साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Saturday, May 22, 2021

रिश्तों के बिखरे धागे (लघुकथा)

हिंदी कहानी- रिश्तों की बगिया (Hindi Short Story- Rishto ki Bagiya)
गूगल से साभार

 

रिश्तों के बिखरे धागे  (लघुकथा)

-सुरेश सौरभ

भीड़। श्मशान घाट। लाशों के पीछे लाशों की लम्बी लाइनें। सबको जलने का इंतजार। और लाशों के साथ आए, उनके कुछ परिजन। कोरोना संक्रमण के भय से उनके सुलगते दिल। कोई रोते हुए कह रहा, 'ऑक्सीजन की कमी से मर रहे। कोई कह रहा 'सरकार की बदइंजामी से सब बेमौत मर रहे। 'हर तरफ मरने का खौफ और संक्रमण के खतरे का भय, लोगों की पुतलियों में अनवरत नाच रहा था। चारों ओर पूरे देश में दिल दुखाने वाला अजीब हाहाकार-चीत्कार मचा हुआ था। बहुत से लोग तो अपने परिजन की लाशों को घोर भय और संशय से लावारिस छोड़-छोड़ कर भाग रहे थे। बेहद खौफ और तनाव में वह भी अपने कोविड संक्रमित पिता की लाश को श्मशान घाट पर लावारिस छोड़ कर भाग आया। अब घर में उदास खामोश मुँह लटकाए बैठा था, "बेटे मैंने तेरे लिए इतना बना दिया है कि तू और तेरी आगे आने वाली कई पीढ़ियाँ, अगर सारी जिंदगी बैठकर खाएं तब भी कभी न कमी  होगी। लेकिन मेरी यही हार्दिक इच्छा है, जब मैं मरूँ तब तू मेरी अंत्येष्टि सनातन परंपरा से करना और मेरे फूल गंगा मैया की गोद में अर्पित कर देना।"..पिता जी बुढ़ापे में अक्सर यह कहा करते थे। अब यही शब्द बार-बार उसके पूरे दिमाग में सैंकड़ों सुईयों मानिन्द चुभ रहे थे। मन-मतिष्क  को उद्वेलित कर रहे थे। दुःखी अंर्तमन की पीड़ा में आँखों से टप-टप आँसू चूने लगी। तभी उसका छः साल का बेटा,उसे रोता देख,उसके पास आया और अपने पापा के आँसू पोंछते हुए बोला-पापा क्यों रो रहें हैं? क्यों आँसू बहा रहें हैं? अच्छे बच्चे नहीं रोते? बेटे को एकदम से अपने सीने में भींच लिया उसने,लरजते शब्दों में बोला-बेटा मैं अच्छा बच्चा बिलकुल नहीं हूँ। गंदा बच्चा हूँ। बेहद गंदा बच्चा हूँ.. तभी उसकी पत्नी भी वहाँ आ गई, सुबकते हुए पति को एकटक करूण नेत्रों से देखने लगी, अपने मन में कह रही थी, "न मेरा दोष न तेरा दोष? सिर्फ इस समय का दोष है। इस समय ने हम सब को गंदा बना दिया। इस कोरोना ने हर मानव को मानवता से जुदा कर दिया।" दूसरी ओर कोराना दूर छिपा हुआ अट्टहास मारे कह रहा था, "ऐ मतलबी दुनिया वालों हमें दोष देने से बेहतर है, पहले अपनी आँखों पर बंधी लोभ, लालच और स्वर्थों पट्टी खोलो तभी इंसानियत और रिश्तों के अपनेपन का सुखद अहसास महसूस कर सकोगे और रिश्तों के बिखरे धागे सहेज पाओगे।

 

सुरेश सौरभ

लेखक- सुरेश सौरभ

निर्मल नगर लखीमपुर खीरी

पिन-262701

No comments:

पढ़िये आज की रचना

चर्चा में झूठी-सुरेश सौरभ

(फिल्म समीक्षा)      एक मां के लिए उसका बेटा चाहे जैसा हो वह राजा बेटा ही होता है, बच्चे कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिन्हें हम अपने विचार...

सबसे ज्यादा जो पढ़े गये, आप भी पढ़ें.