साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०
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Saturday, August 21, 2021

बुढ़ापे का निवाला पेंशन- गोपेंद्र कु सिन्हा गौतम

लघुकथा

गोपेंद्र कु सिन्हा गौतम
स्वाति, सुरेखा और सुमन तीन बहनें थीं।वे पढ़ने लिखने में काफी होशियार थीं,साथ ही घर के कामों में भी हाथ बंटाने से तनिक भी नहीं हिचकती थीं।न तो तीनों बहनों को कभी भाई की कमी खलती न उनके माता-पिता को बेटे की।जिंदगी तेजी से हंसी-खुशी से गुजर रही थी।
लेकिन होनी को कौन टाल सकता है।पिछले मई माह में उनके माता-पिता एक सप्ताह के भीतर ही काल के गाल में समा गए। दोनों के दोनों दुनिया को तबाह करने वाली बीमारी कोरोना और देश में व्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव के भेंट चढ़ गए। जिसके कारण तीनों बहनों पर दुःख का पहाड़ टूट पड़ा। रातों-रात इनकी देखभाल और पढ़ाई लिखाई की दोहरी जिम्मेदारी अब अवकाश प्राप्त शिक्षक दादाजी पर आन पड़ी। लेकिन दादाजी को मिलने वाले पेंशन से घर खर्च के साथ साथ पढ़ाई-लिखाई का खर्च चलाना काफी मुश्किल होने लगा।यह देख एक दिन तीनों बहनें दादाजी के पास गईं और बोलीं दादाजी ! हमलोगों ने फैसला किया है कि कल से पढ़ाई लिखाई के बाद आसपास के घरों में ट्यूशन पढ़ाने का काम भी करूंगी।इस पर दादाजी नाराज हो गए और बोले तुम लोगों को हमारी बुड्ढी हड्डियों पर भरोसा नहीं है जो ऐसा फैसला हमसे बिना पूछे कर ली। अगर तुम्हें कोई परेशानी है तो कहो।जब-तक मैं जिंदा हूं तुम्हें सोचने की जरूरत नहीं है।अभी तुम्हारे मासूम हाथ कमाने योग्य नहीं हैं मेरी बच्चियों!क्या कहेगा दुनिया जमाना ! अवकाश प्राप्त शिक्षक मनोहर बाबू की पोतियां घर खर्च चलाने के लिए ट्यूशन पढ़ा रहीं हैं।तुम लोग सिर्फ अपने पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान केंद्रित करो।अभी हमारी बुड्ढी हड्डियों में इतनी ताकत है कि कमाकर तुम लोगों को अच्छी तालीम दे सकूं।तुम लोग नहीं मैं बच्चों को पढ़ाऊंगा। फिर कभी ऐसी बात किये तो मैं तुमलोगों को माफ़ नहीं करूंगा।
क्या तुम लोग भी अटल बिहारी की सरकार की तरह हो जो बीच राह में करोड़ों कर्मचारियों को धोखा दे दी थी! और पुरानी पेंशन की नई पेंशन का झुनझुना थमा दिया।जिसके कारण आज हम जैसे करोड़ों कर्मचारी जिंदगी भर कमाने के बावजूद बुढ़ापे में बेसहारा बन जा रहे हैं। एक तरफ तो उन्होंने हमारी बुढ़ापे की लाठी तोड़ ही दी,क्या तुम लोग भी बीच में पढ़ाई-लिखाई से ध्यान हटाकर हमारे बुढ़ापे की अंतिम सहारे को भी समाप्त करना चाहती हो। पोतियों ने दादाजी के कंधे पर सर रखकर एक साथ बोलीं नहीं दादा जी हम अटल जी के जैसे नहीं हो सकते जो आपके बुढ़ापे का निवाला छीन लेंगे!
सामाजिक और राजनीतिक चिंतक
ग्राम देवदत्तपुर,पोस्ट एकौनी, थाना दाऊदनगर, जिला
औरंगाबाद, बिहार
पिनकोड 824113
मोबाइल न 9507341433


Wednesday, July 14, 2021

ऊपर का खेल-सुरेश सौरभ

लघुकथा
सुरेश सौरभ


- हुंह ...अब क्या करोगे?
-आराम।
-सरे राह जब एक अबला लुट रही थी,तब तुम वहां खामोश मुंह लटकाए क्यों खड़े थे, तुम्हें उसे बचाना था?
-खामोश रहना ही हमारी ड्यूटी थी वहां।
-पुलिस होकर भी?
-हां ।
फिर निलंबित काहे हुए?
-ये राजनीति है, तू न समझेगी भाग्यवान।
-फिर अब?
-छःमाह आराम से मौज काट, मनचाहे मलाईदार थाने में अपनी तैनाती कराऊंगा?
-ओह! मैं तो तुम्हारे निलंबन से खामखा परेशान हो गई थी?
-जब तक ऊपर वालों का सिर पर हाथ है, नीचे वाले मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं?

निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी

Monday, June 28, 2021

ज़िम्मेदारी-डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'

  लघुकथा  

डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
अभी श्याम ऑफ़िस से लौटा ही था कि उसकी पत्नी रेनू उस पर बिलबिला उठी- "सुनो जी! आज मैंने तुम्हारी पासबुक देखी है। पिछले एक साल से हर महीने दस हज़ार रुपये किसे ट्रान्सफर कर रहे हो? सच-सच बता दो।" "अरे वो मम्मी-पापा आजकल काफ़ी परेशान रहते हैं। दोनो बीमार चल रहे हैं और इधर कुछ मकान का भी लफड़ा है।" रेनू ने झगड़ने के अंदाज़ में कहा- "यह बकवास मुझे नहीं सुननी। तुम्हीं ने ठेका ले रखा है क्या इन बुड्ढों का। और दूसरे बेटों की कोई ज़िम्मेदारी नहीं है क्या!" "हा, जब उनके बेटे अपनी ज़िम्मेदारी से मुकर गये हैं, तो मेरी ही ज़िम्मेदारी बनती है।" "मतलब", "मतलब यह कि मैं तुम्हारे मम्मी-पापा की बात कर रहा हू। मेरे पापा तो पेंशनर हैं। हर महीने मुझे ही कुछ न कुछ देते रहते हैं। रेनू का चेहरा खिलखिला उठा और एक साँस में बोल गयी- "ओह श्याम! मेरे जानू! कितने अच्छे हो तुम! बैठो न! बहुत थके लग रहे हो। मैं अभी कॉफ़ी बनाकर लाती हूँ।"

सम्पर्क:
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ.प्र.)
पिनकोड- 212601
वार्तासूत्र : 9839942005
ई-मेल : doctor_shailesh@rediffmail.com


मनचला-डॉ. शैलेष गुप्त ‘वीर’

 लघुकथा  

-डॉ. शैलेष गुप्त ‘वीर’
ट्रेन अभी फतेहपुर से छूटी ही थी कि एक पचीस-छब्बीस वर्षीय नवयुवक ने हाँफते हुए अन्दर प्रवेश किया। वह गेट पर ही कुछ पलों के लिए ठिठका और इधर-उधर नज़रें दौड़ने के पश्चात् समीप की ही एक सीट, जिस पर तीन महिलाएँ विराजमान थीं, से सटकर खड़ा हो गया। उन तीनों महिलाओं ने उसे हिकारत भरी नज़रों से घूरा, किन्तु इसका उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उन महिलाओं में से एक प्रौढ़ा थी, किन्तु बाक़ी दो...बला की ख़ूबसूरत जवान युवतियाँ। ख़ैर ट्रेन धीरे-धीरे स्पीड पकड़ रही थी..."क्यों भाई तेरे को और कहीं जगह नहीं मिली, यहीं हमारे सर पे ही खड़ा होना था। माँ-बाप जाने कैसे संस्कार देते हैं इन युवकों को...लड़कियाँ देखी और निहारने लगे...ए...ओ...मनचले, तुझसे ही कह रही हूँ, अपना ठौर कहीं और ढूँढ़ ले।" प्रौढ़ा ने अपना आक्रोश ज़ाहिर करते हुए हट जाने की चेतावनी दी...पर वह बंदा मानो कसम खाकर आया था। ख़ामोशी की चादर ओढ़े निर्विकार भाव से वहीं खड़ा रहा। माँ जी के इतना कहने के बाद भी यहीं पर...अंगद की तरह पैर...बेशर्म यहीं पर...मेरा वश चले तो...चप्पलों से...।" वे दोनों युवतियाँ आपस में बतियाए जा रही थीं।

 

