साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०
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Sunday, April 24, 2022

संतू जाग गया, पक्की दोस्ती का विमोचन सम्पन्न हुआ

    पुस्तक विमोचन   
संतू जाग गया, पक्की दोस्ती विमोचन सम्पन्न लखीमपुर खीरी आज सनातन धर्म विद्यालय में परिवर्तन फाउंडेशन संस्था के तत्वावधान में एक काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें गोला गोकर्णनाथ से मुख्य  अतिथि के रूप में वरिष्ठ कवि नंदी लाल विशिष्ट अतिथि कवि  समाजसेवी  द्वारिका प्रसाद रस्तोगी ने, डॉ मृदुला शुक्ला "मृदु" की कहानी संग्रह 'संतू जाग गया' और सुरेश सौरभ की कृति पक्की दोस्ती लघुकथा संग्रह का विमोचन किया। मुख्य वक्ता प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ राकेश माथुर ने पुस्तकों की समीक्षा  प्रस्तुत करते हुए कहा मृदुला की कहानियां गद्य गीत की तरह मार्मिक और हार्दिक हैं वहीं सौरभ की पक्की दोस्ती की बाल कहानियां बच्चों के लिए प्रेरणा दायक है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे शिक्षाविद् सत्य प्रकाश शिक्षक ने कहा रचनाकार सूर्य की तरह है जो समाज को सूर्य की तरह ही आलोकित करता है। सिधौली से पधारे  "श्रमवीर" कृति के रचयिता  देवेन्द्र कश्यप 'निडर' ने कहा सौरभ जी की रचनाओं में युगीन समय बोध है।

कार्यक्रम का संचालन कर रहे कवि श्याम किशोर बेचैन और शायर कवि विकास सहाय ने अपने बेहतरीन अंदाज से कविता पाठ करके सभा में समां बांध दिया। गोला गोकर्णनाथ के संत कुमार बाजपेई संत, रमाकांत चौधरी, डॉ शिव चन्द्र प्रसाद, हरगांव के युवा कवि विनोद शर्मा "सागर" नकहा के नवोदित कवि दुर्गा प्रसाद नाग, रंजीत बौद्ध, इन्द्र पाल, मृदुला शुक्ला, द्वारिका प्रसाद रस्तोगी ने भी सुमधुर काव्य पाठ किया। सरदार जोगिंदर सिंह चावला, अखिलेश अरूण, चंदन लाल वाल्मीकि, ने साहित्य की प्रासंगिकता पर विचार प्रकट किए। बालिका मानसी, रूपांसी, अपूर्वा शाक्य,  पूर्णिमा शाक्य ने भी कविता पाठ किया। संयोजक श्याम किशोर बेचैन ने अतिथियों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। सभा में शमशुल हसन उर्मिला शुक्ला, राम बाबू, मनीष गौतम, राज कुमार वर्मा, आदि काफी संख्या में लोग मौजूद रहे।

Thursday, November 25, 2021

वर्तमान दौर की लोकतांत्रिक व्यवस्था में असहमति की स्थिति-नन्दलाल वर्मा (एसोसिएट प्रोफेसर)

संविधान दिवस की पूर्व संध्या पर
N.L.Verma
(Associate professor)

     किसी भी देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था एक ऐसी खूबसूरत और सर्वोत्तम राज्य व्यवस्था मानी जाती है जिसमें सभी वर्गों या पक्षों की असहमति के लिए ना सिर्फ सम्मान और स्वागत के लिए पर्याप्त जगह होती है, बल्कि वह कई राजनीतिक दलों के अस्तित्व और उसकी राजनीतिक सक्रियता के रूप में उसकी राजनैतिक संस्कृति में विद्यमान होती है अर्थात् असहमति की आवाज़ देश के लोकतंत्र, विपक्ष और प्रबुद्ध नागरिकों के जीवंत होने का लक्षण माना जाता है। असहमति की गुंजाइश के बिना कोई लोकतांत्रिक व्यवस्था स्वस्थ और सशक्त नहीं बन सकती है। आज के दौर में संविधान द्वारा संचालित और नियंत्रित भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था बहुसंख्यकवाद/ हिंदुत्व /कथित नव राष्ट्रवाद व धर्मवाद की सांस्कृतिक चपेट में है और असहमति व्यक्त करने वालों को बाधित और दंडित करने की एक नयी संस्कृति का वर्चस्व और भय स्थापित होता हुआ दिखाई देता है। 

