लघुकथा
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डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' |
लघुकथा
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डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' |
लघुकथा
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-डॉ. शैलेष गुप्त ‘वीर’ |
अब ट्रेन पूरी स्पीड में थी। कानपुर चंद मिनटों की बात थी कि टीटीई ने एस-फोर कोच में प्रवेश किया और सात नम्बर की बर्थ से सटे उस नवयुवक को टोका- साबजादे, टिकट...उसने शायद उसकी बात सुनी नहीं या जानबूझकर अनसुनी कर दी। "अबे ओ मनचले, उधर मत निहार, टिकट दिखा।" इस बार आवेश भरे स्वर में टीटीई ने उससे टिकट की माँग की...अच्छा-अच्छा टि-टिकट...इस ज़ेब-उस ज़ेब में हाथ डालने लगा। तीनों महिलाएँ और आस-पास बैठे लोग मुस्कुराने लगे- "...अब स्साले को पता चलेगा। बहुत स्मार्ट...", "एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा जैसे...", बगल में एक सज्जन गीत गुनगुना रहे थे कि तभी हर ज़ेब खँगालने के बाद आख़िर में शर्ट की ज़ेब में हाथ डाला। सर, यह टिकट...एस-फोर, सेवन। तब तुम खड़े क्यों हो? टीटीई ने प्रश्न किया...साब, मेरे अम्मा-बाबू ने मुझे ऐसे ही संस्कार दिये हैं।
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मधुर कुलश्रेष्ठ |
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कपिलेश प्रसाद |
राजनैतिक चर्चा
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नन्द लाल वर्मा |
बीजेपी की तैयारी ज्यादातर सीटों पर येनकेन प्रकारेण कब्ज़ा करने की है तो दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी भी इस चुनाव में पूरे जोर-शोर से अपनी ताल ठोक रही है। अब इंतजार 26 जून और 3 जुलाई का है जब जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए नामांकन और वोट डाले जाएंगे और नतीजे भी उसी दिन घोषित हो जाएंगे।
यूपी विधानसभा चुनाव 2022 से पहले अब जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर होने वाले चुनाव में सियासी दल अपना दम खम ठोक रहे हैं।75 जिलों में होने वाले इस जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए आज यानी 26 जून को नामांकन होना है। ऐसे में बीजेपी की तैयारी है कि इन चुनावों में साम,दाम, दंड, भेद से ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल की जाए। यही वजह है कि अब सरकार के मंत्री भी अपने-अपने क्षेत्र में नामांकन के दौरान मौजूद रहेंगे। पार्टी के उम्मीदवार का हौसला बढ़ाने के साथ ही साथ किस तरीके से लॉबिंग करके उम्मीदवार को जिताया जाए इस पर रणनीति भी तय करेंगे।कई जिलों से खबरें आ रही हैं कि जहां गैर बीजेपी दल मजबूत है, वहां के सपा, बीएसपी और निर्दलीय सदस्यों को स्थानीय जिला प्रशासन के माध्यम से कानूनी दांवपेंच प्रयोग कर या तो हिरासत में लिया जा रहा या फिर उनको सुरक्षित जगह रखा जा रहा है।
