(
दैनिक सुबह सवेरे’
में दि. 25 मई 2021 को प्रकाशित)
“बाबा यह कहते दिखाई दे रहे हैं कि एलोपैथी स्टूपिड (मूर्खतापूर्ण) और दिवालिया साइंस है।.........उनकी कुछ आयुर्वेदिक दवाओं से लोगों को लाभ भी पहुंचा है, लेकिन इसका अर्थ नहीं कि वो चिकित्साशास्त्र के सर्वज्ञ हो गए हैं। सेलेब्रिटी होने के नाते बाबा को अपनी बात कहने का हक है, लेकिन देश को भ्रमित करने का हक नहीं है.....”
-अजय
बोकिल
योगाचार्य
बाबा रामदेव ने मेडिकल साइंस, ऐलोपैथी
और ‘स्टूपिड
साइंस’ ( और
प्रकारातंर से एलोपैथिक डाक्टरों को भी मूर्ख) बताकर जो ‘स्टूपिड’
बयान दिया था,
वह देश के स्वास्थ्य मंत्री डाॅ.
हर्षवर्द्धन की याचना पर वापस जरूर ले लिया है, लेकिन
इससे बाबा का एजेंडा बदल गया है, ऐसा
मानना मूर्खता ही होगी। क्योंकि अपने बयान पर खेद जताने के बाद बाबा ने फिर आईएमए
को चिट्ठी लिखकर चुनौती दे दी है कि अगर ऐलोपैथी इतनी ही कारगर है तो कोरोना से
इतने डाॅक्टर क्यों मरे ? यानी
यह बवाल खत्म नहीं होना है। इसके पहले डा०
हर्षवर्द्धन को बाबा से यह आग्रह भी इसलिए करना पड़ा क्योंकि एक तो बाबा के बयान
के बाद इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ( आईएमए) ने सरकार को अल्टीमेटम दे दिया था और
कोरोना से जारी इस भयंकर लड़ाई में यदि डाॅक्टर भी अपने हथियार रख देते तो देश में
हाहाकार मच जाता। दूसरे, बाबा
के बयान के बाद खुद डाॅ. हर्षवर्द्धन की मेडिकल योग्यता पर भी प्रश्नचिन्ह लग गया
था, क्योंकि
वो स्वयं नाक,कान,
गला ( ईएनटी) स्पेशलिस्ट हैं। बाबा
के बयान की आयुर्वेदिक चिकित्सकों ने भी यह कहकर कड़ी निंदा की कि किसी भी पैथी की
आलोचना करने का बाबा को कोई नैतिक अधिकार नहीं है। बाबा रामदेव योग व्यायाम के विशेषज्ञ हैं।
आयुर्वेदिक दवा निर्माण के बड़े खिलाड़ी और अब तो कारपोरेट किंग भी हैं। उनकी कुछ
आयुर्वेदिक दवाओं से लोगों को लाभ भी पहुंचा है,
लेकिन इसका अर्थ नहीं कि वो
चिकित्साशास्त्र के सर्वज्ञ हो गए हैं। सेलेब्रिटी होने के नाते बाबा को अपनी बात
कहने का हक है, लेकिन
देश को भ्रमित करने का हक नहीं है। वो पहले भी कई बार विवादित बयान देते रहे हैं,
वह अपनी मार्केट वेल्यू बढ़ाने के
हिसाब शायद ठीक होगा। लेकिन इस बार उन्होंने सीधे तौर पर देश के साढ़े 10 लाख से
ज्यादा मेडिकल डाॅक्टरों और मेडिकल साइंस पर हमला किया है,
और जिसे ‘मूर्खतापूर्ण
विज्ञान’ बताया
है, वह बेहद
गंभीर और पूरे देश की छवि को बिगाड़ने वाला है।
गौरतलब
है कि बाबा रामदेव का हाल में एक एक वीडियो वायरल हुआ ( या किया गया) है,
जिसमें बाबा यह कहते दिखाई दे रहे
हैं कि एलोपैथी स्टूपिड (मूर्खतापूर्ण) और दिवालिया साइंस है। क्योंकि (कोरोना के
मामले में ) क्लोरोक्विन-रेमेडिसिवर फेल हुई, एंटीबायोटिक-स्टेरॉयड
फेल हो गए, प्लाज्मा
थेरेपी पर बैन लग गया। लाखों लोगों की मौत एलोपैथी की दवा से हुई। बाबा के मुताबिक
जितने लोगों की मौत अस्पताल, ऑक्सीजन
की कमी से हुई है, उससे
ज्यादा मौतें एलोपैथी की दवा से हुई है। जबकि
हकीकत यह है कि कोविड 19 की कोई गारंटीड दवा अभी तक तैयार नहीं हुई है।
लिहाजा डाॅक्टर कोविड को नियंत्रित करने के लिए वो दवाइयां दे रहे हैं,
जिसे डब्लूएचअो ने मान्यता दी है।
कोरोना के कारण जो मौतें हो रही हैं, उनमें
