मै चाहता नही था मगर चाहना पड़ा |
मजबूरियों मे हाथ उसका थामना पड़ा ||
माहौल ऐसा उसने यहाँ कर दिया खड़ा |
उसके सफेद झूठ को सच मानना पड़ा ||
जो बच गए हैं उनपे दोबारा ना घात हो |
इस वास्ते दुश्मन का हाल जानना पड़ा ||
मैं भी कहीं बन जाऊं ना बदनाम मसीहा |
इस डर से गिरहबां में खुद ही झाँकना पड़ा ||
चैनो अमन सुकूँ की हिफाजत मैं कर सकूँ |
इस तरह अपने ख्वाब में भी जागना पड़ा ||
जिन्दा रहे इंसानियत इंसान के अंदर |