आज बहुत से नए कानून और सरकारी कार्रवाईयों की बाढ़ सी आई हुई है जो रोजमर्रा की व्यक्त की जाने वाली असहमितियों की लोकतांत्रिक आवाज़ को दबाने,कुचलने और चुप कराने का सरकार या राज्य द्वारा लगातार उपक्रम या षड्यंत्र किया जा रहा है। आज आम आदमी की रोजमर्रा की जिंदगी में राजनीति,धर्म और मीडिया के असर की वजह से बेवजह आक्रामकता, नागरिक व्यवहार में सौम्यता,सहजता और परस्पर आदर के बजाय आहत होने, लड़ने और झगड़ने के मुहावरे बढ़ते जा रहे हैं। देश में एक प्रकार से नागरिक लय भंग होता नजर आ रहा है। आज लगभग हर दिन राज्य व्यवस्था अपनी और संवैधानिक-लोकतांत्रिक मर्यादाओं- मूल्यों का उल्लंघन करता हुआ नजर आ रही है जिसका समाज बुरी तरह से शिकार बना हुआ है। आज देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था होने के बावजूद सरकार के प्रति किसी भी प्रकार की व्यक्त असहमति या विरोध को सख्त दंडनीय रूप लेती जा रही है अर्थात वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था में असहमति, जो लोकतंत्र के लिए एक सबसे बड़ी खूबसूरती मानी जाती है,अत्यंत जोखिम और साहस भरा काम हो गया है और असहमति व्यक्त करने वाले कई प्रकार की कानूनी अड़चनों और मुश्किलों में पड़ते दिखाई दे रहे हैं। 

आज संविधान से संचालित और नियंत्रित लोकतांत्रिक या गणतांत्रिक व्यवस्था की सभी संस्थाओं की स्वात्तायता व निष्पक्षता ही समाप्त नहीं हो चुकी है बल्कि, देश के संविधान की व्यवस्थाओं को विफल या निष्प्रयोज्य कर देश के ओबीसी, एससी, एसटी और अल्पसंख्यकों की प्रगति के रास्ते अवरुद्ध कर नफ़रत और आशंकाओं से युक्त माहौल पैदा किया जा रहा है। बार- बार संविधान की समीक्षा के नाम पर एक विशेष संस्कृति से पोषित और नियंत्रित व्यवस्था द्वारा कुछ वर्गों के मन में घोर आशंकाएं और अनिश्चितताएं पैदा कर समाज में साम्प्रदायिक वैमनस्यता के बीज बोकर एक तरह से भय का माहौल पैदा किया जा रहा है। आज देश की संवैधानिक लोकतांत्रिक व्यवस्था एक नए प्रकार की अदृश्य और अपरिभाषित तानाशाही या अराजकता की चपेट में है,अर्थात् देश का संविधान खतरे के दौर में है।

पता- मो० राजगढ़ जिला लखीमपुर-खीरी 262701

Sunday, November 21, 2021

नन्दी लाल की ग़ज़ल

ग़ज़ल


गया जो कुछ गया   ईमानदारी में गया बाबा।
बचा जो इश्क की  दूकानदारी में गया बाबा।।

चुकानी पड़ रही है एक बोसे की बड़ी कीमत,
हमारा माल लाखों का  उधारी में गया बाबा।।

मिला था प्रेम से जो कुछ उसे मिल बाँट खाना था,
भतीजा तो चचा की  होशियारी में गया बाबा।।

हमेशा रात में महबूब      की सूरत नजर आई ,
बचा जो दिन सितारों की शुमारी में गया बाबा।।

बताकर हक मोहब्बत माँगने फिर घर चले आए,
मिला था वक्त खुद की ताजदारी में गया बाबा।।

अँधेरों में बहकता इसलिए  इतना उजाला जो,
बड़ों का तेल छोटो की   दियारी में गया बाबा।।

   नन्दी लाल 
गोला गोकर्णनाथ खीरी

Wednesday, June 09, 2021

ग़ज़ल ( नन्दी लाल)