से ज्यादातर दवा देने के बजाए जरूरत की दवाएं मरीजों को उपलब्ध न होने के कारण हो
रही है। आॅक्सीजन और ब्लैक फंगस की दवाइयां उपलब्ध न होने के कारण हो रही हैं। यही
हाल वैक्सीन का भी है। देश में सभी राज्यों में पर्याप्त मात्रा में दवा उपलब्ध न
करा पाने के लिए कौन जिम्मेदार है, यह
अलग से बताने की जरूरत नहीं है। बाबा अगर यह मुद्दा उठाते तो शायद कोरोना मरीजों
की ज्यादा मदद होती।
बहरहाल
बाबा के कथित अधकचरे या व्हाट्सएपी ज्ञान पर आधारित बयान पर मेडिकल डाॅक्टरों का
भड़कना स्वाभाविक था। आईएमए के मुताबिक
कोरोना की दूसरी लहर में कोरोना मरीजों का इलाज करते हुए लगभग 400 डाॅक्टरों ने भी
अपनी जानें गंवाई हैं। उस पर संवेदना जताना तो दूर बाबा एक निजी कार्यक्रम में इन
डाॅक्टरों की मौतों को परोक्ष रूप से खिल्ली उड़ा रहे हैं। यह कौन सी संस्कृति है?
जाहिर है कि बाबा के वाहियात बयान
पर देश में मेडिकल डाॅक्टरों के संगठन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने केन्द्रीय
स्वास्थ्यड मंत्री को अल्टीमेटम दे दिया कि वो या तो बाबा रामदेव के खिलाफ कानूनी
कार्रवाई करें या फिर कहें कि वो बाबा रामदेव के साथ हैं। आईएमए ने बाबा को भी
कानूनी नोटिस भेजा है।
आईएमए
की इस चेतावनी और बाबा के मूर्खतापूर्ण बयान की व्यापक आलोचना के बाद
डाॅ.हर्षवर्द्धन ने बाबा को चिट्ठी लिखी कि कृपया अपना बयान वापस लें। उन्होंने
बाबा के बयान को आपत्तिजनक और दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि 'आशा
है कि आप दुनिया भर के कोरोना योद्धाओं की भावनाओं का सम्मान करते हुए अपना
आपत्तिजनक और दुर्भाग्यपूर्ण बयान पूरी तरह से वापस लेंगे। इस तरह का बयान
स्वास्थ्यकर्मियों का मनोबल तोड़ सकता है और कोविड-19 के खिलाफ हमारी लड़ाई कमजोर
हो सकती है। एलोपैथी दवाओं और डॉक्टरों पर आपकी टिप्पणी से देशवासी बेहद आहत हैं।
डाॅ. हर्षवर्द्धन ने बाबा को इतना जरूर चेताया कि उन्हें किसी भी मुद्दे पर कोई भी
बयान समय, काल
और परिस्थिति को देखकर देना चाहिए।'
उधर
आईएमए के कड़े रूख के बाद ‘पतंजलि
योगपीठ ट्रस्ट’ ने
डेमेज कंट्रोल के तहत बयान जारी किया कि रामदेव की ऐसी कोई मंशा नहीं थी। वो तो
ऐलोपैथी को ‘प्रोग्रेसिव
साइंस’ मानते
हैं। पतंजलि के एमडी बालकृष्ण ने ट्वीट कर
बताया कि दरअसल रामदेव (एलोपैथी के
बारे में) एक वॉट्सऐप मैसेज पढ़ कर सुना
रहे थे। उन्होंने खुद एलोपैथी के बारे में कुछ बुरा नहीं कहा। इस बीच केन्द्रीय
स्वास्थ्युमंत्री की चिट्ठी मिलने के बाद बाबा ने जवाबी चिट्ठी लिखकर ऐलोपैथी और
एलोपैथिक डाॅक्टरों के बारे में अपना बयान वापस ले लिया है। अपनी सफाई में बाबा ने
कहा कि वो हर चिकित्सा पद्धति का सम्मान करते हैं। बाबा के मुताबिक उन्होंने कार्यकर्ताओं
के एक सम्मेलन में वॉट्सअप मैसेज पढ़ा था। फिर भी अगर किसी को उस बयान से परेशानी
हुई तो मुझे खेद है।
यहां
बुनियादी सवाल यह है कि आज जिस कोरोना महामारी से जूझने के लिए ज्यादा से ज्यादा
मेडिकल अस्पतालों, डाॅक्टर,
स्टाफ,
दवाइयों और आॅक्सीजन आदि के लिए
मारामारी मची है, उस
दौर में बाबा रामदेव ऐलोपैथी को ‘मूर्खतापूर्ण
विज्ञान’ की
संज्ञा किस के दम पर दे सकते हैं, किस
बुनियाद पर वह एक प्रयोगसिद्ध विज्ञान को ‘दिवालिया’
और ‘तमाशा’
बता सकते हैं?