अब ट्रेन पूरी स्पीड में थी। कानपुर चंद मिनटों की बात थी कि टीटीई ने एस-फोर कोच में प्रवेश किया और सात नम्बर की बर्थ से सटे उस नवयुवक को टोका- साबजादे, टिकट...उसने शायद उसकी बात सुनी नहीं या जानबूझकर अनसुनी कर दी। "अबे ओ मनचले, उधर मत निहार, टिकट दिखा।" इस बार आवेश भरे स्वर में टीटीई ने उससे टिकट की माँग की...अच्छा-अच्छा टि-टिकट...इस ज़ेब-उस ज़ेब में हाथ डालने लगा। तीनों महिलाएँ और आस-पास बैठे लोग मुस्कुराने लगे- "...अब स्साले को पता चलेगा। बहुत स्मार्ट...", "एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा जैसे...", बगल में एक सज्जन गीत गुनगुना रहे थे कि तभी हर ज़ेब खँगालने के बाद आख़िर में शर्ट की ज़ेब में हाथ डाला। सर, यह टिकट...एस-फोर, सेवन। तब तुम खड़े क्यों हो? टीटीई ने प्रश्न किया...साब, मेरे अम्मा-बाबू ने मुझे ऐसे ही संस्कार दिये हैं।

सम्पर्क:
18/17, राधा नगर, फतेहपुर (उ.प्र.)
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Saturday, June 19, 2021

कोरोना में शादी- सुरेश सौरभ

  लघुकथा

   एक मंदिर। एक पंडित। एक दूल्हा। उसके साथ एक बराती, उसका बाप। एक दुल्हन। उसके साथ एक घराती उसकी मां। बाकी सब जगह कोरोना। शादी मंदिर में हो गई।
     शादी के बाद उनके सुख से दिन बीतने लगे। दो बच्चे हुए। वे बरसों बाद जवान हुए। एक बेटी की शादी की।अपनी प्रतिष्ठा और परंपराओं की खातिर लाखों खर्च किए। उन पर कर्जा हुआ। वह बहुत परेशान हुए। 
     खर्चे को लेकर पति-पत्नी में वाद-विवाद हुआ। तब कुढ़कर पत्नी बोली-कोरोना काल की ही शादी बढ़िया थी-न ज्यादा झंझट न, झूठी परंपराओं के सिरदर्द का बोझ।
   
सुरेश सौरभ


निर्मल नगर लखीमपुर खीरी
पिन-262701
मो-7376236066

Sunday, June 13, 2021

सकारात्मकता-सुरेश सौरभ


 लघुकथा 

लॉक डाउन की उपयोगिता और उससे उपजी जन समस्याओं पर गूगल मीट पर परिचर्चा हो रही थी। प्रोफेसर डॉव सारिका सिंह ने तर्क रखा,‘लॉक डाउन से लोग कम संसाधनों में जीना सीख गए हैं। एकान्तवास में रहते-रहते लोगों में सकारात्मकता आ रही है। सड़कों पर तमाम वाहनों की आवाजाही कम होने से, फैक्ट्रियाँ,कारखाने बंद होने से, प्रदूषण बहुत कम हुआ है। आकाश कितना निर्मल और स्वच्छ लग रहा है। अदभुत प्राकृतिक सौंदर्य लॉक डाउन के कारण बढ़ा है, जिसकी अनोखी छटा रूहानी सुकून दे रही है। उनके ही महाविद्यालय की प्रोफेसर क्षमा गुप्ता ने उनके तर्क का खण्डन करते हुए कहा-लंबे समय तक लॉकडाउन के कारण सारी फैक्ट्रियाँ बंद हैं, कारखाने बंद हैं, जिससे गरीबों, मजदूरों और प्राइवेट कामगारों की जीविका का निर्वाह होना मुश्किल हो गया है। लंबे समय तक का लॉकडाउन, और बार-बार का लॉकडाउन, कोराना रोकने का कारगर इलाज नहीं? जरूरी यह है कि सरकार टेस्टिंग बढाए,जरूरत के हिसाब से दवाएँ,बेड,वेंटिलेटर और डॉक्टरों की भारी कमी को पूरा करे,जिससे इस कोरोना पर पूरी तरह काबू पाया जा सके,पर सरकार कहीं मंदिर बनवाने में, कहीं मूर्ति लगवाने में,कहीं सेन्ट्रल विस्टा, तो कहीं स्टेडियम बनवाने में पड़ी रही और कोरोना काल के साल भर में बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं को दुरूस्त करने में उसने कोई रूचि न ली।