नन्दी लाल
तमाम उम्र तमाशा हुआ    इसी के लिए।

तुम्हारे होंठ पर बिखरी हुई हँसी के लिए।।

रहेगा याद बहुत साल बेरुखी के लिए,

मसाला खूब मिला यार शायरी के लिए।।

हसीन ख्वाब ,सँजोए हुए खुशी के लिए,

उधार माँग कर लाया हूँ  जिंदगी के लिए।।

दिलों में प्यार का दीपक सदा जलाए रहे,

यह जरूरी नहीं है आज आदमी के लिए।।

मिटा दे लाख अँधेरे सभी राहों के यहाँ,

चिराग एक ही काफी है रोशनी के लिए।।

करो न और भरोसा बड़ा चालाक है वह,

खड़ा है द्वार पे दरबान तस्करी के लिए।।

बताएँ किस से कहें क्या क्या कहें कैसे कहें,

गए हैं भाग जो परदेस    कलमुही के लिए।।

छिनी मजदूर के हाथों की रोटियाँअब तो ,

बहुत निराश हो बैठा है खुदकशी के लिए।।

पता-गोला, लखीमपुर-खीरी

ग़ज़ल (नन्दी लाल)

नन्दी लाल
एक खाने के बनेंगे चार खाने शाम तक।

भूल जायेंगे किए वादे सयाने शाम तक।।

आके चोटी से पसीना एड़ियां छूता है जब,

तब कहीं पाता है पट्ठा चार आने शाम तक।।

भोर है सो कर उठे हैं जो कहे सच मान लो,

याद आयेंगे कहीं फिर से बहाने शाम तक।।

पेट है या फिर किसी वैश्या का पेटीकोट है,

खा गए लाखों नहीं फिरभी अघाने शाम तक।।

देख लें जिसको वही मर जाए अपने आप में

और कितने कत्ल कर देंगे न जाने शाम तक।।

लूट  की हैं इसलिए वह  धूप से बचती रहें,

तान देंगे कुर्सियों पर   शामियाने शाम तक।।

नासमझ कुछ यार अपना दिल बदलते ही रहे,

रूप बदले  रंग बदले  और बाने शाम तक ।।

 

         पता-गोला गोकर्णनाथ खीरी

Tuesday, June 08, 2021

ग़ज़ल-(नन्दी लाल)

नन्दी लाल
दिल से अपने  न अब रहा जाए।

कबतलक जुल्म यह सहा जाए।।

 एक गलती हुजूर की    जिससे ,

पूण्य  सब पाप सँग बहा जाए।।

 साँच कितना है झूठ कितना है,

कुछ तो अखबार में लिखा जाए।।

 आप खुद ही है जानकार बड़े ,

आप से और क्या कहा जाए।।

 देख कर भी न देखती आँखें ,

दुखते पाँवों से कब चला जाए।।

 ये सियासत है झूठ की इसको ,

क्या पता कौन बरगला जाए।।

 है टिकी साँस आस पर जिसकी,

उसकी गर्दन   कोई दबा जाए।।

 जो उसे ठोकरों   में मिलती है ,

आपको   मुफ्त में दवा जाए।।

 कुछ भरोसा नहीं कि कौन कहाँ,

बात ही बात में    रुला जाए।।

 

        पता-गोला गोकर्णनाथ खीरी

Sunday, June 06, 2021

ग़ज़ल (नन्दी लाल)

आँधियों में पार कर देना   मुझे मझधार से।

नाव ने यह बात कर ली है नदी की धार से।।

 

वह कभी कीमत न समझे जान की पहचान की,

यह मुनाफा खोर    चौड़े हो गए व्यापार से।।

 

 भूख जब इन्सान  की बर्दाश्त से बाहर हुई,

 सर पटक कर मर गया तब आदमी दीवार से।।

 

 मौत का मंजर नजर में, फर्श पर लेटा हुआ ,

वह गुजारिश कर रहा बहरी हुई सरकार से।।

 

 बुझ गई जो झोपड़ी की आग दो सुलगा उसे,

 आ गई फिर से खबर उस बेरहम दरबार से।।

 

 काम में अपने बराबर    वह खड़ा मुस्तैद है,

 बेवजह की अब बहस करिए न चौकीदार से।।

 

