साहित्य

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  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Monday, December 06, 2021

गन्ना मूल्य का भुगतान समय पर न होने का अदृश्य अर्थशास्त्र:नन्द लाल वर्मा सोसिएट प्रोफेसर

विमर्श 
नन्द लाल वर्मा सोसिएट प्रोफेसर
    यूपी में किसानों के बकाया गन्ना मूल्य और ब्याज के भुगतान और दिल्ली बॉर्डर पर आन्दोलनरत किसानों की मांगों पर विपक्षी दल क्यों मौन हैं?
सन्निकट विधानसभा चुनाव के बावजूद विपक्षी पार्टियां इन मुद्दों पर अपना राजनैतिक एजेंडा क्यों नही खोल पा रही हैं?
आखिर,कानून और न्यायिक आदेशों का पालन कराने की किसकी जिम्मेदारी....... जब जिम्मेदार अपनी जिम्मेदारी न निभा पाएं तो उनके खिलाफ कार्रवाई कौन करे ?

         लखीमपुर खीरी में बजाज चीनी मिलों पर अभी भी गन्ना भुगतान लगभग ₹800करोड़ बकाया बताया जा रहा है। इस बकाए पर बाज़ार में प्रचलित औसत ब्याज दर पर लगभग ₹8 करोड़ प्रतिमाह ब्याज बनता है। यदि चीनी मिल प्रबंधन को यह राशि बैंक से उधार लेकर भुगतान करना पड़े तो उसे ₹8 करोड़ प्रतिमाह का नुकसान होगा। जब शुरुआती समय में इन्ही चीनी मिलों पर ₹10000(दस हजार करोड़ रुपये) बकाया होता है तो उन्हें ब्याज के कितने करोड़ रुपयों का फ़ायदा होता होगा? मिलों को मोटा फायदा और किसानों को भारी नुकसान। किसान जो गन्ना पैदा करने में बैंक से ऋण लेता है, उस पर उसे ब्याज का अलग भुगतान करना पड़ता है।
          ब्याज की इस अदृश्य अर्थव्यवस्था में स्थानीय/प्रांतीय दलों के नेता और नौकरशाही की हिस्सेदारी से इनकार नही किया जा सकता है, क्योंकि राज्य में 14दिनों के भीतर भुगतान का स्पष्ट कानून और देश की सबसे बड़ी अदालत के फैसले के बावजूद किसानों का ब्याज सहित गन्ना बकाया तो दूर मूलधन तक भुगतान कराने में स्थानीय जिला प्रशासन और सरकार असहाय नज़र आ रही है! चुनावों में स्थानीय राजनीतिक दलों के लोग इन्ही चीनी मिलों के स्थानीय प्रमुखों से अच्छी खासी रकम चंदा के नाम पर वसूलते हैं और चुनाव के नज़दीक आने और हार के डर से सोशल मीडिया पर घड़ियाली आंसू बहाते दिखाई पड़ रहे हैं। विगत कई सरकारों के कार्यकाल में गन्ना मूल्य और ब्याज भुगतान की कमोबेश यही दुर्गति रही है और आगे भी रहने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है अर्थात गन्ना मूल्य और उस पर ब्याज भुगतान के मामले में विगत सरकारों का भी दामन पाक-साफ नही रहा है। नेताओं को केवल चुनावी बेला पर ही किसानों के दुख-दर्द याद आते हैं? चीनी मिल प्रबंधन,राजनीतिक दलों, स्थानीय नेताओं और स्थानीय जिला प्रशासन की मिलीभगत के पीछे यही ब्याज की एक बड़ी अदृश्य अर्थव्यवस्था काम करती है। यह कैसे संभव हो सकता है कि स्पष्ट कानून और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद सरकार और जिला प्रशासन भुगतान कराने में घुटने टेकती नज़र आये? यदि चीनी मिल प्रबंधन के पर्याप्त पैसा नही है तो किसानों की आर्थिक संकट को दृष्टिगत राज्य सरकार गन्ना मिलों को पैसा उधार दें जिससे किसानों के बकाये का भुगतान हो सके।सरकार जो पैसा उधार देगी वह भी जनता से लिये गए टैक्स का ही पैसा होगा।
           जिस दर से  बाजार में गन्ना के मुख्य उत्पाद- चीनी और उसके उपउत्पादों की कीमतें बढ़ती हैं, उसी अनुपात में हर वर्ष किसानों के गन्ने का मूल्य भी बढ़ना चाहिए। सरकारों द्वारा अपने अंतिम वर्ष के चुनावी मौसम में ही गन्ना मूल्य बढ़ाने की मजबूरी दिखाई देती है। किसानों की गन्ना उत्पादन की बढ़ती लागत दर को ध्यान में रखते हुए हर वर्ष गन्ना मूल्य बढ़ाना चाहिए। राजनीतिक दलों को पूँजीपतियों से मोटी रकम चुनावी चंदा के रूप मिलती है और किसानों से चुनावी वर्ष में वोट की राजनीति के डर से आख़िरी साल में नाममात्र की बढ़ोतरी कर किसानों के आक्रोश को शांत करने का उपक्रम किया जाता है।किसान संगठनों को चीनी मूल्य की बढ़ोतरी पर ध्यान केंद्रित कर उसी अनुपात में गन्ना मूल्य बढ़ोतरी की एक मजबूत पालिसी के लिए सरकारों पर अनवरत दबाव की राजनीति करने की संस्कृति पैदा करना चाहिए। किसानों को इस देश की राजव्यवस्था से एक बार अपने वाज़िब हक के लिए जीवन-मरण/आर पार की लड़ाई लड़नी ही होगी तभी सरकारों के कान पर जूं रेंगेगी। तीन कृषि क़ानूनों के विरोध में हुए लंबे आंदोलन और उसकी ताकत के सामने झुकती निरंकुश सरकारों से सीख या प्रेरणा लेने की जरूरत है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में सैकड़ों वर्षों से हो रहे किसानों के शोषण पर अब लोकतांत्रिक तरीके से किये गए आंदोलनों से ही कुछ राहत की उम्मीदें जगी हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था की मुख्य धुरी किसान ही है, वह जैसा चाहे  वैसे ही लोकतांत्रिक सरकारों की चाल और चरित्र तय हो सकता है।किसानों का जीवन अनगिनत प्राकृतिक अनिश्चितताओं और दुश्वारियों से भरा होता है, इसीलिए कोई किसान अपनी आने वाली पीढ़ी को किसान के रूप में नही देखना चाहता है। जय जवान-जय किसान के साथ आन्दोलनरत किसानों की सफलता के लिए हमारा नैतिक समर्थन और हार्दिक संवेदनाएं- शुभकामनाएं।
-लखीमपुर-खीरी।

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