प्रदेश में होने वाले 75 जिलों में जिला पंचायत अध्यक्ष पद का चुनाव खासतौर से सत्ताधारी बीजेपी के लिए नाक का सवाल बना हुआ है क्योंकि इस बार बीजेपी ने जिस आक्रामक ढंग से पंचायत चुनाव लड़ा था नतीजे उसके पक्ष में नहीं आए थे।बीजेपी से ज्यादा निर्दलीय जीते थे और बीजेपी तीसरे नंबर पर सपा के बाद चली गई थी। ऐसे में अब जब 3 जुलाई को जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए वोट डाले जाने हैं तो पार्टी की तैयारी है कि 75 में से तकरीबन 60 जिलों में अपना जिला पंचायत अध्यक्ष बनवाया जाए और इसके लिए बीजेपी हर पैंतरा अपना रही है। पार्टी ने निर्दलीयों को साथ जोड़ने के नाम पर कानूनी शिकंजा या अन्य तरह का दबाव बनाना शुरू कर दिया है और कहीं कहीं पार्टी ऐसे लोगों को उम्मीदवार बना रही है जिन्हें कुछ समय पहले अनुशासनहीनता/गुंडागर्दी के चलते पार्टी से निष्कासित कर दिया था।
आज 26 जून को यानी शनिवार को जिला अध्यक्ष पद के लिए नामांकन होना है।यह नामांकन दोपहर 3 बजे तक होगा ऐसे में सरकार के मंत्री अपने-अपने क्षेत्र में नामांकन के दौरान मौजूद रहेंगे और उम्मीदवारों का हौसला बढ़ाएंगे और विपक्षियों पर.......। बीजेपी के उम्मीदवार को जिला पंचायत अध्यक्ष कैसे बनाया जाए इस रणनीति पर भी पार्टी पदाधिकारियों और स्थानीय प्रशासन से बात चल रही है।
दरअसल, बीएल संतोष जब 2 दिन लखनऊ में थे तब भी पंचायत चुनाव को लेकर चर्चा हुई थी और तब मंत्रियों को अपने-अपने जिलों में जिला अध्यक्ष बनवाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। उसके बाद यह तय हुआ कि नामांकन के दौरान भी मंत्री वहां मौजूद रहेंगे। दरअसल, ऐसा माना जा रहा है कि जब पंचायत के चुनाव हुए तब कोरोना की दूसरी लहर की वजह से सरकार के मंत्री पार्टी के उम्मीदवारों के पक्ष में प्रचार के लिए नहीं उतर पाए थे जिसका खामियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ा और नतीजे उसके अनुकूल नहीं रहे। इससे सबक लेते हुए इस बार मंत्रियों को ही मैदान में उतार दिया है। ज्यादातर मंत्री कल नामांकन के दिन प्रत्याशियों के नामांकन में शामिल होंगे।
हालांकि कोविड के चलते नामांकन जुलूस पर तो सभी जगहों पर रोक है लेकिन कोविड प्रोटोकॉल को फॉलो करते हुए नामांकन किया जाएगा। 27 जून को सरकार के सभी मंत्री पूरे प्रदेश में तीसरी लहर के मद्देनजर बच्चों को जो मेडिसिन किट उपलब्ध कराई गई है उसका वितरण भी अपने-अपने क्षेत्रों में करेंगे और इसके बाद मंत्रियों का ब्लॉक स्तर पर दौरा भी होना है यानी 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले अब बचे हुए 8 महीनों में सरकार के मंत्री आपको लखनऊ में कम और अपने विधानसभा क्षेतत्रों में, प्रभार वाले जिले में और ब्लॉक में प्रवास करते ज्यादा नजर आएंगे।क्योंकि आंतरिक कलह की वजह से यूपी का विधानसभा चुनाव बीजेपी के लिए राजनैतिक रूप से जीवन-मरण का विषय बन चुका है