 कोन जहरीली कहाँ है      कौन सेहत मंद हैं,

 आ रही उड़कर हवाएँ   यह समंदर पार से।।

 


नन्दी लाल

गोला गोकर्णनाथ खीरी


Thursday, June 03, 2021

गजल (नन्दी लाल)

नन्दी लाल


रोशनी में बैठकर के   खो गया महताब में।

राज महलों के झरोखे खूब देखे ख्वाब में।।

 

 बाढ़ क्या आई , कहर टूटा गरीबी पर मेरी,

 मुश्किलें  बहकर हजारों आ गईँ सैलाब में।।

 

 नाज नखरे नक्श उनकी जिंदगी में देखकर,

अक्श उनका आ गया सारा  दिले बेताब में।।

 

 मार मौसम की पड़ी सब सूख कर बंजर हुआ,

 मछलियाँ मरने लगी    पानी बिना तालाब में।।

 

 गिड़गिड़ाता फिर रहा है वह खुदा के नाम पर,

जल रहा था कल दिया जिस शख्स के पेशाब में।।

 

 जिंदगी के दाँव सारे      भूल बैठा आजकल,

 बाज आखिर आ गया उड़ती चिड़ी के दाब में।।

 

 ज़ीस्त की जादूगरी में कैद होकर रह गया,

 खो गया जो भीड़ में, इस दौर केअसबाब में ।।

 


गोला गोकर्णनाथ खीरी

Wednesday, June 02, 2021

ग़ज़ल (नन्दी लाल)

  

 नन्दी लाल

उम्र भर यह वबा का साल तुझे।

 याद आएगा    बहरहाल  तुझे।।

 

मर गया वह गरीब था घर का,

उसके मरने प क्या मलाल तुझे।।

 

 रोज करता नए    दिखावे है,

 उसके अच्छे लगे कमाल तुझे।।

 

 बैठकर काढ़ कसीदे उस पर,

 दे गया वो नया रुमाल तुझे।।

 

 क्यों खड़ा ताक रहा साहब को,

 याद आया कोई सवाल तुझे।।

 

 लोन खाता था रोज रोटी पर,

 आज अच्छी न लगे दाल तुझे।।

 

 राज महलों में क्या नहीं होता,

 झोपड़ी का दिखा बवाल तुझे।।

 

 आँसुओं को सुखा के बैठा है,

 पीटना आ गया है गाल तुझे।।

 

 बेवजह शे'र लिख रहा  ऐसी,

 हो गया क्या है नंदीलाल तुझे।।

 


निवास-गोला गोकर्णनाथ खीरी

Monday, May 31, 2021

नन्दी लाल की दो गज़लें

लिखे जाएँ हमारे इश्क पर    यूँ ही रिसाले फिर।

मोहब्बत से कोई आकर गले में हाथ डाले फिर।।

अदा अंदाज से आकर हमारा दिल चुरा ले फिर,

बहारों में चमन की घूम कर ताजी हवा ले फिर।।

 

समझ जाएँगे उनको इश्क हमसे हो गया है जो,

झुकाकर नैन अँगुली यार होठों पर लगा ले फिर।।

 

बड़ा चालाक आशिक जो कहीं मिलने से डरता है,

बहाना कर कहीं कल की तरह से अब न टाले फिर।।

 

कहीं जो बढ़ गया     बर्बाद कर देगा तेरी हस्ती,

पुराना रोग है जाकर उन्हीं से अब दवा ले फिर।।

 

बड़ी मुश्किल से कुछ आशा जगी थी सिर छुपाने की

बड़े होने से  पहले पेड़ सारे       काट डाले फिर।।

 

सभी अब काटने को दौड़ते    फुफकारते हैं जो,

यही तो बात उसने  आस्तीं मे नाग  पाले  फिर।।

 

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मानता हूँ  आपका       अपना बहाना ठीक है।

क्या किसी की मौत पर हँसना हँसाना ठीक है।।

 

यह बड़े लोगों के घर की बात है झूठी सही,

यार इनका रोज का खाना खजाना ठीक है।।

 

मौत से लड़कर अकेला आज अपनों के लिए,

गा रहा सुनसान में      बैठा तराना  ठीक है।।

 

