साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Tuesday, June 08, 2021

ग़ज़ल-(नन्दी लाल)

नन्दी लाल
दिल से अपने  न अब रहा जाए।

कबतलक जुल्म यह सहा जाए।।

 एक गलती हुजूर की    जिससे ,

पूण्य  सब पाप सँग बहा जाए।।

 साँच कितना है झूठ कितना है,

कुछ तो अखबार में लिखा जाए।।

 आप खुद ही है जानकार बड़े ,

आप से और क्या कहा जाए।।

 देख कर भी न देखती आँखें ,

दुखते पाँवों से कब चला जाए।।

 ये सियासत है झूठ की इसको ,

क्या पता कौन बरगला जाए।।

 है टिकी साँस आस पर जिसकी,

उसकी गर्दन   कोई दबा जाए।।

 जो उसे ठोकरों   में मिलती है ,

आपको   मुफ्त में दवा जाए।।

 कुछ भरोसा नहीं कि कौन कहाँ,

बात ही बात में    रुला जाए।।

 

        पता-गोला गोकर्णनाथ खीरी

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