यह बाबा के द्वारा जानबूझ कर की गई
चूक है अथवा वो एक निश्चित एजेंडे को ही आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं,
जिसका मकसद देश को पूरी
अवैज्ञानिकता के कुंए में ढकेलना है। इस सोच में लोगों का मरते जाना ज्यादा
महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि
एक जगतमान्य पैथी को जमीन में दफन करना ज्यादा महत्वपूर्ण है। दुनिया में कोई पैथी
ऐसी नहीं है, जिसमें
कमियां न हों। क्योंकि हर पैथी में
दवाइयां मानवीय रोगों के लक्षणों और उनके निदान के आधार पर तैयार होती हैं। उनके
प्रयोगों और परिणामों की एक श्रृंखला होती है। उसके तरीके अलग-अलग हो सकते हैं।
यही सिद्धांत गैर एलोपैथिक चिकित्सा पद्धतियों पर भी लागू होता है। दवाइयों के
परिणामों को देखकर और पुष्टि होने पर ही
उसे मरीज को दी जाती है। क्योंकि दवा चाहे किसी पैथी की क्यों न हो,
कोई टोटका या गंडा तावीज नहीं है।
दवा में थोड़ी भी त्रुटि मरीज की जान भी ले सकती है। हमें अपनी चिकित्सा परंपरा पर
अभिमान होना चाहिए, लेकिन
इसके लिए ऐलोपैथी की ऐसी-तैसी करने की जरूरत नहीं है। वैसे भी कोविड के लिए
प्रभावी दवाइयों के अभी प्रयोग ही चल रहे हैं। हमारे यहां डीआरडीअो ने भी एक
प्रभावी दवा तैयार करने का दावा किया है, जिसे
सरकार प्रचारित भी कर रही है। लेकिन बाबा की थ्योरी के हिसाब से तो उसे भी ‘मूर्खतापूर्ण
कोशिश’ का
हिस्सा ही माना जाना चाहिए।
समझना
कठिन है कि किसी एक पैथी को बहुमान्य बताने के लिए किसी दूसरी पैथी को बदनाम करना
जरूरी क्यों है? और
फिर बाबा तो किसी पैथी के विशेषज्ञ नहीं हैं फिर
उन्हें ऐलोपैथी को ‘दिवालिया’
कहने का अधिकार किसने दिया और कौन
इसके लिए उनकी पीठ थपथपा रहा है? दुनिया
में चिकित्सा की तो होम्योपैथी, यूनानी
तिब्बिया, नेचुरोपैथी
आदि पैथियां भी हैं। सब का अपना-अपना महत्व, प्रभाव
और सीमाएं हैं। इनमें भी एलोपैथी का ज्यादा महत्व इसलिए है,
क्योंकि वह दुनिया में सबके लिए
समान रूप से सुलभ है, उसका
ज्ञान सबके लिए खुला है और जो स्वयं को कभी संपूर्ण नहीं मानती। जो पैथी स्वयं में
निरंतर सुधार करती हो ( भले ही इसके पीछे एक बड़ा दवा माफिया भी काम करता है),
उसे ‘तमाशा’
बताने से भारत की प्रतिष्ठा दुनिया
में कितनी बढ़ी है, यह
समझा जा सकता है। हकीकत तो यह है कि बाबा के इस बयान से दुनिया में हमारे देश की
जितनी जगहंसाई हुई है, उसका
दसवां हिस्सा बदनामी भी भारतीय मीडिया द्वारा कोरोना से देश की बदहाली दिखाने से
नहीं हुई। जहां तक कोरोना से मेडिकल डाॅक्टरों
की मौत का प्रश्न है, तो
कौन-सी पैथी अमरता का पट्टा देने का दावा करती है?
यह सवाल ही अपने आप में हास्यास्पद
है। यह अजीब विडंबना है कि जिन डाॅक्टरों और मेडिकल स्टाफ को देवतुल्य मानकर पिछली
लहर में हमने ताली और थाली बजाई, उन्हीं
डॉक्टरों के ज्ञान पर बाबा ने एक झटके में गोबर लीप दिया। यूं सरकार की लाज बचाने
बाबा ने फिलहाल माफी मांग ली है, लेकिन
यह तो अभी शुरूआत है। आगे-आगे देखिए होता है क्या ?
![]() |
अजय बोकिल |
-अजय बोकिल
वरिष्ठ संपादक, सुबह-सबेरे (दैनिक समाचारपत्र, मध्य प्रदेश)
"राइट क्लिक’