नकलची सोनू
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-सुरेश सौरभ |
सोनू खरगोश पूरे सुन्दर वन में नकलची
बन्दर के नाम से मशहूर था। वह सारे काम निबटाने के बाद वन में निकल पड़ता,
जिसे भी खाते-पीते या कोई काम करते
देखता, तो वह
फौरन उसकी नकल उतार कर चिढ़ाता और जब कोई उसे क्रोधित होकर रपटाता,
तो वह फौरन सर्र से भाग जाता।
एक बार सन्टू और बन्टू नाम के दो कुत्तों
के बीच झगड़ा हो गया, मात्र
एक बोटी को लेकर। बोटी में खूब मांस चिपटा था और ताजी भी थी।
सन्टू बोला-बन्टू मेरे आगे से हट जाओ, बड़े दिनों के बाद यह ताजी बोटी मिली है और तुम बेवजह बीच में टांग अड़ा रहे हो।’
बन्टू गुस्से में बोला-पहले बोटी मैंने देखी
थी। तूने आगे आकर झपट लिया, तो
इसका मतलब ये थोड़ी कि रास्ते में शेर द्वारा गिराई गई बोटी तेरे बाप की हो गई। ये
सार्वजनिक माल है इस पर मेरा भी हक बनता है।
‘सन्टू देखो ज्यादा बात न बढ़ाओ तो
अच्छा है। मेरी जीभ इस बोटी को खाने के लिए लिए मचल रही है और तुम खामख्वाह भिड़े
पड़े हो।’
उनकी तू-तू-मैं-मैं काफी देर तक चलती रही और
अब नौबत लिपटा-लिपटी तक आ पहुंची। सन्टू देशी नस्ल का छका कुत्ता था और बन्टू किसी
विदेशी नस्ल का कसरती बदन वाला कुत्ता था।
दोनों में खूब दे-दनादन जारी हुई। आखिरकार
देशी के दांच-पेंच के आगे विदेशी पानी मांग गया और अपनी टांगें फरकाता हुआ,
पो-पो..ऽ..ऽ...ऽ..करता हुआ भागा।
बोटी पर सन्टू ने हक पाया।
बन्टू कुत्ता पों-पों करता हुआ भागा जा रहा था। रास्ते में सोनू ने उसे देखा और फौरन उसकी नकल उतारने लगा। पों-पों करने और टांगें उचकाने की हरकत जारी की। अब तो बन्टू के पूरे तन-बदन में आग लग गई। उसने सोनू को रपटाया, सोनू बड़े फुर्तीलेपन से भागा, पर बन्टू ने लपक कर उसकी टांग पकड़
ली। अब सोनू बचाओ-बचाओ!
चिल्लाने लगा। सोचा था, आज
भी भाग जाऊंगा मजा लेकर, पर
आज आया ऊंट पहाड़ के नीचे।
उधर से पिंकी लोमड़ी कहीं जा रही थी। सोनू की
करुण पुकार सुनकर उसे दया आ गई। वह बन्टू के पास फौरन पहुंची। बन्टू से बड़े प्यार
से कहा-भैया क्यों एक छोटे से जीव की हत्या करने पर तुले हो। भगवान के लिए इस पर
थोड़ी दया करो। पिंकी के बहुत समझाने पर बन्टू ने सोनू की टांग छोड़ दी,
पर सोनू की टांग में बन्टू के गहरे
दांत धंस गये और खून टप-टप चूने लगा।
फिर पिंकी सोनू को रामू नाम के भालू डाक्टर के
पास ले गई। रामू ने पहले सोनू की मरहम पट्टी की,
फिर कहा-ये दवा बेटा तीन टाइम खा
लेना। ठीक हो जाओगे, पर
आइंदा ऐसी गलती न करना वर्ना जान से हाथ धो बैठोगे।
सोनू-डाक्टर साहब यह मैं कैसे यकीन कर लूं कि
इस दवा से मैं ठीक हो जाऊंगा। लोग कहतें हैं कि कुत्ता काटने के बाद चौदह
इन्जेक्शन लगवाने जरूरी होते हैं और आप मुझे बस घास-फूस वाली दवाएं देकर टरका रहे
हैं।
रामू-देखो सोनू तुम्हारा सामान्य रोग है।
कुत्ता पागल नहीं था इसलिए डरने की कोई बात नहीं। मैं आयुर्वेद का डाक्टर हूं। ये
घास-फूस ही मेरी संजीवनी बूटियां हैं, जो
अंग्रेजी दवाओं के मुकाबले हजार गुना फायदेमंद हैं। तुम एक बार आजमाकर तो देखो
अंग्रेजी दवाओेें का इलाज बहुत मंहगा है और इसके दुष्परिणाम भी तुम भुगत सकते हो,
पर मेरी दवाओं में ऐसा कुछ नहीं
मात्र चार पुड़िया दो रुपये में खाओ और दो दिन में भले-चंगे हो जाओ।
सोनू बोला-डाक्टर साहब मुझे इन्जेक्शन लगवाना
है, चाहे जो
हो मैं अपने जीवन में खतरा मोल नहीं लूंगा। अगर रेबीज मुझ पर हमला कर गया तो ?
