साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०
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Saturday, June 05, 2021

वर्चुअल रैली (लघुकथा संग्रह) एक समीक्षा-संध्या तिवारी

लघुकथा संग्रह का नाम- वर्चुअल रैली

लेखक का नाम- सुरेश सौरभ

किताब का मूल्य -160/-(पेपर बैक)

250/-(हार्ड बान्ड)

प्रकाशन- इन्डिया नेटबुक्स प्राइवेट लिमिटेड, नोएडा-201301

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सुरेश सौरभ जी की इकहत्तर लघुकथाओं का संग्रह वर्चुअल रैली मुझे तकरीबन दस दिन पहले मिला। मैं पापा की डेथ के कारण माँ के घर में थी यह किताब मेरे पीछे आई हुई रखी थी । मैंने इसे सत्ताइस तारीख को खोला लेकिन मैं अपने मन की उथल-पुथल के कारण इस पर मंथन का मन नहीं बना सकी ।

 अब जाकर कुछ स्थिर हुई हूं तब इस किताब पर कुछ लिखने का साहस जुटा पा रही हूं।

सबसे पहले तो पुस्तक के लेखक को बहुत साधुवाद कि यह किताब उन्होंने उन "कोरोना के शहीदों" को समर्पित की है, जिनकी मृत देह तक सम्मान न पा सकी उन्हें सम्मान देने से ज्यादा बड़ा काम और क्या होगा? इससे ज़्यादा कठिन और क्रूर समय मानव अपने जीवन में क्या ही देख पायेगा।

 अब बात करते हैं सुरेश सौरभ जी लघुकथाओं की, तो उन्होंने खुद ही अपनी "छोटी तहरीर" में कहा है कि "हर लघुकथाकार की यह कोशिश रहती है कि वह बड़ी से बड़ी बात को कम से कम शब्दों में इस तरह सजा कर कह जाये कि पाठक के मुंह से अनायास ही निकल पड़े अरे वाह...क्या बात है...।"  उनकी प्रत्येक लघुकथा में "अरे वाह... क्या बात है" जैसे अंत तो हैं परन्तु उनकी धार उतनी तीक्ष्ण नहीं जितनी कि होनी चाहिए। फिर भी वह अपनी लघुकथाओं में बहुत कुछ कह पाये है इसके लिए उन्हें पाठकों की सदाशयता अवश्य प्राप्त होगी।

सुरेश जी ने अपनी लघुकथाओं में बोलचाल की भाषा को स्थान दिया है इस कारण सामान्य पाठक वर्ग इनको सिर आंखों पर लेगा इसमें सन्देह नहीं। वाक्य-विन्यास सरल है और आम व्यक्ति की रोजमर्रा की घटनाओं से जुड़े हुए हैं जिससे कि पाठकों  को सुरेश जी के लिखे में तनिक भी कठिनाई का अनुभव नहीं होना चाहिए। यही इस किताब की सबसे बड़ी सफलता मानी जानी चाहिए।

 लघुकथा संग्रह की शीर्षक कथा "वर्चुअल रैली" अनुक्रम में सातवें नम्बर पर है जिसमें कि "कोरोना के कारण मजदूरी न मिलने से नायक दुःखी बैठा है  बेटा वर्चुअल रैली के बारे में बार बार पूछता है वर्चुअल रैली के कारण मजदूरी न मिलने से परेशान पिता बेटे की पिटाई लगा देता है बच्चे की मां जब गुस्से से पति की डांट लगाती है तो वह गुस्से में भरकर कहता है कि उसने बेटे को नहीं वर्चुअल रैली को चांटा मारा है।"

 इसी प्रकार लघुकथा एक हाथी की चिट्ठी भी सम्वेदनशील बन पड़ी है । संग्रह की इकहत्तर लघुकथाएं एक ही बैठक में पढ़ी जा सकती हैं। लगभग सभी कथायें अपने में  क्षमतावान बन पड़ी हैं। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से घटनाएं उठाकर लघुकथाएं बुनी गई हैं।

बुनावट बहुत गझिन न सही परंतु आसपास के वातावरण में व्याप्त नकारात्मकता को लेखक का मन कितनी करुणा से भर जाता है जिसके लिए कि उसे कलम का हथियार उठाना पड़ा यह देखना तो बनता ही है। संग्रह की लघुकथाएं पाठक स्वयं पढ़कर निर्णय करेंगे तो अच्छा होगा...।

 सुरेश सौरभ जी उत्तरोत्तर नित नया सृजन करें मेरी उनके लिए बहुत सारी शुभकामनाएं हैं।

 

-संध्या तिवारी

पीलीभीत उत्तर प्रदेश

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