बीजेपी ने इस बार उम्मीदवारों के नाम घोषित करने में भी अपनी रणनीति में बदलाव किया. दरअसल, पहले 3050 जिला पंचायत वार्ड के सदस्यों के नाम की घोषणा लखनऊ मुख्यालय से की गई लेकिन नतीजे पक्ष में नहीं आये. उसके बाद यह तय किया गया कि जिला पंचायत अध्यक्ष पद के उम्मीदवारों के नाम की घोषणा जिला स्तर पर ही की जाएगी. इसके पीछे मंशा यह थी कि किसी नाम पर अगर बवाल हो तो उससे सीधे-सीधे आलाकमान पर सवाल ना उठे, लेकिन इतनी सावधानी बरतने के बाद और कई स्तर पर स्क्रीनिंग करने के बावजूद उन्नाव में पार्टी को दोबारा बैकफुट पर आना पड़ा।
एक तरफ बीजेपी की तैयारी ज्यादातर सीटों पर कब्जा करने की है तो दूसरी तरफ इस चुनाव को विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल मानकर समाजवादी पार्टी भी इस चुनाव में जोर-शोर से अपनी ताल ठोक रही है। हालांकि, लगातार समाजवादी पार्टी इस चुनाव में शासन सत्ता के दुरुपयोग का भी आरोप लगा रही है। लेकिन बीजेपी भी समाजवादी पार्टी को 2015 की याद दिला रही है। अब इंतजार आज यानी 26 जून और 3 जुलाई का है जब पंचायत चुनाव में जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए नामांकन हर वोट डाले जाएंगे और नतीजे भी उसी दिन घोषित हो जाएंगे।जो खबरें मिल रही हैं उससे ज़ाहिर होता है कि बीजेपी सरकार ने विपक्षियों पर नामांकन प्रक्रिया से पहले ही कानूनी शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। क्योंकि मोदी के नेतृत्व में बीजेपी के लिए लोकतंत्र का मतलब मात्र चुनाव जीतना ही शगल बन चुका है। यह सर्वविदित है कि इस तरह के चुनावों में सत्ता का हमेशा दखल रहा है।लेकिन विपक्ष के सदस्यों को थोक भाव मे बिना किसी अपराध के हिरासत में लेने के पीछे की मंशा बहुत कुछ बयां करती है जिसका खुलासा आज के नामांकन दाखिल होने और मतदान की तारीख को हो जाएगा।
पता-लखीमपुर खीरी उ०प्र०
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अजय बोकिल |
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अजय बोकिल |
कोरोना की पहली लहर ने अखबारों को एनीमिक बनाया तो दूसरी लहर ने उनकी बची खुची कमर भी तोड़ दी है। बावजूद अपनी बेहतर विश्वसनीयता के अखबार एक-एक कर बंद होते जा रहे हैं। उनमें काम करने वाले मीडियाकर्मी भी सड़क पर आते जा रहे हैं। वो खुद अपनी आवाज उठाने के लायक भी नहीं रहे हैं, क्योंकि मीडिया अब खेमों में इतना विभाजित हो चुका है कि अपनों की मौत भी उसे ज्यादा विचलित नहीं करती। नौकरियां गंवाने के साथ बीते सवा साल में कोरोना से करीब 500 पत्रकारों ने अपनी जानें गंवा दी हैं। दूसरी तरफ सोशल मीडिया में अखबार अब पीडीएफ के रूप में जिंदा रहने की कोशिश में हैं। यह अखबारों का वामनावतार है। इस बात पर तो चर्चा बहुत होती है कि मीडिया को क्या छापनाध्दिखाना चाहिए, क्या नहीं छापनाध्दिखाना चाहिए, लेकिन मीडिया और मीडिया के अपने हालात क्या हैं, इस पर तो खुद मीडिया वाले भी चर्चा से बचते हैं।
