चन्दर की गुलेल
चन्दर ने
बनाई एक गुलेल l
तोड़ रहा
था उससे बेल l
कंकड़ धरकर
उसने मारा,
हुआ निशाना उसका
फेल l
एक नहीं
दो - चार प्रयास l
छोड़ी न तब भी
उसने आस l
फिर से उसने
साधा निशाना,
बेल तोड़ कर फिर वो
माना l
हम भी जो फिर जिद में आएं l
बड़े - बड़े लक्ष्यों
को पाएं l
सीख हमें
दे गया ये खेल,
भा गई हमको
प्यारी गुलेल l
काश ! मैं पंछी बन जाता
काश ! मैं
पंछी बन जाता l
सब तारों
से हाथ मिलाता l
हवा में उड़-उड़ खेला करता l
किसी बात से
फिर न डरता,
चाहे जहाँ
मैं आता- जाता l
सुबह सवेरे
शोर मचाता,
जो मन करता वो फल खाता l
काश ! मैं पंछी
बन जाता l
अपने घर
से नानी के घर l
उड़ता रहता
फर फर फर,
परियों के
संग यारी होती l
कितनी मौज
हमारी होती,
सरहद कोई
रोक न पाता l
काश ! मैं
पंछी बन जाता l
आया मौसम गर्मी का
फर-फर -फर-फर हवा
चली,
आया मौसम
गर्मी का l
शुरू हुआ फिर दौर ये देखो,
सूरज की
बेशर्मी का l
झुलस गए सब बाग - बगीचे,
झुलस गई
बच्चों की काया l
आठ बजे हैं घड़ी में अब तक,
सूरज देखों
सर पर आया l
चैन कहीं
भी नहीं हमको,
कूलर से
आकर चिपक गए l
बच्चे हम
तो बच्चे हैं,
बड़े भी
घर में दुबक
गए l
गोलू की नाव
गोलू ने
इक नाव बनाया l
पानी पर
उसको तैराया l
कहीं से आया हवा का झोंका l
आकर उसकी नाव को रोका l
देख उसे
गोलू मुर्झाया l
गोलू ने
इक नाव बनाया l
तभी कहीं
से काजल आई l
उसने आकर
युक्ति सुझाई l
भैया मेरे
मत घबराओ l
चलो नाव एक
और बनाओ l
सुन ऐसा
गोलू हर्षाया l
गोलू ने
इक नाव बनाया l
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शिव सिंह सागर |
शिव सिंह सागर
बन्दीपुर हथगाम
फतेहपुर