ठीक है जो भी हुआ अच्छा हुआ इस मुल्क में,

आपका क्या इस तरह से मुँह छुपाना ठीक है।।

 

माँगकर लाई पड़ोसी से सही    अपने लिए,

लीजिए खा लीजिए बासी है खाना ठीक है।।

 

यार तू पाबंदियों से अब जरा बाहर निकल ,

दिन बहुत अच्छे लगे अब तो जमाना ठीक है।।

 

दर्द के दो घूँट पीकर बैठ जा सिर पीट अब,

आँख में ऑंसू लम्हों का थरथरना ठीक है।।

 

आज के इस दौर में   बेदर्द हाकिम के लिए ,

यार दुखते घाव पर  मरहम लगाना ठीक है।।

 

चार दाने की जरूरत है  अगर इस पेट को,

मिल गया मेहनत से तुझको एक दाना ठीक है।।

 


नन्दी लाल

गोला गोकर्णनाथ खीरी

Thursday, May 27, 2021

नन्दीलाल के दोहे

नन्दीलाल के दोहे

 

भाव प्रबल रसपूर्ण हो, शाश्वत छंद अनूप।
कविता का प्रारूप होज्यों वनिता का रूप।।
   
मेघ घिरे पुरवा चली, रिमझिम पड़ी फुहार ।
तपती वसुधा का जहाँकुछ कम हुआ बुखार।।
    
ज्यों-ज्यों बैरी दिन चढ़े, जेठ सताये खूब।
सराबोर अँगिया हुईगई स्वेद से डूब।।
  
रुचि- रुचि कर एड़ी रँगे, वर माँगे भर कोछ।
लत्ता धरे सँभाल कर, पाँव महावर पोछ।।
  
मोम हृदय पर पीय कालेती चित्र उकेर।
बहुत कठिन है दिल जहाँ, हो पत्थर का ढेर।।
  
खत में  उनकी ओर से, लिख करके पैगाम।
डाल दिया फिर डाक में, खुद ही अपने नाम।।
 
यह समाज का बन गया, कुत्सित कलुषित रोग।
हो हल्ला कर चार दिन, चुप हो जाते लोग।।
 
पहले से ही तंग थी, और हो गई तंग।
भीग श्वेद में कंचुकी, चिपक गई सब अंग।।

पूनम की आभा कभी, लगे भोर की धूप।
निर्मल निर्झर सा झरे, तरुणाई में रूप।।
 
मैं कितना धनहीन हूँवह कितने धनवान।
उनके भी भगवान हैं, अपने भी भगवान।।
 
रूपवती का रात में, लख श्रृंगार अनूप।
गजब गुजारे शशि प्रभानखत निहारें रूप।।
 
घी की चुपड़ी रोटियाँथाली भर-भर भात।
घर की परसन हार फिर, हो अँधियारी रात।।
 
को पहिचानै पीर का, समझै कौनु सुभाव।
मूरुखु मनई कै रहा, चाँटि- चाँटि फिरि घाव।।
 
सब विधि से संपूर्ण हैदे यश वैभव ज्ञान।
मंदिर के भगवान सेभीतर का भगवान।।
 
अंतर्मन निर्मल रखे, दे मेहनत पर ध्यान।
अपने पावन देश काहै भगवान किसान।।
 
होता है मजदूर भीएक सहज इंसान।
मंदिर मस्जिद सब जगह, है उसका भगवान।।
 
एक लिखोअच्छा लिखो, घोंचो नहीं पचास।
कुछ तो कविता से नया, हो मन को आभास।।
 
जंगल में चारों तरफ, धूम मच गई धूम।
हँसकर लिया बिलार ने, केहर का मुख चूम।।
 
अलग-अलग संसार का अलग-अलग व्यवहार।
कोई सब कुछ जीतकर, सब कुछ जाता हार।।
 
धन के लालच में गया, सहज आदमी डूब।
हरियाली पर चल रहेआज कुल्हाड़े खूब।।
 
सब पर है भारी प्रभू, एक आपका नाम।
संकट करिए दूर सब ,जग प्रति पालक राम।।
 
क्या बतलाऊँ पीय को, कैसे लगी खरोंच।
छत पर थी,कल गाल पर, मार गया खग चोंच।।
 
खेल-कूद कर प्यार से, विभावरी के अंक।