कोविड-1 के समय मीडिया डेंजर जोन में चला गया था, अब कोविड-2 में मीडिया में दो तरह के बदलाव नमूदार हुए और हो रहे हैं। पहला तो ‘जनता की आवाज’ समझे जाते रहे ज्यादातर अखबार अब अपने वजूद की संध्या छाया से जूझ रहे हैं। इस देश में अखबारों 240 साल की महान परंपरा मिटने की कगार पर है। वो पत्रकारिता, जिसने तमाम खामियों के बावजूद आजादी के आंदोलन से लेकर स्वतंत्र भारत में भी कई दूसरे आंदोलन और समाज सुधार के अभियान चलाए, भंडा फोड़ किए अब खुद पाठकों को तलाश रही है। आश्चर्य नहीं कि दो दशक बाद आने वाली नस्ल अखबार की दुनिया को इतिहास के एक अध्याय के रूप में पढ़े। बड़े अखबारों का आकार सिमट रहा है, तो ज्यादातर छोटे अखबार छपना बंद होकर डिजीटल एडीशन पर चले गए हैं। दूसरी तरफ सोशल मीडिया में अखबारों का पीडीएफ और खबरों का लिंक कल्चर तेजी से उभर रहा है। अपनी खबर पढ़वाने के लिए भी हाथ-पैर जोड़ना पड़ रहे हैं कि मेहरबानी कर फलां लिंक को खोलें, लाइक या कमेंट करें। यानी आप का एक लाइक अथवा कमेंट किसी खबर नवीस के लिए जिंदगी की खुराक हो सकता है।
यहां तर्क दिया जा सकता है कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है, इससे मीडिया अपवाद कैसे हो सकता है? अखबारों ने अपनी जिंदगी जी ली, जी भर कर खेल लिया। अब बदले वक्त में इंटरनेट ने सब कुछ बदल कर रख दिया है। मिलेनियल पीढ़ी नेट को ही भगवान मानती है। हाथ में अखबार लेकर पढ़ना, उसके स्पर्श से रोमांचित होना, उसे सुबह की चाय का अनिवार्य साथी समझना, बिना अखबार के दिन सूना-सूना महसूस करना, यह सब 20 सदी के एहसास हैं। या यूं कहें कि यह विचार और सूचना की भूख कम, आदत की लाचारी ज्यादा है। अब जब सूचना के तमाम साधन मौजूद हैं, तब अखबार की जरूरत ही क्या है ? मोबाइल पर हर सूचना हर क्षण मौजूद है।
मुझे याद है कि 2011 में एक प्रतिष्ठित पत्र में लेख छपा था कि भारत में प्रिंट उद्योग के इतने ‘अच्छे दिन’ क्यों चल रहे हैं, जब कि बाकी दुनिया में इंटरनेट धीरे-धीरे अखबारों को लील रहा है। ये वो दिन थे, जब अखबारों में नए-नए संस्करण निकालने की होड़ सी मची थी। ‘हमारे इतने संस्करण’ यह गर्व के साथ कहा जाता था। अब यही बात दबी जबान से भी करने को लोग तैयार नहीं है। नोटबंदी के बाद दूसरा बड़ा झटका कोविड ने पिछले साल दिया, जब लोगों ने बड़ी तादाद में संक्रमण के डर के मारे अखबार बंद कर दिए। विज्ञापन राजस्व 67 फीसदी तक घट गया। हजारों पत्रकारों और मीडिया कर्मियों की नौकरियां चली गईं। अखबार में काम करना दुरूस्वप्न बन गया। कुछ ऐसी ही हालत इलेक्ट्राॅनिक मीडिया की भी है। मीडिया जगत ने सरकार से बेलआउट पैकेज भी मांगा। लेकिन सरकार के लिए दूसरी चिन्ताएं ज्यादा महत्वपूर्ण थीं और जागरूक मीडिया कोई भी सरकार नहीं चाहती। बीते सवा साल में कितने अखबार या चैनल बंद हुए अथवा वेंटीलेटर पर जिंदा हैं, इसका कोई निश्चित आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, लेकिन यह सैकड़ों में है। अखबार बंद होने से बेरोजगार हुए अनेक पत्रकार अब डिजीटल मीडिया या दूसरे नए मीडिया में अपना भविष्य तलाश रहे हैं। कई पत्रकार खुद प्रकाशक बन गए हैं। हालांकि वहां भी अपनी पहचान बनाने और पहचान बचाने की मारा-मारी है। इस बीच कई नवाचार भी देखने को मिल रहे हैं। मसलन नई न्यूज साइट्स, फैक्ट चैक पत्रकारिता, डाटा विश्लेषण पत्रकारिता, सनसनीखेज बहसें आदि। इनमें से कई तो लोगों से चंदा करके अपने वेंचर चला रहे हैं। हर खबर को मसालेदार बनाने का चलन आम होता जा रहा है। उधर यू ट्यूब आदि पर तो ऐसे पत्रकारों का सैलाब-सा आया हुआ है और मौलिकता दांव पर लगी हुई है। सोशल मीडिया में जो दिखाया, बताया जा रहा है, वो कितना सही, कितना गलत है, कितना ज्ञान और कितना एजेंडा है, समझना मुश्किल है।
