“महज बाबा साहब की 22 प्रतिज्ञाओं को शादी कार्ड पर छपवाने के चलते 4 दिन तक वृद्ध बाबूलाल को जेल के हवालात में बंद रखा। सामंती सोच के चलते ऐसा निर्णय लेन कहाँ तक उचित है, आखिर क्या मंशा है स्थानीय थाना प्रभारी देवेन्द्र सिंह की........”
सुल्तानपुर में थाना कोतवाली की पुलिस ने
गांव अभिया खुर्द के निवासी दलित समाज के बाबूलाल को महज इसलिए गिरफ्तार कर हवालात
में डाल दिया, क्योंकि उन्होंने अपनी पोती की शादी के कार्ड में बाबासाहेब की उन 22
प्रतिज्ञाओं को प्रिंट करवा दिया था,
जो स्थानीय लोगों और नाते-रिश्तेदारों के बीच बांटा गया,
जिस पर स्थानीय ब्राहमणवादी के लोगों ने आपत्ति जताई और इसकी शिकायत
जिले के स्थानीय कोतवाली देहात, दोमुंहा थाने में कर दी गई। देखिये पुलिस का रवैया कितनी संगीनता से
इस आपत्ति को संज्ञान में लेकर त्वरित कार्यवाही करती है। जहाँ बाबा साहब का उपासक
बाबूलाल देखते ही देखते अपराधी बन जाता है और बेवजह चार दिन हवालात में अपने को यह
साबित करने के लिए बिता देता है कि वह निर्दोष है।
बाबा साहब के उपदेश वास्तव में देश में
अशांति का माहौल पैदा करता है तो बाबा साहब को दोषसिद्ध करने के लिए कोर्ट में स्थानीय
थाना प्रभारी देवेन्द्र सिंह को अपील करनी चाहिए और उसके लिए एक लम्बी कानूनी लड़ाई
लड़नी चाहिए जहाँ वह यह साबित कर सके कि बाबा साहब के द्वारा दी गयीं यह 22
प्रतिज्ञाएँ देश हित में उचित नहीं हैं।।।।ऐसा कर इन मनुवादियों द्वारा कर लिया
जाता है तो उनके धर्म और समाज के लिए उनका यह बहुत बड़ा परोपकार होगा।
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बाबूलाल, अपराधी |
उत्तर प्रदेश की पुलिस की मनमानी कहें
अथवा इसे सामन्ती वर्ग का शासन, संविधान और कानून के साथ ही साथ वंचित समुदाय पर
दादागिरी, महज बाबा साहब 22 प्रतिज्ञाओं को शादी कार्ड पर छपवाने के चलते 4 दिन तक
वृद्ध को जेल के हवालात में बंद रखा। जहाँ घर में विवाहोत्सव की घर में चार दिन
बाद खुशिया ही क्खुशियाँ थीं, वहां पुलिस की मनमानी रवैया के चलते परिवार के लोग
थाने के चक्कर लगते घूम रहे हैं। ऐसा क्या है बाबा साहब की उन प्रतिज्ञाओं में जिसके
चलते वृद्ध को पोती की विदाई के तीसरे दिन ही गिरफ्तार कर लिया। उन्हें 24
मई से 28 मई तक हवालात में रखा गया। स्थानीय थाना प्रभारी देवेन्द्र सिंह ने
बिना यह देखे कि यह मामला कानून तोड़ने का है या नहीं,
करीब 70 साल के बाबूलाल को किस आधार पर बंद किया यह आपने आप में एक बड़ा प्रश्न
है। क़ानून की अंधेर नगरी ऐसे हावी रही तो वह दिन दूर नहीं जिस दिन बाबा साहब की उन
सभी शिक्षाओं और उपदेशों को गैरकानूनी ठहरा दिया जाएगा जो आज तक तर्क की कसौटी पर
खरी उतरती रहीं हैं।
बाबा साहब ने उन 22 प्रतिज्ञाओं का संकलन
बिना सोचे-समझे नहीं किया था। उनके जीवन का एक बड़े शोध का परिणाम हैं ये
प्रतिज्ञाएँ जो बौद्ध अनुयायियों को उनके जीवन में मार्गदर्शित करती हैं। इन
प्रतिज्ञाओं को बाबा साहब ने सन् 1956 में बाबासाहेब ने बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अपने अनुयायियों को
बौद्ध धर्म की दीक्षा देते हुए दिलवाई थी। जिस प्रकार से गौतम बुद्ध के त्रिशरण और
पंचशील का महत्त्व स्वीकार किया जाता है ठीक उसी प्रकार बाबा साहब के इन उपदेशों
को भी स्वीकार किया जाता है क्योंकि आधुनिक युग के बौद्ध धम्म उद्धारक कहे जाते
हैं। ऐसे में बाबा साहब के इन प्रतिज्ञाओं के खिलाफ पुलिस का यह कार्य निन्दनीय ही
नहीं घोर और एक दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है इसलिए सलिम्प्त पुलिस अधिकारिओं
के खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही करते हुए तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाना चाहिए
और हर्जाने-खर्चे के साथ ससम्मान बाबूलाल को उक्त प्रकरण में मुक्ति दिलवाई जानी
चाहिए। हमारे गाँव-क्षेत्र में इन 22 प्रतिज्ञाओं के कार्ड का चलन बहुतायत में
पाया जाता है आईये कोई इधर भी कानूनी कार्यवाही करने हमें अच्छा लगेगा ही नहीं
अपने समाज के लिए कुछ करने का जज्बा जागेगा।
उपसम्पादकीय
अस्मिता ब्लॉग (anviraj.blogspot.com)