साहित्य

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  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Tuesday, June 15, 2021

ये जिन्दगी, तूं हौसला दे जरा-प्रीती

साहित्य के नवांकुर

प्रीती

मेरी खामोशी के इस पहलू में,

ये जिन्दगी तूं साथ दे जरा।

इन तानों कि बेड़ियों से,

हर रोज गुजरती हूँ यहां-

होता है खामोसी का मनहूस पल,

ये जिन्दगी, तूं हौसला दे जरा ।

ख्वाहिशें है मेरे में, कुछ कर गुजरने की,

मैं हिम्मत हारी हूं न हारूंगी-

क्योंकि तुझमें मैं हूं, मुझमें तूं

ये जिन्दगी, तूं हौसला दे जरा ।

तुझसे मैं, शिकायत करूँ क्या?

हर रोज गिराकर सम्भालती  है,

मंजिल तक जाने की जिद में-

मैं गिरकर उठती हूँ, बस-

ये जिन्दगी, तूं हौसला दे जरा ।

इन कंटक भरे राहों पर-

मैंने खुद को अकेला पाया है,

पर साथ तेरा जो था-

गिरना, उठना फिर चलना,

तुमसे ही तो सीखा है-

ये जिन्दगी, तूं हौसला दे जरा ।

 पता-ग्राम तिवारीपुर पोस्ट अमसिन

जिला-फैजाबाद (अयोध्या), उ०प्र०

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