दूसरी तरफ देश में छपने वाले अखबारों की संख्या सिकुड़ने से सोशल मीडिया और खासकर व्हाॅट्स एप पर हम एक नया ‘पीडीएफ कल्चर’ पनपते देख रहे हैं। अपने ग्रुप में यथाशीघ्र जमाने भर के अखबारों की पीडीएफ उपलब्ध कराना भी अब एक ‘नई समाज सेवा’ है। यह बात अलग है कि इन्हें मुहैया कराने वाले ज्यादातर पीडीएफ सेवकों और पीडीएफ पाठकों को भी ‘पीडीएफ’ का फुल फार्म ( पोर्टेबल डाॅक्युमेंट फार्मेट ) और अर्थ भी शायद ही मालूम होता हो। लोग इतना ही जानते हैं कि व्हाट्स एप पर झलकने वाला अखबार ही पीडीएफ है। आंखों पर जोर डालने वाले ये आॅन लाइन अखबार कितनी गंभीरता से पढ़े जाते हैं, कहना मुश्किल है। अलबत्ता लेकिन किसी खास लेख या खबर को पढ़वाने के लिए भी लेखक या रिपोर्टर को पूरा दम लगाना पड़ता है। यानी समग्रता में अखबार पढ़ना और उस पर मनन का युग भी समाप्ति की ओर है। यह पीडीएफ पत्रकारिता भी बच्चों को रात में तारे दिखाने जैसी है। लेकिन इससे इतना फायदा जरूर हुआ है कि वो तमाम अखबार, जिनके शीर्षक भी आपके लिए मनोरंजन का कारण हो सकते हैं, खूब आॅन लाइन हो रहे हैं।
इसी के साथ एक नई डिजीटल पत्रकारिता संस्कृति भी फल-फूल रही है। गुजरे जमाने में लोग अखबार मांग कर पढ़ते थे, अब डिजीटल में अपनी खबर या लेख लोगों को पढ़वाने गुहार करती पड़ती है। एक ही खबर या सूचना पचासों ग्रुपों में अलग-अलग लिंक के रूप में पोस्ट होती रहती है। हर लिंक आप से लाइक और कमेंट मांगती है ताकि उसके हिट्स बढ़ें। कुलमिलाकर माहौल किसी धार्मिक स्थल पर जमे भिक्षुओं की माफिक होता है। यानी ‘एक लाइक’ या ‘एक हिट’ का सवाल है बाबा ! इस ‘लिंक सैलाब’ के चलते डिजीटल मीडिया में विविधता का भारी का अकाल है। मौलिकता का घोर टोटा है। संपादन की कंगाली है। ऊपर से एक ग्रुप से बचो तो वही खबर दूसरे ग्रुप में लिंक के रूप में आपको चुनौती देती लगती है। संतोष की बात केवल इतनी है कि आप सोशल मीडिया पर जो चाहो, जैसा चाहो, कह सकते हैं, पोस्ट और फारवर्ड कर सकते हैं। क्योंकि किसी के पास सोचने, समझने और मेहनत के साथ उसे अभिव्यक्त करने का न तो वक्त है और न ही ऐसी कोई इच्छा है। दरअसल सोशल मीडिया ‘खबरों का लंगर’ है। जिसको जो मिले, जैसा बने, परोसता रहता है। लोग भी उसे पूरा पढ़े या समझे बगैर फारवर्ड करते रहते हैं। यानी यहां उद्देश्य सूचना की जिज्ञासा के शमन से ज्यादा उसकी चिंगारी सुलगाते रहना होता है। सोशल मीडिया के गुलाम हो चुके, लोगों की मजबूरी यह है कि उन्हें भी हर पल कुछ नया चाहिए। वो सही है या गलत है, इससे किसी को कोई खास मतलब नहीं होता।