सोनू अपनी जिद पर अड़ गया। पिंकी ने उसे बहुत
समझाया, पर
वह न माना। सोनू के अक्खड़पन को देखकर पिंकी सोनू को छोड़कर चली गई।
रामू बोला-सोनू ज्यादा जिद कर रहे हो,
तो इन्जेक्शन मुझे मालूम हैं,
लिखे दे रहा हूं। तुम मेडिकल से ले
आओ मैं लगा दूंगा।’
सोनू पर्चा लेकर दवा लेने गया। वहां मालूम
पड़ा सौ रुपये का एक इन्जेक्शन है। उसके पास इतने पैसे कहां धरे ?
लिहाजा उसने शेरू कुत्ते से दस
प्रतिशत ब्याज की दर से चौदह सौ रुपये लिए। शेरु बड़ा पक्का महाजन था। एक-एक पैसे
कर्जदार से हर हाल में वसूल कर डालता था। फिर चाहे रास्ता उसे सीधेपन का अपनाना
पड़े या टेढ़ेपन का।
सोनू बाजार गया। इन्जेक्शन और सीरेन्ज लाकर
रामू को दिए।
रामू ने सीरेन्ज में दवा भरी। फिर सोनू से
कहा-जरा शर्ट अपनी ऊपर उठाओ और पूरा पेट खोलो। सोनू ने अपना मोटा पेट खोल दिया और
रामू ने सटाक से इन्जेक्शन सोनू के पेट में घुसेड़ दिया। वह उचका। रामू बोला-जरा भी
महाशय हिले, तो
पेट में गलत जगह सुई पहुंच जायेगी और दवा बेअसर हो जायेगी,
दर्द भी बढ़ जायेगा। फिर सोनू ने
रोते-रोते मोटी सुई का कष्ट मजबूरन झेला।
सोनू के चौदह इन्जेक्शन लगे। उसका पूरा पेट
छलनी हो गया। वह दर्द से खूब रोता-छटपटाता। अब पूरी-पूरी रातें जाग कर काट देता।
पेट के दर्द के कारण उसका खेती का कार्य
बिलकुल चौपट हो गया। जब कई माह घर पर ही पड़ा रहा,
तब शेरू सोनू के घर जा पहुंचा। उसने
अपने सूद और मूल की मांग की, पर
सोनू खरगोश था फटेहाल। अब शेरु ने अपना असली रुप दिखाया। उसे जबरदस्ती पकड़ कर अपने
खेत पर लगा दिया कहा-जब तक काम करके मेरी एक-एक पाई नहीं उतारोगे तब तक यही रहो।
सोनू दर्द से छटपटाता कभी फावड़ा चलाता, कभी कुदाल से लगे-लगे अपना शरीर तोड़ता, कभी मेड़बन्दी में उसकी कमर टूटती। अब क्या जब चिड़िया चुग गई खेत ? अब वह अक्सर सोचता काश मैं पिकी की बात मान लेता, थोड़ा रामू की सलाह पर चला होता तो आज यूं मर-मर के न जीता। अब मेरा कर्ज इस जनम उतर पायेगा यह सम्भव नहीं और न ही मैं यह पूछने की हिम्मत कर सकता हूं। कि शेरू भैया मैं तुम्हारे यहां से कब आजाद हो जाऊंगा। जिस दिन यह पूछ बैठा उस दिन मेरी आखिरी हो जायेगी।
निर्मल
नगर लखीमपुर-खीरी उत्तर प्रदेश
मो-7376236066