाओ, पियो, सोओ, विश्राम करो, जागरण के सूत्रों को अपने भीतर धारण करो। जिस दिन से हमारे जीवन में जागृति आएगी, उसी दिन से हमारा सच्चा जीवन शुरू होगा। अचेतन और यांत्रिक जीवन को अपना जीवन कहना सही नहीं है, यह समय काटने के अलावा और कुछ नहीं है। ऐसे जीवन में कोई आनंद नहीं है। यह सिर्फ दुखों की एक शृंखला है। श्री श्री रवि शंकर के अनुसार, तुम बुद्ध के जितना निकट जाओगे तुम्हें उतना ही अधिक आकर्षण मिलेगा, तुम ब्रह्मज्ञानी से कभी ऊबते नहीं। तुम जितना समीप जाओगे तुम्हें उतनी ही अधिक नवीनता और प्रेम का अनुभव मिलता है। एक अथाह गहराई की तरह है।

 

बुद्ध प्रत्येक मनुष्य को शांत और सुखी बनाकर उसके दुख और व्याकुलता को दूर करना चाहते थे और एक समतावादी समाज की स्थापना करना चाहते थे, जिसमें सभी को विकसित होने, न्याय पाने, उच्च और निम्न के भेदभाव को समाप्त करने, लोकतांत्रिक अधिकार स्थापित करने का अवसर मिले। समुदायों के बीच असंतोष समाप्त किया जाना चाहिए। बुद्ध ने न तो अपनी शिक्षाओं की प्रशंसा को अधिक महत्व दिया और न ही आलोचकों की निंदा की। बुद्ध की लोकतांत्रिक मूल्यों में अटूट निष्ठा थी। उन्होंने सरकारी अधिकारियों को सलाह दी कि कानूनों और नियमों के अनुसार काम किया जाना चाहिए और यदि नियमों और कानूनों को बदलना है, तो वहां से संसद में बहस को मंजूरी दी जानी चाहिए। शासन के विभिन्न विभागों में तालमेल होना चाहिए और आपसी अविश्वास की स्थिति नहीं होनी चाहिए। उनके द्वारा स्थापित भिक्षु और भिक्षुणी दोनों संघ पूरी तरह से लोकतांत्रिक तरीके से चलाए जाते थे।

 

ओशो कहते हैं, यदि कोई व्यक्ति जीवन का अनुभव करता है, तो उसका आनंद हर दिन बढ़ना चाहिए। बुद्ध से किसी ने पूछा, तुम कौन हो? क्योंकि इतने सुंदर थे! देह तो उनकी सुंदर थी ही, लेकिन ध्यान ने और अमृत की वर्षा कर दी थी। एक अपूर्व सौंदर्य उन्हें घेरे था। एक अपरिचित आदमी ने उन्हें देखा और पूछा, तुम कौन हो? क्या स्वर्ग से उतरे कोई देवता? बुद्ध ने कहा, नहीं। तो क्या इंद्र के दरबार से उतरे हुए गंधर्व? बुद्ध ने कहा, नहीं। तो क्या कोई यक्ष? बुद्ध ने कहा, नहीं। ऐसे वह आदमी पूछता गया, पूछता गया, क्या कोई चक्रवर्ती सम्राट? बुद्ध ने कहा, नहीं। तो उस आदमी ने पूछा, कम से कम आदमी तो हो! बुद्ध ने कहा, नहीं। तो क्या पशु पक्षी हो? बुद्ध ने कहा, नहीं। तो उसने फिर पूछा थककर कि फिर तुम हो कौन, तुम्हें कहो? तो बुद्ध ने कहा, मैं सिर्फ एक जागरण हूं। मैं बस जागा हुआ, एक साक्षी मात्र। वे तो सब नींद की दशाएं थीं। कोई पक्षी की तरह सोया है, कोई पशु की तरह सोया है। कोई मनुष्य की तरह सोया है, कोई देवता की तरह सोया है। वे तो सब सुषुप्ति की दशाएं थीं। कोई स्वप्न देख रहा है गंधर्व होने का, कोई यक्ष होने का, कोई चक्रवर्ती होने का। वे सब तो स्वप्न की दशाएं थीं। वे तो विचार के ही साथ तादात्म्य की दशाएं थीं। मैं सिर्फ जाग गया हूं। मैं इतना ही कह सकता हूं कि मैं जागा हुआ हूं। मैं सब जागकर देख रहा हूं। मैं जागरण हूं, मात्र जागरण! जो समाधि को उपलब्ध है, वही जागा हुआ है। इसलिए ओशो ने समाधिस्थ लोगों को बुद्ध कहा है।

 

बुद्धत्व की संभावना प्रत्येक व्यक्ति के भीतर है। संक्षेप में प्रत्येक व्यक्ति बोधिसत्व है। बुद्ध को जिस घटना ने विचलित किया था, और उसके बाद उनका पूरा जीवन बदल गया था। ऐसी ही घटना हमारा भी जीवन बदल सकती है। ध्यान लगाने के लिए अब हमें जंगल में जाने की जरूरत नहीं है। हम अपने कार्यस्थल व बीच बाजार में भी ध्यान लगा सकते हैं। बुद्धत्व के बारे में ओशो कहते हैं, 'बुद्धत्व को उपलब्ध व्यक्ति एक अभिनेता ही है। वह इससे अन्यथा हो ही नहीं सकता। वह जानता है कि वह शरीर नहीं है, फिर भी वह इस तरह व्यवहार करता है, जैसे मानो वह शरीर ही हो। वह जानता है कि वह मन नहीं है, फिर भी वह इस तरह उत्तर देता है, जैसे वह मन ही हो। वह जानता है कि वह न तो एक छोटा बच्चा है, न ही एक युवा और न एक वृद्ध व्यक्ति ही, न वह पुरुष है और न स्त्री, फिर भी वह इस तरह व्यवहार करता है, जैसे कि वह वही है। बुद्धत्व को उपलब्ध व्यक्ति को अभिनेता बनने की आवश्यकता नहीं है, अपने बुद्धत्व से ही वह अपने को अभिनेता पाता है और कोई दूसरा विकल्प वहां है ही नहीं।'

 

देवेन्द्रराज सुथार

- देवेन्द्रराज सुथार

पता- गांधी चौक, आतमणावास, बागरा,

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मोबाइल नंबर- 8107177196

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