सोशल मीडिया की यह ‘अराजकता’ भी अब एक बड़ी ताकत बन चुकी है, जो सत्ताओं को भी हिला देती है। भविष्य का मीडिया यही है। अखबार चाटकर उससे दिमागी भूख मिटाने का दौर खत्म हुआ समझो। सोशल मीडिया पर हर पल आने और फारवर्ड होने वाली सूचनाएं चैंकाने, भड़काने या फिर डराने वाली ज्यादा होती है। इन पर अविश्वास के साथ विश्वास करते जाने का एक नया सामाजिक संस्कार हिलोरें ले रहा है। ऐसा संस्कार जिसकी कोई जवाबदेही नहीं है। हालांकि सरकार सोशल मीडिया पर कानूनी नकेल डालने की कोशिश कर रही है, लेकिन वह बहुत ज्यादा कामयाब नहीं होगी ( उससे राजनीतिक प्रतिशोध का मकसद भले पूरा हो जाए)। क्योंकि यह मूलतरू बिगडैल या स्वच्छंद सांड का बस्ती में घूमना है। लोग उससे डरते भी हैं, साथ में उसे देखते और छेड़ते भी हैं।
किसी ने कहा था कि ये दुनिया अब ‘कोविड पूर्व’ और ‘कोविड पश्चात’ में विभक्त हो जाएगी। अखबारों की थमती सांसें, मीडियाकर्मियों की बेकारी-लाचारी और सोशल मीडिया की बेखौफ लंगोट घुमाने की अदा यही साबित करती है कि तकनीक के साथ सूचनाओं की बमबारी और बढ़ेगी। लोग उससे घायल भी होंगे। लेकिन सूचनाओं की विश्वसनीयता वेंटीलेटर पर पड़ी दिखेगी। इसका आगाज हो चुका है।
वरिष्ठ संपादक दैनिक सुबह सवेरे मध्य प्रदेश
साहित्य के नवांकुर
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रमा कनौजिया |
है इसके लिए कुछ बदले मन ।
न स्थिर रहने वाला, गति करता है
फिर क्यों? मनुस ईमान भी धरता है।।
हैं चर्चे इसके जगत व्यहार में
हर कोई इसको जाने अपना माने,
क्या बच्चे, क्या बूढ़े और जवान
न मिले तो बन जाते हैं हैवान।।
माना कि है जीवन में जरुरी,
किन्तु मनुज, आधार तो नहीं
संतोष पर असंतोष की जीत को,
अपने पर हावी होने तो न दो।।
चाहे काली हो या गोरी सूरत
है सबको ही इसकी जरूरत।
पापी से लेकर धर्मात्मा तक
जताते, सब अपना अपना हक ।।
बावली हुई है रे दुनिया सारी
दुश्मन हो गई लोगों की यारी।
मानव की सोच समंदर में
भाव हैं इसके अपने कलंदर के ।।
ग्राम व पोस्ट- गुदरिया
जिला - लखीमपुर खीरी
नवांकुर नन्हे-मुन्हे कवि
आया जाड़ा आया जाड़ा,
पढ़ने लगे हैं दाँत पहाड़ा।
हवा चल रही ठंडी-ठंडी,
बंद करो अब खुले किवाड़ा।
सूरज कोहरे से डर जाता,
गर्मी ने भी पल्ला झाड़ा।
दादी हलुआ दो गाजर का,
शकरकंद दो और सिंघाड़ा।
पड़े रहे बिस्तर में हरदम,
जाड़े ने हर खेल बिगाड़ा।
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अक्षत अरविन्द |
कक्षा-5
श्री राजेन्द्र गिरि मेमोरियल एकेडमी गोला गोकर्ण नाथ-खीरी
पता-नन्दी लाल ‘निराश‘ हनुमान मंदिर के पीछे
लखीमपुर रोड गोला गोकर्णनाथ-खीरी
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अजय बोकिल |
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नन्द लाल वर्मा (एसोसिएट प्रोफेसर) 9415461224, |
Editorial
Created Asmita (Jan Ki
Baat) blog/page for her works. which
were disqualified from literary pen of news and editorial department of
magazines. Someone has said that creations are not bad. In the year 2019 or
2020, no major literary award (sorry can't remember, I will include
remembrance) was given to such a person whose composition (book) was returned
by not one but many editors saying that this book (manuscript) is meaningless.
