साहित्य

  • जन की बात न दबेगी, न छिपेगी, अब छपेगी, लोकतंत्र के सच्चे सिपाही बनिए अपने लिए नहीं, अपने आने वाले कल के लिए, आपका अपना भविष्य जहाँ गर्व से कह सके आप थे तो हम हैं।
  • लखीमपुर-खीरी उ०प्र०

Saturday, May 29, 2021

अगड़म- बगड़म चित्र बनाते


-डॉ. सतीश चन्द्र भगत


कुछ उजले कुछ  काले  बादल,

अजब- गजब मतवाले बादल।

कहाँ- कहाँ से उड़- उड़ आते,

अगड़म- बगड़म चित्र बनाते।

 

हिम्मत  वाले  सारे   बादल,

बरखा के गुण खूब बताते।

अजब- गजब वह शोर मचाते,

खेतों में हरियाली   लाते।

 

चित्रकार बनकर वह नभ में,

मनमोहक चित्र खूब बनाते।

उमड़- घुमड़कर नभ से बादल,

पेड़ों को जल से   नहलाते।

 

सूखे  ताल- तलैया भरकर,

अगड़म- बगड़म शोर मचाते।

नदियों को भरकर  इठलाते

गाते,  सागर में मिल जाते।

लेखक निदेशक हैं, हिन्दी बाल साहित्य शोध संस्थान,

बनौली, दरभंगा (बिहार) -847428

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