शीश झुकाये प्रात में, छुपने चला मयंक।।
 
शगुन करे हँस हाथ से, चूड़ी धरे उतार।
कनक कलाई प्यार से, सहलाए मनिहार।।
 
काम निगोड़ा कब थका,  करके जी भर तंग।
फागुन बीता खेल कर, खूब पिया सँग रंग।।
 
जीत गए तो जंग है,हार गए तो खेल।
धीरे धीरे चल रही, जीवन रूपी रेल।।
 
ऊँच-नीच छोटा-बड़ा, हो ब्रहमन या शेख ।
मेटे से मिटता नहीं, हाथ लिखा विधि लेख।।
 
लगते हैं थोड़े बहुत, कुछ लक्षण कुछ योग।
मैं इतना पागल नहीं, जितना समझें लोग।।
 
सूख गई बंधुत्व की, एक नीरदा और।
राजनीति तरु पर खिला कूटनीति का बौर।।
 
चाक देख डंडा हँसा ,माटी देख कुम्हार।
दोनों मिल रचने लगे ,एक नया संसार।।
 
बिन प्रीतम के पा रही, तरुणाई आनंद।
आँगन होली खेलती, भावज और ननंद।।
 
जिन्हें देख अच्छे भले, मन में जायें काँप।
धारण करके केचुली, बने केंचुए साँप।।
 
महुआरी की गंध से, कर फागुन अनुबंध।
कोयल के स्वर में लिखे, मधुरिम छंद प्रबंध।।

रंग न देखो रूप पर ,लगे हजारों शूल।
यौवन में अच्छे लगे,काँटेदार बबूल।।
 
रत्न जड़ित चूनर गया, कोई तन पर डाल।
है धरती की देह पर, प्राची मले गुलाल।।
 
भीगे तन सौंदर्य की, निखरी छटा अनूप।
अँजुरी में भर नीर जब, गोरी निरखे रूप।।
 
शंक्व,वृत्त,आयत,त्रिभुज, वर्ग, कोण, घन चित्र ।
है तन की रेखा गणित ,अपनी बड़ी विचित्र।।
 
पात- पात से रस चुये,अंग- अंग से प्यास।
तन झुलसाने  आ गया ,फिर बैरी मधुमास।।
 
है फागुन करने लगा, पल छिन नये कमाल।
दाई बैठी धूप में, बाबा चूमें गाल।।
 
गोरी बैठी सेज पर, प्रात सँवारे रूप। 
बाहर खिड़की खोल कर, झाँक रही है धूप।।
 
बंद लिफाफे में रखा, मन का प्रेम प्रसून।
बाँच सके तो बाँच ले ,तू खत का मजमून।।
 
अनियारे से नैन है, अलसाये सब अंग।
बिखरे बिखरे केस ज्यों, भरे रूप में रंग।।
 
जितने तेरे कर्म हैं, उतने तेरे रूप।
नारी तेरा विश्व में, हर किरदार अनूप।।
 
उछल कूद करता फिरे, इत उत मारे माथ।
मानो दर्पण लग गया ,जो बंदर के हाथ।।
 
अंगराग से हो गया, चंद्रप्रभा सा रूप।
मन पागल है देख कर, आनन अजब अनूप।।
 
शब्द शब्द से छंद की, झलक रही औकात।
वाह वाह की बात है, वाह वाह क्या बात।।
 
चाहे जितना मोल ले, चूड़ी का इस बार।
एक एक कर प्यार से, पहना रे मनिहार।।
 
अधिकारी को यश मिला, चपरासी को डाँट।
सरकारी धन का हुआ, खुल कर बंदर बाँट।।
 
आतुर है ऋतुराज जो, करने को अभिसार।
पतझड़ में पाकर खड़ी, तन से वस्त्र उतार।।
 
रूप -सिंधु में आ गई, सुंदरता की बाढ़।

देखे अपने आप को, फागुन आँखें काढ़।।

 


नन्दी लाल

पता-हनुमान मंदिर के पीछे लखीमपुर रोड

गोला गोकर्णनाथ खीरी, 991887993

पढ़िये आज की रचना

चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

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