And it's pointless.
Therefore, keep
writing, you should have a positive attitude towards the article that comes to
mind, and at the same time keep in mind that what we are writing is meaningful
in itself, it is necessary to evaluate it by ourselves.
In view of my writing interest, the first
suggestion to publish my articles on the blog was given by my own middle
brother Naval Kishore. Because he went to Dubai after completing his graduation
due to the financial condition of the house, it became necessary to get a smart
phone to talk to the family and us. As a result, the brother has already
entered the world of technology. We were able to join late due to our studies
and personal problems and financial condition etc. My reading and writing work
was going on, but the work of teaching in school would be in the month of
September or November, it would be the year 2010 or 2011, when I started teaching at
the end of the month, then we got 390 rupees as remuneration according to the
days taught. My own first earning was that money was used to get a jacket which
was probably worth Rs 590. Because of my single body, we got along with him for
10 or 11 years. In such a situation, getting smart mobile phones etc. was
outside my Transient.
The arrival of the laptop (Naval Kishor had
brought it from Dubai) paved the way to enter social media, in this world my
middle brother is my guru. Started using Facebook, Twitter, etc. from 2014. But
occasionally…… here the continuity continues from 2016, Since then till today I
have made some acquaintance in the field of writing. In writing, I am from
class six, in the writing of that time, the predominance of emotion and rhythm
was more and at the same time that writing was flawed. The first composition
story "The Unknown Attacker (agyat hamlavar)" appeared in the 2010/2011 issue of Saras
Salil. Since then the process of writing started, Facebook, Twitter are good
medium in the field of writing to create a global identity for new writers.....
become an international identity, overnight; what else do you want? Asmita Blog
Page From this year onwards, it has become an online platform for the works of
all your literary companions. 5 or 6 months ago from today a meeting was held
with my Teacher (guru ji) Mr. Rajkishor Gautam regarding literature. This is the place where we
first met Mr. Suresh Saurabh. We keep getting to read your creations on Facebook
etc. We were not fond of literary introduction, but the first meeting of both
of us took place here first face to face. The literary relationship deepened.
The idea of creating
an online web page in this area came to the
mind of Mr. Suresh Saurabh (leading litterateur of the our district), about which
discussions started taking place among-st us. A meeting in this regard was held
again at an interval of a month in which Mr. Rajkishor (Lecturer of English), Mr. Nandlal
Verma (Associate Professor), Mr. Suresh Saurabh (literary writer), Mr. Shyamkishore Bechain (poet), Mr. Ramakant Choudhary (advocate/poet) and
others were present.
In which it was decided that it will be
operated by me because I have some attachment in the online (internet) world...
I gladly accepted. The operation of this page is just an experiment in the
field of literature of the Our district and this experiment has also been
successful. We are happy that since the last month of May till now, there has
been a lot of support from literary colleagues and readers. While putting up
the compositions, it has also been seen that the budding litterateurs of the
district have also come out, whose works have been revised and published under
the 'Sahitya Ke Navankur' column and which give them the nuances related to
literature. Gladly accepted and reposted his compositions, which showed a lot
of improvement in them. We, on behalf of the editorial board, wish and
congratulate these Navankur literary colleagues for their bright future. In the
field of literature, sharpen your writing at uninterrupted speed and become the
voice of the public.
On this page, we are getting the support of
great thinkers, writers, litterateurs, companions (gurus for me) of literature,
we are very grateful to them and hope that your cooperation and guidance in
literature will always be available. With this, we stop this writing here.
translated on 22.06.2021
sub-editorial
Asmita Blog/Page
https://anviraj.blogspot.com
(कविता) (नोट-प्रकाशित रचना इंदौर समाचार पत्र मध्य प्रदेश ११ मार्च २०२५ पृष्ठ संख्या-1 , वुमेन एक्सप्रेस पत्र दिल्ली से दिनांक ११ मार्च २०२५ ...