    उनके इस तर्क से डॉ0 सारिका चिढ़ गई, तैश में बोलीं-कुछ लोग हमेशा नाकारात्मकता ही फैलातें रहतें हैं। सरकार लोगों के लिए क्या कर रही हैं,यह उनको नहीं दिखता हैं, छिद्रान्वेषी लोगों का काम ही होता, बस हर काम में कमियाँ निकालना।

   फिर बहस लॉक डाउन की खूबियों और खराबियों के पक्ष-विपक्ष में चलती रही।

    दो माह बाद डॉ0 सारिका की कोरोना से मौत हो गई।

   उनके लड़के भक्त सिंह ने सोशल मीडिया पर एक रोते हुए एक वीडियो डाला जिसमें वह कह रहा था-ऑक्सीजन, वेटिंलेटर न मिल पाने के कारण मेरी माँ की मौत हुई। मेरी माँ की मौत का असल कारण सरकार की बदइंजामी है। यह क्रूर सरकार किसी की सगी नही हैं।

 

पता-निर्मल नगर लखीमपुर खीरी

पिन-262701

Saturday, June 12, 2021

पैसे की सेवा-सुरेश सौरभ

 लघुकथा 

करीम मियाँ क्वारन्टीन में तसल्ली से अपने दिन काट रहे थे। वह कोरोना पोजीटिव हो गये थे। घर पर ही उन्हें डाक्टरों ने क्वारन्टीन किया था। बेटें, बहुएं और पोते-पोतियाँ पल-पल उनका हाल-चाल फोन से लेते और खाना-पानी दवाई आदि उचित समय पर, उचित दूरी से दे जाते। अभी वह मस्ती में दोस्तों की चैटिंग का जवाब दे ही रहे थे, तभी उनके पुराने साथी दशरथ मांझी का फोन आ गया-करीम ने फोन रिसीव किया, उधर से आवाज आई-और करीम मियाँ कैसे हो?

'सब अल्लाह का करम है, अब बुढ़ापे में यही सब देखना बाकी रह गया था। तुम्हारी भाभी जान तो, पाँच बरस पहले मुझे तन्हा छोड़ करके चलीं गईं। अब इस कोरोना ने इस कदर तन्हा किया है कि बस अब कोई हाल न पूछो।

'अरे! चिन्ता न करें भाई, जल्दी ही स्वस्थ हो जाएंगे, डरे बिल्कुल न।'

'हुंह अब मुझे कौन चिन्ता, कौन सा डर। पहले से गुड फील कर रहा हूँ। कहीं सब्जी लाओ, कहीं दूध लाओ, कहीं राशन-वाशन बाजार से लाओ। कहीं मुन्ने को छोड़ कर आओ, कभी लेने जाओ, अब तो बड़े सुकून से बैठे-ठाले खाना-पानी समय से मिल रहा है और दवा-दारू भी.. तभी उनके हाथों में चाय आ गई सिप-सिप पीते हुए, ‘पूरे घरवाले पल-पल मेरा ख्याल रख रहें हैं। बड़ा चैनों सुकून मिल रहा है, इस एकान्तवास में। सोचता हूँ, हम बूढ़ों के,अगर ऐसे ही सुकून भरे दिन कटते, तो कितना अच्छा हो।'

'करीम भाई सेवा आप की नहीं, आप की उस चालीस हजार पेंशन की हो रही है, जो आप को हर महीने मिल रही है, जो आप के बाद किसी को न मिलेगी।

जैसे किसी ने, एकदम से, पैरों के नीचे से, जमीन खींच ली हो। जैसे तमाम सुइयाँ पूरे दिमाग में बड़ी तेजी से चुभने लगी हों। करीम मियॉ छटपटाकर खामोश हो गये।

'हैलो हैलो हैलो! क्या हुआ? क्या हुआ? करीम भाई? कुछ बोलते क्यों नहीं?

'चाय पी रहा था, तुमसे बात करने से पहले मीठी लग रही थी। अब पता नहीं क्यों कड़वी लगने लगी है। कुछ तबीयत नासाज़ हो रही है। ठीक है, दशरथ भाई कुछ सिर भारी हो रहा है। बाद में बात होगी, यह कहते-कहते करीम मियाँ ने फोन काट दिया। अब चित लेटे हुए, अपनी खामोश आँखों से छत की ओर एकटक ताक रहे थे। कुछ देर बाद उनकी आँखों से आँसू रिसने लगे। तभी फोन कें कें कें करने लगा। नम्बर देखा, बहू का था।कंपकंपाते हाथ बढ़े,पर एकाएक ठहर गये। बेहद आंतरिक पीड़ा से बुदबुदाए-नामुराद सारी दुनिया स्वार्थी है, हे! कोरोना तू मुझे इस दुनिया से उठाए या न उठाए, पर स्वार्थी और मतलब परस्त दुनिया वालों को जरूर उठा ले।

 


लेखक- सुरेश सौरभ

निर्मल नगर लखीमपुर खीरी

पिन-262701

दावत का मजा-सुरेश सौरभ


 लघुकथा 

मैं उस दावत में जाने को कतई तैयार न था, पर मेरा मित्र पीछे पड़ गया अमां चलो यार, मेरे रिश्तेदार की शादी है। फिर कोई क्या कहेगा?

मैंने कहा-देखो मेरा निमत्रंण नहीं है, उचित नहीं लगता है।

'अरे! यार तू भी किन दकियानूसी बातों में पडा है। इतनी बड़ी पार्टी में कौन आया, कौन गया, कौन ध्यान दे पाता है। उसने अपने तर्क से मुझे निरुत्तर कर दिया।

हम दोनों पार्टी में पहुंचे। अपनी-अपनी इच्छानुसार प्लेटों में लजीज व्यंजन लेकर खाने लगे। तभी मेरे मित्र की नजर, सामने भीड़ में जल्दी-जल्दी खाना खा रहे एक युवक पर पड़ी। और श्याम भाई बढ़िया हैमित्र ने एक सवाल उस पर फेंका। श्याम ने अचकचा कर खाते-खाते हैरत से, मेरे मित्र की ओर देखते हुए, थोड़ा गर्दन झुका कर झेंपते हुए,मौन भाषा में फौरन नमस्कार किया। ठीक है, ठीक है, अरे! कोई दिक्कत नहीं, आराम से खाइए। मैंने देखा अब वह भय-विस्मय से खाते हुए इधर-उधर कनखियों से देखने लगा।  

हम दोनों दावत खाकर लौट रहे थे। तभी मैंने अपने मित्र से पूछा-यार! ये बताओ उस युवक से तुमने ये क्यों कहा ठीक है! ठीक है! कोई दिक्कत नहीं आराम से खाइए।

मित्र हंसते हुए बोला-मेरे गांव का वह गरीब युवक था। बेचारा कोई छोटा-मोटा प्राइवेट काम जहां-तहां करता रहता है। अक्सर देर रात को थका-हारा लौटता है और खाना नहीं बना पाता, तो मजबूरन ऐसे ही किसी न किसी अनजानी पार्टियों में अपने पेट की आग बुझा लेता है।

'अगर किसी ने इसे पहचान लिया तो-मैंने अधीरता से पूछा।

तो क्या एक-दो तमाचे पड़ेंगे, पर भूख के आगे एक-दो तमाचे की परवाह इस जैसे गरीब, बेकार, लाचार बिलकुल नहीं करते?

'अब मुझे लगा दावत का लजीज खाना मेरे हलक में अटकने लगा है। मैं अंदर ही अंदर छटपटाने लगा, फिर अजीब तड़प और खासी उलझन में एकाएक अपने गालों पर हाथ फेरने लगा, सहलाने लगा, ऐसा लगा, किसी ने मेरी कनपटी पर एक जोरदार तमाचा रसीद कर दिया हो। 

 


निर्मल नगर लखीमपुर खीरी पिन-262701 यूपी

 मो-7376236066

Sunday, June 06, 2021

जंगल की आग

सुरेश सौरभ
लघुकथा    

किया जाए, लखनऊ, दिल्ली से बड़े अधिकारी आने वाले हैं किसी दिन, बड़ी चिंता हो रही है लग रहा, अब औचक निरीक्षण हो ही जाएगा?
-चिंता काहे की साहब ?
-अरे यार! यह भी नहीं जानते, हमने जो चोरी-चोरी सैकड़ों पेड़ कटा दिए हैं, उसका हमारे वन विभाग के पास कोई रिकार्ड नहीं है, अगर उन लोगों ने कटे पेड़ों के ठूंठ देख लिए और हमारी चोरी पकड़ी गई, तो फिर हमारी खैर नहीं? हमें नौकरी बचाना मुश्किल होगा भाई?   
-इसका समाधान है साहब, परेशान काहे हैं?
-क्या है भाई! जल्दी बता?
-आग।
अगले दिन जंगल में भीषण आग लग गई। खबर छपी, सैंकड़ों पेड़ जलकर खाक। शीघ्र ही लखनऊ दिल्ली के, वन विभाग के, अधिकारी जंगल में, लगी आग से नुकसान का जायजा लेने के लिए आ रहे हैं।


निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी
मो-7376236066

Tuesday, June 01, 2021

सफाई वाला (लघुकथा)

    एक सड़ी हुई क्षत-विक्षत लावारिस डेड बॉडी अस्पताल में आई। पोस्टमार्टम हाउस में कोई डॉक्टर उसे पहचान नहीं पा रहा था कि बॉडी स्त्री की है या पुरूष की। सड़ांध के कारण, दूर से ही डॉक्टर खानापूरी करना चाह रहे थे। तब डॉक्टरों ने सफाईकर्मी कमरूद्दीन को बुलाया। डॉक्टरों ने उससे कहा कि वह पहचाने कि बॉडी किस की है। कमरूद्दीन ने एक ही क्षण में निहार कर कहा-साहब स्त्री की है।

   तब एक डॉक्टर ने उससे चुटकी ली-यार! ये बताओ हम उतनी देर से नहीं पहचान पाए, तुम इतनी जल्दी कैसे पहचान गये?

   कमर-मैंने दिल की आँखों से, मन की आँखों से देखा।

   दूसरा डॉक्टर बोला-अरे! यार, ये आँखें हमें क्यों नहीं मिली?

   कमर-क्यों कि आप डॉक्टर हैं, मैं सफाई कर्मी हूँ?

   अब वहाँ निःशब्दता में मिश्रित शून्यता, छा गई। डॉक्टर शान्ति से खानापूरी में लग गए।

 

सुरेश सौरभ

 

निर्मल नगर लखीमपुर खीरी

पिन-262701

Saturday, May 29, 2021

लघुकथा, लव-जेहाद

लव जेहाद

 
-सुरेश सौरभ
माँ-बेटी अब हमारे पास यही एक विकल्प बचा है कि तू पुलिस वालों से यही कहे कि तुझे बरगला कर भगाने के लिए वह लड़का यहाँ आया था।

बेटी-पर यह तो सरासर गलत है। हमने एक ऐप के जरिए दोस्ती की, फिर मैंने ही उसे हैदराबाद से यहाँ बुलाया।

माँ तैश में-नालायक तू उसके साथ वहाँ पकड़ी गई है। तू क्या हमारी बिलकुल नाक ही कटाने पर तुली है, करमजली, अब तू वही कहेगी, जो मैं तुझे समझा रही हूँ। वर्ना अपनी सोसाइटी में इज्जत की धज्जियाँ उड़ जाएंगी और ऊपर से धर्म के आवारा सांड, हमें हुड़ेस-हुड़ेस कर कहीं का न छोडेंगे।

बेटी-पर मम्मी, ये तो अन्याय होगा?

माँ-अपनी और हमारी सलामती चाहती है, तो पुलिस के सामने यही कहना कि वह

तुझे लव जिहाद में फँसाने के लिए, बरगलाने के लिए, यहाँ इस शहर में आया था। न मानी, तो तेरे बाप भी मार-मार कर तेरा भुरता बना देंगे।

बेटी टूटे मन से-ठीक है, आप जैसा कहेंगी वैसा ही करूँगी। जैसा लोगों ने, आप को पढ़ाया है, वहीं तुम मुझे पढ़ा रही हो।

उस लड़की से, हैदराबाद से, मिलने आया, वह लड़का लोगों की अनुकम्पा से अब थाने में कैद था। फिर उस लड़की का बयान थाने में आया। फिर धर्म के उजड्ड सांड वहाँ आए। अफरा-तफरी मची। मीडिया कर्मी उस अफरा-तफरी में पूरी तरह कूदे और फिर वह लड़का, बाइज्जत लव जेहाद के जुर्म में जेल भेज दिया गया।

अब लड़की को सजा मिली, उसके बाप ने उसका स्मार्ट फोन छीन कर अपने कब्जे में कर लिया।

 

निर्मल नगर लखीमपुर खीरी पिन-262701 यूपी

मो-7376236066

 

पढ़िये आज की रचना

चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

(फिल्म समीक्षा)      एक मां के लिए उसका बेटा चाहे जैसा हो वह राजा बेटा ही होता है, बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिन्हें हम अपने विचार...

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